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आभ्यितरनागरज्ञातिः ज्ञानी वैजनाथ सा -- थी ज्ञातिचत्रभन स्यषीतं अभ्यना्थं याटदरँ पुस्तके दृष्टं
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1 इति ध्री्नारदाचरणसरोजरजःकणपविन्रितसतीसर :रथूकसर खस्सं भवाखंडकलानि पिनिखिटविपधिचक्र-
वर्तिश्रीराज्ञानकमम्मटाचा्यश्रीमदस्टाचार्यविरचिते कान्यालंकाररहस्यनिवंषे श्रीकाव्यप्रकाद्नोऽथौरुकारनिणयो नाम
द्राम उन्नासः॥ १० ॥
2 श्रीमद्राजानकार्टमम्मटविरचिते कान्यप्रका्रसंकेते प्रथम उद्रासः।.
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10700तदः ग ई(र्ववह्क, 81108 16 (जनुागा +0 16 1. पाक्ष 7 {16
10110 {०0 : इति श्रीमद्राजानकालरमम्मररुचकविरचिते निजग्रन्थकान्यपरका-
छसङ्केते प्रथम उल्लासः. 10 11118 116 फा1{€ 01 116 (०१७, १] ४०18 818.
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काव्यप्रकादासङ्केतो अन्थकारङूतो मया ।
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श्रीकान्यप्रकाद्राद द्रीने च्चितिकेठविवोधनाख्ये.
2 1४ 1९845: प्रणम्य श्चारदां कान्यप्रकाद्रो बोधसिद्धये । पदार्थविद्रतिद्वारा श्वितिकंठस्य दरर्यते ॥
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संहिता ब्राह्मणानि तदुपयोगिग्रन्थाश्च.
| व्व | च | न= कै
ऋ श्रेणयः. लिपि
ग्रन्थाङ्कः. न्यनाम. कतृनाम, पत्राणि. | अक्ष-
काटः संेदनम्,
राणि. ५
५२०९ |अथववैवेदप्रातिशाख्यम् .-- रोनकः... £ १।४१| ... | | नवीना कारमीरिकी दिपिः।
.| ४७६ | ७।३०| ... | १८. काण्डं विहाय संपूण । स्वररदितः
संहितापाठः | १९.काण्डे ५८.सूक्ताद्-
नन्तरे नुटि; |¦
५२८० | रैव... ..+ |... -| ६६९ | ७।२२| १९२७ २०. काण्डपयैन्ता | असंपूणां मध्यन्नटि-
तत्वात् । स्वररदितः संहितापाठः ।
नवीना कारमीरिकी रिपिः |
इददवं | सैव „++ ० ००. १३४ |१२।४०| ... | पूवां संपूणणम् । संहितापाठः स्वररदहितः ।
नवीना कारमीरिकी लिपिः । |
2 | दिवु सः न्क 993 | .| १३१ |१२।३७| ... | पूवौधं संपूणेम् । संहितापाठः स्वररहितः |
नवीना कारमीरिकी छिपिः |
द. दवि ~ व क , च. .| १२७।१२।३५| ..* | परवौधं संपूर्णम् । संहितापाठः स्वररदितः ।
नवीना कारमीरिकी छिपिः |
क ,..| १३० |१ | ,.. | पूवौषं संपूणैम् । संहितापाठः स्वररहितः ।
नवीना कारमीरिकी छिपिः |
५. श ,| १३० ।१२।३३| ... | १.-९. काण्डान्यसमाप्रानि । संहितापाठः
स्वररहितः | नवीना कारमीरस्किी लिपिः
व 4 „1 1. „| १३३२।१२।३६ ... | १.-५.काण्डान्यसमाप्रानि । संहितापाठः
स्वररदितः | नवीना कारमीरिकी लिपिः
क । वु 4 9 ७५ ।१२।३१| ... | ११.-१९.काण्डान्यसमाप्रानि |स्वररदितः
| संहितापाठः। नवीना कारमीरिकी सिपि;
४0. /- त 4 च 2. ९४ |१२।३७| ... | ११.-१९.काण्डान्यसमाप्रानि । संहिता-
पाठः स्वररहितः.| नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
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ग्रन्थाङ्कः.
६ अथर्ववेदसंहिता ...
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२४०१
२४००
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२२.९८
२२९७
सैव
सैव
सैव
` सैव
सैव
सेव
तेव
सेव
सेव
सैव
सैव
सैव
सैव
मन्थन,
संहिताः । ब्राह्यणानि । | [१२-२५]
श्रेणयः,
कनाम. |पत्राणि,| अक्ष- 4 संवेदनम्.
रागि, न
१३५।११। ... | ४.-°.काण्डान्यसंपूणौन्यारम्मान्ताभा-
वात् | स्वररहितः संहितापाठः | नवीन-
पत्राणि |
४६ |११।२८| ... |४.-६. काण्डानि | £.काण्डमसमाप्रम् |
स्वररहितः सहितापाठः । नवीनपत्राणि |
४६ |१०।२७| ... | ४.५.काण्डे सुपूर्णे | स्वररदितः संहिता-
॑ पाठः | नवीनपत्राणि |
३७ | ८।२८| ... | ४.काण्ड ५. काण्डपूर्वानुवाकचयें च | स्वर-
रहितः संहितापाठः | नवीनपत्राणि |
३४ ।१०।२९| ... | ४. काण्ड ५. काण्डपूवौटवाकत्रयं च | स्वर्-
रहितः संहितापाठः | नवीनपत्राणि |
२८ | ९।२६| ... |४.५. काण्डे असमाप्रे | स्वररहितः संहि-
तापाठः | नवीनपत्राणि |
१७ ११।३२| ... |४.५.काण्डे असपूर्ने आरम्भान्ताभावात् |
स्वरररितः संहितापाठः | नवीनपत्राणि |
१७ ।११।२७। .. | ४.५.काण्डे असंपूर्णे आरम्भान्ताभावात् |
स्वररहितः संहितापाठः | नवीनपत्राणि |
३७ |११।३३ ... । १०.-१२.काण्डान्यसमप्तानि । स्वर
रहितः संहितापाठः । नवीना कारमी-
रिकी लिपिः |
३३ ,.. | १०. ११.काण्डे सपूरणे | स्वररदितः संहि-
तापाठः | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
४० |१२।३४| ... | १०. ११.काण्डे असमाप्त | स्वरराहितः
संहितापाठः | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१९ ११।३६ ... | १०.काण्ड संपूणेम् | स्वरितः संहिता-
पाठः | नवीना कारमीरिकी छ्िषिः|
१८ ११।३५ ... | १०.काण्डं संपूणम् | स्वररहितः संहिता -
पाठः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१९ ११।३२ ... | १०.काण्डं संपूर्णम् । स्वररहितः संहि-
तापाठः | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
[२६-४३] संहिताः ! ब्राद्यणानि । द
श्रेणयः,
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम. कतेनाम. |पत्राणि.| अक्ष- "अ संवेदनम्.
कल,
राणि,
५२७५ |अथर्ववेदसदिता पैप्पखाद्- २०५।१३।४४ १९३२। इदं पुस्तकं महावेदाचायेश्रीडाक्तर्रोटस
"२७७
"रप
५५२४३
"१४१.
५१०८३.
९९०६०
"१०८
"१०६२
१७४
"०५९
"०८ ६
११०८०
"१००४४
"०४५
"१००
०७१
९१०७०
दाखीया
अथववेदुसंहितासवौनुकम- |...
णिका ... |
अश्रताहरण सामवेदस्य
आर्पेयव्राद्यणम् --* ~|...
चर्ग्यजूपि (वाजसनेयिसवा- कालायन
नुक्मणी ) |
चतागरेवधानम् ००० ०००|००
कि
ऋरगवेदभ्रातिशाख्यम् ^. रोनकः
वणतः ~ = `| ऋः प्र्
तदेव ... ... .. मण
उग्वेदप्रातिश्ाख्यभाष्यम् उवट: वज्टपुत्रः
वा अः, शि ऋ) एव
7, = | ` एव्
ऋ्वेदसंहिता .,. ...1...
तिव अनलः उ ` `
ऋग्वेदसंहिताभाष्यं वेदार्थ-सायणः मायणपुत्रः
रकार ०००
त घ्व == | मण
सएव ०० ० सएव
२६
२७
७१०
८१०
६७७
९१
१२७
हस्ते समर्पितात्माचीनभूजंपत्रम्न्थाद्व-
तासितंश्रीमहारजरणवीरतिदाज्ञया | मूल-
भूतपुस्तकसय वणन श्रीयुताक्तर् रोटस्य
८६1)€ा' ^ {12198४८8 110 1९ 8.861170011."
(1111186, 1875) इत्याख्ये मन्थे
द्रष्टव्यम् |
१२।४५| ... | संपूण । ब्रह्मवेदोक्तमच्राणां वृहृत्सवांखक्र-
मणिका इति मन्थनामान्ते चित्रितम् |
नवीना कार्मीरिकी च्पिः |
८।२८।१६१६ | संपूर्णम् | प्रपाठकद्रयपरिमितं स्रयुक्तम् |
८।२३०।१७७४ | सपूणैम् | कोथुमशाीयम् |
८।३१| ... | संपूणैम् | प्राचीनपत्राणि |
९।३१। ... | असमाप्तम् | प्राचीना छिपिः |
८।३५/ १७२६ १७.-१९. पत्राणि न सन्ति |
१०।२४। १७११ संपूेम् |
९।४३/ ... `| संपूणेम् | प्राचीनपत्राणि |
८।३२| ... | १.-४.पट खानि | संपूर्णानि |
१४।५४| १६०२ १६.-१८.पत्राणि न सन्ति |
१०।४६ ,.. | १,-५.पटलानि | ९. १५५.पत्राणि वि-
हाय संपूणानि |
११।४१| ... | पूर्वपटल्तरयम् । ३.परल्मसमाप्रम् ।
प्राचीनपत्राणि |
१०।३७| १८७० संपूण | स्वरयुक्तः संहितापाठः |
७।३२ १८८७ ३.अकं विहाय संपूण | सस्वरः पद्-
पाठः | अध्यायादिषु काव्यायनकृतसवौ-
नुक्रमणीपाठ उदाहतः .
१६।३६| ... | १.अष्टकं संपूणैम् | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१२।४१। ... । १.अएटकस्य १.अध्यायः | १.-५३.
पत्राणि न सन्ति | प्राचीना छिपिः |
११।५०। ... । ५.अष्टकमसमाप्रम् | प्राचीना चिपिः |
८ संहिताः । ब्राह्मणानि । (६१)
न न | च व न्न , | अक्ष-
स १०।२५| ... | नाना मण्डलेभ्यः सूक्तेम्यश्च निष्कृष्ट ऋचः।
स्वररहितः पाठः | |
२० | ६।३०| १५७०| ३. ६.२६.पत्राणि न सनिति | असिमिन्मन्धे
ऋक्सटिताया विशि निगमा अष्ट
काध्यायक्रमेण सपुदादताः । केन निमि-
तेनेति तावन्नावगतम् । ए. 7. 9 समा-
म्नातसय ^“ अण्ड ” इति नामाद्भित-
मन्थय प्रकृतिसाद्यं संभाव्यते । _
२ |१०।२५| ... | संपूणीनि । . ठभ्यन्तेऽत्र वागाम्श्रणीयसू्ता
विरिष्टा्षचैः यासु सरस्वती गणपत्यभि-
धान इन्द्रश्च स्तूयेते | स्वरा न सन्ति |
११६० [ऋग्वेद्संहिताया ऋरक्रिरात् |...
५०५५१ (ऋग्वेद सहिताया ,,.
पदम् (2)
१२०८ख ऋग्वेदसंदहितायाः सूक्तानि...
कान्यपि -“-
४५३८ (ऋग्वेदसंहितायाः सूक्तानि... ८ १३।२५) ... | करमप्रयोगस्तेषां मन््राणां नावगतः | प्राची-
कान्यपि * । नपत्राणि |
५०४९ एेतरेयव्राह्यणम् ..* |.“ ०० -..| ११८१०।३५ १८४५ संपूर्णम् | स्वररहितं बहुहस्तकिलितम् ।
४४०० एते यव्राह्यणमाव्यं माधवी-सायणः.* “* | ६४ |१४।४६| ... | पूर्पञ्चिकात्रयं १.पत्रहीनम् | शके १५४
यवेदार्थप्रकाशः क्षया ˆ“ “तिने मासि सप्तम्यां रवौ समाप्ति
मगमत् इत्यन्ते पाठः |
५०५३. तरेयारण्यकम् ... ३८ (११।३८| १८२० | संपूणैम् |
१६८८ख एेतरेयारण्यकभाष्यं वेदा्थ॑प्र-सायणः .,.| १ ।१६।३६ ... । २.आरण्यक्रल्य ७.अध्यायः संपूणेः | न्-
किः ८ ग =? वीना कारमीरिकी रिपिः |
"५२७९ गोपथव्राद्यणम् करे उर ०० ००.| १९४७४ ९।३०| ..,., -सपूणेम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
91... -"“ “| ८४ |१३।४४ ... | संपूर्णम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
५१४७ |चमकसूक्तं वाजसनेयिसंहि-. .. ४ | <।३६| ... | संपूणैम् | सस्वरः संहितापाठः | प्राचीन-
तायाः ... पत्राणि | ।
११८४ |चरणव्यूहः भ व ४ ११।२८| ... | सपूणैः |
क । त क अ ३५१२ ..+ “~| £| ७।२७| ... | संपूणेः । नवीना काश्मीरिकी स्पिः |
२२७२र्ख| सएव... ... ,.. |... -.~ =| ३ ।१०।४९| ... | सपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
पथवः । स पव ननं "न> [४ ३. |१३।३८| ... | संपूणैः |
८6 /। दु श उ अ ` २५२३ ६ | ८।२२| १६८५ १.पत्रे विहाय संपूणैः |
५२५३ (छान्दोग्यव्राह्मणम् =... -.. “*“ “| र| ७।३०| ... | १. र.प्रपाठकौ सपूरणी | प्राचीनपत्राणि ।
५२६६ [ताण्ड्यव्रा्यणमाष्यं माधवी|सायणः "| ४१२| ८।३द्/ ... | १,-१०.अध्यायाः । संपूर्णः ।
यवेदाथैभ्रकादाः
९१८०
मरन्थाङ्कः. मरन्थनाम, कतृनाम,
२४३९ तैत्तिरीयव्राद्यणभाष्यं माध- सायणः
. वीयवेदारथप्रकादयाः
२४४० | स एव ... सएव
२४४१ सएव... स्पए्व
३४२४क तैत्तिरीयसंहिता ... ......
२४२५-३२ माध-सायणः
वीयवेदाथप्रकाराः
२०२२-२४| सण... सस्व
२४२५५ च धिव तः सपव
२४३६ | स एव ... तएव
३४३७ | स एव ... सएव
३४३ द ध ध = सएव
(क
९५५ ीयसदहितामच्नाः कति-.. .
५ चित् = == र,
तेत्तिरीयारण्यकभाष्यं वेदार्थ-सायणः
प्रका...
तैत्तिरीयोपनिषत् ...
१७०६
५५१२५
०४४८
५५२७१
नचग्रहमच्राः
नेगेयाधिकानुक्रमः
"२२५५
१०५६
पञ्चविरात्राद्यणस् ..
पवमानसूक्तानि ...
०८ र
३४८८
संहिताः । ब्राह्मणानि । ए
श्रेणयः, छिपि- | -
पत्राणि, | अक्ष- | कालः संवेदनम्.
राणि, =
८१ |१३।४८ १. काण्ड १.-^.प्रपाटक्छ अप्मपाः |
१८६ ।१३।४८| १८९३ २.काण्डं संपूणेम् |
२५६ ।१२।४१ १८९३ ३.काण्डं संपूणंम् |
७३
४४७
१७४
१०४
२२०
११९१
९९
[॥
४१
१५
९५
२०२
५५
४२
९५
९।३० २.काण्डम् । २. प्रपाठकादारमभ्येकं पत्रं वि-
हाय संपूर्णम् | १.-१७.पत्राणि १. प्रपाठ-
कधारीणि न ठभ्यन्ते | कुत्र कुचचित्स्वरा-
धित्रिताः । माध्यपिकी लिपिः |
१२।३६ १.काण्डं संपूणेम् |
१३।४४| १८९२ २.काण्डं संपूर्णम् |
१२।४० ३.काण्डं पूणम् |
१३।४० ४.काण्डं संपूणैम् |
१२।४०| १८९२ ५.काण्डं संपूणेम् |
१२।४०| १८९२| ७.काण्डं स॒पूणम् |
१३।३० संपूण: |
१४।५३ १०.प्रपाठको नाराय णीयोपनिषत्सज्ञितो-
ऽसमाप्तः | प्राचीनपत्राणि |
१२।३७ असंपूणीरम्भामावात् । स्वरविहिता ।
जीणेपत्राणि |
८।३९ संपूणौः | प्राचीनपत्राणि |
८।३३ १७१५] असंपूर्णो मध्यनुटिवशात् । नैगेयानामूृद्ताप
दैवतमिति प्रपाठकद्वयनामधेयं मन्थे |
१७१० संपूणम् |
१७।३३। १८९२| १,.-४.अध्यायेषु संपूगानि । ऋष्वेदसं-
हितानवममण्डलस्य १.६७. सू्तान्यत्र
ठम्यन्ते |
८ | २७
७।२० चतुष्वेध्ययेष्वृ्वेद्संहितानवपमण्डलस्य
१.-६७.सूक्तानि । १-१०.पत्राणि न
सन्ति | ।
४।२० ४.अध्यायोंऽसमाप्रः | नवीना कारमीरिकी
कपिः |
त संहिताः । ब्राह्मणानि । [८१-९७]
कि च 1 सि श्रेणयः. £
त & रपि- +
मन्धङ्भः. म्रन्थनाम, कतृनाम. पत्राणि, | अक्ष दः सवदनम्.
राणिः. ॥
|
११७७ . |पितृसूक्तम्--- ` -- --|-.. ... ,..| २।१०।२७ ... | संपूणम् |
१.५६ ब्रह दारण्यकं दातपथनब्राह्यण-... ... .. ७८ | ७।३१ ... । अस्माप्रमर | स्वररहितम् | नवीना का-
चतुदैशकाण्डे --. ... रमीरिकी लिपिः |
२२०३ | तदेव ... „.. |... ८ |१३।४६ १८८४| ४.५. प्रपाठकौ संपूणौं |
५००३. ब्रह दारण्यकव्याख्या सुख्या- द्विवेदगङ्खः ८ ।१६। ... | ५. प्रपाटको ऽसमाप्तः । व्याख्यायास्तत्क-
धप्रकादिका ... .. तुश्च नामनी पाठसंकल्नेनाठुमिते | प्रा-
चीनपत्राणि |
"४४५२ (मनच्रानुक्मणिका --- “-"--- “+ --.| ५ | <८।३०| १८०२ प्रपाठकद्वयमिता | केषां मच््राणामदक्रम-
णिक्रा सेति तावन्न निर्णेतुं शक्तम् |
११.१२ मन्यु सूक्ते ००० = ००० = ०००|०० ००७ ०० २| ८।२८| ... । ऋग्वेद संहितादशममण्डल्स्य ८३. ८४.
1 पूक्ते संपूर्णे | स्वररहितः संहितापाठः ।
; 3 8 स त २१०।२५| ... | सपूर्णे | स्वररहितः सहितापाठः |
११४५ रात्रिसूक्तम् -- ६ | ८।२२| ... | संपूर्णम् । ऋम्बेदसंहितादशममण्डलान्तगैतं
तिलम् |
५२५८ |वंशब्राह्यणम् =... -*|-*" ०० ,-*.| ३ |११।२८ १६७५ संपरणेम् |
५२१६ |वाजसनेयिप्रातिदाख्यभा- ।कालयायनः । १५१ | ८।३२४| ... | संपूणेम् | नवीना कारमीरिकी ल्िः |
ष्यम् -.* .-. “| उवटः वजटपूः
५१०५ (वाजसनेयिसंहिता -.-|** ०० **.| २५७ | £।२२। १८०७ १.-४०. अध्यायाः तंपूणीः स्वररहितः
| , संहितापाठः |
वदे । विवि ` त कः ` कम -“. .-“| २२६ | ६।३२| १८९७ ९.-४०.अध्यायाः | नवमाध्यायारम्भो
| न ठभ्यते | स्वररदहितः संहितापाठः | -
५१०३ | सैवं == न्न ००[र "~+ -.-| १४८ | ६।४४| १६४२ १.-२०.अध्यायाः संपूणाः | स्वरचिहितः
पदपाठः |
५२२० | सैव ... ... ..|-.. ~+ ...| १६५।१०।२५ १९२७] २१.-४०.अध्यायाः संपूणौः | पदक्रम-
पाठः स्वररदहितः | नवीना कारमीरिकी
छिपिः |
कह । शुः क अ . ..“| ११३ | ५।३७| १९२६| २१.-४०.अध्यायाः | २४.अध्याये चटिः।
| स्वररहितः पदपाठः |
८, त ता ०२ “| २४३ १०।२५ १९२७ ३.-२०.अध्यायाः | ३.अध्यायस्यारम्भो
| | नासि | दीधैपाठोपटक्षितपदक्रमपाठः |
| नवीना कारमीरिकी लिपिः |
११९७ | तु शकः ह अरग ~+ -.-| ४६| ६।२१| ... | १,.-५.अध्यायाः| प्वमोऽध्यायोऽसमाप्रः।
दीषेपाठोपलभितः पदपाठः स्वररदितः ।
[९८-१११] संहिताः । ब्ाद्यणानि | | ` &
न न्त | = (हा क्त छिपि.
म्न्थाङ्कः. भअन्थनाम, क्तृनाम, पत्राणि. अक्ष- |, संवेदनम्.
राणि, | कारः.
= ५८ (११ ... | अपंपूणरम्भाभावाघ्रुटितत्वाच | जटापाटः
[ि † सस्वरः | प्राचीनत्वादतिजीणानि पत्राणि |
५१४० |वाजसनेयिसंहिताम्रातिशा- |काल्ायनः १३.| ९।३२| ... | संपूणम् । प्राचीनपत्राणि |
५१२२ वाजसनेयिसंहितामच्रभा- |उवटः वरू: | ५ १८।८०| शके | १.-४०. अध्यायाः | १. ५२. १४२.
द्र , २ ७ ^ पत्राणि नष्टानि ।
५२०८ | तदेव ... .~ ..| सण १९२३।१४।३६ ... | १,-२०.अध्यायाः संपूणौः । नवीना
| . कारमीरिकी छिपिः |
५१०२ | तदेव -.. ..~ ..| सएव ...| १४४ ।११।५८| ... | ३.-२१.अध्यायाः । ३.अध्यायारम्भः
२१.अध्यायस्यान्तं च न स्तः | प्राची-
नपत्राणि |
५५२१४ तदेव ७६ - ककड > १ सण ७४ |१०।४५। ... । २१.-२३ ७. अध्यायाः | अममाप्राः । पा-
चीनपत्राणि । १३.५१.-५६.पत्राणि
नष्टानि |
५१२६ | तदेव त एव॒ ...| २२७ | ९।३३| ... | १.-१३.अध्यायाः संपूणौः । १४.अध्या-
योऽसमाप्तः | २०.२५. १८. १९४.१्-
त्राणि न सन्ति | प्राचीनपत्राणि |
५१६२ (वाजसनेयिसंहिताभाष्यं महीधरः .| ५४८ |१४।४४ ... | संपूणैः | नवीना कारमीरिकी कपिः |
| वेददीपः ००५ ०* 3
४५०९ |वाजसनेयिसंहिताया नमस्त... ४ |१५।२७| ... | वाजसनेयिहितायां १६. अध्याये १,.-४६ ¦
इत्यध्यायस्य यजुरेदः यजंषि संपूणोनि । प्राचीनपत्राणि | `
हुरिस्वामिमतेन ७2 ॥
२६ | ६।३१। १८२३ १,२.५.अध्यायाः | २.अध्यायोऽपेपूणः।
५१०१ [वाजसनेयिसहितायाः सर्वा-कालयायनः
नुक्मणी ,*
११७१ |विष्णुसूक्तानि --. ~. .| रे १०।२४| -.. | कग्वेदसंहितापरथममण्डलस १५४.१५५.
१५६. सूक्तानि । १५६.सूक्तमसमाप्तम् |
.| १८२ ।१७।९२ १८०८ १.-१४.काण्डानि | स्वररहितानि ।
२४.-४५५. पत्राणि नानि |
„| ३१० | ७।३४| ... | ८.-१र.काण्डानि | स्वररहितानि | १२.
काण्डमसमाप्तम् | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
.| ३०२ | ७।३१| ... | ४.-६.काण्डानि तेपूणानि । स्वररदहि-
। तानि | नवीना कारमीरिकी चिपिः।
५१४८ (रतपथव्राह्यणम् ..* -..|-*
क तवति 4 च
` ५१५३ | ` तदेव ,, + „५... कः
ल च्व | (नद| न्न न्थाङ्कः.
५१५० | ००
५१४९
५११६
५१३९
५११३.
५१०६
५११८
५५१५२क्
५१५२ख
५१५३
५१२०
५५१५९
१९१०८
९५११०
९१११२
५५११७
५५१११
"९१०९
तदेव
तदेव
तदेव
तदत
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
तदेव
संहिताः । बाद्यणानि ]
मन्थनाम, कतुंनाम, (पत्राणि,
[११२-१२०]
संवेदनम्.
| | स्वररहिते | २९.-३२.
पत्राणि न सन्ति । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१.काण्ड सस्वर संपूणेम् | नवीना का-
रमीरिकी लिपिः |
१.काण्डं सस्वरम् । १.-देद्पत्राणिन
सन्ति | प्राचीनपत्राणि |
१.काण्डं स्वररहितम् । असंपूणेमारम्भा-
न्ताभावात् | प्राचीनपत्राणि |
१. काण्डं खण्डितम् | सस्वरम् । प्राची-
नपत्राणि |
३.काण्डं सेपूणेम् । सस्वरम् । प्राचीन-
पत्राणि |
६.काण्डं संपूणेम् । स्वरसदरितम् ।
६. काण्डं संपूणेम् | स्वररदितम् । नवीना
कारमीरिकी छिपिः | वक
६.काण्डं | २५.पत्रं विहाय संपूणेम् ।
७.काण्डं संपूणम् | स्वररटितम् । नवीना
कारमीरिकी लिपिः | |
८. काण्डं संपूणैम् । स्वररहितम् ।
८. काण्डं संपूणम् | स्वररदितम् । नवीना
कारमीरिकी खिपिः |
०, काण्डं संपूणैम् | सस्वरम् ।
, | १०.काण्डं संपूणम् | सस्वरम् । प्राचीन-
पत्राणि | ।
१०. काण्डं सस्वरम् | ३४.३५७. पत्राणि
न सनिति | प्राचीनपत्राणि |
११.काण्डं संपूणेम् । स्वरसहितम् ।
११.काण्डं सस्वरम् | १.-४.पत्राणि न-
णानि । प्राचीनपत्राणि ।
११.काण्डमसमाप्रम् । स्वरसदितम् - ।
प्राचीनपद्राणि |
[१३०-१४५]
म्न्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कर्तृनाम,
् तत क 9) = ६
७१ । तकत „क = +|
9 । तवः क इ (5
५११५ | तदेव ... ,.. ......
५११४ | तदेव ,.. ... ......
५१दद२क|। तदेव ... ... ......
५१८८ [रातपथव्राद्यणभाष्यं माधवी-सायणो |
यवेदाथम्रकाडाः शतपथ- मीच
भाष्य च
५१५८ |दातपथनब्राद्यणभाषप्यं माधवी-सायणः
यवेदार्थप्रकादाः
९५१५९ स एव त एव्
५१६० | स एव सएव
५१६१ स एव सएव
०५७ < (अथवा...
कोपितक्रि्राह्मणम् )
१०५१क। (दव ०० क
५०५६ख शाद्धायनारण्यकम् = ..|...
५०८७क| तदेव ... ,.. ...... |
द
संहिताः । ब्राद्यणानि । + क
प्रणयः. रिषि-
पत्राणि, न र सवेदनम्.
४५ १५] १२.काण्डं संपूणेम् | सस्वरम् | प्राचीन-
पत्राणि |
२ ।१२।४१ १२.काण्डे २.प्रपाठकस्य ५.कण्डिकायां
७. <.ब्राह्मणं सस्वरं संप्रूणम् | प्राचीन
पत्राणि | ।
५० |१०।३४ १३. १४.काण्डे खण्डिते । स्वररदिते |
प्राचीनपत्राणि |
६२ | ८।३१ १३.काण्डं संप्रणम् | स्वररहितम् | नवीना
कारमीरिकी लिपिः |
७३, | ७।३२ १३. काण्ड स्वरसहितम् । १.-४. १४.
२३.-२५.पत्राणि न सन्ति|
८ | ७।२९ १३.काण्डमारम्भमात्रम्| सस्वरम् | प्राची -
नपच्राणि |
१२।४१ १३.काण्डस्य ४. प्रपाठकः स्वरयुक्तः | अ-
संपूणे आरम्भामावात् | प्राचीनपत्राणि |
१३३ |१५।३१ १.काण्डं संपूर्णम् । ७.अध्यायख ३.
ब्राह्मणपर्यन्तं माधवीयवेदाथप्रकाशस्तत
आरभ्य हरिस्वामिकृतरातपथभाष्यं प्यते |
नवीनपत्राणि। र
११२ (१४।३२ २. काण्डं संपृणेम् | नवीनपत्राणि |
१४४ [१५।३२।१९२२। ३.काण्डं २७. पत्रं विहाय संपूणम् |
५० |१४। , ५. काण्डं संपूणेम् | नवीनपच्राणि |
१०७ |१४।३२| १९२२ ११. काण्डं संपूणम् | १.६.७.पृत्रेषु च॒टिः
टेकेन सूचिता |
६८ |११।३३। १६१०| १.-१५.अध्यायाः संपूर्णाः |
९२ |१०।२४। १७२६ १६.-३०.अध्यायाः ५१.-६२.पत्राणि
विहाय संपूणाः |
१२ १०।२४| १७२६ | परवाध्यायद्रयम् । संपूणैम् |
९ ११।३६ पूवाध्यायद्रयम् | संपूणम् । कौषितकिन्रा-
दय णमहात्रतमिति नाम दृएटमध्यायान्ते |
प्राचीनपत्राणि |
1
(न -र्- "ल क र्=-=--
न
> ~ त त
१०
संहिताः 1 ब्राह्मणानि । [१४६९१६८]
र न ॥ श्रेणयः, रिषि. |
न्धाः. न्यनाम. कतनाम, पत्राणि, | अक्ष- । सेवेदनम्.
` "| राणि. | कारः.
५१८७ख | | ६८ ३.-१३.अध्यायाः१.पत्रं विहाय संपूणोः।
११३७ श्रीसूक्तम् .. “= -*^ र् ... | असमाप्तम् |
५२४९ (पदशब्राह्यणम् .- “|... ४६ १७५९. सपूणेम् |
५२७४ [सामगानप्रकारवणेनम् (१) |... १५ -.. | असमाप्म् । म्रन्थनामाठुमतम् । प्राजीन-
पत्राणि |
५५२४१ [सामप्रकादानम्रन्थः .-- प्रीतिकरः ३१ १४७८ | संपूणेः |
५२४० [सामवेधानव्राद्यणम् ... |... २८ १७१७ | संपूणैम् |
५२३३. [सामवेदसंहिता .-- ----- ६२ पूवोचिकं संपूणेम् | सस्र: संहितापाठः ।
परद्छ | दतु: कन्म र ००० स७ ८९ पूवरोर्चिकं संपूणेम् | सस्वरः पदपाठः |
दद | सतं == क २१५०० ११० उत्तरिकं संपूणेम् | स्वरसदितः संदिता-
पाठः |
धरे | श्तु, मः सथः ००१४ २८ ... | उत्तसाचिकपूतरेप्पाठकत्रयम् | ३. प्रपाठ-
कोऽक्षमाप्तः | स्वरसदितः पदपाठः | न-
वीना कारमीरिकी द्पिः|
५२६५ (सामवेदसंहिताभाष्यं माध-सायणः .| २१४ उत्तराचिकं संपूर्णम् |
| वीयसामवेदाथप्रकारः
५२३१ [सामवेदस्य आरण्यगान म-. -. ६४ तेपूणम् |
हानास्नीसहितम्
२२८ [सामवेदस्य ऊह गानम् ...|-
र ... | संपूणेम् | स्वरचिहितम् | प्राचीना च्िपिः।
सामवेदस्य उहगानव्यास्या-... ९५ ... | मध्यैकपत्ररीनम् | प्राचीनपत्राणि |
नं सामदृर्षणः
सामवेदस्य उद्यगानम् ...--“
५९ ८४ (१२।२ संपूणम् | स्वरविहितम् । |
५२५५ (सामवेदस्य उद्यगानव्याय्या- प्रीतिकरः २७ १. संपूणेम् | |
नं सामदपेणः |
५२२९ [सामवेदस्य वेयगानम् .| १४१ संधूणैम् । स्वरविदहितम् । |
"५२३६ सामवेदस्य स्तोभपदम् १३. १७२६ | संपूणेम् | सत्वरम् | |
५०७७ [सुप्णाध्याय १७ संपूणैः । सस्वरः संहितापाठः |
५०७६ | स एव १२ १७३८ | संपूण: । स्वरयुक्तः पदपाठः । ऋम्वेदीनां
पुपगाध्यायपदमियन्ते पाठः (*
*+५०७५ सुपर्णाध्यायभाष्यम् :धनद्त्तक्चिष्यः| ६८ ... | ५१.-५६.पत्राणि विहाय सपूणेम् | भाष्य
भूमिकायां कतरा जयाख्य इति स्वनामा-
सातम् | प्राचीनपत्राणि |
११३१ [सूयसूक्तमःः संपूणेम् । आदौ सौरसूक्तमिति नाम ।
९७५ स्रस्ययनम् नि भक, 8
संपूणैम् । य्वेदान्तगेतम् ।
(; ४ 4
+
||, \/£६010 ९।7 ^.
[१९९-१८२] सूत्रपद्धतिपरिशिष्टादि ।
श्रेणयः. लिपि.
मन्याङ्कः. ग्रन्थनाम. कतंनाम. पत्राणि, अक्ष- ब संवेदनम्
| राणि, "
^ ४४१४ |अग्निष्टोमपद्धतिः ... ... गोपीनाथसहायः | ३२ | ७।३९ असंपूणौ मध्यतुटेरन्तामावाच | प्राचीनप-
। त्राणि |
^ ४४०९ [अ्निष्टोमपद्धतिः .-- ---|याज्िकदेवः प्रजा-| < |१२।४६ संपूणो | कालयायनसू्मूढा | प्राचीनपत्राणि |
पतिसूनुः
= *+४४३५ अ्मिष्टोमपद्धतिः ... .- |... ४२ |१०।३६| १५२७ | संपूण | कतृनाम न लभ्यते |
.“ ४४२३ |अभ्निष्टोमविचारः -.* ---|-.. ३ |१५।५२ संपूणेः । म्न्थनाम संदिग्धमन्यरस्तलि-
वितत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
५२१७ [अभेष्टोमहौन्रम् .-. .-. |... ३१ (१०।३८ १६४० | संपूम् |
. ५२१५ अश्निष्टोमहौत्र पडोक्सहितं |... ७३ | ९।३९. ... | असंपूणैमारम्भमध्ययोलुटेः । प्राचीनप-
| उक्थपोडश्ीस्हितम् त्राणि |
४४१७ [अस्चिष्टोमिकी पयस्या ... ... २६ ११।३९ संपृणो । म्रन्थनान्नि संशयः । प्राचीनप-
त्राणि |
“ ७१८ |अस््याधानग्रयोगः.-- .*"|* ^ १९ | ७।२८ १७५१ | संपूणैः |
४६२२ अप्नोयामस्य स्वगस्य ११/१० ए १६७३ संपरणां |
पद्धतिः
~“ ४५२९ [अवसाननिणयः ..~ -.-|--. ३ | ७।४१।१८१२ सपू |
.“ ४५२६ |आधानादिमनच्राणामनुक्म- रामभक्तः ९ ।१३। | १६९६ | संपूर्णा | मन्थनाम संदिग्धम् |
णिका
= ४४३२ [आध्वर्यवाद्चीघ्रकमं ..- १२ |१०।३३ संपूर्णम् । दर्शपूणैमासप्रयोगविषयकम् |
| प्राचीनपत्राणि |
॥ | पत्राणि न सन्ति|
,.. ४८१० |आपस्तम्बगरृह्यप्रयोगः .. |. १२ ।१०।४०।१६८५ | संपूमैः |
१२
सत्रपद्ध तिपरिरि्टादि ।
[१८३-२०४]
| व्च (पद| न भेणयः. स्पि- ।
म्न्शराङ्ः. ग्रन्थनाम. कनाम. पत्राणि. | अक्ष- | _, संवेदनम्,
राणि. क
4 ४५१५ ६२। | प्राचीनपत्राणि |
ट्बप्रदीपिका
~ ६७५ "आपस्तम्ब श्रो तसूत्रवृत्ति सू-रुद्रदत्त प्रायधित्तप्रश्नः | संपूणे ई ।
त्रदीपिका
~ ४४०८ [आपस्तम्बसूत्रध्वनिताथंका- भास्करः | ८४६ | संपूणैम् | त्रिकाण्डमण्डनमिति मूरमन्थघ्य
रिकाविवरणम् स्वामिपुत्रः नामान्तरम् | विवरणकतनाम न न्धम् |
“४५4८ [आवसथ्या्चिकमेदोमादि- १६७१ | सृपूणः |
विधि
-/ ४६१६ [आावसथ्याधानम् ... , „|... १५३९ | श्रवणादिपाकयज्ञाः | प्रथमपत्रे न्म् ।
+> ४१३६ आवसथ्याधानपद्धतिः ^ ५ राके संपूण |
१५२०
५ ५०१५२ आश्चलायनगृद्यसूत्राणि क संपूणानि |
» ४५८३. [आश्वखायनशाखश्राद्धम्र- |कमलखाकरभट्ः संपूणेः | प्राचीनपत्राणि ।
योगः रामकृष्णभद्यत्मजः
^ ५५०४७ आश्वरायनश्रौतसूत्राणि क 4 7 १८५२ संपू्णानि
+ ४५२१ |आश्वरायनश्रौतसूत्रप्रयोग- |मज्जनाचार्यः .... १८६६ | पाध्यायपयेन्ता संपृणा ।
` दीपिका
“ ५५०९२ |आश्वरखायनश्रोतसुत्रवरृत्तिः [नारायणः नरातिह्- १८६६ | पूेत्तिरष् संपूर्ण ।
। तुः
“+ ५१४२ इष्टकापूरणं दशामपरिदि्टम् कालयायनः संपूणेम् | प्राचीनपत्राणि |
</ ५१४४ [उक्थ्ाखं दादडं परिदिष्टम् कालयायनः ... | सपूणेम् । प्राचीनपत्राणि |
४६७३ ।उत्सर्गविधि + =), 3 १८१२ संपूणे ६ |
२६८१ |उत्सजेनपद्धतिः ... --.|--. शके | संपूणौ |
१७४४
४६६० [उत्सर्जनोपाकर्म॑प्रयोगः ..---- संपूणेः |
११२६ 1. त 1 ६ संपूणे |
४७०१ |उपनयनपद्धतिः वाजसनेयि- 8 संपूणा । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
नाम्
२४८७ [उपाकर्मकारिका बृहदपि- संपूणोः |
तपेणे
, ४४७९ |उपाकम [पद्धतिः] „|.“ ४4 ९।२७| १६५२ | संपूणा । मन्थादौ उपाकर्मेति नाममात्रम् |
^४७४९क|उपाक्मविधिः .-* “|` ... | संपूणैः | प्राचीना छिपिः |
६८० ऋपितपंणम् ०००|०५* ५० ४ |१०।४३| १७४८
संपूणैम् | आरम्भ ऋषिनामान्युग्वेदावुक्र-
मणिकादचारेण |
[२०५-२२७] खूजपद्ध तिपरिरि्टादि
न न | = नदद न्न ॥
मरन्थाङ्कः. म्रन्थनाम. कतनाम, पत्राणि. अक्ष
राणि,
र १।४०
-^ ४४५७ च्र्पितपणम् -4९[* १५ | <८।२१
४६८९ख चपितपैणकारिकाः ~... १ | ९।३२
४७४९ख चपितपेणवेधिः ... ...... १ २४।६०
५५१३४ग् व 9 २ |१३।४९
४५६८ ओर्ध्वदेदिकपद्धतिः . विश्वनाथः गोवा-| ८५ | ९।४६
ठात्मजः
७ सैव सएव ७० |११।३९
४५७५ ओर्ध्वदैहिकपद्धतिः नारायणभट्टः रा-| ६& |१०।३७
मतवर्पत
~^ ५२४५ [कमेप्रदीपः... -- .-.- ३३. | ९।२८
पदकः | स कद जल अज्ज २७. | ९।३६
५१३८ [कालयायनश्रोतसूत्राणि .- -कालयायनः ७४ | ९।३०
८“ ५१३० | तान्येव ... सएव ९१ | <।द२
८ ५१२९ | तान्येव ... ..| सएव ...| २०५ |
.. ४५४८ कालायन श्रौतसूत्रपद्ध तिः... याच्िकदेवः २१ |१०।३२
| पतिदेवपुत्रः
४४४३ | सेव सएव ३९ |१४।२७
४४२१ | रौव सएव ...| २२ ११।४३
४५४५ | सेव सएव ...| ५८ |१०।४५
. ५१८९ [कालायन श्रौतसूत्रभाष्यम् [श्रीअनन्तः सराद्| ११३ |१६।३.४
स्थपतिमहाया-
तिकः
५१९० | तदेव सएव ९७ |१६।४०
८८१९१ | तदेव सएव ८७ |१४।३०
-“ ५१९२ | तदेव सएव .| १३९ |१४।२८
“९५१९३ | तदेव सएव ८२ |१४।२५
८५१९४ | तदेव तएव ५३. ।१३।३८
सिपि.
कारः.
१८११
१८०८
१८४१
१५८१
१७२३०
१७६२
१६६८
१६८४
१६९४
१८४
९२
सपूणम् | पूरव्न्ाद्विभिन्नम् |
संपणम् | कण्वेदे कषितपंणमिति समाप्तौ |
प्राचीनपत्राणि |
पंपूणाः |
संपूणेः | प्राचीना छिपिः |
संपूणैः । वाजसनेयिसंहिताशतपथव्राद्यण-
प्रतीकानन्तरपृषितपणमूत्राणि । प्राचीन.
पत्राणि |
संपूर्णा । अन्देष्टिक्रियापद्तिरिति नामा-
न्त्रम् |
१.पत्रहीना । प्राचीनपत्राणि |
अन्येष्टिपद्रतिः । संपूणौ |
सपूणैः | गोभिस्पृतिरिति नामान्तरेण
प्रसिद्धो म्रन्थः |
संपूगेः |
पूवोधं संपूणेम् ।
१२.-२६. अध्यायाः संपूणौः |
खण्डितानि । प्राचीनपत्राणि |
६. अध्यायः. संपूण: | १८. अध्यायखा-
न्तिमं पत्रमपि तत्पुस्तकसंयुक्तं टब्धम् ।
९.अध्यायः संपूणैः |
९. अध्यायोऽसमाप्तः | प्राचीनुपत्राणि ।
२५.अध्यायः | असेप्रूणै आरम्भाभावात् |
१. अध्यायः सेपूणेः | नवीनपत्राणि |
२.अध्यायः संपूणेः | नवीनपत्राणि ।
३.अध्यायः संपूणैः | नवीनपत्राणि ।
४.अध्यायः सपूणेः | नवीनपत्राणि |
५५. अध्यायः सृपूणैः | नवीनपत्राणि ।
६.अध्यायः सपूणेः | नवीनपत्राणि |
१८
सूजपद्धतिपरिदि्टादि । [२२८-२५५१]
श्रेणयः. खिपि- |
म्रन्थाङ्कः. ` अन्थनाम, कनाम. पत्राणि. | अक्ष | कुरः | संवेदनम्.
राणि.
ज ५१९५ | सरादर्| ४५ ४।२२् ७. अध्यायः संपूणैः | नवीनपत्राणि ।
स्थपतिर्महाया- |
सिकः
। ५१९६ | तदेव स एव ४१ |१६।३२ ८. अध्यायः संपू्ैः | नवीनपत्राणि ]
ज ५१९२७ | तदेव सएव ४४ |१६।३१ ९. अध्यायः संपूणैः | नवीनपत्राणि |
~ ५१९८ | तदेव सत एव ४१ |१४।२६ १०. अध्यायः संपूण | नवीनपत्राणि |
+ ५१९९ | तदेव सएव ३ |१६।३७ ११. अध्यायः संपूणैः । नवीनपत्राणि |
1 ५२०० | तदेव स एव ३९ [१५।३० १७. अध्यायः संपूर्णः | आरम्भामावात् |
नवौनपच्राणि |
-; ५२०१ | तदेव सएव ३.० |१५५।३४ १८. अध्यायः संपूणैः | नवीनपत्राणि |
~ ५२०२ | तदेव सएव ३४ |१५।३५ १९. अध्यायः संपूणैः | न्वानपत्राणि ।
{५२०३ | तदेव ... सएव २५ |१५५।३१ २०. अध्यायः संपूणैः | नवीनपत्राणि |
५५२०४ | तदेव ‰.. ... तएव .. १० ` २१. अध्यायः सपूणेः | नवीनपत्राणि |
" ५१२५ |काल्यायनश्रोतसूत्रभाप्यम् कर्कोपाध्यायः - --| १०३२ | ९।३.२| ५ | १२.-१८. अध्यायाः । असमाप्राः |
५१६३-८७(काल्यायनश्रौतसूत्रव्याख्या- |यात्िकदेवः ४०६ |१४।२८| १९२१ | संपूणमू ।
नम् प्रजापतिदेवसुतः
` ५१३७ | तदेव ...| पए .| ११८ | ९।३९| १८४४ | ५. अध्यायः संपूणेः |
*४५५० कालायन श्रोतसूत्रव्याख्या ४७ |११।३६२ १. अध्यायोऽसमाप्रः । व्याख्याक्तनाम
सदिग्धम् | प्राचीनपत्राणि |
४६९२ कदाण्डिका ,,, |... .,.. ,..| ४ | ७३७ प्रथुमपत्रहीना |
#४७४२ कृ ख्या वासुदेवः श्रीपति-| ४२ |११।४५ संपूणौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
बारख्बोध विवेकिनी पुत्रः
“ ५२७६ कौदिकगृद्यसूत्रपद्धतिः .. |. ... ,..| ११३ १४।४७ सपूणी । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
२० ्रतुरलमाखा --- ---|हरिहरमिश्न २९ |१०।३५ १५४२ | निगृूटपशप्रयोगरनग॒म्फः संपूणेः |
¦; ५१४५ [क्रतुसंख्यानाम त्रयोददयं प-कालयायनः ३ | ८।३१ सेपूणेम् | प्राचीनपत्राणि |
रििषटम्
४४१८ गरगेपद्धतिः पारस्कर गृद्यसू- स्थपतिगगैः ४७ |१० । १५६५ | असंपूणां मध्यन्निवश्चात् ।
तरेषु
४४३१ | रैव सएव ५५ |१०।३१| १७५७ | संपूण |
-; ४६५१ |गभौधानादिमच्रभाप्यम्. - “|. २८ |५१२।१७।१ । संपूणेम् |
ददः | ततिति => = ००५१२ ४५ |१०।४८ संपूणेम् । प्राचीनपत्राणि |
२२२ गभौधानोपाकसंप्रयोगः .-1* ६५ | ७।१९ एण्डितः | प्राचीनपत्रागि |
` [२५२-२९९] सूजपद्धतिपरिरि्टादि । - “ इषः
न न | च (न न्न । श्रेणयः.
न्थ न्थ ~ णि स्िमि- सवे दनम्
म्रन्थाङ्कः, प्रन्थनाम, कतृनाम, पत्राणि,। अक्ष- क्रः स्वेरनम्,
, राणि. त |
२ १२।३७| ... | खण्डितम् | प्राचीनपत्राणि |
\^ ५२७३ गायच्रविधान सामवेदस्य
भाप्यसहितम्
८ १० ` १६८१ | १. पत्रहीनः । प्रस्तोतृगीतिशिक्षाविषयकरो
त ५२४४ गीतिकत्पः रामद्छद्धः
क मन्यः | `
~ #४५८० गृह्यपद्धतिः =... .. श ३२ | ९।४१| .-. | वृद्धिधाद्ात्समावतेनान्ता | सृपो | प्राची.
, | नपत्राणि | .
५.८ ४४०४ गृद्यसूत्रप्रकादिका .. विश्वनाथः १०० |११।३४| ... | अरसपूगौ मध्यतुखन्ताभावात् । प्राचीन-
| पत्राणि | केषां गृदयपरूत्ागां सा व्याख्येति
न ज्ञायते |
^ ५२६३. (गरद्यासंग्रहपरिदिष्टम् - --गोभिर्पुत्रः १५ | ६।२५| १५८ अपंपू्मारम्भाभावात् । जीर्णपत्राणि ।
८ ५२७८ | तदेव सएव ८ (११।४२्/ ... | संपूणैम् | नवीना कारदमीरिकी च्पिः |
¢ ५२६४ गोभिरगृद्यसूत्राणि ...-:* ५१ | ६।३५ १५७३ | सुपूर्णानि |
८“ ४४३९ | तान्येव ... „८. ...]-.. का .| 2० | | १७८५ | श्रवणकमेपयन्तानि |
४५१९ गोभिटग॒द्यसूत्रकारिका्थ- |दिवरासः विश्राम. ६२ (१२।४४] ... | अपमाप्रा | प्राचीनपत्राणि | मन्थनान्नि
| बोधिनी सूठः ` संशयः। कतुनामाठमितम् | अन्त्यपत्रेन्य-
टस्तेन करमप्रदीपसंक्षेप इति नाम चि-
त्रितम् |
५५ ४७३८ हयक्तपद्धतिः । | ब्रह्य भूषणः वरजभू-| ६९ |१४।४२्| -.. | संपूण । कतौ ल्वपुरत्थः | नवीना का-
| पणापराभिधः रमीरिकी दछिपिः |
५५२७२ |चयनपद्धतिः. .- .. रामकृष्णः दूमो-। ३० | ९।२९ शके | संपूर्णा |
* | १६६२ ।
१५।४८| १९११ | संपूर्णः |
^ ४४२२ |चातुमस्यम्रय थः राम-| 4८
| | चन्द्रपुत्र ५२
*४७३२ |चातुमस्ययक्तपद्धतिः सुवो ९१ | ८।४१| १७४५ | संपूर्णा ] विसरवनकाठो टिपिक्राच्ठ॒ल्यः |
धिनी
६८५ चातमीस्यविधिः ... ` ...|... ... ...| < |१०।३९ ... संपूणे | प्राचीनपत्राणि |
“ ४५३० छन्दोगगृद्यपद्धतिः -.-|अन्चिहोत्रिविष्णुः | १९७ | ९।३५| ... | अपपूर्गारम्भान्तयोष्लुयिवश्ञात् । कर्तैव
ठिखितो मन्थः,।
«^५२५९क छलप्रक्रिया सामवेदस्य ....- ३ | ९।२०|१७२३ | संपूर्णा |
४६२३ कमनामकर्मपद्धतिः |“. ५ | ७।२२| ... | संपूणो । मन्थनाम न ॒ठन्धम् | प्राचीन-
४ पत्राणि |
४६१३ [जातकमोदिपद्धतिः „|. ११ (११।३७। १७७९ समावतैनान्ता संपूणौ । नानि संशयः ।
१६ * सखूजपद्धतिपरिदि्रादि । [२७०-२९ |
श्रेणयः,
मरन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कर्तनाम, पत्राणि, | अक्ष- ( संवेदनम्.
राणि,
-। ४४२५ = ध 1 १३. १३।३.४ असमाप्त | प्राचीना लिपिः | ।
« ४५२२ |ज्योतिष्टोमपद्धतिः ...|.. ५३ | ७।४७ संपूण । म्नन्थनाम संदिग्धम् । प्राचीन .
पत्राणि |
<^ ५२२३ ज्योतिष्टोमप्रयोगः ...|-. । ८३. | ८।२८| १६५८ | असपूर्णो मध्ये पब्रद्याभावात् ।
५२६७ (ज्योतिष्टोमातिरात्रस्य रामकृष्णः दामो-| २५ | ९।३२ संपूणैः ।
दरतः
* ५२४६ [तण्डालक्षणसूत्रम् -.-|-- -- १६ | ९।३४| १६२८ | संपूणम् |
> १२०६ तृचकल्पः नवय्रहमच्राश्च .-.|. २ | ९।२४| ... | संपूणेः |
4 ४४२० दर्शापौर्णमासपद्धतिः अनन्त २१ १२।४६ १७२८ | संपणां | आपस्तम्बोक्तरीदयया विरचिता प-
दतिः |
। ४८०७ |दद्पोणमासपद्धतिः ..|*“ २३ | ९।३७।१९०२ | संपृणौ |
` ४३५३ दरपौ्णमासपद्धतिः ...|.-. २० | ६।४५्/ ... | असमाप्रा | नवीनपत्राणि |
५ ११२७ |दरपौर्णमासस्थारीपाकः. . | १० | ९।२८| १८८४ | संपूणेः ।
“४५३२ (दरपौर्णमासहौत्रम् .- |. ४ ।११।३७| ... | संपूणम् | प्राचीनपत्राणि |
४५३४ ददी पौणमासहौत्रम् “~ १३. | ९।१९| १६६९ | संपूणम् |
५४४६३ द्दीपौणमासहौत्रम् -.--“" २१ | ६।२४| १६०२ | आदिपव्रहयं नासि । मध्ये बुटिः ।
५४५६१ ददीपौणमासेष्टिः ... --.|-- १४ |१०।३२ १६८५| खण्डिता ।
, ५२१३ दादशदोतृपद्धतिः “|. ,.| ७७ | ज्र खण्डिता | प्राचीना छिपिः |
४४१९ ्वाद्याहपद्धतिः -** -" शंकरः स्रादरस्थ-| २६ १०।३३|१७४० | असंपूर्णारम्भामावात् । म्न्थनाम संदि-
पतिमहाया्तिकः ग्धम् | दादश पद्तेरनन्तरं “चिन्यस्य
वाचस्पतिपुत्रः पद्रतिः” पञ्चसु पत्रेषु वतैते । |
७११ [दाद्काहसूत्रम् ˆ. "ˆ ४ |१४।४१ संपूणम् | `
+ ५२१२ द्वाद्याहस्य शखछ्कसिः `` २० | ७।४५ मध्यैकपत्रहीना । प्राचीनपत्राणि ।
५१४६ [निगमपरिदेष्टं चतुदंशम् |काल्यायनः १५ | <।३१ असमाप्रम् | प्राचीनपत्राणि |
५०९४ निदानसूत्रे सामवेदस्य .--|.- -* ~" ७१ ११।४३ दशमु प्रपाठकरेषु संपूणेम् | प्राचीनपत्राणि ।
। *+९२८ निरननेरूसगगविधिप्रयोगः . . दीक्षितमणिरामः| ६३ | ८।३७ संपूणैः | काल्यायनकृतो निर्रेरत्सगेविधि-
रिति म्रन्थादौ |
~ ४५२२ पच्चपदार्थी--. -** “| २५ |११।३६ ... | संपूणा । प्राचीनपत्राणि |
~ ४६९७ पच्वपदार्थी... .-- “| ५२ | ९।१६| १७१३. | प्रथमपत्रहीना |
८५१२८ [पञ्वाङ्गरद्राणां न्यास पूवको" १० | ९।३१ असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि ।
जपहोमाचन विधिः |
(१०९ । स ष्व +. “+ „न. & ।२६।१७ असमाप्त: |
[२०५-३१२।
न न्त | च व| न । म्न्थनाम, कतृनाम., पत्राणि.
८ = परिशिष्टम्. ० **.|** २
«८ ४८५७ पाकयत्त पद्धतिः ... .--|अनन्ताश्रमः . .| २०
४४५० पारस्करगृद्यसूत्रव्याख्या पा-सुरारिमिश्रः वेदि ७२
रस्करमच्रभाष्यम् मिश्रपुत्रः
४४०५ पारस्करगृद्यसूत्रव्याख्यानपू- [असिहोत्रिहरिहरः २०४
विक्रा प्रयोगपद्धतिः
४४६४ | सैव सएव „| १४१
४५४४ |पारस्करगृद्यसूत्रपद्धतिः .. वासुदेवः ५८
४८०० = . - गदाधरदीक्षितः | ६१
याङ्गिकवामनपुत्रः
४४४६ पारस्करश्राद्ध सूत्रवृच्यर्थसं- उद्यकरः १९
रहः
४७९९ पारस्करीयसंस्काररलाकरे १५
स्वस्िवाचनप्रयोगः
“ ५२६२ पुष्पसूत्र सामवेदस्य ...|.-- ६७
~ ४५४३ पौण्डरीकक्रतुभ्रयोगः शाद्का- दयाशंकरः धरणी-| ५९
यनसूत्राढमतः धरात्मजः
४५५५ पौणैमाचेष्टिः =... ...-.. २०
«४४२६ (पो्णमसेषिप्रयोगः = ...|... ह = च
२५६० (प्रकृतिविक्रतिहौत्रविचारव्य- नारायणबुद्धया- | ३
वस्था । रूढः मधकर
इत्युपनामकः
५०९१ प्रणतपरिदिष्टं सामवेदस्य त. १
~. ४३९३. (प्रयोगरलमाखा आपस्तम्बी- चोण्डपाचार्यः . . -| १६६
याध्वरतच्रस्वतन्नव्याख्या
४३९४ | सैव सएव ६८
४३९६ | सेव सएव ६०
४
सूचरपद्धतिपरिद्ि्टादि ।
श्रेणयः. लिपि.
अक्ष-
राणि,
केः,
१०।२६ १७१४
९।४५
,११।५
# चकै
१४३२०
१०।३३ १६७२
९।४
९४०
८ ।२५
९।५४
८।२४
|
१५।२३३
९।३१
११।२१
९।४८
११।२३.
११।५१
११।.५१
११।५१
१५८७
१८२५
१६२१
~ „^~ 7 श.
1
९७ ,
संवेदनम्.
संपूर्णम् | इति ह स्माह काल्यायन इति प-
रिशि्टं समाप्रमियन्ते पाठः | काया-
यनपरिरिषटषु न रन्धम् |
आवत्तथ्यपद्ध्यन्ता संपूणौ | प्राचीनपत्राणि |
संपूणैम् । स्वपितृवेदिमिश्रविरवितात्पार-
स्करगृद्यप्रकारादाङ्ष्म् |
असंपूणी मध्यतरुटिवशात् |
संपूणा | अत्िप्राचीनपव्राणि |
संपूणो |
संपूणौ । कातीयश्राद्धपूत्रभाष्यमिति म-
न्थान्ते नाम | नवीना कारमीरिकी टिपिः।
१.२. अध्यायौ संपूर्ण | कातीयश्नाद्धसूत्र-
वृच्यर्थसं ग्रह इति मन्थान्ते नाम | प्राची-
नपत्राणि |
सपूणेः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
मरन्थोऽन्ते श्रीमहाराजरणवीरतिहेना्ना-
पित इत्युक्तः |
संपूणेम् |
संपूर्णः | विरचनसमयो छिपिकाटेन तुल्यः
संपूणो | प्राचीनपत्राणि |
असमाप्रः | प्राचीनपत्राणि |
संपूणा । अथ काल्यायनसूत्राठुसारिवाजस-
नेयकाण्वमाध्यन्दिनीयहोत्राच्टानविषय-
कविचारपुपदशेयति इयारम्भे पाठः |
सपूणम् |
दवितीयप्रश्नपयैन्ता संपूर्णां |
ठतीयप्रश्रः संपूणैः |
ष्प्रश्नः संपूणैः |
= क + + क्म ४ र» += ~
१८ सखूजपद्धतिपरिद्िएटादि ।
न न | च (नद| न म्रन्थनाम. कर्तनाम,
४३९५ आपस्तम्बी- विष्णुभट्टः
याध्वरतच्रस्रतच्रव्याख्या
२४४२ प्रवराध्यायः परिरिषटम् ..- |
4 ९६६ परवराध्यायः „~ .*..|-..
"२४२ प्रस्तोतृसामानि ..-- -----.
५ ४५९० प्राजापदेष्टिः .-- .-.-“
२०८७ पप्राणायामव्याख्या = --.|-.
६९४ प्रायश्चित्तम्रदीपः ... ..--.
+ ५१२७ .बोधायनश्रौतसूत्राणि --. बौधायनः
५१३१ | तान्येव ... सएव
\. ४७०७ |बोधायनसूत्रे सद्र स्थापन-
विधिः
. ४४४७ ब्रह्मतवपद्धतिः =. ...|-..
„~“ ४६७ |भद्ररसखयक्तः *** °|“
16 %@ ४६० स् एव् ००७ ००० ०००|००५ **+ ००9
*२६७५ख मच्रभाष्यम् सोमानन्दसूनुः
विजयेश्वरवासी
११२२ |मन्युसूक्तन्यासः ..
५२६८ |मराकश्रोतसूत्राणि सामवे- |मदाकाचार्यः ...
दस्य
“ १०५० क।महारद्रन्यासः
१२६० उभककन्दी छायः
४७०९ |रुद्रविधानम्
# # + | = = ॐ
श्रेणयः,
पत्राणि,। अक्ष.
राणि,
खिपि-
काठः,
१२. |११।५१
११ |१५।२५। १७५५
२ |१५।३३
९ | ७।३८। १८४९
७ | ९।२०।१६६४
१ ।१४।५४
६६ | ९।५४
११।२७
२३. |१०।४०| ...
२ | <८।३३। १८२०
£ | ७।३७
६ ।१४।२७
& ।१४।३८
१० ।१४।२१
२ | ७।३३
० ११।४४
८ (१५।३१
[३१३-३३१
संवेदनम्.
चतुथपरः संपूणैः | म्रन्थादौ विष्णुभट् इति
कतृनाम दृषटमन्यथा मन्थस्य नाम विषयं
चोदिरय चोण्डपकृतित्तयोगः प्रयक्षः |
पूरणः ।
संपूणैः | पूर्ै्रन्थाद्विभिन्नः |
संप्रणानि । स्तोत्राणि सस्वराणि | (गण).
10. 1617 २.
संपूण | `
संपूणौ
बरधायनसूत्राठुप्तारी । संपूणैः | पत्राणां
नवीनत्वात्युस्तकान्ते १६८२. विक्रमाबदे
इति निदे टिपिकालो मूटम्रन्धस्यैवे-
यमानम् |
प्रवगयैप्रक्नपयेन्तानि | ५७.-६<८. पत्राणि
न सन्ति | प्राचीनपत्राणि | |
पूवप्रभ्द्रयं संपूणेम् । प्राचीनपत्राणि ।
संपूणः |
असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
आदिर्मपत्रं नासि | मन्थनाम संदिग्धम् |
प्राचीनपत्राणि |
असमाप्त: | नानि संश्चयः } प्राचीनपत्राणि|
संपूणेम् | उपनयनव्रतशिक्चाविषयकम् । तद्-
न्तर केचिच्छैवश्ोका छिठिताः। न-
वीना का्मीरिकी छ्िपिः |
संपूणेः |
पंपूणोनि | प्राचीनपत्राणि |
संपूणैः | मन्धनान्नि संशयः । मन्थान्ते र-
द्रखलानाभिषेकविपिरारम्भमात्रा वतेतं ।
३ | ९।२०|१७२६३| संपूणैः |
१०. ९।३६
| # # ॐ
पूणम् | प्राचीनपत्राणि |
[३३२-३५४] , सूजरपद्धतिपरिदरिए्ादि । १९.
धा च भरेणयः. ल्पि- ८
म्रन्धाट्कः. ग्रन्थनाम, कतेनाम, |पत्राणि.| अक्ष- काक सवद्नम्.
राणि.
४७०२ |द्रविधानम् .-. „|. र ११ | ७।६७ २. प्रकरणम् । संपूणम् | प्राचीनपत्राणि |
४७१० [रद्र विधानमच्रानाग्रपिच्छ- अनन्तदेवः २ ।१२।४८ मंपूणेम् | मन्थनाम्नि सशयः । प्राचीनप-
न्दोदेवताकथनम् त्राणि |
4“ ४५४१ रुद्र सूत्रम् . .. - -- अनन्तदेवः १७ | ९।३२ संपूर्णम् |
धः =.
४७५४ [रुद्राभिपेकाध्यायः माध्यं- ११ |११।४४ संपूणः । प्राचीनपत्राणि |
दिनीयः
५१२१२ |रुषुरुदरन्यासः --- ~|" २ ११।३२ संपूणैः । अथातो रुद्रलानाभिषेकविधं
| व्याख्यास्याम इल्यारम्भे पाठः |
तएव... ... ...... १ ।१५।३१| ... | संपूणैः |
= ७४ |१०।३५| १५२१ | संपूणानि |
„८ ५२५० | तान्येव ... ... „1... ८९ | ९।३४ संपूणानि । प्रचीना लिपिः |
“ ५२५७ | तान्येव... ... |... १७ | ९।३५ दि तीयप्रपाठकान्तानि संपूणीनि | प्राचीन-
पत्राणि |
४४९८ |चिवाहक्मं ,. .।अिहोत्रिविष्णुः | १५ |१०।२९| १७८५ | संपूणैम् |
माथुरः
४६५९ग| तदेव सएव ९ |१७।४०| १७८८ | सपूणम् |
४५९४ (विवाहकर्म =... ,..|... ४ | ८।२४| १७७८ | स॒पूणैम् | पू्स्मादिभिन्नम् |
४६८२ (विवाहपद्धतिः ... ...|..- २९ १।२८। १८१० संपूण |
४७२९ द द्धिश्राद्धम्रयोगः ... .--|.-. १४ ११।३९| ... | असमाप्तः।कतनाम संदिग्धम् | जीणैपत्राणि |
१०९० वैश्वदेवः ..- -.+ -.-|... ८ | ८।१६। शके | संपूणैः |
ध १७२६
११८३ | स एव ... „~ „|... ३ |१०।३० ... | संपूणैः |
४५५९ वेश्वदेवक्रलयम् ... ---|-- ४ | ९।२९ १८५८ | संपूर्णम् |
५४५२७ वैश्वदेवपर्वै... ... ,..... ९ |११।३९| ... | ३.पत्र विहाय संपृणैम् |
८४६५० शाङ्धायनगृद्यकारिकाः . ..--- ५६ |१२।२७| १७९० | प्रथमपत्रहीनाः |
«५०५५ (शाद्भायनगरद्यसूत्राणि =... -. २० |१२।४४ पत्रय मध्ये नष्टम् | प्राचीनपत्राणि |
.^५०७४ |चाद्धायनगद्यसूत्रव्याख्या ग-नारायणः ५९ |१२।३३ १.-४. अध्यायाः संपूर्णाः | ५. अध्या-
दयस्प्रतिन्ाख्विवरणम् | जीपुत्रः योऽसमाप्तः | प्राचीना छ्पिः |
८२४८२ (शाद्धायनगरृद्यसूत्रप्रयोग- |दयादंकरः धरणी-।- ५ | ८।३७।१८५९ | तर्पैणप्रयोगः | संपूणैः |
दीपः ,. धस्त;
^ ५०५८ (शाङ्कायनगरृद्यसूत्रसंग्रहः . - वासुदेवः दीक्षिते-। ६८
जटसु:
भा १४२८ | संपूणेः।
२० खुजपद्धतिपरिदि्ठादि। . [३५५-३७३]
न व | न | क्न छिपि-.
मरन्यद्भः. मरन्थनाम,. कर्तृनाम. पत्राणि. | अक्ष- । संवेदनम्.
काटः.
राणि,
् ११० ... | १.-८. अध्यायाः संपूणोः। प्राचीना छिपिः।
4५०७९ | तान्येव ... ~ |. .--| १४४ | ७।२८| १७४२ | ९.-१६. अध्यायाः संपृणौः |
4 ५०८१ | तान्येव ... ... ...|.. .| ११४ ।१०।२७| ... | उत्तराधेमसमाप्रम् | प्राचीना च्िपिः |
४५५२ | तान्येव... ,.. „|... २१ | ७।३१| ... | १७.-१८. अध्यायौ महाव्रतसेक्गितौ स-
पूर्णो । प्राचीना छिपिः |
~+ ४४४१क राद्धायनश्रौतसूत्रभाष्यम् दासशमां पुजञसूनुः| १४७ |१६।४०|१५३४| ९.-१६. अध्यायाः संपूणौः । ९.-११.
आनतींयः वर- अध्यायेषु भाष्यकतौ दासश्मौ । ©).
दत्तमुतश पए, ०. 107.
+ ४४४१ख। तदेव... ... ...| तावेव .| २४८ | ९।३५| ... | उत्तराधंमसमाप्तम् । प्राचीना लिपिः ।
~+ ४णण्ष्ग| तदेव ... ... ...|जानर्तीयः वरद् ४८ |१२।४४| ... | १३.-१५. अध्यायाः | १३.अध्यायस्य पू-
तसू: वधं १५. अध्यायस्यान्तं च न स्तः।
प्राचीना छिपिः | २९१. पत्रं नष्टम् |
५ ५०७८ शाद्धायनश्रौतसूत्रव्याख्या [नारायणः पश्चुप-। १६७ | ९।३७| १६९१ | नवाध्यायपरिमिता । १. पत्रं विनष्टम् ।
द्ाङ्कायनसूत्रपद्धतिः तिपुत्रः
“ ५१३६ [यखुल्वपरिदिष्टम् ... “--कालयायनः ४ |१३।४२| १६८६ | सपूणेम्
4899८ | सदेवः =-= == == स्त एवं ५ |१०।३७| १६४५ | सेपूणेम् |
= ५१४ | तदेव ... ... ...| सएव ८ | ९।२८| ... | संपूणैम् । प्राचीनपत्राणि |
4 ४४१० [शुल्वपरिदिष्टविवरणम् ....|काल्ायनः। कर्को] ७ | ९।७१| ... | संपू्ैम् । प्राचीनपच्राणि ।
पाध्यायः
4 ४५५६ | तदेव ... ... ...| तावेव १५ | ८।३०| ... | सपूणणम् । प्राचीनपत्राणि |
~ ४५५९ |शुल्वपरिशिष्टविवरणम् .-.|कालयायनः। मही-| २९ १।३४/ ... | पू्वपत्रत्रयहीनम् । विरचनकाटः संवत्
घर; १ ६४६ |
. ४४०७ |शुल्वपरिदिष्टविव्रतिः . . -कालयायनः ४ १०।३८| ..: | असमाप्रा | विव्रृतिकतैनाम न ङ्ग्धम् |
नवबीनपत्राणि |
४५२४ |श्ुल्वपरिदिष्टव्रत्तिः -* *|काल्यायनः । राम-| ८३ | ७।३०|१६०० | संपूण | विरचनकारः संवत् १५१० |
चन्द्रः सू्दा-
सपः
४५७८ [श्राद्धकल्पसूत्रम् (षं परि-कालयायनः ७ १०।२०| १७३९ | संपूणम् |
रिष्टम् ) ॥
४७९७ | तदेव ... ... ..| पषण ४ | ८।४०|१९४४ | संपूणेम् | नवीना कृरमीरिकी छिपिः ।
४६०० श्राद्धकल्पसूत्रभाष्यम् ...|का्यायनः। कर्का-| १७ १२।२५] ... | संपूमैम् । प्राचीनपत्राणि |
पाध्यायः
[३७४-३८<] खू्रपद्धतिपरिद्िएटादि । २१
मन्थाङक मन्थन न लिपि. हवेदन
न्याङ्कः. न्यनाम, कतरैनाम, |पृत्राणि,| अक्ष 0 दनम्.
राणि,
&८९ [श्राद्धकल्पसूत्रवृत्तिः श्राद्ध- [काल्यायनः। ८१ | ९।४ ॥ ... | संपूणौ । विरचनकाकः संवत् १५०५ ।
कारिका मिश्रः विष्णु- |
मिश्रपुत्रः
९२४ ्रावणीकर्मं + =|". == `= ह | ददि असमाप्म् |
४५९ श्रोतपद्धतिम्रायश्चिन्तानि (२ )| ४८ | ९।३८ १६४३ १.--२ ०. पत्राणि विहाय संपूणीनि सौ-
त्रामण्यश्निशेमादिप्रयोगसोमप्रायधित्तादि-
विषयकस्य मन्थस्य नाम न छब्धम् |
पद्वतिप्रायधित्तानि समाप्रानीति लिदि-
| | तमन्ते | प्राचीना लिपिः
२५५६ प्रोतप्रायश्चित्तचन्द्िका ... विश्वनाथः दसिह- ४६ | ८।४३। १६५६ | संपूण ।
| दीक्षितसूः
५&८७ ्रौतप्रायध्चित्तप्रयोगरल- |चिश्वं भरदीक्षितः | १५१ (१२।६० असमाप्ता |
मारा
४५३७ प्रोताधानपद्धतिः ... .. रामचन्द्रः सूर्यदा-| २६ | ८।४७ संपूर्णां । प्राचीनपत्राणि ।
सपुचः
*५२१० [संध्यामनच्रव्याख्या ब्रह्यप्रका~बनमाखिमिश्चः | ३० ११।४२ संपूण । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
रिका वनमालिमहैश-
पुत्रः भघ्ेनिदी-
क्षितशिष्यः
“२२८६ [संध्यावन्दनभाप्यम् -. - व्यासः हारीता- | २३ १०।५३ संपूणैम् । प्राचीनपत्राणि |
न्वयः ्
५२६९ [सर्वजिन्महाबतप्रयोगः ---|सदारामः त्रिपा- | २५ | ७।३८ १८७२ | संपूणैः |
दिदेवेश्ररपुत्रः
४७७७ |सवैदेवप्रतिष्टाविधिः ...|-.. ८६ |१६।४० संपूणेः । म्रन्थनान्नि संशयः । नवीना
कारमीरिकी लिपिः |
४४०१ |सोमपद्धतिः ,.. ...... ४१ |११।४० असमाप्रा | नाम संदिग्धम् | प्राचीनपन्नाणि |
५२१८ ।सोमप्रयोग्४ =, „^|. .| १३२ | ७।२६| १५५६ संपूणैः ।
+५२२१ |सोमप्रयोगः आपस्तम्बश्रौत-... .| १२१ १०।३८ ६०.-६२. पत्राणि विहाय संपूण: | श्री-
सूत्राठसासं सोमाध्वर्यैप्रयोगः समाप इयन्ते । प्राची-
तपत्राणि |
५२११ | स एव्, ° ००. .| ११० |११।३४ सेपृणेः । प्राचीनपत्राणि |
४५५१ 'सौच्रामणीप्रयोगः... -,५।... & ।११।३४ तंपूणेः । प्राचीनपत्राणि |
६
२ सूजपद्धतिपरिद्दिषए्ादि । [३८९-४०१]
न न | = न न ग्रन्थनाम. कतनम,
४४५६ [सौत्रामण्यां त्रिपदोरहौँत्रम् .. ९| ७२४ ... | सेपूणम् | प्राचीनपत्राणि |
४४६६ सौत्रामण्यां वयोधसः परो-... ` ४ | ७।३०| ... | असपूणे मध्यन्रुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि ।
होत्रम्
४४६२ |स्थारीपाकः .„.. ...*.. : ३।४१| ... । १. पत्ररहितः । प्राचीनपत्राणि |
. ४७३७ |स्थारीपाकप्रयोगः ~. -*“ ११ | ८।३४| ... | सपूणैः । नवीनपत्राणि |
४६९९ कि ह द ५५०९ १४ | ६।२२| ... | असमाप्त: | कवैनाम न ठन्धम् | प्राचीन-
| | पत्राणि |
४६७९ जानसुज्रपरिसिष्टम् - -कालयायनः २| ८।३८ ... | संपूणम् । प्राचीनपत्राणि ।
४६८८क। तदेव -..| सएव ३ | ९।३२। १८११ | संपूणम् । ,
४५४२ = यात्तिकश्रीदेवः | ५३ ११) १७३५ | संपूण ।
स्रानविधिपद्धतिः
४६४६ स्ञानसूत्रपरिशिष्ट भाष्यं ~ १८ | ८।२९ ... | संपूणम् | प्राचीनपत्राणि ।
नविधिसूत्रविवरणम्
४८०१ | तदेव स एव २२ | ८।४०|१ । तपूरणम् । कारमीरिकी लिपिः |
४५६० [स्ानसूत्रपरिरिषटभाष्यं सरा-कर्कोपाध्यायः . ..
४२०
४४२
१० १२।३०। १७०९ सेपूणम् |
नसूत्रविवरणम्
स्वाचारचतुदैशीपरिशटम् द्विवेदिनारायणः
हौत्रकपरिशेष्टभाष्यम् ... कालयायनः 1 ककः
७ ११।२२| ... | सेपूणेम् । प्राचीनपत्राणि |
२३. ।१०।३५ ... । सेपूणैम् । प्राचीनपत्राणि |
|||, (1 0^}4 1511408,
[४०२-४२५] उपनिषदः ।
श्रेणयः.
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम. कवैनाम, पत्राणि.| अक्ष- तवेदनम्
राणि,
१७३३त|अथर्वरिखोपनिपत् ... |... ...| १ | ९।४५ सपूणां |
१७५२ब्/ सेव]... ... |... ...| १ | ९।३४ संपूणो |
१८०२] रैव ... ... ...|... ...| २ (१३१५ सपूणो | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
२२१६ अथववैदिखोपनिपदीपिका नारायणः ...| २१६६८ संपूणौ |
२३७० सेव तएव ...| ४ ।१२।४५ संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१७३६ २ण अथवरिरउपनिपत् ...|-.. =| | + संपूणां |
१७५१ॐ। सैव .. ...| £ | ९।३४ संपूण |
ष्का दिवः स कः स | „> „| ऋ (१३१५ संपूणां । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
२२१५ऊ।अथर्वरिरउपनिषपद्रीपिका नारायणः ...| ५ ।१६।६८ सपूणां |
२३६९] रेव ... सएव ...| ९।१२।४५ संपूणो | नवीना कास्मीरिकी लिपिः |
१७५९अ अद्वैतोपनिपत् ...| ३. | ९२४ संपूण । माण्टूक्योपनिषनुतीयप्रकरणम् ।
१८०९्द्/ रैव ... `. ... |... ...| ४ १३।१५ ... | संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१७२०ग|अख्ृतवबिन्दूपनिषत् =... |... ...| २| ९।४७| ... | संपूर्णा |
पद्य रवुः अन ऋक ०५ | ...| २| ९३४ ... | संपूण ।
११५७ग/ रैव ... ... ... |. ...| १ १८।३६| ... | संपूणो ।
१८१४अ/ रैव ... ... ...... .... ...| ३, ।१३।१५ संपूणो । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
रररदओ|अग्डतबिन्दूपनिपदीपिका [नारायणः | ३, १७।६४| ... | संपूणी |
१३०७अ रेव सएव ...| ९ (१२।४५ संपूणो । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
१७६०अ|अलातदान्तोपनिषत् ... |... ...| £| ९।३४ संपूण । माण्ड्ूक्म्रोपनिषचतुर्थप्रकरणम् |
१८१० सैव ..~ + ... |... 7 ध "७ १29४ सपूण । नवीना कारमीरिकौ लिपिः |
२२५९क्|आत्मवोधोपनिपदीपिका (नारायणः ...| १ ।२६।८४ पंपूणो ।
२४११स| सेव सएव ... १ १२।४५ संपूण । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१७७३ठ आत्मोपनिषत् ... ..-|-.. ...| १ | ९।३४ संपूणो ।
+, त ष ता ...4 १ ।१३।१५। संपू्णी । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
२८
मरन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम. कटठनाम.
२२द२छ ९४ |
२३८६्छ्| सेव सएव
१७८९ ख आनन्द वल्य पानिपत् श
५.
देण्दन्ल। सैवं नर +न ०९.५४४
२२४९भ आनन्द वछ्छयुपनिपदीपिका नारायणः
२४०१फ। रैव सएव
१७२४छ|आरुणेयोपनिषत् .-. --- -..
१७७०स््| सैव ,.. ,.. ,.^-^.
२१७६क| सेव ,,., ,.. ,..|...
१०१५ख] सैव ,,+ ८, ,,|००.
9० | शव र क , कमर
१८२०] सैव... ,.. ....-. शत
१००७ |आरुणेयोपनि षदीपिका ---|नारायणः
२२२९्/ रैव सएव
२३.८दघ/ सैव सएव
१७९७ब्र/ आश्रमोपनिषत् .. --*|-..
२०६४ सेव ध
1 1
क्त गत 0 ~ अकः म द
१७०७ इशावास्योपनि पद्धाप्यमर् |राकराचार्यः
तदेव
२०३५क 0 11..10
१६८६ (ईं दावास्योपनिषद्धाप्यरि- |रांकराचायैः ।
प्पनम् आनन्दगिरिः
२१४७ तदेवं („ॐ तावेव
२१८५ | तदेव तावेव
१६८५ | तदेव तावेव
२१४६ | तदेव ...| तावेव
१६८७क एेतरेयोपनिषद्धाप्यम् .. - दकराचार्यैः
उपनिषद्: ।
~~ "| छिपि-
कारः,
राणि,
पत्राणि.
[ ४
१६।६८
१२।४५
९।३४
९
^
[ ।
0
७।२०
२६।८४
१२।४९५। ..
९।४७
९।२४
९।२६
१४।२३१
१५।२३२| ...
ता ॥
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[५९ क
१२।४य५्/ ,..
९।२४। ,..
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१५. ।१४।३६| ,..
१४ ।१४।३८| ...
१४ १ ऊ
[४२६४५५३]
सपण |
संपूणो । नवीना कारमीरिकी लिपिः}
संपूणो । तैत्तिरीयारण्यकस्य सप्रमाएमौ पर
पाठकौ |
संपूण । नवीना कारमीरिकी च्पिः |
संपूण । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
संपूणो ।
संपूणो । नवीना कामीरिकी टिपिः |
सपूणो |
संपूण |
संपूणां ।
संपूण ।
संपूण ।
संपूणौ । नवीना काश्मीरिकी खिपिः |
संपूण । प्राचीनपतव्राणि |
संपूणौ |
संपूण । नवीना कारमीरिकी च्पिः।
संपूण |
संपूणी । य॒जेरदेशीया छिपिः |
संपूण । नवीना कारमीरिकी खिपिः |
संपूण । नवीना कारमीरिकी रिपिः ।
संपूणैम् । प्राचीनपत्राणि । वाजसनेयिसं-
हितायाश्चत्वाररिशोऽध्यायः |
सेपूणम् ।
संपूणैम् |
पपूर्णम् ।
संपूर्णम् ।
संपूणैम् | नवीना कारमीरिकी रिपिः ।
सपूणेम् । नवीना कारमीरिकी छ्िपिः |
संपूर्णम् ] एेतरेयारण्यकान्तगेता सोपनि-
षत् । नवीना कार्मीरिकी च्पिः |
[४५५४४७६]
त न | त | न्न ; ग्रन्थनाम, कतनम,
ज । ना मा ---- ---------- ~
7
|
१७१२क § . . . शंकराचार्यः । अ-
भिनवनाराय-
- णेन्द्र सरस्वती
१७०२ | रैव... ... ...| तावेव
२१३७क फेतरेयोपनिषद्धाप्यरीका . - . शंकराचार्यः । जा-
नन्दत्तानः
१७१दख रैव... ... ...| तावेव
२१२य्/ रैव ^` = „०, तवैवं
१७७१ कण्टश्रुत्युपनिषत् ४ [र
११८ ८ग ५ रि मा शा
१८२१ क सेव हकः अनि बा,
१७४२ काठकोपनिषत्. क अ
१७८० स्वृ क अके कक 1,
- १७८१न/ सेव न 9) स
२७३५ |काठकोपनिपतटीका कटव-रङ्रामानुजसुनिः
ह युपनिपत््रकाशिका
२२७५ |काटकोपनिपत्टीका ` काटका-~राघवेन्दयतिः. ..
थैसंग्रहः
२२३० ङ काठकोपनिपदीपिका .-.|नारायणः
रद८४्डः। सेव ... ... | सएव
२३.०६ |काटकोपनिषद्धाप्यम् .- - रांकराचार्यः
२३.१० तदेव श्त क श्छ क्त चि
२१६९ | तदेव ... -.. .. सण
१८५९ तदेव == == | मए
१७४५ |कारुकोपनि पद्धाप्यविवरणम् शंकराचा्यैः । बा-
कगोपालेन्द्-
यतीश्वरः
२१५१ | तदेव ... ... ...| तावेव
१७१० | तदेव... ... ...| तावेव
१०८२ कालाभिरुद्रोपनिषत् °.“
५9
४२
“र
७८
२१
उपनिषदः
श्रेणयः,
पत्राणि,। अक्ष-
राणि,
११।४९
१२३।४३
१०८०
१४।४३
९।२४
१९।३ २
१२।१५
६।२३
ल्पि-
काटः.
९।२४] . ...
९।२३४
१४।५०
११।४२
२०८०
१२।४५
१०।३७
१२।३२
२२३।८४
१३।४४
१२।४६
१९३३
२५
ऋनि
संपूणा । पाठ आनन्दज्ञानटीकास्म एव ।
संपूण । शान्तिपाठविवरणसंयुक्ता |
पटाध्यायप्रथमखण्डान्ता संपूण । नवीना
कारमीरिकी छिपिः | |
शान्तिपाठः | संपू्णैः । विवरणकतनानि
संरायः |
शान्तिपाठः । संपू्णैः | विवरणकतृनाननि
संशयः | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
संपूण |
संपूण ।
संपूणी । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
सुपूणौ । प्राचीनपत्राणि |
पूवैवह्णी । सपण |
उत्तरवद्टी । संपूण ।
संपूण |
असमाप्त |
संपूणा |
संूणां । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणेम् । प्राचीनपत्राणि |
संपूणम् ।
संपूणम् |
सपूणम् । नवीना काश्मीरिकी छिपिः |
संपूणेम् ।
१४।४५ १८९४ | संपूर्णम् |
१३।४१| १९०१ |संपूणेम् |
११।४
संपूणौ । नन्दिके श्ररपुखणान्तगेता ।
२६ उपनिषद्;
न न | च (नद न्न पत्राणि,
३ = ७३० काखाभिरुद्रोपनिषत् .--|- -. १
१७९२ष/ सव॒... ... ... |. ५
१०१५ग| सैव ... ..- -..|-.. १
२०२्९्ग| रैव... ..+ |. १
१८द९्म/ सैव. ... ... ...-.. ... (
२२५२ र|काखाभ्निरुद्रोपनिषदीपिका नारायणः १
र्ण्ध्म| रेव सएव २
२२५५ कृष्णोपनिषदीपिका . नारायणः १
२४०७८। रैव सण णे
१७३८ केनोपनिषत् ... .-.|-.. । २
१७८२प् सैव सि | ७ र
२०८३ केनोपनिषदीपिका . . शंकरानन्द: २
१६९० केनोपनिषद्धाप्यम् .. शंकराचार्यः १३
१७११ केनोपनिषद्धाप्यरिप्पनम् शंकराचायैः। आ २१
नन्दक्तानगिरिः
१७०८ केनोपनिषद्धाप्यटिप्पनम् |रांकराचा्य॑ः २७
१७३१८ कैवल्योपनिषत् ... “|. त
^ र
२०३१ड/ रसेव ... ,.. ,..|-.. र
(8 ~ 4१ 1, २
२२४७फकैवव्योपनिषदीपिका .-- नारायणः ५
२४१दक्ष| रैव ...| सएव २
१०५४ |कवल्योपनिषद्रीपिका . . शंकरानन्द १२
२७३७ वः पीतकोपनिषत्प्रकाशिका |रङ्गरामानुजः ...| १६
१७३४ ष्चुरिकोपनिषत् ... "|... ५
१७४९ ड सै छ 72 + न २
४9६ भवं नल ज लर २
०६३ सेव कक अज ()
२२१३ ्चुरिकोपनिषदीपिका --- नारायणः ३
२३६७द्/ सेव सएव ह
९।४५
९।३४
१३।४०
१३।१
२४।८४
१२।४५
१२।२२
१२।५९
९।४
९।३४
१३।१५५
६।१८
१६।६८
१२।४१५५
॥ ठ ७\७-'^9 ५]
संवेदनम्.
संपूण ।
संपूण |
पंपूणौ |
संपूण । नवीना कारमीरिकी टिपिः |
संपृणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
संपूणौ ।
संपूणा | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूण ।
सुपूर्णा । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूण । प्राचीनपत्राणि |
संपू |
संपूणौ । प्राचीनपत्राणि |
संपूणेम् । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणम् |
संपूणैम् । टिप्पनकतनाम न ठन्धम् |
१७११. मन्थाद्धिभिन्नम् |
संपूणा |
संपूणो |
संपूणौ । नवीना कारमीरिकी सिपि: |
संपूणां | नवीना कारमीस्किी लिपिः |
संपूण |
सपूणौ । नवीना कारमीर्की लिपिः |
... |संपूणो ।
१९३३ सपूणौ ।
संपूण |
संपूणी ।
संपूण । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१९४२ |संपूणा |
संपूणो ।
संपूणो । नवीना कारमीर्कि लिपिः |
[५०६-५३४] उपनिषद्ः। २.७.
त न्न | न (| चत | लिपि. |
मरन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कतेनाम, |पत्राणि.| अघ्ष- ध सेवेदनम्.
राणि, ।
२२६१व्रगणपतिपूर्वतापनीयोपनिषप- नारायणः १ |२६।८४ संपूणी |
दीपिका
२४१५ब्र/ रैव सएव 9 १२।४५ संपूणो | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१२१४ [गणपत्युपनिपत् ... ....--* २ |१२।२६ संपूण । प्राचीनपत्राणि |
१०२८ |गरुडोपनिषत् ... “|... २ |३०।१९ संपूणा । प्राचीनपत्राणि |
-~ १७९१दा/ सैव... ... ,.^. १ | ९।३४ संपूण |
.. = २०२८ सेव ... ^. |... १ [१३।४० संपूणौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
८¶द्दन्म] सैव ... ,.. ...|... १ |१३।१५ संपूण । नवीना काश्मीरिकी छ्िपिः |
-“ २२५१य गरुडोपनिषदीपिका ... नारायणः १ २६।८४ संपूण |
रेण्येभ| सैव सएव २ (१२।४५ संपृणा । नवीना कारमीरिकी ट्पिः |
~“ १७२६फग्भोपनिपत् .-- ...-.. १ | ९।४७ संपूणा |
~ १७८दब्/ सैव „.. ... ...... २ | ९।३४ संपूणो ।
१८०३] तेव म ०० ०० |. त ३ |१३।१५ सपृणा । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
~ २२१७६ गर्भोपनिषरीपिका ... नारायणः ३ |१६।६८ संपूण |
~ २३७१अद्| रोव सएव ६ (१२।४५/ ... | संपूर्णा | नवीना कारमीरिकी टिपिः |
“ २६६९खगायद्रयुपनिषत् -.. ---|-- 4 १ ११।८२ संपूण । प्राचीनपत्राणि |
““ २२५२८ गोपारपूवैतापनीयोपनिष- नारायणः २ |२६।८४ संपूणौ
दीपिका
~ २४०५य | रैव सएव १२ |१२।४५ संपूणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
~ २२५४ गोपारोत्तरतापनीयोपानिप- [नारायणः ३ [२६।८४ संपूण ।
दीपिका ।
` २४०६२] सैव सएव १२ (१२।४५] ... | संपूण ] नवीना कारमीरिकी लिपिः |
~. १७४४ गोपीचन्दनोपनिषत् कका, ॥ ४ | ९।३६ १८४१ | सं पूणा ।
ˆ २२५७स(गोपीचन्द्नोपनिपदीपिका [नारायणः १ २६।८४ संपूणा ।
~ २४०९दा/ सैव सएव ४ |१२।४५ संपूण । नवीना काश्मीरी छिपिः |
~“ १७९५० चूलिकोपनिषत् न्क अ १ | ९।३४ संपूणा
# ५ र १ | ९।४५ संपूणौ ।
` ¶८ब्द्/ सैव ... ... ...... धा २ ।१३।१५ संपूणौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
२२१४३ [चूरिकोपनिषपदीपिका .. नारायणः १ (१६।६८ | संपूण ।
- २३६८ रैव ... सएव २ |१२।४५ संपूण । नवीना काश्मीरिकी लिपिः |
~ १६७५ छान्दोग्योपनिषत् = ...|... ३३२ ।१८।३४ रं पूणो
` रण्दद्क। सैव ... ... 1. ८ (१६।६८ पच्चमप्रपाठकान्ता । संपूण |
[५३५-५६०)
उपनिषदः ।
९८
~ [~ध ~ _ प
म्न्याद्भः. पत्राणि, | अघ्ष- संवेदनम्.
रागि,
“१६७७ छान्दोग्योपनिषत् “|ˆ ,,, ,..| ५६ | ज२३| ... |अप्तमाप्रा। प्राचीनपत्राणि |
“२०६७ रैव... -- = २ |२५।१०४| ,.. |७.<.प्रपाठकौ सपूर्णो ।
~“ २७३३ (छान्दोग्योपनि पत्प्रकाशिका रद्गरामालुजसुनिः| १८६ १ १।३०| १८५१ असंपूणारम्भामावात् ।
..२०७७.८१छान्दोग्योपनिपद्धाप्यम् -- [शंकराचार्यः “^| १० ९।३७| ... | १.-५.प्रपाठकाः संपूणौः ।
= दष्क | तदैवं चू स =| ध 4 ८ २३।९०| ... | १,प्रपाठकः संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि
..„ १६७६ | तदेव | तएव ...| १३९ | १२७ --- | ६-८.भपाठका संपूणीः | प्राचीनपत्राणि।
~ २०६८क| तदेव सएव ३२ | ९।३६| ... | ६. प्रपाठकः सपणः ।
२०६९ तदेव ... =-= सएव १७ | ९।३६| ... | 9. प्रपाठकः संपूणैः |
~ २०७०ग| तदेव तएव ...| ३६ | ९।३६| .-* |<. प्रपाठकः संपूणैः |
“१६६६-७३ छान्दोग्योपनिपद्धाप्यटीका दंकराचार्यः । आ-। ३०७ ११।४४०| . -. संपूणो ।
नन्दक्तानः
१६५८-६५/ रैव `. “= तावेवं ,..| २९० |१४।४० संपू्ौ । नवीना काश्मीरिको छिपिः |
२१७० | चैवं === == °" तावेव ...| ४ [३१।१२० १. प्रपाठकः संपूणैः । प्राचीनपत्राणि ।
„ २१३५ | सेव ˆ ,,, „| त्वेवं “| ५० १५४।९४ १. प्रपाठकः संपूणैः । नवीना कारमीरिकि
छिपिः।
२१३६ | रैव “~ ^ “ तवेव ...| २९ (१४।३८|१८९६ | र-प्रपाठकः संपूणैः | नवीना कारमीरिके
्हिपिः |
नकद | वैवं ऋ“ सन तावेव ...| २ |३२।११२| -“ प्पाटकोऽसमाप्तः । प्राचीनपत्राणि ।
^ $ दज | सैव ल += तावेव ...| ४० १२।५०| .-- | ईै"परपाठकः संपूणैः ।
म द्द । सव तावेवं ...| २१ |॥२।४द/ -.- | है-प्रपाठकः तद |
,, १८७७ छान्दोग्योपनिपव्याख्या भि नि्यानन्दाश्रमः | ६५ | ६।४२| ... | संपूण ।
ताक्षरा
१७२३चजाबारोपनिपषत् .-* ˆ" `!“ २ | १।४७| ... |संपर ।
१७९६््/ सेव... =“ | २| ९।३४| ... |संपूणा
१८४यव/ तैव... --= -.-[-* २ |१३।१५ संपूणो । नवीना कामीरिकी लिपिः]
२०द२च/ सैव .-. -- | र १ १२।४० संपूणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
२२४६पजावारोपनिपदीपिका [कां २ (२४।८४| ..* | संपूशा ।
२४१२ह सेव १ | सएव ५ १२।४५| ... |संपूणौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१७६६ तेजो विन्दूपनि पत्. ॥ र १| ९।३४| ... | संपूणा |
५८१ हैव ,.. . ॥ १ |१२।१५ संपणी । नवीना कारभीरिकी लिपिः ।
[५६१-५८३] उपनिषद्ः। २९.
ल न | नन्व न्न यः,
म्रन्याद्ुः. मरन्थनाम,. पत्राणि. | अक्ष- र संवेदनम्.
रागि, +
११५८ख तिजोचिन्दूपनिषत्.--- ^| ,.. ...| ११९३२ ... |संपूणौ |
, २२२५अतिजोविन्दूपनिपदीपिका .- नारायणः ~| १ १७1६८| ... |संपूृणो |
२३०७९अ] रेव... ... ...| मणएव ...| २।१२।४५) ... |संपूणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१७३८ तेत्तिरीयोपनिपत्प्रकाशिका |रङ्गरामानुजसुनिः| ३८ |१४।५० | १९३२ | २१.पत्रहीना |
१०५९ तैत्तिरीयोपनिषदः रिक्चा- |... „.. ...| ४१५३० ... | तैत्तिरीयारण्यकसप्रमप्रपाठकसमानः । सं-
ध्यायः (दिष्षावष्छी) पूरैः |
२४८९्क। सैव ... ...+ ...|-.. ,.. ...| १० | ७।२०| ... | संपूणैः | नवीना कारिमीरसकी रिपिः |
२४९१ | रैव... ... .-..-. ,.. ...| १५| गर०| ... | मन्थान्ते तैत्तिरीयसंहितायाः केऽपि मत्रा
| कम्यन्ते । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
व्ह । शन्नः अज्म कछ (५ ... ...| £ |१७।३२| ... [संपूण ।
२४०० तैत्तिरीयोपनिपदीपिका .- नारायणः -.-| ९ १२।४५| ... |शिक्रावद्टीपरिमिता । संपृणौ । नवीना का-
रमीरिकी लिपिः |
२२४८ब/ सैव ... ... ...| पए ..| २२६८४ ... |शिक्षावद्टीपरिमिता | संपूण |
२०६३ तैत्तिरीयोपनिषद्धाप्यम् . ..|ंकराचार्यैः ---| ३. |१८।५७| ... |असमाप्म् । य॒जरदेश्ीया लिपिः |
१७०९ तै्तिरीयोपनिषद्धाप्यरिप्प- रौकराचार्यः। आ- ५५ |१२।५०। १८८६ संपूणम् |
नम् नन्दज्ञानः
२१४५ त ¬) कमः तावेव ००.| ६६ |१५।३८ ... संपूर्णम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
१७४३ तैत्तिरीयकोपनिपद्धाप्यवा- [शंकराचार्यः । सु ५० | ८।४२| ... | संपूर्णम् |
सिकम् रेश्वराचार्यः |
१७४० | तदेव... ... ...| तवेव ...| ५३ | ८।४३| ... |असमाप्तम् । प्राचीनपत्राणि |
१०४८ त्रिपुरोपनिपत् ..- ...|-- ..- ...| ३ ।१२।२७| ... | संपूण |
१७१५ [्रिपुरोपनिषद्धाप्यम् ..|भास्कररायः अ- | १६ [१०।५०|१८४७ | संपूण |
िचित्
^२४१४ज्ञ ्वितीयोपनिपदीपिका (2) [नारायणः „| ३ |१२।४५| ... |संपूणो । द्वितीयोपनिषदिति नाम मन्धान्ते
चित्रितम् । तदुपनिषदः प्रतीकपाठो ब-
हपु सूचीपत्रेष्वन्विष्यापि नान्यत्र टब्धः |
नवीना कारमीरिकी लिपिः |
ररद्ण्ड। रैव ... ... ...| सएव १ २६८४] ... |संपूृगौ ।
१७६५घ ध्यानविन्दूपनिषत् =... `" २| ९।३४| ... | संपृणो |
१८१५फ| रैव ... + २ |१३।१५। ... |संपृणो । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
११य८क| सैव... ... |.“ णा १ |१९।३२| ... संपूण ।
२२२४अ/ध्यानबिन्दूपनिषदीपिका . . |नारायणः २ ।१७।६८। ... |संपूणां |
+न
२७
न न | = [न न ८ कतैनाम र
२३७८अ ध्यान विन्द् पनिपदीपिका नारायणः
१७६२क[नाद्विन्दूपनिपत् --- ~“ |---
१५ चिक् क = जनको अरर
वी तो न> जसः अररक
२२२१ (नाद विन्दूपानिपदीपिका -- -|नारायणः
रद७्न्एे| सैव ... ... ...| सएव
२२०१. [नारद परिव्राजकोपनिपत्. - - |“
२२३.८ड नारसिंह षटुक्रोपनिपदी- नारायणः
पिका
२३९२ड| रैव सएव
१७१७क नारायणोपनिषत् ... ---|*-*
७।८द६क। चैवं जड ऋ जभ
१८३ ०त शध. कः स अद्न्
९७१४ |नारायणोपनिषपद्ीपिका . - - रांकरानन्द्ः
१००१ सेव सएव
२२५८ह नारायणोपनिषदीपिका .. - नारायणः
२४१०प्/ रैव सएव
४०७१ |निरारम्बोपनिपत् ~...
९६७ तषु `न अहो जड ०५
१७६१अनीरखरद्रोपनिपत् .-- ~. |--.-
7/1 स) 0
२२२०् नीखरुद्रोपनिपदीपिका .--|नारायणः
२७४्ए| रैव सएव
२२०५-०९ |च सिह पूव तापनीयो पनिपत् |...
क- ङः
१७७४-७८| रैव =... ... 1...
ड- थ
१८२४-२८| सैव... ... |.
ज- ठ
२२३२. गनो नारायणः
ज- उ| दीपिका
२६८७-९१| रेव सएव
ज- ठ
पत्राणि,
५८ 5 ५4 5 ~ ल
१५
[19
< © ^ < ९५ 5 «4 5 ५५
५९५ 2 ~ ९! ९५
१४
|
उपनिषद्; ।
श्रणयः.
अधश्ष-
राणि,
१२।४
९।३४
१८।३६
२।१
१६।६४
१२।४१५
१२।१५२
२२८४
१२।४५५
९।४९
९।३४
१३।१५
११।४५८
५१२।२३
२६।८४
१२।४५
९।२८
१०।२.६
९।३४
१३।१५५
१६।६४
१२।४
१०।३७
९।२४
१२३।१
२०८०9
१२।४५
खिपि-
काखः.
१९५२
[५८४-६१ ०]
संपूण | नवीना कार्मीरिकी लिपिः
संपूण |
संपूण |
संपूणा | नव्रीना कारमीरिकी छिपिः ।
संपूणा |
संपू्णा | नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
संपूण |
संपूण |
संपूणौ | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
संपूण |
संपूणौ |
संपूणौ | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणां | प्राचीनपत्राणि |
४. पत्रं विहाय संपूणो |
संपृणौ |
संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणौ |
संपूण ।
संपूणां |
संपूणी | नवीना कारमीरिकी टिपिः |
संपूण |
संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणौ । प्राचीनपत्राणि |
संपूणो |
संपूणी | नवीना कास्मीरिकी लिपिः ।
संपूणो |
संपूणी । नवीना कास्मीरिकी छिपिः ¦
[६११-६३५]
उपनिषदः ।
२६.
न्न = [= प्व न :५ प्रन्थनाम. कतैनाम.
१७७९द् [नृ सिहोत्तरतापनीयोपनिपषत्|. ..
१८२९्ण| सैव ... ..- „|...
२२३९ढ नृ सिहोत्तरतापनीयोपनिप- [नारायणः
दीपिका
२३९३८ | संव ह सएव
१७८८२ परमहं सोपनिपत् ... ---|--.
१७२२७ चैवं ,,, = ००.००
१८३५ रतै दव्य छर सवय
२२४५ [परमहं सोपनिपरीपिका .-- नारायणः
२२९९ | रेव ... ... .. सए
१७७३ ट पिण्डोपनिषत् --- ---|--
ददन तैव क कन अन्य ४
२२३१ च पिण्डोपनिपदीपिका ---[नारायणः
३८५च/ रैव सएव
१०१५क् प्रणवोपनिषत् .-- .--|**
¶ ७श०प्शोफनिषत् चकः | ५१७
२२११अ प्रश्नोपनिषदीपिका ---|नारायणः
२२६्५अआ| सेव सएव
१७०० (प्रश्रो पनिपद्धाप्यम् . द कराचायैः
१७०४ तद्व स्फ
२०३६्ख तदेव =| पणव
१७०१ प्रक्चोपनिपद्धाप्यविवरणम् [शंकराचायैः । ना-
रायणेन्द्रसर-
स्वती
२१६३ | तदेव तामेव
१६९१ | तदेव तावेव
१७०३ तदेव ...| तवेव
१६९२ प्रक्रोपनिषद्धाप्यविवरणं स-रकराचा्यैः । ना-
रिप्पनम् रायणेन्द्रसर-
स्वती
१७५६ प्राणा्चिटोन्रोपनिपत् ..-|*-*
वद्नं दिः अ शतः 32१४७
९ „१. ६४ 5 2
„€ ^ ^ . ५
१५९
प्दरर
9
क क) ~ 5 „5 + ~ © ~ ^ 5 ५
७।३९
१५।२९
१५५५५
३६।१००
११।५६
८।४३
१४।४८
९।३४
३. |१२।१५
१८४९
संपूणो ।
संपूणौ | नवीना कार्मीरसिकी ट्पिः |
संपूण ।
संपूण । नवीना कादमीरकी टिपिः |
संपूण |
संपूण |
संपूर्णौ । नवीना कार्मीरी दिः |
संपूण ।
संपूणौ | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
तंपूणौ |
संपूणौ | नव्रीना कारमीरिी लिपिः ।
संपूणौ | |
संपूणौ । नवीना कारस्मीरिकी रिपिः |
संपृणो |
संपूणौ |
संपूणा |
संपूणी । नवीना कार्मीरिकी रिपिः |
संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् ।
असमाप्म् |
. ` संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् ।
संपूर्णम् |
संपूर्णम् । टिप्पनकठुनीम न च्षएम् |
संपूण ।
संपृणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
|
द्र
ल न | ज [नद| न | म्रन्थनाम, कतंनाम.
|
२२१९८ प्राणाचिहोत्रोपनिपदीपिका [नारायणः
२३७३्त््] सैव ... ... ..~| सण
१७२८८ [्रृहजाबारोपनिपत् ..-|.-.
१७२९ | सेव]... ,..+ .....
१६५६ (चह दारण्यकोपनिषत् ...|-*
व | तत्न ऋ छ |
द. शितः जः जथ सरन्न (त त
२२६६ चरहदारण्यकोपनिषद्र्थसं- राघवेन्द्रयतिः...
अहः
२०२४ (वरह द्ारण्यकोपनिषद्धाप्यम् शंकराचार्यः
२११९ | तदेव ... ... ... सण
१६८३ तदेव व वथ अती ति
१६८४ तवद += => कनं नं छव
२०८४क|। तदेव ... ... ..~ पमण
२०८५ख/ तदेव ... ... ..~ सए
२११८ चह दारण्यकोपनिषद्धाप्य- [शंकराचार्यः । आ-
| टीका नन्द्तानः
१६.५४ | सैव ... ... ...| तावेव
२१४२क। सैव ... ... ...| तावेव
१६५३ | रैव ,.. ... ..-| तावेव
२१४३ | सैव ... ... ...| तावेव
१६५० चतः न्म्य अजक भॐ तविव
१६५१ | सैव ... ... ...| तावेव
१६८१ | सैव ... ... ...| तवेव
१६५५ | रैव ... ... ...| तावेव
२१३९ तैव... ,.. ...| तवेव
„|: २६
२७४
..| १५६
.| १६९
७३
९७
७०
. | १०१
९७
२७
१६।६४
२ |१२।४५
९।७
९।४१
११।२२। १८५५
३।३०
११।३६
१२।४०
१६।२६
९।२३९
१०।३७
१०।३८
२१।७४
२१।७४
१८५
९६००
१०।४३
१५।५०
३।४०
१६।४५०
२।४०
१४।४०
१६।५४
१४।५२
१४।५२
१३।३८
[६२८-६६१)
संपूणो |
संपूणी | नवीना काश्मीरी लिपिः ।
पूवे तापनीयम् | संपूर्णम् |
उत्तरतापनीयम् | संपूर्णम् |
संपूण |
५. अध्यायपयन्ता संपूणौ ।
७.८. अध्यायौ संपूर्णो |
संपूणैः । काण्वोपनिषदथेसंम्रह् इति मन्थे `
नाम |
संपूर्णम् । नवीनां कारमीरिकी लिपिः |
३.-६. अध्यायाः | १.-२५. पत्राणि वि-
हाय संपूर्णाः |
३. अध्यायः संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
४.-८. अध्यायाः संपूणीः |
७. अध्यायः संपूर्णः । नवीना कार्मीरिकीं
टिपिः |
<. अध्यायः संपूर्णः | नवीना कार्मीरिकी
छिपिः |
संपूणीं |
१. अध्यायः संपूर्णः |
१.अध्यायः संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
४. अध्यायः संपूर्णः 1
४. अध्यायः प्रथमव्रामणान्तः संपूर्णः । न-
वीना कार्मीरिकी लिपिः |
५. अध्यायः संपूर्णः |
६. अध्यायः संपूर्णः |
६. अध्यायः संपूर्णः |
७, अध्यायः संपूर्णः |
७. अध्यायः संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
श्वः
२३
~ ध ~
उपनिषदः,
[६६२६५७८]
श्रेणयः,
म्रन्थाह्कूः. म्नन्थनाम, कठैनाम. पत्राणि, | अक्ष- सवेदनम्.
राणि,
२१४० बरृहदारण्यकोपनिपद्धाप्य- रंकराचार्यः। आ-| ३१ १४।३८| --* |७.अध्यायः संपू्णैः | नवीना काश्मीरिकी
टीका नन्द्तानः छिपिः |
| १६५२ | सैव ... .. | तावेव ~| १५।४८ ८. अध्यायः संपूर्णः ।
| इनक्ष | दक = अछः अल तितं =| ‰ (क ® ८, अध्यायः संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी
| लिपिः |
| १८७८-८ ४ ब्रहदारण्यकोपनिपद्धाघ्य- शंकराचार्यः । सु- ३२५५ |१५।४७| .. . संपूणम्
क~ छ| वातिकम् रेश्वराचार्यः |
१८९२ वृहदारण्यकोपनिपद्धाप्य- [आनन्द गिरिः १९ १२।३६| ... | वृहदारण्यकोपनिषनृतीयाध्यायपश्वमत्रा्-
चार्सिकरीका | णस्य वार्धिकटीका सेति पाटात्संभाव्यते ।
ुस्तकान्ते टेकरप्तेन कहाड [कहोड]
ब्रह्मणम् । आनन्दगिरिवातिकोपरीति चि-
त्रितम् |
१६५७ [बरृहदारण्यकोपनिषद्याख्या (निल्यानन्दाश्रमः | १०४ १५।०५ संपूणी । प्राचीनपत्राणि |
मिताक्षरा |
२द०्७क| रैव ... .“ | सएव ५३ [२०।५६| ,.. |७. अध्यायस्य १५. ब्राद्मणान्ता संपूण |
जीर्णपतच्राणि |
ददः । विवः ऋ += =| ततएव च| (~ ४. अध्यायान्ता संपूण । नवीना कारमी-
| रिकी ख्पिः।
२३०८ सैव ..~ -. “| सएव “| १० १८।४७| ... | ७.अध्यायस्य षोडशव्राह्मणात् ८.अध्यायस्य
द्वितीयत्राद्मणान्ता संपूणौ । जीर्णपत्राणि ।
द| शैवः = == क्म प स्ा = त| + ९.०५ स ७, अध्यायस्य .व्राद्मणं संपूर्णम् । न-
वीना कारमीरिकी लिपिः ।
१७४१ बृह न्नारायणोपनिपत् म ‰9ऊ ,,, ...| १६ ।११।२४। १८५ संपूण । सस्वया । तैत्तिरीयकारण्यकद्र-
मप्रपाटकान्तगैता । नाययणीयोपनिष-
दाज्गिक्युपनिषदिति नामान्तरे ।
१०५५ | सैव + + =|“ | 9१११७१३६ ... | संपूणो।
१७८४.-८५ सैव... ~ "^ , ...| १७ | ९३१ ... | संपूणो।
१८३१-२ सैव... ~ "न" २१ |१३।१५| ... | संपूणी । नवीना कार्मीरिकी छ्िपिः।
थ- द्
१७१९ख ब्रह्यविन्दूपनिषपत् > अज भ्य १ | ९।४७| ,.. संपूण |
१७द६द्ख/ तैव ... -~ "^" १ | ९।३४| ... |संपूणो ।
१ ।१८।३६ ,.. । संपूणी ।
११८७ सैव ,.. च~ "^"
९
प्न्य ~
उपनिषद्; ।
न
[६७९-७० ९]
ग्रन्थनाम.
प्रन्थाद्भूः.
१८१३अ [द्मविन्दूपानिषत् . ˆ
२२२२अ ्ह्यविन्दूपनिपद्रीपिका `" नारायणः
२३७६ओ। रैव
१७७४८द् ब्रह्यविद्योपनिपत् . **
१७९८अ| सेव] .-- ““
२२१२द् बह्यविद्योपनिपदीपिका `“ नारायणः
२३२६दद्/ सैव
१०३५क द्योपनिषपत् ˆ“ "|"
२१७७८ सैव „+ ~
म उथषल्द“ दैव = ० =००२५*
१७२५ज/ रैव „~ -
१०७६ सेव ..ज “- -*
५ द्यौ रैव `= = ="
१७१६ ब्रह्मोपनिषदीपिका
२२१८८ ह्मयोपनिषपद्रीपिका
२३७२८्/ सैव छ,
१७९०व श्रगुवल्युपनिपत् „इड ७०|| ५५०
१०द५ख| रैव “~ “~ “|
२४९२ सैव... ~ "|
२१९४ सेव क (न
२०२७क| रैव
१८३७ब/ रैव „.~ “ “|
२२५०म श्छगुवल्युपनिपदीपिका ˆ"
२४०्यब/ सैव .- “~
व
१७२१६ रैव. = “|
१८०४ब्र्/ सैव .- = “|
१८०७८ माण्डूक्योपनिषत् = ˆ" |“
१७५०द्/ रैव .- “= “|
१०५८अ माण्डू क्योपनिपत्कारिकाः
१८०८ए्/ ता एव... ।
. . नारायणः
५ ९५ ५ न ४ 5
९ ^ 5
५५ ७४ ध 5 ७४ ५४ . ^ 6 र # « «५ न ‰ ५
4 ९ ~ ५५ 5 ४
राणि,
१३।१५
१६।६८
१२।५५
९।२३४
१३।१५
१६।६८
१२।४
१५।२०
९।२६
९।२४
९।४७
१२।२
१३।१
१२।५०
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१२।४
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१३।१५
१३।१५
९।३४
९।३४
१३।१
4७९४०
संपूण | नवीना ------1[-- [| (त्ा स । ङिपिः।
संपूण | ~.
संपू्ौ | नवीना काश्मीखि छिपिः।
संपूण | `
संपूणी । नवीना कारमीिकी लिपिः
संपूण ।
संपूणी । नवीना कारमीरिकी लिपिः।
संपूणौ |
संपूणौ |
संपूण |
संपूणौ |
संपूणौ |
संपूणां | नवीना करपीरिकी छिपिः।
संपूणो |
संपूणो |
संपूण | नवीना कारमीरिकी छिपिः।
संपूण । तैत्तिरीयारण्यकनवमपपाठकरमा ।
संपूण ।
संपूण | नवीना कारमीरिकी छिपिः।
संपूर्णौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
संपूणी | नवीना कामीरिकी कपिः ।
संपूर्णौ | नवीना कारमीरिका लिपिः ।
संपूणौ |
संपूणी | नवीना कासमीरिक लिपिः ।
संपूण |
संपूणौ |
संपूणौ | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
संपूण । नवीना कारमीरिक छिपिः।
संपूणा |
वैतथ्याख्यं द्वितीयं प्रकरणं संपूर्णम् ।
वैतथ्याख्यं द्वितीयं प्रकरणं संपूर्णम् । न-
वीना कारमीरिकी लिपिः ।
२५
2 वि स
संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि । गौडपादीयभाष्य-
मिस्य मन्थस्य नामान्तसम् |
१४।५०| १९३२ संपूर्णः |
१३।४४| १८५६ संपूण । गौडपादीयभाष्यर्टीकेति नामा-
[७१०-५७३३] उपनिषदः ।
। श्रेणयः.
मन्थाद्भः. म्रन्थनाम. कतैनाम, पत्राणि. | अक्ष-
राणि,
२००४ [माण्डूक्योपनिषत्कारिका- शंकराचार्यः ---| १७ | ७।३२
। भाष्यं जआगमश्ाखविव-
रणम्
२७३६ [माण्डूक्योपनिषदर्थप्रकारः |रङ्गरामाचुजसु निः ९
२२७६ माण्डूक्योपनिषदर्थसंग्रहः |राघवेन्द्रयतिः.--| > ११।४२
१६७८ माण्डू क्योपनिषद्धाष्यटीका शंकराचार्यः । आ-| १३६
नन्द्न्तानः ।
२०६५ | रैव ... ,.. ...| तवेव ...| १५ [२०१४७
१६७९ | सैव ... ... ...| तवेव ...| १५० |१४।३५
१६८० | रैव... ... ...| तवेव ...| ३७ |१४।५०
२१५० | सेव . ... ... ..| तावेवं ...| १६।१८।५२
२१४८्क्/ सैव ... ,.. ,..| तवेव ...| ३४ |१४।३८
२१४९ रैव ... ... | तवेव ...| ३८ |१४।३८
११०४ [मुण्डकोपनिषत् ... “|... ८ |११।१६
१७४६अ/ सेव =... „=. „|. £& | ९।३४
48 | च +न रक ००५०७ त ४ १६।३५
२२१०अमुण्डकोपनिषदीपिका -. -|नारायणः ७ |१५।.५९
ररदण्ञज| रैव ~ ... ..| सएव ...| २४ |११।४५
१६९६ सुण्डकोपनिपद्धाप्यम् ,.. शंकराचार्यः; ...| ३४ | ७।४७
१६९३ | तदेव ... ... ...| सएव ...| १३ ।१५।५५
१६९७ ।दांकराचार्यः । जआ-| १८ | ७।४२
नन्दक्तानः
१६९९ | तदेव तावेव ...| ३१ |१३।५०
१६९५ | तदेव तावेव ...| १९ |१७।५६
१६९४ | तदेव .. तवेव ...| ३२ |११।४०
२१४४ | तदेव ..- ... ...| तवेव ...| १८ |१५।४५
२१६८ मेन्नायण्युपनिषदीपिका कज > ५» -७०ज | ष (२126
१७६८ |योगतत्वोपनिषत् ... .„.|-** ... ...| १ | ९।३४
१८५५
असंपूर्ण आरम्भाभावात् |
न्तरम् ।
संपूणां |
संपूणो |
प्रथमप्रकरणं संपूर्णम् |
वैतथ्याख्यं द्वितीयं प्रकरणं संपूर्णम् । न.
वीना कारमीरिकी लिपिः |
अद्रैताख्यं तृतीयं प्रकरणं संपूर्णम् | नवीना
कार्मीरिकी छिपिः।
अलातशान्तयाख्यं चतुर्थं प्रकरणं संपूर्णम् ।
नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूण । प्राचीनपत्राणि |
संपूणो |
संपूणौ । नवीना कार्मीर्की लिपिः ।
संपूण ।
संपूण । नवीना कार्मीरिकी किपिः |
संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि |
संपूणम् ।
संपणम् |
संपूर्णम् । नवीना कास्मीरिकी लिपिः |
संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूर्णा | दी पिकाकतौनौम न ढब्धम् | संवत्
१८२ इति छिपिकाटः संरयेन पठितः|
संपूणौ |
~ प क 1.
५
न -~---ध् ~ न्थाद्भः.
१८१८घ योगतच्वोपानिषत् - “ˆ ०*
२२२७ख योगतच्वोपनिषदरीपिका -*- नारायणः
२३८१ख| रैव तएव
३७३६४ योगरिक्षोपनिपत् = ˆ"
५७६७ सेव ० छ
दुद तवं छर जनक ०००२०
१८१७ग/ रैव ... .
२२२६क|योगदिक्षोपनिपद्ीपिका - --|नारायणः
सख
२२२८० क शतुः ५५
१७९३ स रामपूर्वतापनीयोपनिपत् . - |“
१८४०य त त
२३०१करामपूवैतापनीयोपनिषत्
रीका
२२४०४ रामपूर्वतापनीयोपनिपदी- नारायणः
पिका
रदश्ण्ण| सेव .“. ... नारायणः
२२३०४क रामपूर्वतापनीयोपनिपव्या- जानक्छीनाधथभक्तः
ख्या पदविभ्रूषणम्
२६०३ |रामपूवंतापनीयोपनिपत् [आनन्द बनः &-
टीका रामकाशिका ष्णपुत्रः
४०१८ रामपूर्वोत्तरतापनीयोपनिप-लारूपण्डितः का-
तूटीका हिन्दी भाषाडवाद-| शमीरिकः
सहिता
१७९४दह् रामोत्तरतापनीयोपनिपत्
१८४१२ रैव ..~ -- "|.
२०३०घ इ + = कड
२३०२्ख रामोत्तरतापनीयोपनिपत्- |आनन्द्वनः ढ-
टीका आनन्दनिधिः ष्णुपुत्रः
, २२४१त रामोत्तरतापनीयोपनिषदी- नारायणः
पिका
२३९५त हत क == (ब सप ।
जानकीनाथभक्तः
२३०५ख रामोत्तरतापनीयोपनिषः-
| | द्यास्या पदविभ्रूषणम्
१
१
9
१
१
५
१
१
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६
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२०
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१२।४
१०।५५
९।५०
२८।२०
९।३४
१३।१५
५१ ।१३२।४०
२१
१३।४०
२४८४
१२।४९
१०।४५। ५
१९३०
१९२९
१९२९
[७६४-७५५]
संवेदनम्,
संपूण । नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
संपूण ।
संपूण । नवीना काश्मीरिकी लिपिः ।
संपूण ।
संपूणो |
संपूणो |
संपूणी | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणा ।
संपूण । नवीना कारमीरिकी टिपिः ।
संपूणो ।
संपू्णौ । नवीना कारमीरिकी कपिः ।
संपूण |
संपूणां |
संपूणी । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
संपूर्णम् । कलनाम संदिग्धम् | पद्रबवि-
भूषणमिति व्याख्यानामान्तरप् ।
संपूणो ।
संपूर्ण | नवीना कारमीरिकी ङ्पिः | ्री-
महारजाधिराजरणवीरसिदस्याज्ञया नाः
पाठवादः कतः ।
संपूणो |
संपूर्णा । नवीना कारमीरिकी पिः ।
संपूणी । नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
संपूणो ।
संपूणो |
संपूणी | नवीना कादमीरिकी छिपिः |
९३० | संपूर्णम् । कनाम संदिग्धम् । पद्रत्रवि-
भूषणमिति मन्धनामान्तसम् ।
१०
(५७५८-७ ८४] उपनिषद्; । ३७
४ ९१ श र
मन्याङ्कः. म्रन्थनाम, कठनाम. पत्राणि. | अक्ष ८४) सदनम्,
ताणि, (काटः.
२२४२ |रामोपनिपद्यीपिका ... नारायणः रत्नाकर १4 [२४1८४ संपूणो ।
भूः
२३९६थ| रैव सएव २ |१२।४५ संपूणौ । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१७२३९ |वच्रसूच्युपनिषत् .-.|-.- ४ |१३।३८ संपूण | प्राचीनपत्राणि |
१०८६ | रैव ..+ + |... ५ |१०।३६। १८९२ | संपूण |
द्द | तत्रः सज क |; र ५ |१०।३६ संपूणी ।
१९७० वच्रसूच्युपनिपतटीका सुबो- दाकराचार्यः ६ | ८1२० असंपूणीरम्भमध्ययोषुटेः प्राचीनपत्राणि |
धिनी | €
२२५६ष |वासुदेवोपनिपद्यीपिका ..- नारायणः । ¶ [२६।८४ सपूणा |
२४०८ | सैव तएव ३, १२।४५ संपूणो । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
२७३४ शेताश्चतरोपनिपत्रकारिका [रङ्गरामाजुजसुनिः| २६ १४।५०| १९३२ संपूणा ।
२१८१ |श्वेताश्वतरोपनिषद्धि वरणम् (वित्ञानात्मभग- | ४८ |१२।५० संपूर्णम् |
वान्
५२५६ [संहितोपनिषदः ... ...|... ४ ११।३२। १६७५ |संपूणीः ।
१७६९ज संन्यासोपनिषत् ... ..-... २ | ९।३४ संपूणा |
१८१९ङ/ रैव... „.. „1. द १२।१५ संपूण | नवीना कार्मीरिकी छिपिः ¦
२२२८ग संन्यासोपनिषदीपिका ... नारायणः ` $ (२८५० संपू ।
२द८२्ग| रैव ... तएव १४ १२।४५ संपूण । नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
२२०४ |सर्वोपनिपत् ... |... ¶ १५।७१ संपृणो । प्राचीनपत्राणि ।
१७८६्म| रैव]... „~ „|... २ | ९।३४ संपूणौ |
| शिः अ नूह कग ३ १२।१५ ... | संपूणौ । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
२२४३द् सर्वोपनिपदीपिका .. नारायणः २ (२४।८४ | ... |संपूणो ।
२३९७द्/ रैव सएव ४ |१२।४५। संपूण | नवीना काश्मीरिकी छिपिः |
१०२३ [सुन्दरीतापन्युपनिपत् ..--|-.- ,. १८ (१०।२९ १८९५ संपूण । अथर्ववेद महोपनिषदन्तगैता पो -
पनिषत्कण्डिकापरिमिता |
१७२७ज सुबारोपनिषत् कम) रद3 ०४७ < । ९।४७ संपूण
१७८७य हंसोपनिषत् .. .-.|.. २ | ९।३४ संपूणौ ।
णक शतिः जना शक अ०५। ४ २| ९।४८| ... | संपृणी ।
१८द४न/ सेव ..- ... ^... का २ |१३।१५ संपृ । नवीना कामीरिकी लिपिः ।
२२४४४ हंसोप॑निपदीपिका .. नारायणः ९ [२४1८४ संपूणो ।
२२९८ सैव सएव ४ १२४५ ... |संपूणा | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
1\/. \/८०61406॥5,
वेदाङ्गानि । | [७८५-८० ०]
न न | च [नदद न्त
मन्थाः. प्रन्थनाम, कतेनाम. पत्राणि, | अक्ष- ॥
राणि,
५२३८ख गोतमी रिक्षा ... ....- ... ...| ४ | ७।३१| ... | संपू्णी |
+५२५१ (छन्दःपरिदिष्टम् .-. ...|..- ..~ ...| ३ |१३।४१।१७६० | संपूर्णम् । नानि संशयः । पिद्गरकतच्छ
न्दुःसूत्रेभ्यो विभिन्नम् ।
५०७२ख ज्योतिषम् (क््ग्वेदिनाम् ) |ख्गधः --.| ५| शरण ... | संपूर्णम् । प्राचीना छिपिः।
५२२०७क| नारदी रिक्षा ... .-.|.-.. -- “| १९| ७।३१| ... |संपृणा |
५०६४ (निरुक्तम् ..- -- “यास्कः .-- ---| ७० |१२।४० १५३९ | ४.५०-६२. पत्राणि विहाय संपूर्णम् । स~
परिशिष्टं सस्वरम् ।
५०४८ | तदेव ... ... ...| सएव ...| १४५ | ९३८ ... | संपूर्णम् । सपरिशिष्ठं सस्वरम् । प्राचीनप-
त्राणि |
५०६३ | तदेव ... .. ..| सएव ...| २९१७६ १७८० | संपूर्णम् । सपरिरिष्टं सस्वरम् ।
५०६६ | तदेव ... .. „| सएव ...| ४८ |१०।३५/ १४८३ [ूरवषद्कं १.३. पत्राणि विहाय सपर्णम् |
| सस्वरम् ।
५०६८ | तदेव ... ... -.| सएव ...| ७४ | ८।२०|१६९२ [पूर्वपद्कं संपूर्णम् । सस्वरम् ।
५०६९ | तदेव ... ..- ...| सएव ...| ९५ | ६३६ १७४१ पूर्वषङ्गं संपूर्णम् सस्वरम् ।
२३६ | तदेव ... ~ -.| सएव ...| ११| ७३८ ... |पूर्वषङ्कस्यादिमाध्यायत्रयम् । असंपूर्णमार-
म्भाभावात् |
५०६७ | तदेव ... ..~ ...| सएव ...| ५२।१०।३८| ... | उत्तरषङ्कंसंपूर्णम्। सस्वरम् । प्राचीना छिपिः।
५०९० | तदेव ... ... ...| सएव ...| १०२ | ६।३५ १७४० |उत्तरष्कं सपरिरिष्टं सस्वरम् । संपूर्णम् |
५०८९ | तदेव ... ... .. सएव ...|` ४३ | ९।२७| ... | उत्तरषद्कं दशमाध्यायपर्न्तम् । सस्वरम् ।
दशमो ऽध्यायोऽसमाप्रः । प्राचीनपत्राणि |
१६०६ | तदेव ... ... ...| सएव ...| २६| ५३५ ... |उन्तरषङ्कस्य चयोदशाध्यायः (परिशिष्टम् )
संपूणैः | नवीनपत्राणि |
५०६५ निरुक्तदरत्तिः „.. .““ दुर्गाचार्यः ...| ९८ |१०।४९| ... | निरुक्तपूवाध्यायद्वयस्य दत्तिः । असमा
नुटिता च | प्राचीना लिपिः |
[< ०१-८ ०६] वेदाङ्गानि । ३९.
श्रेणयः. १
मरन्ाङ्कः. मन्नाम, कठैनाम. पत्राणि, | अक्ष- सवेदनम्.
राणि. | काटः.
५०७३ निरुक्तच्रत्तिः .** -*- दुगाचा्यः ..-| ११ १६।३८| ... | १.अध्यायोऽसमाप्तः | २. पुत्रं नष्टम् | प्रा-
चीना छिपिः |
५०५४ निरुक्तोत्तरपद्भुस्य प्रतीकानु]... „~ ...| ९११३० ... | समम्रा | प्राचीनपत्राणि |
कमणी
५१७२क|पाणिनीयरिक्षा (कग्वेदि... ... ...| ४ | ७२४| ... | संपूणी | प्राचीनपत्राणि |
| नाम्)
५२दर्ग|रोमरी दिक्षा ... "गर्गः ... ...| ६ | ५।३१| ... |संपूर्णी।
५०६१ वेदाङ्गचतुष्टयम् ... ...|-^ ... ..-.| २८ | ९।२२| ... | संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि | पाणिनीयशिक्षा
ज्योतिषं छन्दो निघण्टव इत्यष्टादध्याया
गणिताः |
१७४ग/ तदेव ,.. ..+ ...... ... ...| १७ | ९।४३| १७१२ | संपूर्णम् ।
€ £ 0140 ?^२7 :
€~] ६ ।{।६।८ ^ 7 ६6।11। (~
॥|_ [ |८2॥^1078&.
[८ ०७-< २४
---- प्रघ ~
\/, © 2५111014.
व्याकरणम् ॥
श्रेणयः.
मरन्थाङ्कुः. ग्रन्थनाम, कठैनाम, पत्राणि, | अश्च
राणि,
९७७ |अनिद्धारिकाः व्यास्यासहिताः|-. २ |१५।३६
९७९ ।अव्ययनिरूपणम् ˆ“ |ˆ ग २ |१२।३५
१३१ [अष्टाध्यायी पाणिनिः ७२ | ९।२५
१६० सेव सएव ...| १७ |१४।६२
0 दि अहः => #| 9 | ११९ | ७1२६
५९९ | सैव =“ == "= त् इ ४८ |१२।२३
२०३ | रैव संएव ११ | ९।६५
१६२ | रैव -.“ सएव ५ |१८।३२
५२४ ।आख्यातचन्द्रिका . “ˆ सूरिर्सिहः ६६ १०।३२
९७१ |उणादिसूत्राणि . . - पाणिनिः £ | ९।५८
९० कविकल्पद्वुमदृत्तिः काव्यका-बोपदेवः केशव | ३५ |११।२५
मधेनुः पुत्रः र
८६ |कातच्रधातुव्त्तिः मनोरमा (रमानाथदार्मा . | २५ |*० 1०
२१ |कातच्ररुघुव्रत्तिः बाख्वो- |जगद्धरमभहः ˆ“. ३६१ २४।१६
धिनी
१६७ सेव सएव १८ |१०।४२
१२१क कारकचक्रम् . - | वररुचिः २३ | ९।२५
८ कारकवादः “* "| २३ ।११।५१
<७ कारकव्याख्या °" जयरामः ११ ।१०।२७
कारकसमासतद्धितम्रयया- |वरर्चिः £& | ९।२५
९१२१ |
दिसंक्षेपः
टिपि-
कारः.
१८४१
५८००
१५४५१
संवेदनम्.
संपूर्णाः । व्याख्यकदठनीम न ------1-- | [प [गल जलज न सवय ।
संपूर्णम् । मन्धनान्नि संशयः ।
संपूण |
१. पत्रविहीना ।
६७.-७९. पत्राणि विहाय संपू |
असंपूणीयाभावमध्यब्रुटितत्वात् ।
असमाप्रा |
३. अध्यायोऽसंपूरणं आरम्भाभावात् ।
संपूर्णा । सारस्वतपरक्रियाया आख्याते
व्याख्या प्रतिभाति ।
संपूणीनि ।
संपूरणां |
असमाप्रा |
संपूणी । नवीना कारमीरिकी छिपिः।
संघिप्रकरणम् । अस्माप्तम् ।
संपूर्णम् ।
आरम्भान्तरदितः । मन्थनामाठमतं न ठ
ट्टम् |
असमाप्त ।
असमाप्तः । मन्थस्य कतु नामनी संदिग्धे,
(<२५- ८४३] व्याकरणम् । । ४६१
न न | क तुषा न= |
मन्थाङ्क. म्न्थनाम. कठैनाम. त्राणि, | अक्ष- | ठिपि-
राणि, | कालः.
् ।
२० [काशिकाद्त्तिः ˆ“ “"|जयन्तवामनो ^“. ५रर |२०।२२्/ .-. |असंपूणी मध्यतुितत्वात् । भूर्जपत्रेषु शा-
रदालिपिः |
३ | रैव .. ..~ | तावेव ...| ६८८ (१२।३४।१९०९ संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
सप्षाषि-
सं०२८
१४५ | सेव ... --. ...| तवेव ...| ४०९ ।१९।३६ ... १.-३. पत्ररहिता |
११२ | सेव... ... ...| तवेव ...| ३४ (१०५५२ ... | सप्रमाध्यायः | असमाप्त |
9 |कारिकाचरत्तिटीका पदमञ्जरी हरदत्तमिश्रः ... १०१० १८।४४ १८२६ संपूणौ |
५ | सेव ..~ „~ ...| सएव ...| ४० |१८।५२१८२६।१. अध्यायः । आरम्भरदितः
११२ | सैव .-~ ~ ..| सएव ...| १०१ १४।२९ ... | १. अध्यायः | असंपृणं जआरम्भामावम्-
ध्यनुटितत्वात् |
भरर | सैव ~ -- | सष्ठ ...| ४९।१०।५८| ... |२.३.७. अध्यायाः | असंपूणी मध्यतरुटि-
तत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
११४ | सेव .-- .~ „| सएव ...| १९४ १०।६४|१६०५|४.५.अध्यायौ | ५. अध्यायोऽसमाप्तः |
१११ | सेव ... ..~ .-| सए ...| २३ १३।५०| ... |४.अध्यायस्य २.पादः संपूर्णः |
१०४ |कारिकाव्रत्तिन्यासरीका व्या- जिनेन्द्रबुद्धिः। म-| २५ ।१०।४७| ... |आरम्भमात्रा ]
करणप्रकादाः हासिश्रः
१५९ क्रियाकलापः .- ` "विद्यानन्दः विज-| १८ ११।२९ ... | संपूर्णः । कर्तृनाो रूपद्वयम् |
यानन्दापरा-
भिधः
३९६ [क्रियानिघण्डुः --- ---|दाक्षिणाल्यमटृह-| ८ |१५।४१। १ ७२० | संपूण: । लिखितः केशवव्यासेन ख्वपुरे |
खायुधः |
१२२३ गणरलमहोदधिव्रृत्तिः ---|वधंमानः .-.| २९ | ९।४४| ,.. |असमाप्ता | मूलवृक्तिकर्तेक एव | प्राचीना
कपिः |
१३४ [गणसूत्रविचारे नव्यमतप-मन्युदेवः --.| ५० | ९।३७ ... | संपूर्णः |
रिष्कारः
१६१ णरणाविति पाणिनीयसूत्रस्यदिवरामेन्द्रयतिः| ५३ १७।५२ ,.. संपूर्णम् | विरचनकालः संवत् १५० १८९)।
व्याख्यानम्
८३ (तकंचन्द्िका ~ ..- कुष्णभटटः रघुनाथ- ९६ |११।३८| ... |असमाप्रा ¡ ८३. ८९. पत्रे नष्टे |
भट्सुतः
वः | चति == "ल इ षव += ९ | ५।३०| .-. |आरम्भमात्रा । नवीनपत्राणि |
११० ।त्वतल्स्मलयययोवोदार्थः ..... -- “~| ४ [१४५७ ,.. संपूर्णः । मन्नाम संदिग्धम् |
११
व्याकरणम् | [८४४-८६ ३]
२
~ ~ द ~
श्रेणयः. छि?
= प
मन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, क्ठैनाम. पत्राणि. | अ्त- | काठः, संवेदनम्.
राणि,
+९९ दुर्धटनरत्तिप्रतिसंस्कारः -“ तर्वरक्षितः ...| ४९ |१४।४७ संपूणैः । दर्धवृत्तिविरचनकालः शके
१४० १ (2) | त्तिकतो शरणदेवः । प्र
तिसंस्कतौ सवेरकषितः ।
१५ |घातुपाठः पाणिनीयः ˆ" २४ | ७।३५| ... | संपूणैः |
१६९ | सएव... = ° ,, „| २२१४।२५| ... संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१४८ |धातुमज्ञरी ... .--काडीनाथः ६ [२५।४७| ... | अस्माना |
१६२ख नन्दिकेश्वरकादिकारटीक्रा त-उपमन्युः ६ (३१।३३। ... [संपूण ।
त्वविमर्दीनी । |
धथ | दवैः शवल क न्न च जन्म] & (११०६ संपूण |
२० (पदचन्द्रिका .. कृष्णः .-- -**| १७१ | ६।३८ असमापा।१३३.१७६-६०८.पत्राणिनष्टानि।
१४० (पदार्थदीपः .-- ---[रक्ष्मीदत्तः कृष्णः] २१ |१२।०| “^ - संपूर्णः | नवीना कास्मीरिकी छिपिः ।
मित्रात्मजः
१२६ (परिभाषाः | = क| ड [१२४७६ जर" संपूणोः |
१५२ ।परिभाषाभास्करः... “^ "|दरिभास्करः आ ३२ |२१.४ ६ संपूर्णः | केुवित्रषु टेखकेन तुटिधिदहिता।
याजिभघ्सूः
३९८६ परिभापार्थमञ्जरी.-. -"-|भीमः माधवाचार्थ-। ५२ (१५।४० १.-३. पत्राणि विहाय संपूणो । नवीना
पुत्रः कारमीरस्की टिपिः।
११७ सैव ... सएव .+| ५४ | ९।३२| -.- | अत्मा | ३०.पत्र नास्ति ।
१४९ परिभाषेन्दुशेखरः.. ``" नारोदाभद्ः श्षिव.| ४६ ।१२।४४|१८८९ | संपूर्णः | नवीना काश्मीरिकि ठिपिः।
भट्पतः |
१३७ परिभाषेन्दु शेखरविव्रतिः का-वेद्यनाथः पायगु-| १२५ | ११।४५| ‰.. | संपूण | गदेति विवृतिनामान्तस्मपि म-
रिका ण्डः न्थादौ | नवीना कारमीरस्की छिपिः।
क्व् | दषः न= = जी == च| ^| ९।३५/ ... | आरम्भमात्रा |
१०० परिभषेन्दुरेखरव्याख्या ्िः,5 ०० =| 9 [१३०५ => असमाप्रा | व्याख्याकतृनाम न ठब्म् ।
त्प्रभा - नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
९२ (परिभपेन्दुरोखरीका त्रिप वद्भयेशपुत्रः ...| ७३ | ९।३६| .-- | असमाप्रा । कतैनामाज्ञातम् ।
थगा
१४२ (परिभपेन्ुशेखरटीका शं- |. “"* "| २२ | २।४८| . |असंपूणौरम्भान्तयोरमावात् । शेकरीतिनाम
करी पत्रप्रान्तङब्धत्वात्संदिग्धम् | नवीना का-
हमीरिकी लिपिः
३१ |१०।४८| ... | असमाप्रा | परिभाषाविवरणविषया ।
६१२५ (पाणिनीयवादनक्षत्रमाखा अप्पदीक्षितः .
११८ पूर्वत्रासिद्धमिति पाणिनीयः ``
सूत्रस्य पूवेपक्षः
९| ८।३४| ... | संपूणैः |
[८६४-८८४]
व्याकरणम् । ४६
म ~ ~ रन्न पर
| श्रेणयः. सिपि.
मन्धाद्भः. म्रन्थनाम. कठैनाम. पत्राणि, | अक्ष र संवेदनम्.
। राणि, भ
~
< |म्रक्रियाकौसुदी ... ..रामचन्द्राचा्यैः | २०६ ।१४।२८। १९१० संपूणी | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
गोपालाचार्थरिष्यः
१०५ | सेव ... ..~ | सएव ...| १२१ | ५३३ ... पूवाधम् । ३. १५.-२१. पत्राणि विहाय
। संपूणम् ।
१०६ | सेव = = „| सएव ...| १०२| ८३३ ,.. पूवाधेम् । असमापरम् | २८. २९.४८. प्-
त्राणि न सन्ति|
धष | चवं = = चन श्ट | वदं | सश उत्तराधम् । १.-२९.पत्राणि विहाय सं-
पणम् |
१५५ (प्रबोधचन्द्रिका ... .--वैजल्देवः ...| ७ २२।५३। ... | संपूर्णा |
१११५ | रव र क =| सं =| जकन संपूण |
9 [पराछृतप्रकाशव्त्तिः मनोरमा[वररुचिः। भामहः| २३ |१३।३९| ... |संपूणी |
१३८ | सेवे -. - „| तवेव ...| २१ (३२३७ „.. संपूण |
४६ (प्रोटमनोरमा सिद्धान्तकोसु- भट्टोजिदीक्षितः | ३६३ (१४ ।३७। १८०९ |संपूणा । नवीना कार्मीरिकी डिपिः | मू
दीव्याख्या ठटीकयोः कर्तैकः |
४७ सैव ... ... तएव ...| २०९ |१६।३६ ... पूवीधेम् । संपूणम् ।
१५७ | ठेव = .-. „| पणव ६२ [२०।४४| ... |पूवोधेम् । असमाप्तम् । ५.-<. पत्राणि न-
्टानि |
११३३ | सेव ..~ .-. ..| सएव ..| ५(११।२८ ... अव्ययप्रकरणम् | संपूर्णम् |
१७२ | सव॒... “~ | सएव ..:| ९५ |१५।२८ ... ।कदन्तपरक्रिया। संपूणौ ।
५१ प्रोढमनोरमाव्याख्यानं च्रृह- हररिदीक्षितः ...| १४७ |१२।६२| ... |पूवारधम् । खण्डितम् |
च्छब्द्रलम्
५२ (रोढमनोरमाव्याख्यानं लघु हरिदीक्षितः भ-| १८३ |११ ।३६| --- | पूवष एबन्तपरिमितम् । संपूर्णम् ।
राब्द्रलम् दोजिदीक्षितपौतरः
&० | तदव => „= „| मखं =| ५० | काठ ,.. पूवधमारम्भमात्रम् । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
५५ | तदेव ... -- | सएव ...| २२| ९३९ ... (पूर्वार्धम् । असंपूरणमारम्मान्ताभावात् |
१२९७ | तदेव ... ... ...| सएव ...| १० |१२।३१| ... पूवम् । असंपूणंमारम्भान्ताभावात् । न-
वीनपत्राणि |
५४ | तदेव ..- - | सएव ...| ९१ |१०।३७| ... |सुबन्त् | संपूर्णम् |
१३९ | तदेव ... .. „| सएव ...| ३५ |११।४८| पूवाधं प्वसंधिप्रकरणान्तम् । संपूर्णम् । न-
| वीना कारमीरिकी छिपिः |
१५२ | तदेव ... ~ ...| सएव ...| १४ ।१८।६६् पूवाधमारम्भमात्रम् |
७४ व्याकरणम् ।
न न्न | जत न
श्रेणयः. र
न्थ (9 खिपि-
म्रन्थाङ्कः. म्नन्थनाम, कतेनाम, |पत्राणि,| अक्ष-
कालः.
राणि,
५३ प्रोढमनोरमाव्याख्यानं [ष् गाभकनृ [कानाा भध्े-| २५ ।३६
राब्द्रत्रम् निदीश्चितपौतरः
५९ प्रौढमनोरमाव्याख्यानरघुश-वेद्यनाथः पायगु-| २१६ | ८।३०
व्द्रलव्याख्यानं भावयप्र- | ण्डः महादेवपुत्र
काराः
५८ | सएव... सए १२ |१०।३७
५६ (परौढमनोरमाखण्डनम् .. जगन्नाथः कृष्ण-| ४४ |१०।२९
पण्डितशिष्यः
५५७ प्रौढमनोरमामण्डनम् .- - [प्क्रियाप्रदौपक- | ५७ | ९।३८
| ता]
१०२ |बहुबीहिसमासनिरूपणम् २. |१०।४४
११९ |मध्यसिद्धान्तकोसुदी .--|वरदराजः १३० |१०।३.०
१२० | सैव ... ...| सएव २८ |११।३५। १८२५
१ महाभाष्यम् . - पतञ्जलिः १०१९ [२२।१६
१२७ | तदेव सएव ३६५ |१०।३६
२ महाभाष्यप्रदीप... ~" [कय्यटः जय्यटपुत्रः| ११८९ १३।५५| १८२८
१२८ सए... स छत् .| २२२ |१५।५५| १८१६
१३० सएव ... सएव १५ |१५।५५| १८१६
१२९ |महाभाप्यम्रदीपाविवरणम् दंश्रानन्दः **“| १९९ |१२।५२| १९०३
ठः । त्रत „= + अन्ध ऋ २५ |१०।३५
१४४ [महाभाष्यप्रदीपोदयोतः . -| नागेशभट्टः शिव-| ५४७ १९।३६
| भटरएतः
३० | सएव... सएव १३ ।११।५५
२९ | सएव... तएव ,| २२४ |११।४७
३६ | सएव... सएव „| १५७ |१२।५३ १८७०
३१ | सएव... सएव „| ११८ |१२।४९
[८८५-९०४
कृदन्तम् | संपूर्णम् |
पूवीधेम् । आरम्भान्तरहितम् |
संज्ञाप्रकरणम् । असंपूणे मारम्भाभावमध्य-
नुटिवशात् ।
असमाप्रम् |
१.-१०.पत्राणि न सन्ति | असमाप्रम् ।
नान्नि संशयः | मनोरमामण्डनमिल्युत्त-
रहस्तङिपिः |
असमाप्रम् | म्रन्थनाम न न्धम् ।
असंपूणी मध्यत्नुदिवशात् ।
असंपू्णारम्भामावात् ।
संपूर्णम् ।
१.२. अध्यायौ । असंपूणीवारम्भामावम-
ध्य॒न्रुटितत्वात् ।
संपूर्णः |
प्रथमाध्यायः | असंपूर्णो मध्यत्रुटितत्वात् ।
१. अध्यायस्य ४. पादस्य ठतीयाहिकम् |
असमाप्रम् |
१. २.अध्यागौ | असंपूर्णो मध्यन्नुटितत्वात् ।
रामचन्द्रसरस्वतीतययपि कतुनोम ट्टम् ।
षष्ठाध्यायः | असमाप्त: ।
१. अध्यायः २.अध्पायस्यादिमपादश्च सं-
पूर्णौ । नवीना कामीरिकी चिपिः।
१. अध्यायस्य १. आदिकम् । असमाप्म् |
१ अध्यायस्य १.पादः | असंपूणं आर-
म्भाभावात् |
१. अध्यायस्य २. ३.४. पादाः । संपूणोः ।
२. अध्यायः । संपूर्णः ।
७५
[९०५--९२५ व्याकरणम् ।
~ ~ह~
श्रेणयः. लिपि
म्रन्याङ्कः. मरन्थनाम, कर्ठैनाम. पत्राणि. | अक्ष- [कुलः संवेदनम्.
| राणि, | `
न्नी
1
३२ ।महाभाप्यम्रदीपोद्योतः . नागेदाभट्टः हिव ७७ |१३।५५ ३. अध्यायः | असमाप्त: |
भट्एतः
२२ सएव ... सएव ...| ९० |११।४६| -.* |४ अध्यायः } संपूर्णः |
३४ चं एवं क्छ = | द = २९ ।११।४५। ... | ५. अध्यायः | असमाप्रः ।
३५ | स एव ... सएव ...| ५६ |११।४७| ..* |७- अध्यायस्य १.२.३.पादाः | असमाप्राः।
३७ |महाभाष्यविवरणं सूक्तिरला- लेपनारायणः ...| ६६ |११।३३। १८१५| १. अध्यायस्य ६. पादस्य ~" आहिकम् |
करः संपूणम् |
2८ | सएव ... --* = सएव ^“: ५३ |१२।३३। १८१५ १. अध्यायस्य १. पादस्य ४. आदिकम् ।
संपूर्णम् |
३९ | संण्व् = == =| स् वु ६७ ११।४१।१८१५| १. अध्यायस्य १. पादस्य ५. आदिकम् |
असमाप्रम् । १६.पत्रं नष्टम् |
४० | सएव... -~ - सएव १७ १०।३३| ... |२. अध्यायस्य १. पादस्य २. आहिकम् ।
संपूर्णम् ।
१ सण ..-. ज“ °" सपव , , | ११३ | ९।३४| १८७७ ६ अध्यायः | असंपू्णैः | २८.-३३.
३८. ५२. ५९.-६३.पत्राणि नष्टानि ।
४२ | सएव... तएव ...| ४७ १२।३३| -- ६. अध्यायस्य १. पादः ५. आदिकान्तः ।
संपूणैः |
४२ | सएव... तएव ...| ७ |११।३३ ६. अध्यायः | असंपूणणे आरम्भान्ता भावात् ।
९६ मितव्रत्यथंसंग्रहः पाणिनी-उदयनः | १० |१४।५४| ... | ६. अध्यायः | असमाप्रः । काशिकादृत्तः
यसूत्राणाम् । संक्षेपः प्रतिभात्यय मन्थः |
९५५ न तअ = क| श @ + २७ | ९।४३ ... | ६- अध्यायः । संपूणैः |
#९७ [युक्तिरत्ाकरः “*“ कृष्णाचायैः रामसे- २२ | ८।२३५| “" संपूर्णः ।
वतू;
१०८ रूपमाला . . . . . .विमरुसरस्वती | १४० | ८ 1२५ असमाप्रा | ।
४५ (रूपावतारः ... कृष्णदीक्षितः .--| १५४ |१४।३१ असमाप्रः । कर्तुनीम मन्थे न छब्धम् । न
वीना कारमीरिकी लिपिः |
११०९ |रूपावतारः हिन्दी भाषाउवाद्- |." ८ ११।२९| ... |असमाप्रः । ४५५. मन्थाद्विभिननः ।
सरितः
८४ लघुसिद्धान्तकोसुदी „वरदराजः --.| ३८ | ९।३७| *" संपूणौ |
क | चि 2 क =| गलः शन्न = |१२।३२| ... |संपूणी । नवीना काशमीरिकी चिपिः ।
इह | दैवं सक क्ल न्न सं एकर ५ १६।४१| ... |संपूणी । नवीना कारमीर्की छिपिः ।
क्त । चितः नय == | अ द = 9७ = = असंपूर्ण मध्यत्रुटितत्वात् ।
9९
~~ ~न ~ _ न्थाङ्कुः.
व्याकरणम् ।
म्रन्धनाम,
२५४ [छघुसिद्धान्तकोसुदी “""|वरद्राजः
२०० हकः अ र =| स क
१९७ वः `अनः +न सएव
१७द | सैव... = = इ ल्
३६ लिङ्गविदोषविधिः टीकास- वररुचिः
हितः
०७० च एवं == ० = सएव
६४६ लिङ्गन्त्तिः-.- ˆ" वररुचिः
१७४क लिङ्गालुदासनवृ्तिः `` पाणिनिः
८०७ |छिङ्गयुशासनटी
७८
५९८
१४१
९७८
१६२
१५४
४८
२०५
लक्षणा रस्वामी दीप्त
स्वामिपुत्रः
वाक्यपदीयटीका .** ˆ" भर्तृहरिः । पुण्य-
राजः
वाद्चूडामणिः .. कृष्णाचार्यः रम-
. तेवकपुत्रः
वादसुधाकरः ..कष्णमिच्रः रामसे-
वृकत्रूठः
का सर्वार्थ-हर्षवधनः । राव
पत्राणि, | अक्ष-
४२
१९
२४
९२
२७
१५
र्
म् "
वैयाकरण भूषणम् (लरदत्) कोण्डभट्ः रद्गो-| ररर
। जिभच्पूढः
वरेयाकरणभूषणटीका वेयाक-वनमारिमिश्ः
रणमतोन्मजना
त्ेयाकरणभूषणसारः -“*[कोण्डमहः रङ्गो-
निभदघ्पूचः
सएव... -. | तएव
तएव... .-.“ | स्व
१४
२४
श्रे
१६
(९२६९-४
श्रणयः. छिपि
कठ.
राणि,
असंपू्णी मध्यतरुटितत्वात् । नवीनां का
१४।३३
दरमीरिकी लिपिः |
१४।३७ पूर्वाम् । संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१२।३० उत्तरार्थम् । संपूर्णम् । नवीना कारमीर्कि
छिपिः |
२०।३५| ... | खण्डिता |
८।३८| ... | संपू्णैः ।
९।२६ १९४१ | संपूर्णः | ।
१४।७५/ ,.. | संपृणी । प्राचीना छिपिः ।
१९।५०| ,.. | संपूणौ । वृत्तिकतुैनीम नावगतम् ।
१२।३४। १९१९ | संपूणा |
१०।७०| ... |दवितीयकाण्डः | संपूर्णः ।
८।३६| ... सिद्धान्तकौयुदीकरमाठसारी मन्थ इवयदमी-
यते | टेखकेन मध्ये ुटिधित्रिता ।
१२।२४। ... | संपूर्णः । नवीना काश्मीरिकी छिपिः।
१३।३२| .-- |असमाप्म् ।
१०।४०| ..-. | असमाप्रम् ।
२०।५३। ... | संपूणो |
२५।६३| .-- | संपूणैः |
१४।३९| शके | संपू्णैः । नवीना कारमीरिकी लिपिः।
१७७६
१२।३९ १.-२६. पत्राणि विहाय संपूणैः । नवीनः
कारमीरिकी च्पिः |
[४४९६१] व्याकरणम् । ७
~
श्रेणयः,
म्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कठैनाम, पत्राणि, | अक्ष- 3 संवेदनम्.
| णि. |कारः.
२०१ वेयाकरणभूषणसारः कोण्डभटः रद्गो- ३ १९।४५| ... |आरम्भमात्रः |
जिभद्सूठः
१६८ वैयाकरणमूषणसारटीका भू-हरिवलछभः श्रीव-| ४७ [३४।९०| -.* संपूर्णम् |
पणसारदपणः ह्भात्मजः
१९४ | सएव... ... ..4 सएव ...| १८५ (१४।४५] ... |असमापतम् । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
७९ तएव ... .. .. सएव ...| ३६ | ९४६ ..* |आर्भमातम् |
१३२ वियाकरणभूषणसारटीका रु हरिवछछभः श्रीव-| २२५ १२।२९| .* | संपूर्णम् । नवीना कारमीरिी छिपिः |
घुदपणः हभात्मजः
९८६ | सएव... ... .4 सएव ..| ४२ |१४।४०| .-* [अत्मा |
८२ वैयाकरणभूषणसारदटीका रु-गोपाख्देवः मजु] ४१ | ८।४५| --- | असमाप्रा |
घुभूषणकान्तिः देवापराभिधः
८१ वैयाकरणभूपणसारविन्रृतिः महानन्द पण्डितः | १७२ | ८।२७| १८७२ असंपू्णीरम्भाभावमध्यत्रुटितत्वात् । विर-
। | | रमेश्रसूनः चनसमयो छिपिकाठसम एवाभाति ।
१८९ वेयाकरणसर्वस्वम् किण ..+ .-..| २६० |१६।३७| ... | असमाप्म् । १७९.-१८८. पत्राणि नष्टा-
नि | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
४६५ वैयाकरणसिद्धान्तमजुषा- नागेशः ,..| ४ १४।९३| ... |आरम्भमाव्रा | रिप्पनीकतुनोम न टब्धम् |
विपमटिप्पनी ` ३. पत्र नष्टम् ।
१५० व्याडीयपरिभाषातव्रत्तिः ...|- -* “| ४२ ११।३१| ... संपूणी । नवीना कारमीरिकी छिपिः।
६९ राब्दकौस्तुभः ... “भट्टोजिदीक्षितः | १७० १२।५०| --* | ६. पादः । संपूर्णः ।
| ट््मीधरसूः
७५ | सएव... ... ..| सएव ...| २८५ | ८।४१|१९२८| ६. पादः । <. आदिकं विहाय संपूणैः ।
७३ |शब्दकौस्तुभरीका --“ |“ ,.. ...| ६५ १०।३४।१८१२ प्रथमपाद्परिमिता । १.-४.पत्राणिवि-
हाय संपूणौ । टीकानाम न छन्धम् |
७४. ७०, म्रन्धाद्िभिन्ना |
वी । रवुः छर स नज्म|=०५ ,.. ...| ९५ १०४११८८१ १. पादुपरिमिता। असंपूणौरम्माभावमध्य-
तुटितत्वात् |
७० दराब्दकौस्तुभव्याख्या 55 > [७५२ .., `... ४१ १०।५५ १८४१ | १.पाद्परिमिता | संपूणो व्याख्याकतु-
नीम न छन्धम् | ७३.७४.मन्थाद्विन्ना |
७४ [शब्दकौस्तुभव्याख्यानम् |. -- “| ४० (१४।४० १. पादस्य ३. ४.आद्िकरे | असंपूर्ण आ-
। रम्भान्ताभावात् | पूरे्रन्थेम्यो विशिष्टम् ।
७२ शब्दको स्तुभव्याख्यानं भावः कृष्णसिन्नः रामसे- ७३ ।१०।४७| ,.. | १.पाद्;: । असंपूणं आरम्भामावमध्यन्रुटि-
प्रदीपः व्कपुत्रः तत्वात् |
|
४८ व्याकरणम् । [९९२-०८ ०]
न नत | व न्न
प्रन्धाद्कूः. ग्रन्थनाम, कतैनाम, |पत्राणि.| अक्ष- संवेदनम्.
राणि,
1 7 1 | रान्द्सारः (९ ) 1०3 % (२४।८४ ग्रन्थनाम संदिग्धम् | कतनाम न ठभ्यते ;
काव्यसारसंग्रह् इ्यभिधमन्थस्यारम्भमात्रं
पुस्तकान्ते |
४११८ (शब्दह्दयम् ... ...-.. ६ | ९।४४| १९४१५ | संपूर्णम् |
१६६ (शब्दाथसारमञ्जरीपङ्कारक- [भवानन्दसिद्धा- | ९ |१७।४४ १८४६३. संपूर्णम् ।
चक्रविवेचनम् न्तवागीराः
4२८८ तदेव भक "टः रनः चि, चव ...| १८ ।१५।४९ संपूर्णम्
*१५८ (शब्दार्थंसारसंग्रहः ७५ | ~ ~ | ९| ८२८ ... |संपूर्णः | कर्तृनाम न ठभ्यते।
४०९७ | सपव ... + न... ,.. „..| १२ | ६।२८|१९४१ | संपूर्णः |
>+४० ७३ (राल्दवि चारः ` अचटरामा ... १६ | ७।१०| ... संपूण | नवीनपत्राणि |
४०८३ पद्ारकनिरूपणम् - ` त्रिखोकनाथः वेय- १६ | ७।३१। १९४१ संपूर्णम्
नाथपुत्रः
२२ |सरस्वतीसूत्रधेका सिद्धान्त. रामचन्द्राश्रमः | ७८ |१४।३७ संपूणो | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
चन्द्रिका |
२५ | सैव ... ... ...| सएव ...| ३९| ९।५६ ... |पूरवाधेम् | संपूर्णम् |
२६ | रैव ... ..~ „| सएव ...| रर | ८४५७] ... |पूवाधम् | असमाप्रम् |
१३५ |सरस्वतीसूत्ररीकासिद्धान्त- रोकेशकरः क्षेमंक| १०७ |१४।४१ संपूणो । विरचनकाठः संवत् १७४१ |
चानेदक्ाव्याख्या तत्वदी र्ः , नवीना कारमीरिकी लिपिः |
पिका
१३६ [सारस्वतश्रक्रिया ... . .| अनुभू तिस्वरूपा- | £४ |१४।३७ संपूणो । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
चायः
१११४ | रैव ... ... ... सएव ...| १२४ |१०।२६ असंपूणोरम्भाभावात् ।
४९८ | रैव ... ... .. सएव ...| ११ ।१४।४६ कदन्तप्रक्रिया । संपूणो | प्राचीनपत्राणि |
२३ [सारस्वतमप्राक्रियारीका --.ुजराजः ~| २० |१०।४७ असंपूणारम्भान्ताभावात् |
९९५ |सारस्वतप्रक्रियाटीका सार- वासुदेवभट्टः --.| १४२ १२।३५सपर्धि | संपूणैः | विरचनकाठः संवत् १६३४ ।
स्वतप्रसादः सवत्
अथवा
कखि०
४८९२
२४७३. [सारस्वतप्रक्रिया हिन्दीभाषा-|... ,.. ...| १७ |१८।१९ आरम्भमात्रा | नवीना कारमीरिकी लिपिः,
ठवाद्सदिता श्रीमहाराजापिराजरणवीरसिहकारितो-
। ऽयमड़वाद्ः |
३४५६ सैव ,.. ,.. | कक ऊक |
८।३४| ... ।आरम्भमात्रा
[९८१-९०९] | व्याकरणम् । ८९.
न = न्या न्न न्याङ्कः, ग्रन्थनाम, ` कतृनाम,
९७ [सिद्धान्तकौमुदी -.- .“.भद्टोनिदीक्षितः | ७२९ | ६।३२ सप्ति संपू्णी । काश्मीरिकी छिपिः |
संवत्
९२८
१४६ | सेव .-- ~ „| सएव | १५१ [२४।२०| ... |असंपूणी मध्यतुधितत्वात् ।
१३| सैव --- ..~ | सएव ...| ९८ १४।४५७| ... |तिन्तपर्यन्ता | असंपूणौरम्भाभावान्मध्य-
तुटितत्वाच |
१० त्वः अद्ध; + ५५७ सएव ...| १६४ | ९।४८| १७०५ पू्वांधम् । असंपूणे मध्यत्रुटितत्वात्
१६४ | सेव ..- .. ..| सएव ...| ६५ (१५।४० १८८० |पूरवार्षम् | असंपूणमारम्मामावमध्यत्रुटित-
| त्वात् | |
१२ |. सव ... ... „| सएव ...| १६० | ९३० ... | उत्तराम् | मध्यैकपत्रविहीनम् |
११ | सेव... .. | सएव ...| २७३ | ५७३२१७९८ | उत्तरार्थम् | असंपूर्ण मध्यन्रुटितत्वात् |
१९ | सेव ..~ ... ...| सएव ...| ३९।११।३८ ... [उत्तरार्धम् । असमाप्म् |
१९५ | सव॒... ~ -| सएव ...| ३५ | ५४४] ... [उत्तरार्थम् । असंपूणमारम्भाभावमध्यनु-
टित्वात् ।
१७ | सेव -.~ ... | सएव ...| ३३ १९४६ ... |कृदन्तप्रकरिया | संपूर्णा |
१९८ | सेव .-- “~ „| सएव ...| ३८ |१२।४०| ... वैदिकस्वरपक्रिया । असंपूणीरम्भान्ताभा.
वात् ।
९| रेव ..~ ... | सएव ...| ६४ | ८२६ ... वैदिकस्वरपक्रिया | असमाष्ा | नवीना
कारमीरिकी लिपिः |
२८९ | सौव ..- .~ | सएव ...| २९।॥३०।४६ ... |वैदिकस्वरपक्रिया। अतसमाप्रा।
9७ | रैव .-- ~ ..| सएव ...| ५ |१२।४४१५२६| लिद्गाचशासनवृक्तिः | संपूण |
५०१३ | तव --- -- „| सएव ...| ११ १२।१४| ... | लिद्गाठासनवृत्तिः | संपूणी । प्राचीनप-
त्राणि |
१३४ |सिद्धान्तकोसुदीव्याख्या तक्ञानेन्द्रसरस्वती | ७७३ |१२।३५| ... | संपूण । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
| ` त्वबोधिनी वामनेन्द्रशिष्यः
१५६ | सेव .. ... ...| सएव ...| १८ ।२०।५५/ ,.. |स्वादिसंयिपरिमिता। १.२.पत्रे विना सं-
¦ |
सिद्धान्तकोसुदीव्याख्या प्रौ-
| ढमनोरमा पूर्वमासनाता |
१३३ सिद्धान्तकोसुदीव्याख्यानं [नागेाभटः शिव- | ५५१ |१४।३८।१८२१ | वण्डितः |
बृह च्छब्देन्दुदोखरः भ्सतः
9. सु एल् जक == | श्व २७ (११।४४। ,.. (असंपूणं आरम्भान्ताभावात् |
१३
५9 व्याकरणम् । [१०० ०-१०१६|
गश ११ णयः.
ग्रन्थनाम, | कतैनाम. पत्राणि, अक्ष- भ सवेदनम्.
रणि, | कर"
१ 0
११६ सिद्धान्तकौसदीव्यास्यानं ब नागेशभट्टः शिव-| ३९ | ९।३६। ..- |असंपूण आरम्भान्ताभावात् |
दच्छब्देन्दुरोखरः भद्एतः
६४ [सिद्धान्तकौसुदीव्यास्यानं ल~ नागेद्यः शिवभद| २१३ ११।५०| ... [पूवम् । संपूर्णम् ।
घुशब्देन्दुरोखरः पुतः
१५१ | सएव... .~ | सएव ...| १० १८६६ ... पूर्वर्धम् | आरम्भमत्रम् |
६५ | सएव... ... ...| सए ...| १०५ |११।२७ ... उत्तराधम् । असपापम् |
६७ | सएव... ... ...| सएव ...| १०२|१०।३८| ... |वदिकस्वसपक्रिया | संपूणी | नवीना का-
रमीरिकी चिः |
१८ (सिद्धान्तकोमुदीव्याख्यानर- वैयनाथः पाय- | ६९ |१४।२४ .... असंपूणी मध्यनरुटितत्वादन्ताभावाच |
घुशब्देन्दुखोखरद्त्तिः चि-| गुण्डः
दस्थिमाखा
१०७ [सद्धान्तकौमुदीवादा्थैः ... रामकृष्णः ..-| १३ | ६।३९| ... |असमापरः । म्रन्थनानि संशयः ।
२८ [सिद्धान्तकोमुदीविवरणम् |... .. “| ११११1४४ ... असंपूर्ण मारम्मान्ताभावत् । त्रन्थनाम न
टन्धरम् |
६२ |सिद्धान्तकौसुदीव्यास्यानं वै-रामक्ृष्णभट्ः ति-| ४०६ |१०।३८| १७४४ [पूनौेम् । संपूर्णम् ।
याकरणसिद्धान्तरलाकरः| रुमटपुत्रः
६२ | सए... ... ...| स एव ...|१००३ [१०।४५| १७४८ उत्तरार्थम् । संपूर्णम् । १.-९१.पत्राणि
| विनष्टानि |
६१ च चव तनः गन => च प ,,.| ६६ |१५५२्| ... कृदन्तप्रक्रिया संपूणा |
१०१ [सिद्धान्तकोसुर्दीरीका शब्द्... .-- „^| १०५ |१०।३.४| १८९१ | ६. ९५. पत्राणि नष्टानि । तद्वितद्धिर-
सिद्धान्तपूर्णकोसुदी ्तितिडन्तप्रक्रियापरिमितव्याख्याया नाम
संदिग्धम् । धविदुवृक्षवारकृष्ण इति क-
तै नामान्यहस्तचित्नितम् ।
६८ (सिद्धान्तकोमुदीव्याख्यानं श~ नागेशभटः “` ६६ |१०।३६| ... | खण्डितः |
व्देन्दु रोखरः (रघुः १)
२०२ स एव ,.. सएव ...| १८ कत ... |स्वरप्रक्रिया | अप्तमाप्रा |
१९६ | सएव... ,,„ | सएव ...| ४३११।६९ -.. स्वरप्रक्रिया । असमापरा |
७७ सिद्धान्तो सदीव्यास्यान .,, ,.. „| १२१०४४५ ... असंपूणोरम्भान्ताभावात् । टौकानाम न
व्देन्दुशेखरटीका ९, . न्धम् ।
ध, । शती नः =
4
क त 0 असंपूणीरम्भान्ताभावात् । टीकानाम त
` | टन्धम् ।
[१०१७-१०२९]
व्याकरणम् । | ५१
| =-= न न
श्रेणयः.
ग्रन्थाः. ग्रन्थनाम, कतनाम. |पत्राणि.| अक्ष- =] सेवेदनम्.
राणि, "
क
५६ [सिद्धान्तकोमुदीव्यास्यान्-... ... ...| २१ |१०।३५ असंपृणो । व्याख्यानाम संदिग्धम् | अ~
व्देन्दु शेखरव्याख्या | त न्तेन्यद्रन्थनिणतं कारकविवरणम् |
१०९ सिद्धान्तकोौमुदीसारः क 0 ` °“ °| २०|| ९।३१ ... |अप्तमाप्रः |
१०३ |िद्धान्तकोमुदीसारसंग्रहः |. -- '--.| १५ | ९।४७| ... |असमाप्तः | ४पत्र विनष्टम् ।
९३ |सिद्धान्तकोञुदीरीका सुवो-जयङ्ृष्णः रघुनाथ. ५८ ।११।४६| ,.. | दिकस्वरखण्डयोष्ठीका । असंपूणी मध्य-
. धिनी भद्पुत्रः | ` चुटितत्वात् |
८५ सिद्धान्तकोसुदीस्वरग्रक्रिया- रामचन्द्रः ` नागो-। ५४ १ ३।२७| १८४८ |संपूणां |
व्याख्या जिभघ्ूचः ध | ,
१६ | सैव .. -. | सएव ...| ९ [१२४७ ... |असंपूणीरम्भाभावात् |
१८७ |सिद्धान्तसुधानिधिः ~ विशेश्वरः रष्ष्मी-| ६७६ |१७।४३| ... |असंपर्णो मध्यन्रुटितत्वात् 1 नवीना का-
धरपूठः स्मीरिकी लिपिः |
० | तष्व.. -“ “| सएव ...| ३२१ [१०४५] इके | १.अध्यायस्य १.पादः। संपूर्णः
। | १६८२
५० | सएव... -~ | तएव ...| १६२ ।९०।५३ ... | १.अध्यायस्य २.४. पादौ | संपूण |
< | सषए्व.- “~ +| ण्व ...| ९६ |१६।४७ ... | द्वितीयाध्यायः | असमाप्तः | नवीना का-
रमीरिकी लिपिः |
१४७ |सूत्रार्थसंग्रहः ... ...... ** “^| ९ |१९।७४ १८५३ | ७. अध्यायः } संपूर्णः । पाणिनीयसूत्राणां
| सं्रहः |
१९३. |स्फोटतत्त्वम् .- ~“ कृष्णद्धिवेदः ...| ३ २४।८२्| , संपूर्णम् | |
१३३६ स्फोटवादः त अन “° “““| १२ | ९।३९| ... |असमाप्तः । मन्थनामादमितम् | प्राचीन-
4 पत्राणि |
| न | न्ध न्त धाङ्ः.
२०९
४०४
2८ ०
९६५
४०१
७९१
७९२
२९३
४३८
२११
४२२
२१०
४८३
४८४
४८५
४८६
४८७
४८८
८२
न्धना.
अनेका्थंतिखकः .-.
अनेकार्थध्वनिमञ्जरी
सेव
सेव
अनेकाथंसंम्रहः
तएव...
अभिधानचिन्तामणिः
ल एवं >
सएव...
सएव...
तएव...
अभिधानरतमाखा
सेव
अमरकोरदाः
सएव...
सएव...
सएव ...
सएव...
सएव...
तएव ...
, \#/।, [ 5241006 १4\7211/.
कतुंनाम.
. . मरीपः
. . क्षपणकः
सएव
सस्व
. . हेमचन्दः
स्प्व
. - टेमचन्द्ः
स्स्व
सएव
स पए्व
स॒ एव
. .हखायुधः
स एव
. .|अमरसिहः
सएव
स ष्व
|
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स्स्व
| सण
कोशाः ।
पत्राणि,
२२
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,,।. ७
[1
[१०३०-१०४९
श्रणयः.
अक्ष- स तेवेदनम्.
राणि. ।
|
१२।४३ ... । १. पत्र विहाय संपू्णैः । विरचनकाटः सं-
वत् १४३० | नानाथेरतरतिरक इत्यपि
म्रन्थनामान्तरम् |
६।१८ संपूणी |
१४।३७ संपूणा | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
९।३३ १. २. अधिकारौ । संपूर्णो |
८।५१। १७१६ | संपूर्णैः |
१२।३५| ... | संपूर्णः |
१२।५४ १८७८ | संपूणैः |
१२।४१ संपूर्णः |
१०।३८ १.२.काण्डौ । संपूर्णौ ।
१०।४० ३. काण्डः | संपूर्णः |
१०।३६ असंपूणं आरम्भान्ताभावात् |
१०।५१| १८७७ |संपू्णी |
१२।३८ ... | खण्डिता |
१२। २३। रके |संपूणः | कारमीरिकी छिपिः |
१७५७७| नामलिक्गाठश्चासनमिति प्रसिद्धं मन्थना-
मान्तरम् |
८।२५ संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१०।३६ संपूर्णः । नवीना काषमीरिकी छिपिः |
१०।३२ संपू्णैः । नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
१०।३० संपूणैः । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
९। २७ संपूर्णः । नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
--
११।३६। १८७४ |असंपूर्णो मध्यतुटितित्वात् ।
|१०५,०-१०७१)
@ि
5 ८५ |अमरकोराः
- "अमरसिंहः २६
४९९१ पः एव् => सएव ३०
४९१ [अमरकोशरीका पदचन्द्रिकारायमुकुटः वृह- | ४६८
स्प्यपराभिधः
२१२.४३०| रैव सए ...| २१९
२०५ सेव .| सण .| १२८
५५७ [जमरकोरशीका व्याख्यासुधाभानुजीदीश्चितः | <
२४८४ |अमरकोशः रिन्दीभाषाठुवा | ... ७
द सहितः
२३४५७ | सएव ... ... क| चु
३४२४ [अमरकोशनाममाला हिन्दी- .... „| ३१९
भाषराटदाललीभाषादुवाद्-
सहिता
४३४खएकाक्षरकोरः . पुरुपोत्तमदेवः...| २
७६२ स इव् ~. ..| सएव ष
४३५ (एकाक्चरकोद्याः ,. .मराक्षपणकः ... ९
४३३ [कल्पद्धुः .. केदावः ००|| श
४०२ त्रिकाण्डदोपः त पुरषोचमदेवः न्न इ
४३४क दहिरूपकोदाः .. पुरुषोत्तमदेव ३
३४७८ [नानाथैकोशः =... ,..... ५७
३०७ नानाधेध्वनिमज्री क १२
३९४ [नानाथरल्रमाखा - ` निरूपमदण्डादि-| ५४
नाथः
७७० [नाममा ` * धनंजयः १०
४८२ सेव सण ट
३९९ | सेव ,.., सत ८
२०७१ (नामविभ्गमाखा ,..... .| ३१४
१४
कोश्चाः। ५५९
|
१२।३४ असमाप्त |
७।३२ खण्डितः | प्राचीनपत्राणि |
२८।१७ संपूणी । नवीना कारमीरिकी छिषरिः ।
१२।४५ १.-६<. पत्राणि विहाय संपू्णी |
१२।४४ असंपूणारम्मान्ताभावात् |
२६।७८ १.-३. सगः । अपस्मापराः |
१२।३८ १.सगेः । असमाप्तः । नवीना कादमी-
रकी छिपिः | श्रीराजापिरानमहारानर-
णवीरतिहच्पकारितोऽयमववादः |
११।४४ आरम्ममात्रः | नवीना कारमीरिकी लिपिः,
१४।१८
अस्माप्रा | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
श्राराजाधिराजमदहारानरणवीरसिहद्पका-
रितियम् |
१२।३८| १८८० | संपूर्णः |
८।२१|१८८६ संपूर्णः |
४।१८ १८७६ | सूरः
९।५६| ... | संपूर्णः ।
११।४२| १७१३ | संपूर्णः ।
१२।३८ १८८० संपूर्णः
३८। २२ --* | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
अयमक्रक्रमातुसारी कोशो श्रीरानाधि-
रजमहाराजरणवीरतसिदप्रभुकारितः |
५।३४| .-. |असमाप्रा । कतृनाम न लब्धम् । दुर्गसिह्-
छतिसमानः पाठः |
८।४८| ... | संपूण |
११।४२ १८५० संपूणा । शेकशतद्वयपरिपितः स म्न्धः ।
१६।३४| १८६६ |संपूणो | कारमीरिकी छिपिः |
१०। ५२ --- |असंपूणौ मध्यत्रुरितत्वात् |
२५।१ ५ संपूणो । नवीना कारमीरिकीं छ्िपिः
श्राराजाधिराजमहारानरणवीरसिहकारि-
तोऽयं संग्रहः | |
पच | कोरा: । [१०७२-१०८६]
। . भणयः,| छिपि- ॥
ग्रन्थाः, ग्रन्थनाम, कतृनाम. पत्राणि. | अन्षि- |, सवेद्नम्.
राणि | कारः
२४७२ [नामविभागमाला..- --.|-“* -.+ | ११८ (२७१५ असमाप्रा | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
४३७ [नामसंग्रहमाखा ... ---| अप्यदीक्षितः ...| ७७ | ९।२८ संपूणी |
७६५ (मेदिनीकोदाः ..- .-.- मेदिनीकरः ..-| २९ (१३।४८| १९०१ | असंपूणोँ मध्यत्ुयितत्वात् ।
४१३४ |राजव्यवहारकोशः .-..रघुनाथपण्डितः | ४९ | ५।१६। ... | संपूणैः | नवीनपत्राणि ।
नारायणसूनुः
३०८ |लक्ष्मीनिवासः उणादिप्रय-दिवरामः कृष्ण- २८ | ९।४१| ... | १.पत्रं विना संपूर्णः |
यान्तदाब्दकोडः रामसूनः
४८१ |वस्तुवित्तानरलकोशः „^... = ५२ (११ असमाप्त: } नवीना कारमीरिकी रिपिः ।
४७९ विश्वप्रकाशः ..- ..-|महेश्वरः श्रीव्रद्म-| ९१ १२।३६ ... | संपूणैः । नवीना कारमीरिकी च्पिः ।
पत्रः |
४१३३ राब्दभेदभ्रकाशः ... ` .--महेश्वरकविः ---| २२ | ६।३२| ..- | संपूर्णः । नवीनपत्राणि ।
४२४ग रान्दभदग्रकाशः ..- *. पुरूपोत्तमदेवः ग २ ।१२।३८ १८८० संपूणैः | तच्कतैविरचितद्विखूपकोशाद्िमि-
| न्नोऽयं मन्थः |
३०६ शाब्द्रलावरी °= मथुरेशः ०..| ८२ ११ ,.. । नानाथश्चब्दाः | असमाप्ताः |
4 | त्रिं अजर रम क) चं प्र = 9 [मन्न नानाथेशन्द्राः । असमाप्ाः |
४२९ राब्दसंदर्भसिन्धुः... --.|काडीनाथः भटवा ३४८ |४०।१०| १८६२ संपूर्णः |
चार्यः ।
३९८ |शिवकोरशव्याख्या शिवभ्र- |दिवदत्तः कधूरीय-| १०१ |१२।३८| १८८० | संपूर्णः | मूरम्रन्व्याख्ययोः क्तेक एव
कादाः चुभुजात्मजः विरचनकारः शके १५९९।
४३९ [हारावली ... ... ---छरूषोत्तमदेवः ...| १३ |१२।३६ १६९० |संपूणो ।
७६ सैव | सएव ...| ७ ।१५।५८। १९०१ संपूण ।
\/11. ९2१०5०00.
[१०८७११०३] छन्दः |
त्रणयः.| प
र त ॥ लिपि-
मन्थाङ्कः न्थनाम. कतृनाम्, प्राणि. | अक्ष- काल.
राणि, | `
यि यि 1
=
२४०४८ |काव्यरन््माप्रकाडाः
...रिवरामः
४४७ ्रत्तसुक्तावरी
"४८
.- " मेथिर्दुर्गादत्तः
४०८ छन्दोमज्री `" [गङ्गादासः मोपाल-| १६ १०।५| ...
दाप्पुत्रः |
७६७ | रेव सएव ...| ४२
*४४५ (प्रल्याभिख्याषटमरक्षण- | ५ ५ =. 8८ । द| „..
व्याख्या (2) |
| ४९८७ प्रस्तारप्रभाकरः दिन्दीभाषा-रसपुज्ः ...| ४ |१०।५५
| याम् | |
४४३ प्राकृतपिङ्गरूम् -“पिङ्गरः --.| ८ | ७।३३
७४२ तदेव त | सए इन ९ | ७।३३
| ५६१ (प्राकृतपिङ्गरं सटी कम् “पिङ्गल र्जा इ ११।२७
| ४४० मराकृतपिङ्गरूव्याख्या पिङ्ध- वरीधरः ... | ५१ | ९।३८ |
| लाथप्रकाद्वः
| ४४१ प्राकृतपिङ्गर्व्याख्या श्रीपति -*| १३ | ९।३८
| ४४४ प्राकृतपिङ्गख्व्याख्या ...-.. -*| १३ | ९।३६।
| | |
| ७७५ प्राकृतपिङ्गटग्रस्तारवर्णमा- ।.. ए | ५ १ २।४६ ..
त्रापताकरादियन्नाणि । | |
५६७ ।वाणोभूपणस् ..- .-- दामोदरः .-.| १३ | ७।२०
४११२ तदेव । सए ६ | १०४
७७३ घ्रत्तद पणम् -` भीव्ममिश्रः | २९ |१०।३७।
।
|
|
| ४ | ७।२९| ...
न ~~ [न (ष्च न~
संवेदनम्.
क
| मोम
| संपू्णैः |
संपूण |
| (ए
५।३७। १८९२ संपृणा |
| अत्तपाप्रा । कस्य म्रन्धृस्य स॒ मां इति त्
ज्ञायते |
र संपूर्णः । नवीना कारमीरिकौ दिपिः ।
. । अस्तमाप्रम् ।
... |अतमाप्रम् ।
. ¦ असमाप्रम् ! टीकाकर्तैनाम त दग्धम् |
- | असमाप्त:
. | असमा | व्याख्यानाम् नं छन्दम् |
| समाप्ता । वर्णपरुपताक्रादिसरितव्या-
। स्याया नाम न् न्धम् । अथ उणेमेस-
। महिवयादौ |
संपूगानि |
- | {. परिच्छेदः । संपृणः |
। अपसमाप्रम् । नवीनपव्राणि |
| + „ॐ
+ | संपूर्णम् ।
| १९ |१२।५२्| १८६६ | १. पत्र विना संपूण । प्रक्तच्छन्दोवर्णन् |
+९ ऊन्द्; । [११०४१११]
न = [= | |
श्रेणयः,
म्न्थाङ्कः, ग्रन्थनाम, कर्तनाम, |प्राणि, | अन्ष- |, तेवेदनम्,.
राणि, | 9. |
"नन 11
५२९ वृत्तरलाकरः .- "केदारः पव्वेकपुत्र (१०।३९| .-* |संपूणः |
४४६ | सएव... . | सए | ७।३२ | १. २. अध्यायौ | संपूर्णो |
५२८ ्रृत्तरलाकरटीका सेतुः . - -हरिभास्करः आ-| २२ १४।५३| १८२२ | सप् णः | विरचनकाटः संवत् १७३२ ।
| याजिभघ्रसून | |
५५० | सएव... ... । मए | २३ मा ,.. |संपू्णैः |
४७४ (वृत्तरलाकरटीका सुधा ... चिन्तामणिदैवज्ञ | २७ (१६।३८ ... संपूर्णा | नवीना कारमीरिकी चिपिः ¦
| गोविनदषुः |
९५९ बृत्तरल्लावरी ... ,.. चिरजीतिमटहा- | ११ | ९।४२. १८९१ | संपूणी
| चारय
७६६ वृत्तसंमरहः 2) ... "1" | २ [२०।५५ असंपूर्ण आरम्भान्ताभावात् । अन्नम्
| न दृष्टम् । वृत्तरनाकरश्रुतवोधड़ृत्तारव-
| | व्यादिच्छन्दःशाखोक्तदत्तलक्षणानां सं
| हो ऽत्र कृतः ।
4 ११५ख श्रुतबोधः „+ „= ,,.काङिदाखंः === | 9 = संपूण
९ १ ण २. ३. विन्यासौ । संपूणी । अनन्तरम -
।
७९९ इदरतिरक ,.„ ..क्षसेन्दः
रफजराज्ये कृतमेतत् ।
\/।||, 11510.
[१११३-१११५] संगीतराखम् ।
न न्न | (नद न्न र : |
मरन्थाङ्कः, म्रन्थनाम, कटठैनाम. [पत्राणि.| अक्ष- | ` “| संवेदनम्.
राणि | |
| | ॥
&५७ (नतननि्णयः =... .. (पुण्डरीकविह्कः | २४ |१०।५३ ९८९२ | ९. प्रकरणम् | संपूणम् |
&५६ (संगीतनारायणः ... -..|नारायणदेवः ...| ७६ |१०।४९ १८९२ संपूर्णः | |
५६५५ संगीतानूपाङ्कलः म ॥ ४४ |१०।४९. ९८९२ संप्रणेः | नूपसिहराजाश्रितेन कतो सा.
"~>
यः जनादैनभ- | | | हिनदनमरीमहैन्द्रकाठे विरचितो मन्थः |
| घत्मजः | । | |
0 सण वि क 3 9
१५
>, ९11६1021.
संपृणैम् | नवीना कारमीरसि लिपिः |
श्रीशो भाकरसूत्राथस्ल्पोहामात्रघघ्नम् ।
४७७क।अरुंकाररलाकरोदाहरणसं- रोभाकरमित्रः ।| १५ (१६।३८
| निवद्धं देवीस्तोत्र व्याय्या-। यद्ास्करः।
अल्कारशास्तम् । [१११६-११३०]
| श्रेणयः | पि.
मन्थाङ्क मरन्थनाम कतेनाम. (पत्राणि. | अक्ष संवेदनम्.
कालः.
| राणि,
४ हि कक .. . मुकुट महः कद्टट-| १२ १६।३८ ... | संपृणो | नवीना काहमीरिकी सिपिः |
| भद्पुत्रः
९३९ सैव ... ...| सएव ...| १५ १२।३६ ... | संपूण | नवीनपत्राणि |
२१४ पौ .. . विश्वेश्वरः टक्ष्मीध-। १८३ १०।४८| ... | संपूर्णः |
रपुत्रः
६३१ | सएव ,.. ..ु सएव ...| १४८ [१२।५०| ... |संपूणैः|
२५८ | सएव .,. ,.| सएव ...| ७७ | ९।४१| ... | अस्माप्तः|
२५६ ।अरुंकारकौस्तुभविवरणमस् विशचेश्वरः .-.| १७१ | ९।५०| ... | असमापतम् | मूलटीकयोः कर्तैकः |
६३२ पवष === = = च चन == ३५ | ऊ मरभू | .
३४५ भरकारसुक्तावरी ... विश्वेश्वरः टष्षमीध-। ३६ | ८।५८| ... | संपूण | स्रकृतस्याटकारकोस्वुभस्य संक्षेपः
रपुत्रः प्रतिभालयम् |
६२५ | रैव ... ... | सएव ...| २८ |१२।४७| ... |संपृणौ |
८०५ (अरकाररल्ाकरः ... --- रोभाकरमित्रः | १२८ (१२।४२। ... | संपूर्णः |
सहितम् रलकण्टः | निर्मिते रतरकण्ठेन दुवीस्तोतरेत्र चारुणि ॥
| इत्यन्ते पाठः |
२५० |अरुकारदेखरः | केदावमिश्रः ...| ४० | ७।३०| ..- | पञ्चरत्परिमितः | असमाप्त: । माणिक्य-
| चन्द्रेण कारितः |
८०१ |अरुंकारसवस्वम् ~ तततः ५९ १२।३६ ... | संपूणैम् |
| संपूर्णम्
४७६ | सएव ...| ४५ ।१६।३९ ... | संपूर्णम् । नवीना कार्मीरिकौ किपिः |
५२४ | तदेव सए ...| ६९ ॥ १९ [२४ ,.. । असमाप्रम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः
[११३१-
मन्थरः,
४७८
८०२
८ ०६
१००
५५४०
५१०३.
७६३.
२४८२
५३३७
२४४
५१२२
२९१५
५१७
५९
२५३
"५१९
2२०९
२४१
२०८
५५६६
२४९
११५२] अटकार्ास्रम् । ५
त्रेणयः.
म्रन्थनाम, कर्ठनाम, पत्राणि, अक्ष- किमि सवेदनम्,.
| राणि, काटः,
शिनि
अलंकारसर्वस्वटीका अलका- रुय्यकः । राजा- १०४ १६।३५ ... [संपूण | नवीना कास्मीरी लिपिः |
रविमर्दानी नकजयरथः ख-
्ारसूचः
तव... .. ..:| तवेव ...| १३५ |१२।३८ १९१९ संपूणा |
अटंकारोदाहरणम् . . . जयरथः सगु | ४४ ।१३।३६ १९२८ संपूर्णम् | जयद्रथं इति कतुंनामान्तरमपि
| | | | | ठं ्न्धान्ते |
उज्वलनीखमणिः... ... [रूपगोस्वामी] | ७५ १२।४२ १९४१ संपूर्णः | कटठैनाम पुस्तके न द्म् |
कविकर्पटीकरचना ,..कविराजः ..-.| ८ |१२। भर् सपि संपूणी | कतृनाम कविराज इति टन्धप् |
| सं° ६२
कविकल्परुता ... ... दिवेश्वरःवाग्भद्पुत्रः ३७ १४।३९ ... | संपूणो | नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
षः 5 अ =| ति. =. | ४ १६।५०| ... | असंपूारम्मान्ताभावात् ।
कविकट्परुतारीका ... देवेश्वरः) वेचारा-| ९१ १२।४५ ... संपूणौ | नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
मसार्वभोमः
काव्यकौस्त॒भः ... ... विद्याविभूषणः ४७ |१२।३३ १८३ | सं पूर्णः | नवप्रभापरिमितः |
काव्यपरीश्चा ... ..श्रीवत्सरान्छनः | ५६ |१५।३८| १६६६ संपूणां | ६९० 10. 1188.
तैव ,.; ... ..| सएव ...| ७० | ९३८ १६८३ असंपूणारम्भामावान्मध्यन्रुटितत्वाच ।
काव्यप्रकादाः ... ---मम्मटाख्टो | ८० |१०।४६ संपूर्णः |
तएव... ... ,.| तावेव .--| ८९ |१२।३४ संपूर्णः |
सएव... ... ...| तवेव ...| ५३ |१७।५५ १८८९ संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
सएव... ... ...| तावेव ..-| १०५१०३३ १९०९ संपूणैः | नवीना कारमीरिकी चलिपिः।
मन्थान्ते कतृद्रयमामनातं टेखकेन ।
तएव... ,.. ...| तवेव ..-| ९ | ९।२६| ..- |अत्माप्रः| ५.-१४.पच्राणि नष्टानि
काव्यप्रकादाटीका उदाहरण-वै्यनाथः .-.| २६० |१३।२६ ... | संपूणौ | विरचनकाटः संवत् १७४० ।
चन्द्रिका
तैव ... ... ...| सएव ..-| १०० |१३।५६ ... |संपृणा |
रैव ... ... ...| मएव -.-| ४९| ९।५३... |अतमाप्रा |
काव्यप्रकादारीका उदाहरण- नागेशभट्टः का- | १२५ १०।४६| ... | संपूणैः |
प्रदीपः रोपनामकः .
काव्यप्रकादाविवरणं काव्यकौ-दिवनाथः | १५ |१९।४६| ... |४.-७. उ्नासाः । संपूणोः ।
सुदी
काव्यग्रकादारीका काव्यप्रका-महेश्वरन्यायारं- | २६ | ९।४८| ... |असंपूर्णः प्रथमपत्रान्तामावेन् |
राद कारभटाचार्यैः
व 1 ०२
२५९
५८ ०
५१८७
२०
२.५१
७९
२११
२१२
२१०
५५६२
*२१५
५५६४
७२
०१
५६५
२४५
2५१
अरुकारशांस्रम् ।
त = | = ^ न न
काव्यप्रकाराव्यास्या काव्य- गोविन्दयक्ुरः के-| १६१
प्रदीपः रावपुत्रः
सस्व... प्त ए्व् ११९
सु एतु => सएव ६१
सएव ... सएव ५५१
सएव ... सपव १२७
सपव ... सत एव् ६५
तएव ... ..~ .| सएव १२१
काव्यग्रकादाव्यास्याकाव्यप्र- वैद्यनाथः रामच-| ९६
दीपव्याख्या भ्रभा नद्रतूठः
सैव सएव „| १२६
काव्यप्रकादाव्यास्याकाव्यप्र- नागेदभटहः “| १७८
दीपशीका रघुकाव्यप्रदी-
पोदयोतः
काव्यप्रकाद्टिप्पनी “*“** ८
काव्यप्रकादारीका . . . पण्डितराजः २१
काव्यम्रकारारीका नरसिहम-नरसिहय्कुरः ...| ३९
नीपा
काव्यप्रकादानिदर्शनम् “राजानक आनन्दः २०९
तदेव
काव्यप्रकादारीका मधुमती
काव्यम्रकादाविस्तारिका
काव्यम्रकादाटीका शछोकदी- गोविन्दरद्कुरः | ष
पिका
स एव 1 १९६
१६
. , . परमानन्दचक्र- | ५२
चतीं
पत्राणि.
१२।२५
८।६६
१३।३८
११।४६
१४।२६
१२।४१
१४८।४
१०।५२। १४८०
९।३७
१२।५४
१७।४८
११।२४
१८४४
१६।२६
१४।४३
२२५७
१७।४४
७।३५। १७६८
[११५३-११७०]
संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१.-७.उद्टासाः | संपृणौः |
१.-६.उद्टासाः | संपूणोः |
१.-५.उद्टापाः | असमापराः |
७.-१०.उद्टासाः । संपूणीः |
३.-६.उद्टासाः | असमाप्राः |
असमाप्तः |
संपूणौ |
संपूणौ |
संपूर्णः |
असमाप्रा | प्राचीनपतव्राणि | कठनौम न
रन्धम् |
१.२.उद्यसौ | संपूरो ।
४.-७.उद्टासाः । दण्डिताः | प्राचीनप-
त्राणि | |
संपूर्णम् । टीकाविरचनकालः कठिगतान्दाः
४७६६ । शितिकण्ठविवोधनमिलयपि
टीकानामान्तरं मन्थे | नवीना कारमी-
रिकी लिपिः ।
संपूर्णम् | नवीना काहमीरिकी चखिपिः।
उद्टासान्तेषु काव्यप्रकाश्चदशेनमिति नाम
ठम्यते |
२.-४.उद्धासाः। लण्डिताः | प्राचीनपत्राणि)
कौनोम न टब्धम् |
असंपूणौरम्भान्ताभावात् |
९.उद्ासपर्यन्ता संपूण । टीकाकन्रौ का-
व्यप्रदीपोऽपि स्वकृतिरेवान्नायते । ४९.
पत्र विनष्टम् |
[११७१-११८९]
अटकारदाखरम्। ६१
~ ~ = (द्म न ` म्रन्थनाम, कतृनाम,
111
२४४ |काव्यग्रकाराव्याख्या श्छोक- |जनार्दनव्यासः-..| ३४ |१८।५७ असंपूणीरम्माभावमध्यनुषितत्वात् |
दीपिका
५२७ [काव्यग्रकादसेकेतः ~. [रुचकः] ...| २५ २२।६३ १८४४ संपूण: । संकेतकठैनौम न दृष्टम् । प्रथ.
मो्टासान्ते श्रीमद्राजानकमम्मविरनचिते
काव्यप्रकाशसंकेत इयादि पाठः|
<< | तएव ... .-. | तएव ...| ४० १२३८ ... | संपूर्णः प्रथमोद्धासान्ते यथा पूवम्रन्धे पाठः|
५२२ | सतषएव.. -.- | सएव | ६१ (१२।३४| ... |९.उद्टासपयन्तः। असमाप्रः | नवीनां
, कारमीरिकी कछिपिः | प्रथमोसान्ते पू
। मन्थसमान एव पाठः |
२४६ |काव्यप्रकादारीका ... ..-|... --* “| २२ १०।४९| ... |अन्तिमोष्टासद्रयरीका | खण्डिता | दीका-
यास्तत्कवुश्च नाम नावगतम् |
००१ |काव्यप्रकादयोदाहरणव्याख्या |... ,.. ...| २२०८८ ... | १०.उद्टासः } असमाप् | व्याख्यानाम
नावगतम् । प्राचीनपत्राणि |
५२७ |काव्यविखासः ... ...चिरंजीवः ...| २२ १५।४२।१९२४ संपूर्णः |
*+२३४२३ ।काव्यदरंरीका दृण्ड्यलकार-विवृतः वादिघं- ८० ।१०।३९ १८६१।२.३. परिच्छेद संपूर्णो | वित्तः श्रीधरं
रीका घटः (२) नत्वा सल्यवाक्यं जगत्पतिम् | दण्डिनो ऽद-
छृतेष्टीकां कुरुते वादिधवलः | इति तृतीय-
परिच्छेदारम्मे पाठः|
११।३६। १९११ | संपूणम्। टिप्पनविरचनकाटः संवत् ११२५
३४१ काव्यादशेः-.. -- ---दण्डी ... ...| ४६ | ६।४१| ... [संपूर्णः।
५९६ |काव्याङंकाररिप्पनम् .. रुद्रटः! श्चेताम्बर- १४२
नमिसाधुः
३४६ (काव्यारुकारसूत्रव्रत्तिः .-.|वामनाचार्यः ...| २९ |१२।५०।१८४९ संपूर्णः | सूत्रकतो वृत्तिकतौ चैक एव ।
देर | सेव ..~ -- ..| सएव ...| २० १२।४१| ... | १.-३.अधिकरणानि | संपूणीनि |
७७१ (ऊवख्यानन्द्ः “** ~`" अप्यदीक्षितः वर &४ १०।४३ ... | संपूर्णैः | प्राचीनपत्राणि |
दत ।
५२९ | सएव... - | मए ...| <१ १२३५ ... | संपूर्णः | नवीना कामीरिकी दिपिः।
२४७ | तएव... ... ... सएव ...| ७१।९।३४/ ... |असमाप्ः।
२३९ |. सएव... ~ -.| सएव ...| १८ १२।५७ ... |असमाप्ः |
५४५ |कुवख्यानन्दव्याख्या अलं- वे्यनाथः रामभट-| ४७ [२२।४३। १८३८ | संपूणौ ।
कारचनिद्िका सूनुः
ण्य | सेव ... „~ „| सण ...| १८९१०४८ ... |संपूणी | नवीना कास्मीरिकी लिपिः!
र८ | सेव... ... „| ए ...| ९१०५६ ... | आरम्भमात्रा |
१६
अखुकारदास्रम् । . [११९५०-१२०७]
2२
न ~ +~ (द "न ॥
ग्रन्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कटेनाम. पत्राणि. | अक्ष | न संवेदनम्
| | राणि, |
|
1 न ---- ~----------- | |
२४० |कृुवलखयानन्दव्यास्या अं- [नागेशभट्टः ““*| ४१ |*९ ।४६ ... | असमाप्रा |
कारसुधा
५२१३ [कुवख्यानन्दीयविषमपदव्या-नागेशभटः ३९ | ७।३० संपृणी | पूरवैम्रन्धाद्िमिन्ना व्याख्या | का-
ख्या पट्ुदानन्दः टोपनामको नागिदामह इति कतृनाम
प्रन्थान्ते |
३३१ चन्द्रालोकः ,.. .. जयदेवः पीयूष-| १२ |११।४८|१८६२ संपूर्णः |
वर्षः मह्।देवपुत्रः | ॑
धं । चिद == == =| 9 त = | १२ |१३।३२| . - सपूरणः | नवीना ० लिपिः |
७६० हव. = ० न्ष भ ५ |२१।५४। १८६२ | अ्थौटकारनिरूपणमात्रम् । संपूणम् ।
ददः | सिव ४ स = शष् १० | ९।३४| ... | अर्थांकारनिषखूपणमात्रम् | संपूर्णम् ।
ष । सिं धत ७ = शं *| ८।५०| ... |अर्थीठंकारनिरूपणमात्रम् । संपूर्णम् ।
८०० |चन्द्रालोकम्रकाशः शारदा- वि ३५ १५।४१| .. [संपूर्णः ।
गमः
५७४ तएव ... सएव ...| २७ |१२।४५| -. असमाप्रः |
२४० (चन्द्रारोकव्याख्या रमा - वैयनाथः पायगु-| <४ १०।४७। ... १.६५.६६.पत्रागि विहाय संपृणो |
ण्डः
४०९४ (ददारूपकम् , . धर्नजयः विष्णुप॒तः। ११ |११।५१| १९५४१ संपूर्णम् |
| २१६ दशरूपकावरोकः... - -- धनंजयः । घनिकः| ५७४ १२।४४ संपूर्णः. |
| विष्णुपुतः
। ४५१ | सण... ,. =| तावेवं „| २9 १२।५५। ... । असमाप्त: |
, ९९९ धवन्यारोकलोचनम् ..-|आनन्दवधेनः । | २४३ |° ३।२९| ... | संपूर्णम् । नवीना कारमीरकि लिपिः |
अभिनवरुक्षः सदहदयाढोकटोचनमिलयपि टीकानामा-
न्तरम् | |
८०३ | तदेव ,.. „~ -..| तावेव “| १८२ (१४५३८ ˆ. संपूर्णम् |
४०६ [पञ्चसायकः .-. -*-कविशेखरः ज्यो- | २५ | ८।५१| *“. संपू्णैः |
तिरीखः
६४० पञ्चसायकविवरणं रक्ष्यवेध-साहिनामः दिद्धा-| २१५ |२०।१८ संपूणम् | विवरणं श्रीराजापिराजश्रीमदहा-
नम् रामपुत्रः राजरणवीरसिहराज्ये कारमीरिकपण्डि-
तामगण्यपण्डितसादित्रामपुख्याध्यापकेन
निमितम् |
२६० (प्रतापरुद्रयदो भूषणम् विद्यानाथः “^| १२९ | ७।४९। १८२० । संपूर्णम् |
[१२०८-१२२६] अरकारदास्रम् । ६
| १ ९ 1 सण
श्रेणयः. लिपि. |
| ्न्थाङ्कः, मरन्थनाम, कठेनाम, पत्राणि. | अक्ष | तः संवेदनम्.
राणि नै
२५४ रसगङ्गाधरः त जगन्नाथः पण्डि- | ३६३. | ९।३८| १८३३ संपूणैः |
तराज
र४र |रसगङ्गाधरटीका गुरुमम॑प्र-नागेशः शिवमट-| १३४ | ९।४१ ,.. असंपूणे आरम्भान्ताभावात् |
कारा पुत्रः |
२४३ | सपव -“ “| तप्त ...| ३३ |११।४५ असपूण आरम्मान्तामावात् |
२५५ | तएव “ “| सएव ...| ७५ | ७।३० तण्डित: ।
२५७ | सएव ““ “| तप्र ...| ७ |११।५६ असप्रण आरम्मान्ताभावात् |
५९७ रसचन्द्रिका ... विशवश्वरः ठद्मीध-। ६२ | ९।३६| शके संपूणो |
रपुत्र (१७९४
५४९ |रसतरङ्गिणी .“: भावुदत्तः गणना- २९ ११। २९ शके संपूणौ |
धपुत्रः १७२९
७७४ | रोव === +| तवं | द ११४६ ... |असमप्रा |
४६१ रसतरङ्गिणीव्याख्या नौका गङ्गारामः जड्य- १८१ | ९।४० ५.९.-१९.२१-२९.पत्राणि विहाय सं-
पनामकर पणौ | विरचनकालः संवत् १७९९ |
५३२ | सेव ... -.- .. सएव ...| ३७ १५५२ ... | ५.-<.तरद्गाः । असमाप्राः | १. पत्र
विनष्टम् |
२२४ रसप्रदीप भ ्रभाकरः; पपिवभः। २५ | ७।५५| ... | सपणः | विरचनकाट सवत् ९ ६४० |
पुत्र
५९५ रसमञ्जरी ०. भानुदत्तमिश्रः ग~ १२ १४।४१| ... संपूण |
णनाथपुत्रः | |
४७३ | रेव "" “| तए ...| १३।१६।३५ ... संपूणौ | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
*५७२ [रसमज्ञरीरीका रसमज्री- गोपाः वोपदे- | १२३ ११। ३३। ... |६२.पत्रं विहाय संपूर्णः | विरचनकाठ
विकासः वापराभधः द- | सवत् ६४७८ | अय मन्थोऽवतारितः संवत्
सिहतः । १५१४ छिविताद्पुस्तकात् |
७४८ (रसमञ्जरीटीका रसिकरञ्जनी गोपालभट्रः हरि ५१ [१४।३६ १९२९ संपू |
वंश॒भद्पुत्रः
५०५ [रसमञ्ञरीव्यङ्गया्थकोसुदी |अनन्तपण्डितः | ८३ १२।४१| ... | संपूणो | नवीना कारमीरिकौी छिषिः |
त्यम्बकपुत्रः
४७० रध =-= र ७ शु 1 "ऋ ८।३७ ... खण्डिता |
वदं | ध्वं = =“ चु श्चं =| (39 असंपृणारम्भान्ताभावाद् ।
६२४ |
रसमजजरीटीकरा समज्सा विशेश्वरः ल््मीध-| << |१२।५१| ... संपूण |
| प्पुत्रः |
६४ अट कारदरास्म् । [१२२७-१२४७]
न ~ नप्र "~
प्रणयः
थ ्रन्थनाम = | “| छ्ि- टन
ग्रन्थाद्भूः. नथनाम, कठेनाम. त्राणि. | भक्ष- | कालः दनम्,
राणि, ।
ननन
| |
‰+४०५ |रसरलहाररीक्ा रक्ष्मीवि- दिवरामच्रिपादी | १४ १३।५२ .. संपूणैः | मूढटीकयोः कर्तैकः |
हारः
४०९ |रसविलासः . छु मृदेवः शक-| ५७ |११।३६ १८८१ संपू्णैः |
देवपुत्रः
५५२ [वागभटारुकारः , | वाग्भटाचार्यः ...| ८ |११।४०| .-. [असमा |
५०६ ।वारभटारंकारव्याख्या --- सिहदेवगणिः -**| ६३ 4० ।३९| ... संपूर्ण | नवीना कारमीर्कि लिपिः ।
#+८०४ वाग्भटारंकारटीका समासा-क्चेसदहंसगणिः ...| २९ | णः ... | संपूर्णम् |
न्वयटिप्पनम् |
५८१ वाग्भटारंकारीका समासा--- =“ ““*| ७ |१२।२८ आरम्भमात्रम् | प्रथमग्रन्थान्पङ्गल शेके पा-
न्वयरिप्पनम् ठमेदुः | दिप्पनकतृनाम् न लब्धम् ।
७७९ [वात्स्यायनकामसूत्रम् .-- वात्स्यायनः .--| १० | ९।३४| ... |आगमान्तमत्रम्। १.-६०.पच्राणि नष्टानि।
४०७ (वात्स्यायनकामसूत्रव्याख्या |वीरमद्रदेवः राम-| ७६ |१०।४० संपूर्णः | विरचनकारः संवत् १५६३३ ।
कन्दपंचूडामणिः चन्द्रपुत्रः
५७८ वात्स्यायनकामसूत्रटीका ज-यदोधरः ^| ११२ | ९।४१| ... | १.-४०.पत्राणि विहाय संपूण ।
यसङ्गटा
२३५ [विदग्धमुखमण्डनम् --- धर्मदासः "| २४ | ९।२५| १६९७ संपूर्णम् |
६४२ [चिदग्धमुखमण्डनटीका वि~ ताराचन्द्रः का- | ९० |१०।४० संपूणौ ।
दन्मनोहरा यस्थः
५५५ विदग्धमुखमण्डनटीका सु- त्रिलोचनः ...| ५६ |१०।३९ डाके संपूणौ |
बोधिनी १७३३
४१२५ व्रृत्तिवारसिकम् ~ ---|अप्यदीक्षितः “| २९ | ६।४७] १९४१ परिच्छेदद्रयपरिमितम् । संपूर्णम् ।
२६६ | तदेव ... ... „| सएव .-.| १७ १०।४३ ... ूर्वपरिच्छेदद्रयमितमसमापम् |
७५४ [शाङ्धरपद्धतिः ... .--साङ्गैधरः “**| २८४ [१३।३२| .- संपूण |
४१३८ श्ङ्ाररसमण्डनम् ,.. विद्सेश्वरः .-*| २७ | ७।३३। १९४१ संपूर्णम् | छङ्गारमण्डनमिल्यपि नामान्तस्म्
५४१३८ख श्ङ्गगराख्तख्दरी.-- ~~ सामराजदीक्षितः| ३७ | ७।३६| ... संपूणी । नवीनपत्राणि |
३३२ ।सरस्तीकण्डाभरणम् ~ |मोजदेवः (९१ “““| ३२० | ७।४४| -.-- संपूर्णम् ।
३३६ |सरसरतीकण्टाभरणविवरणं |रलेशवरः = “"*| ६8 |११।४१| .-. | ^“ परिच्छेदः । संपूणैः ।
रलदरपणः
५३३५ |सरस्वतीकण्ठाभरणविवर- [जगद्धरः रनधस्पुत्रः| ४० |१२।०८| ‹ ६५६ | ४.परिच्छेदः । संपूर्णः ।
णम्
३४९ (साहित्यदर्पणः ..~ ---|विश्वनाथकविरा- | १४७ | ८।५८| १४७० संपूर्णम् ।
जः चन्द्ररखस्मूः
[१२४८-१२५] अटरकारशास्रम् | ६५
~ ~ = (दश न~ णयः,
परन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कठेनाम. पत्राणि. | जक्ष- |,
राणि, "
3
२३७ [साहिलयदपणः ... ... विश्वनाथकविरा- | १०७ |१२।४५ १७६० [संपूर्णम् |
जः चन्द्ररखस्सूतः
> | इ एवं ,-= == न्न सएव -य| इद |११।३६ अतसमाप्तम् |
२५२ | सएव... "~ -.| तएव ..| ५६।१०।४द्/ ... |असमापम् |
२६१ तषएव .-. - “| सएव ...| ५ १०।५६ ... |कारिकामात्रम् | असमाप्म् |
२६२ [साहिलयदपणरीका सादहित्य-अनन्तदासः वि- ७८ ८।२६। १६९२ | १.-9. परिच्छेदाः।१.-म.पत्राणि नष्टानि
दपणलोचनम् श्नाथपुत्रः
७६१ |साहिलयरलाकरः ... ... धमसूरिः ---| १०६ |१२।४१| ,.. संपूणः । प्राचीनपत्राणि |
.२३८ [साहित्यसुधासिन्धुः „विश्वनाथः त्रिमछ-| ७५ |१०।४५| , संपूण: । छिखितो म्रन्थः कत्र विश्रनाथेन
देवपुत्रः चन्द्र चूडस्य पत्तने | टिपिकाटो मन्था-
न्त॒तरयिवात्संदिग्धः |
१७
५८ (६५/५5,
काव्यम् । [१२५५१२५३]
प्रणयः.
मरन्थाङ्कः, ग्रन्थनाम, कर्तैनाम, पत्राणि, अक्ष | रमि संवेदनम्.
राति. कालः.
२८३ |अमरुरतकम् *“ जनिभ २० | ७।१६| ... | १. पत्र विहाय संपूर्णम् |
५५६० [अमरुशतक सरीकरम् „^ (तानानन्दकला- १० |१३।५६ असमाप्तम् |
धरः
८२१नअ्टरलस् ... ˆ --.|-. कः १ ।११।२३५ संपूर्णम् |
५४२ आर्यासप्तशती - -गोवधंनाचार्य; | ७७ | <।२५ संपूण |
३८९ | रैव ...| सए ७१ | ६।३० असंपूणा मध्यत्रुटितलरात् ।
५१८ |आायांसप्तशतीव्याख्या व्य- |अनन्तपण्डितः | २०४ १४।३९. १८९८ संपूर्णम् । व्याख्याविरचनकरालः संवत्
द्याथदीपनम् तिमाजीपुत्रः १७०२ |
२७५ | तदेव सएव .| २३८ | ९।३५ संपूर्णम् ।
७५० तदेव ... ... ..| प्एव .| २१८ १३।४० संपूर्णम् |
६२९ आर्यासप्तशती विवरणम् . - विश्वेश्वरः लदमीध-| १२६ |१२।५३। १९३१ | संपूर्णम् । मूलटीकयोः कर्तेकः ।
रपुत्र
४९५ख ईश्वरशतकं सटीकम् , .(अवतारकविः ...| ४२ [२०।१६ संपूणम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
टीकाकठैनौम न ठन्धम् |
५०६७ |उद्धवदूतम् - -|माधवकविः २५ | ७।३०| १९४२ | संपूर्णम् |
८१२ | तदेव सएव १३ |११।३४ संपूर्णम् |
८११ उद्धवसंदेशः . [रूपगोस्वामी .-.| १३ |११।३३ संपूण: |
३८ (चदतुसंहारः ..काङिदासः ८ |१२।४७। १९०५ | संपूर्णः |
३७८ | स एव ... ...| सएव £ (१०।३९ खण्डितः |
३५६ [कवीन्द चन्द्रोदयः... ..- [कवीन्द्रः] २७ |१०।३८ ठण्डितः |
५४१३६ कितवोद्धासः .-|क्ष्मणाचा्यः वे-| १६ | ७।३५| ... | संपूर्णः | विरचनकालः शके १७६३ ।
णीमाधवपुत्रः नवीनपत्राणि |
२२४ [किराताजंनीयम् ... ..- भारविः ८२ | <।४१।१७२८ | संपूर्णम् |
३८१ । तदेव ... .~ „~ सएव .. १४। ९३३ ... | १.-४.सगौः | असंपूणौ मध्यतुटिततात् !
|
।
|
(१२७४-१२९१]
काव्यम् |
~ ~ [प्र
मन्थाः. म्न्थनाम, कतृनाम. पत्राणि. | अक्ष संवदनम्.
२७१ |किराताजनीयम् ... ,.. (र --| २२ | ७।३४ अन्तिमसगे चतुष्टयम् | असंपूर्णयारम्भा-
भावात् |
३६५ किराताजैनीयटीका अन्वय- चर सिहः २४ |१५।३९| ,.. | २ ५, सर्गा | संपूरणं
दीपिका
९६ किराताजैनीयव्याख्या घण्टा-मष्लिनाधः -| १८५ |१०।४८ १९२८ अन्तिमसर्गत्रयामावादुसंपूर्णः ।
पथः
२७२ | सएव ... तएव ...| १७६ |१३।४७ असंपूर्णो मध्यतुटितत्वात् |
५२६ | सएव... सण ५० |१७।३१ ९.३. सगः । संपूणीः | नवीना कामी.
रिकी टिपिः |
१ | सएव... ... | स एव ...| १८ (१७४४ ३.-५-सगौः | असमाप्राः |
*४९२ख किरातार्जुनीयरीका =. जोनराजः नोनरा- १५८ २८।२४| राके | संपूणां | टीकाविरचनकालः शके १३७०।
नपुत्रः १७७५ नवीना कारमीरिकी दपि; |
सक्षर्षिः
०९२९
५८२ कुमारसंभवः =... ... कालिदासः २९ १०।३८| ... । असमाप्त |
२९० | सएव ... तणएव् १२ |१२।२२्| ... | ३.सगेपयैन्तः | असमाप्त: |
२०२ | सएव... ... „| सएव .. २७ | ९।३५| १६१९ | असंपूर्ण आर्भमध्ययोखुटिवशात् |
३७६ [कुमारसभवरीका "` सरस्वत्तीतीथैः "| ४९ (१२।४६| ... | ५.सरगपर्यन्ता । असंपूणारम्भमध्ययोचु-
टितत्वात् |
"५८८ |खङ्गकतकम् =... |... १२ | भान् ... | अन्तिमपत्रनीर्णत्वाद्रन्थसमापि्म रन्ध प्र.
। धनाम च संदिग्धम् | प्राचीनपत्रामि |
१५८९ [खद्गदातकरीका ... १९ | ८।४९ असमाप्रा | पूर्वोक्तश्चतकस्य टीका | अन्ते
| मन्थनाम न ठन्धम् | १,.-३.१५.- १५,
२३. पत्राणि न सन्ति | प्राचीनपत्राणि ¦
४६७ गाथासप्तरातकम् ... ,.. राख्वाहनः ...| ३३ १ २।३९। ... | अपसमापम् |
२४८ गायासक्षशतकचिवरणम् . . श्रीकुरुनाथः ...| १०५ | « ।४९| १६६० | {पत्रं विहाय संपूर्णम् |
+३८६ गीतगोविन्दरीका अनृपोदयः।जयदेवः। जनृप-| ९|१८।६४| ... | १.२.सरगी | संपूर्णो । टीकायाः कारयि -
भूपतिः तानूपभूपतिः |
२८४ गीतगोचिन्दटीका पदभावा- भ्रीकान्तसिश्रः.-.| २७ |१५।४्/ ‰.. | सगेपयैन्ता | असमापर
थेचन्दरिकां
*३८३ |गीतगोविन्दरीका पदाभिनवासुदेवः वाचा- ६४ | ८।२९| ‰.. असंपूणा मध्यनुटितत्वात् । गादापूर्या चि.
यमज्ञरी
सुन्दरः
यनमानस्य चन्द्राहि्पस्याज्ञया विर्-
चिता टीका |
६८ काव्यम् । [१२९२-१३१३
- ~ [~ -ष्र्न ~ ` गा आ
~ भेणयः,| छिपि- |
्रन्थाट्ः. मरन्थनाम, कनाम, |पत्राणि,| अक्ष भाः संवेदनम्.
राणि,
३७० गीतगोविन्दटीका .** -*“|*“ ४८ | ९।३५ असमाप्रा | ठीक्रायाः कतु नामनीन ल्ब्धे।
*८२१गगुणरलम् ... ... भवभूतिः २ ।११।३४ संपूर्णम् |
१०१२ वरकर्षरटीका अर्थदीपिका [काटिदासः ५ (१८।३२ संपूण | टीकाकरतेनाम न ठब्धम् |
८०९ [घटकपरविव्रतिः -. अभिनवगुप्तः ...| १० |१३।४६| ... | संपूण |.
७७२ [चरकर्षरटीका -* **“|-“. १२ | ९।३३। १८९७ | संपूण | टीकायाप्तत्कदश्च नामनी न ज्ञाते |
२८८ (घटकर्पररीका =“ "| -“ £ (१४।२९ असमाप्रा | टीकायास्तत्कतुश्च नामनी न
ठभ्धे | पूर्ेतो विभिननैषा |
*४०४८ चन्द्रोदयवणेनम् ... .**-- --+ “~| ५ |१०।३४| १९४१ | संपूर्णम् |
७७७ चम्पूरामायणम् ... ~. -विदर्भराजभोज- | ८२ | ९।३८| १८९७ | संपूर्णम् | पत्रमकराण्डपयैन्तं भोजराजक-
लक्ष्मणपण्डितो तिस्तदनन्तरं गङ्गाधरमूढक्मणपण्डित-
कृतिः षष्टकाण्डान्ते म्रन्थकृता चित्रिता |
ररक चातकाष्टकम् =“. “^. === न्न ड (1१ पूतैमुत्तरं च संपूण |
९३६ (चारुचयौ . .. -..्षेमेन्दः प्रकाशै-| ४ (१३।४० संपूर्णा |
द्रपुत्रः
*८२३ [चित्रकाव्यचाटुचचौविव्रतिः |जगद्धरः १४ ।१३।४२ संपूण । मूखविन्रयोः कैकः |
*५५६ |चित्रप्रपञ्चशीका ... विश्वेश्वरः १७ ।११।४४ असमप्ना | मूढटीकयोः क्तकः ।
२६९ चेतसिंहविरासः ... -.-बरख्भद्रः ७७ | ८।२४| ... |असमाप्रः | १५.१६. पत्रे विनष्टे |
५५१ चोरपञ्चादिका ,.. विल्दणः ज्ये्ठक- ५ |१०।३७| शके | संपृणां |
ठरापुत्रः १७२४
४८९ख दमयन्तीकथा ,. . चरिविक्रमभटः ...| ७३ [२४।२५ संपणां | नवीना कार्मीरिकी लिपिः।
नर चम्पूरिव्यपि नामान्तरम् ।
४५४ | रैव सएव :..| १११ | ८।५०| ... | अप्तमाप्रा |
७७६ | सेव् सएव ...| १०१ | ९।३५| १८९७ | असंपूणारम्भाभावात् |
७४६ | सैव .,. तएव ...| ४४ | ८।३३। ... | १.२.उच्छरतौ । संपूर्णो ।
५४८ |दमयन्तीकथाविवरणं विषम-चण्डपारूः यशो-| ७९ |१०।४८| १८६१ | संपूर्णः |
पदप्रकारः राजपुत्रः
४५३ | सए... सएव ९२ | ९।३६ संपूर्णः |
२१७ दिव्यसूरिचरितम् -.- “.- श्रीनिवासकविः | ५१ |१५।५० संपूर्णम् | कविवैयपुरद्र ईति कतुरपरं
नामधेयम् |
४९५ग दे वीदातकविव्रतिः , . आनन्दवधंनः।क- ३९ [२०।१५ संपूर्णम् | विवृतिविरचनक्रालः श्रीभीमयपर-
य्यटः चन्द्रादिलय-
सूनुः वद्भदेवनपरा
राज्ये कटेः ४०७८ | नवीना कारमी-
रिकी टिपिः।
[१३१४-१३३९] काव्यम् । ६९
रेणयः.
मन्याङ्गः. म्रन्थनाम,. कंनाम. पत्राणि, | अन्ष- संवेदनम्,
राणि,
|
८१८ (धसमैविवेकः = -- ~." |*“ १ ।११।३४ असमाप्त |
२२२ [नक्षत्रमाराव्याख्या लक्ष्मी-रिवरामः ङृष्णरा- ७ |१४।३७ संपूर्णः | काव्यस्य तददीकायाश्च क्तकः |
विखासः मघः
३४७ | सएव ... सए ...| ६ १२।५१ ... |संपूणैः |
५७० (नखोदयः ... ..|काकिदासः २४ | ७।२६ संपूर्णः |
५७४९ नरोदयटीका सुबोधिनी -..- परह्ाकरः वियाक-| ९० |१२।३४ संपूणा ।
| ५
८रे¶ च नवरल्नम् ,. == “=“|.** १ (११।३५ संप्रणम् |
८२१घ नीतिप्रदीपः . . वेतालभट्ट २।११।३५ ... | संपूर्णः |
*४११ [नृपविरखासः ..दिवरामःत्रिपाटी| < |११।३१ संपूर्णः |
कृष्णरामपूठः
२८४ निपधीयचारितम् ... .- श्रीहर्षः श्रीहीरपुत्रः। १०२ | ९।२९ १७०० | पूवौषम् | असंपूणेमारम्माभावमध्यतरुटित-
| त्वत् । दिपिकराटे संशयः |
२८६ | तदेव सएव ...| ११९| <८।३७ | उत्तराधम् | असमापम् |
३७७ | तदेव तएव ...| ४ | स्रथ्| ... | १.सगेः | असंपूर्ण आरू्माभावात् |
२७७ | तदेव सएव ...| ७ (१०।४७ ५. समैः ! असंपूर्ण आरम्भामावात् ।
२८० | तदेव सएव १० | <।२८ ६. सगः । असमाप्त: |
२८५ | तदेव ... ..~ ...| सएव ...| ६१ | ९।१४ ७.-१०.सगौः | असंपूणौ आरम्भामावात् |
२५५ तदेव सएव ८ | ७।२८ १२.-१५. सगोः | संपूणीः |
३५७ | तदेव स॒ एव् २६ |१०।३५ १४.-१७. सगौ: | असंपूणों आरम्ान्त्-
योद टितत्वात् ।
२८१ नैपधीयचरितटीका गढार्थ-[रक्ष्मणभटृदाम | १८४ | ९।३७ ८.-१५.सगौः | संपूृणीः | प्राचीनपत्राणि |
कारका रामदृष्णभद्सूः
५३५१ नेपधीयचरितटीका जीवातुः मद्धिनाथः १९ (१५।५७ ४.सगेः । संपृणैः । त्रिलिद्देशल्पिः ।
२८७ नेषधीयचारेतरीका नेषधीय-नारायणः खसिंहप-। २५ [१३।५८ ५. सगे: | संपूर्णः ।
प्रकादाः ण्डितात्मजः
२६८ | सएव ... सएव २४ |१२।४२ ११.सगैः | संपूर्णः |
३५४ | स एव ... सएव २८ |१०।४८ १३.सगः | संपूर्णः |
४९८ नेषधीयचरितधरैका भ्रदी- [नरहरिः स्वयंभूपुत्रः। २५३. |१५।६० संपूणो । नवीना कादमीरिकी च्पिः |
पिका
५०० | सेव सएव .| ४२१ |१५।३४| ... | संपृणो । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१८
व ----- --~-
न = [= ह| = | न्यादः.
~
|
काव्यम् ।
म्रन्थनाम, कर्तनाम,
२७३ नैपधीयचरितय्प्पगिका सु-गोविन्दमिश्रः एु-| ९७
नटी कररदेवायनिः
३९१ नैपधीयचरितटीका "|" २६
धर प्रत् त त गा) १
८१३ख पदाङ्कदूतम् = ““‡ “^` हय ५
८२१ङ पद्यसंम्रहः ..~- --* -*" कविभटः ...| ३
६२ पद्याख्रततरङ्धिणी ,,. ...दरिभास्करः आः. £
याजिभघ्ूः
२१८ [बारभारतम् --- -*-|अमर चन्द्रः जिन-| १४६
दत्तस्रिशिष्यः
५२२१ [भगवत्प्रसाद चरितम् --- दामोदरः विश्रनाः| २०५
पूतः
२७८ |भटिकाव्यम् +> "+न अद्धि १०२
२०४ | तदेव ... ... | सएव ..| १९
४०३८ |भटिकाव्यदीका जयमङ्गला |जयमङ्गखः .| २३९
दद । श्रा = = | श एवं ==* ५५
३६९ | रैव „= == =| कवर =. &र
२६५ | सैव ... ... -.| सएव | ५
२५७५ |भामिनीविखासः .-- ˆ“ जगन्नाथः मनन अकि
३८७ सएव > = सएव = ®
२२६ भावदतकम् ...|नागराजः जाठ-| <
पपुत्रः
५२१ खं = ++ | शव श्ल
३६४ | तदेव ... .-~ | सएव “| १९
पथ । तरव ,., स्र च किवः शमु ४
*२७६ [भावसिहरतकम् .*‡ ˆ" |` च
८२० अअमरष्कम् न क| ४७ १
५४१२४ [मधुकेलिवद्धी =“ "|" = ०५| ऋ
>‰०५२ मनोदूतिकाकाव्यम् ध् 93 ,,,.। १३
,.. [काङ्िदासः] ...। ५
५८१४खमहापद्यपङ्कम्
श्रेणयः. "षि
पत्राणि, | अक्ष-
कः.
राणि.
११।४२
१२५०
११५। २५ | १ ।
११।२४
११।३४
९।२३५५
[१३३७-१३६१]
६.-१४.सगौः । खण्डिताः |
७. सगेः | संपूर्णः । टीकरानाम न खन्चम् |
संपूर्णम् ।
संपूर्णम् | व्िरचनकाठः शक्रे १५६४५ ।
संपूर्णः |
१. तरङ्गः । संपूर्णः ।
९।४४| १८१२ | संपूर्णम् ।
१०।२६
९।२५
८५२
२९।२० | र
१३।५२
८ । ४४
११।४०
११।४१
१०।२र्
१०।४२
१२।४०
९।२३.३.
७।२३४
५५।२६
११।३३
६।४२.
७।२३.० |
।११।२२
संपूर्णम् । सगेविंशतिपरिमितम् ¦
संपूर्णम्
असंपूणं मध्यत्रुखन्ताभावात् ।
असमाप्रा | नवीना कारमीरिकी लिपिः,
असमाप्रा |
१२.-१६.सगीः । असमाप्रालयुटिताध्च ।
राकलमात्रा |
संपूणैः |
असमाप्त | £. पत्र विनष्टम् ।
१६८८ | संपूर्णम् |
संपूर्णम् |
असमाप्म् |
आरम्भमात्रम् |
असमाप्म् | १.३. पत्रे विने | मन्थनामं
पत्रप्रान्ते ऽन्यरस्तचित्रितं संदिग्ध च | भा-
वशातकरादरवविलासाच पाठो विभिन्नः,
संपूर्णम् |
१९४१ [संपूण ।
१९४१ | संपूर्णम् |
संपूर्णम् । नवीनपत्राणि |
१३६२-१३८६]
काव्यम् |
\ॐ १
~न = [~ षप त
-- | ६
१२ मेघदूत . - "कालिदास १२
३८५ (मेघदूतटीका कथंभूती ... |... ५२
२२८ मेघदूतव्याख्या ति मल ७७ अ
७८३ (मेघदृतटीका रशिश्चुहितेपिणी| ...- ३०.
७८१ |मेघदृूतव्याख्या संजीवनी .. मल्लिनाथः २५
५१३ | रोव सएव १३
२७९ मेघदूतरीका क्क शन ४ ५१ ७
५६९ [मेघदूतसमस्या ... ...-.. ४1
६२६ ररघुनाथगुणोदयः ... . . नव्यचण्डादासः | १५७
| दुगादुत्तात्मजः
६२७ । सण. स्प । १८१
१११३ तः - कालिदासः । १५८
५५९४ सएव त प्व १३५
५५२१ सएव सस्व ,..| ७७
७८० ¦ सएव प् =-= ७६
स्द्२ ¦ सएव. सए ९६
२५२ । सएव सए ८१
२६३. | सएव सएव >| ऋदु
३६७ | सएव. तएव -..| ३५
३७४ | स एव .. तएव ... ९
४६४ | स एव सएव ...| ३
२६१ | सएव... | मएवे ...| १०
७८९द् [रघुवंशटी करा अथीरापनिका |समयसुन्द्रः ...| <
^ ४९२क|रघुवैशाटीका माणिक्य-| १९२
११३० |रघुवंशव्याय्या भाषाठ़वादस-....
म्रन्थनाम, कतृनाम. पत्राणि,
स्गाद्भशतकम्
वधेनसूनुः
।
)}
~~
हिता
जाना यो कामा
~~~
क न~
श्रेणयः,
श्र ॥ लिपि.
१० कारः
राणि, न
संवेदनम्.
१०।४०|१९४१ | संपूर्णम् |
९।३४ संपूर्णः |
८।२६९।१५१०(९)| १.पत्रं विहाय संपूण | चित्रितटिपरिकालो
ऽन्यस्माद्रन्थादवतारितः यादिति शङ्क |
कतृनाम न ठब्धम् | त्रिगतीदिपर्वतप्रदे-
रोप प्रिद्धेषा टीका |
१२।४६ संपूण | कतूनाम न ठन्धम् |
१५।४८| १८९१ [संपूण | टीकाकतैनाम न ठन्धष् |
१३।५०। १८७९ |संपू्णी |
१९।३९| १८९९ | असंपूणौरम्भाभावात् |
१२।४१ रकटमात्रा | टोकराया नाम न ठभ्धूम् |
११।४४ असमाप्रा | नवीनपत्राणि |
&।३३ संपणैः | श्रीराजापरिरजमहाराजश्रीरणवी -
रसिहेन कारितं तयोदशसगौन्तगैतं महा-
काव्यम् |
६।३१ संपूर्णः ।
७।३३ १८७४ | संपूर्णः |
७।२२ १.-९. सगः | संपूणीः |
९।३८| १८३१ | असंपूर्ण आरम्भाभावमध्यतरुटिवशात् ।
१०।३६ १८८८ | असंपूर्ण आरम्माभावमध्यत्रुटिवशञात् |
१ २।३७ १६३८ |असंपूर्णो मध्यनुटितत्वात् |
६।४८ अप्तमाप्रः |
१२।३३ १५७८ | असंपू्णं आरम्भाभावमध्यन्ुटिवशात् |
९।३२ संपूर्णो मध्यतरुखन्ताभावात् |
११।२३५ असंपूर्ण मध्यनरुखन्ताभावात् |
१०।३९ १.सगैः । असमाप्त: | ६.पत्रं विनष्टम् |
१२।३९ ६.७.सगौ | असमापरी |
१४।४९ २.सगेः । संपूर्णः | कर्तृनान्नि संशयः |
२८।२२| १९१० |संपूणी | नवीना कारमीरिकी छिपिः | प्र-
१०।२४
थमशेकत्रयस्य रीका नासि |
२. सगः | असमाप्त: | नवीनपत्राणि |
७२ काव्यम् | [१३८७-१४० ७]
। न न | ज न्न लिपि-
कारः,
प्रन्धनम्,
॑ संवेदनम्.
राणि,
|
॥ (= 1
०८८ [रघुंवशटीका रिश्ुहितेपिणीचारित्रवधना- | ४७ १४।५८ १८९१ | ४,१४.१९. सगा | संपूणीः |
चायः
२५८१ |रघुवराः सस्कृतान्वयटिन्दीभा ... ,..| १७ | ८।२०| ... | १.सगेः | आरम्ममात्रः | नवीना का-
पाटीकाभ्यां सहित रमीरिकी लिपिः | श्रीराजाधिरानमहा-
राजन्रीरणवी रिह: कारयिता |
५२४ [रघुवरशव्याख्या संजीवनी . - -|मद्िनाथः ...| ३७ |१५।४२| ... । १.-४.सगौः | असमाप्राः | नवीना का-
रमीरिकी च्पिः|
५३ रैव... ... ...| सए ...| ३९ ५७४४ ... |४.-७.सर्गः | संपूणौः | नवीनपत्राणि |
०८६ | रैव ... ... ..| सएव ...| २८ |॥४।५०| ..- | १.६.७.तगीः | असमाप्राः |
६० | रौव॒ ... ... ..| मख ...| १४ ।१२।४२्| ...- |१.सगः | असमाप्तः।
२६८ | रेव ... ... ..| सएव ...| २१५४२ --. |३.४. सर्गो संपूर्णा |
३५९ | रेव सएव ...| 9१| ७४८| ... | १२.सगेः । असंपूर्ण आरम्भाभावात् |
७८५ रघुवदाटाका सुगमार्थप्रवो- |सुमतिविजय ७ |१३।४३/ .-. |३. सेः । संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
धिका
५९ |राक्षसकाव्यं सटीकम् रविदेवः “| ५ [१५४८ १८६४ | संपूर्णम् | टीकाकर्तनाम न ठन्धम् |
9 |राक्षसकाव्यव्याख्या कारिका बारक्ष्णः पाय-। १८ | ९।४३| ... | संपूणौ |
गुण्डः
३११६ |राक्षसक्ाव्यटीका ...रविदेवः ...| ११ | ९।२८| ... |संपूणौ | काव्य टीकायाश्च करतँकः | न-
| वीनपत्राणि |
४११६ |रसकल्पदुमः .-. .--चतुभुजमिश्रः ...| ८१ | ८।४२| १९४१ | संपूर्णः |
"4४२ |राघवनेपधीयं सटीकम् .. -|हरिदत्तसूरिः ...| ३८ |१६।४७| शके | संपूर्णम् | मूठ्गीकयोः कर्तकः ।
९५.७६०
< भूजेराघवपाण्डवी यम्... ..-कविराजपण्डितः । ५७ (१४।२४| १७०५ |संपूणेम् | भूर्जपत्रेषु शारदालिपिः ।
२७० | तदेव ... ... ..| सएव ...| ४४ |०।४०| ... |समापिपत्रंन ठभ्यते|
७९० [राघवपाण्डवीयटीक।प्रकादाःराङाधरः .--| १४७ |१४।३८| ... | संपूर्णः | नवीनपत्राणि | श्रीमद नसिंहे र-
जाधिराजः कारयिता ।
9९्५क| सएव... .. ..| सएद ...| ५१३२।२८।२३ ... | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी टलिपिः।
२६७ | सएव... .. ..| सए ...| ७९ ११।५५्| १८५६ | असंपूणणं आरम्माभावात् |
२३४ [राघवपाण्डवीयटीका सारच-रक्ष्मणपण्डितः | -८२ | ९।४७। १८३३ | असंपूणौ प्रथमपत्राभावात् |
न्दिका दत्तसूरिसूः
५६८ [राजतरङ्गिणी “° ~." कट्टणः चम्पकप्र-| २८१ |१३।३९| ... | संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
अच्छः
५
[१४०८-१४२६]
9 ५ ९० ६.
७२
काव्यम् |
श, ॥ + _ | पिः | र
, . म्रन्याङ्कः. | म्रन्थनाम, कतेनाम, पत्राणि. | अक्ष तः सवद्नम्,.
| राणि, वि |
५०४ राजतरङ्गिणी "`" कल्हणः चण्पकप-| २७० |१३।३९ संपूण । नवीना काल्मीरिकी छिषिः |
" अथव तव 4 = ७ सेच „|= ददै | आह् पूवेतरद्गषङ्कम् । संपूर्णम् |
, ४४९खराजतरद्गिणी "| शरीवरपण्डितः...| ९१ | ८।४९| १८०७७ संपू्णी | जैनराजतरद्गिणीति कतेर्विरिषट
| * | नाम| |
४४९गराजतरङ्किणी ... प्राज्यभटः ४० | ८।४९| १८७७|अतमाप्रा | राजावटीपतकिति मन्व
स्या नाम निर्दिष्टम् |
€२१ राजेन्द्रकर्णपूरः ,.. „~. शं भुभट्टः ~ [१४।४४| १९१९ | संपूण: | नवीना काहमीरिकी लिपिः |
४०५१ |राधाकृष्णयोः म्रेमसंपुटका-... २१ | ७।३०| १९४१ | संपूणम् | विरिचनकालः संवत् १६०६।
व्यम् ` | { . |
२३६ राधाविनोदकाव्यम् ..|रामचन्दकविः ४ | ७।२४| १७०६ संपूर्णम् |
। पुरुषोत्तमुतः
७६९ | तदेव ... .~ | सएव १ (११।५२ १८८८ | संपूर्णम् |
५५ [राधाविनोदकाव्यव्याख्या [नारायणपण्डितः | , ८ (२। ३२ संपूणो ।
। रद्गनाथपुत्रः |
५५२ |रामङृष्णकाव्यं सटीकम् .. .[सूर्यदैवन्ञः १५ |१२।३२ संपूर्णम् । काव्यरीकयोः क्तकः |
#२०९१ |रामवाहुशतकम् ... .. श्रीनिवासाचार्यः | ४२६५७ संपूर्णम् |
“= | कोतियाचार्यपुत्र ।
७१६ |रामार्याः . ... -"|महासुद्रल्सूरिः | ७ | ९।३६| ... |संपूणौः । प्राचीनपत्राणि |
+३५० [रवणपुरवधः `": िवरामःकृष्णरा-| २ |१२।५०| ,.. |संपू्णः |
। । मपुत्रः
*४०५८ |क्ष्मीसरस्वतीविवाद्ः ... ् १२ | ७।३०| १९४१ | संपूण: । विरचनकालः संवत् १४४०॥
| शमौत्रिपाणिम-| ` |
७५६ वकरोक्तिपञ्चादिका ५ |१२।३८ संपूणौ । नवीनपत्राणि | `
५०२२ |वागरभूपणव्याख्या १० |१२।२६ असमाप्रा | काव्यटीकयोः कर्तीकः | प्राची-
| नपत्राणि | |
८१९ख | वानरा्टकम् १ |११।३३ संपूणम् । नवीनपत्राणि |
८१९कवानर्यटकम् | १ ।११।३३ संपूर्णम् । | .
६२७. |विक्रमाङ्कुदेव चरितम् ११० |२०।२१| ,.. | संपूर्णम् | ्ीवूटेरविद्दररणुद्रितमन्धाद्व-
तारितमिद् पुस्तकमियठमानम् |
\५८
३६६ (दिश्चपालत्रधव्यास्ा
कपा
[१४२७१४४८] `
। काव्यम् । ।
। | परिणयः.
न्याह थ भ छ्पि- >
प्रन्यङ्खिः. प्रन्थनाम, कदनाम. पत्राणि, अघ्त- काटः सवेदनम्.
राणि,
£ = म
९९७. [वदन्मोदवरक्िणी . रामदेवः चिरंजीः ३० | १४।२२| ... | संपूण । प्राचीनपत्राण |
विभट्टः राधवे-
दरपुत्रः काशीः
| नाधपोत्रः |
४९४ख। रव स.एव २८ [२४।१९| १९०९ संपूर्णौ | नवीना कामीरिकि। ल्पिः।
३८८ विष्णुमक्तिकट्पलता पुरुपोत्तमाचार्यः | २५ | ५।२०| ““" चतुधसरगपयेन्ता | असमा |
८षद्ग बुन्दावनयमकम् $ . . [माना्भू ; % ।११।३४ संपूर्णम, तवीनपश्राणि
& १ ख चरन्दावनशतकम् पि न स १२ ।११।२४ सं पूणम् |
५९ वैराग्यरातकम् ...|भर्वृहरि १५ | ९।३६ संपूर्णम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
९८० वैराग्यश्चतकं सटीकम् .““ भर्वहरिः ५० (१२।३३। १८७५ संप्रूणम् | टीकायाप्तत्कतैश्च नामनी नीप
ठन्ध् |
१०३७ तदेव ,,. स एव॒ ,.,| २७ |१३।३३| १८९२ संपूर्णम् |
०१६ वराग्यदातकं हिन्दीभाषायाम् २७ |१४।४१| १९३५ संपूर्णम् । वाना कादमीरिकी लिपिः ।
८२१ख नजविहार ,. . श्रीधरस्वामी २ ।११।३४ संपूर्णः । नवीनपृत्राण ।
८१६ क शान्तिरातकम् . . दिल्टनमिश्रः १० |११।३८| संपूर्णम् ।
६५१ |शार्गधरपद्धतिः ,.|शाङ्गधरः दामोद्- ३०१ | ९।४२| १८९२ संपूणो |
| रपरूचः | |
भरद | चैवं सक == न्न अ १२५ |१२।५०| ... कश प्जनपरिच्छेदान्ता । संपूण । नवीना
। मीरिकी लिपिः।
५७८ | सेव सएव ३७ |१९।६४ राजनीतिपरिचेदपर्यन्ता । ३६. पत्रवि
. | हाय संपूणौ ।
४३८२ । सैव सएव १९ | ९।३३| १८३९ मन्त्रयोगढ्ययोगराजयोगपर्च्छदादाए
विदहपुक्तिकथनकाल्वच्वनादिपारेच्च्द्-
पयेन्ता |
५७१ दरिश्वपार्वधः ,. नाधः दत्तकपुत्रः १६५ | ८।३५| १६९९ संपूर्णः ।
२१९ | सएव ..- ° स॒ एव ,| १९८ | <।३०| १७८९ संपूर्णः ।
७८४ | स एव ... स॒ एव ३९ |१३।४० -. सगौः । संपूणा
३७९ .| स एव ... सएव °“ < | ८1६८ २. सगेः 1 संपूण
६८ | सः पुवं ८ तज सएव .--| २६| ९।२९ ५.-७. सगौः । संप्ूणौः |
४९३ (दिश्चपाखवधतारटीका संदे वहछभदेवः आन-| ५०९ |२४।२० संपूण | नवीना कारमीरिकीं लिपिः ।
हविपोपधिः न्द्दवायनि क
सवे-मद्धिनाथः २० |१२।३२ २, सगः । संपूर्णः ।
या णय
11111011
. श्रणयः. लिपि. .
प्रन्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कतृनाम,. पत्राणि, | अक्ष. सवदनम्.
राणि, कलः. |
*३८२ |श्ङ्गगारकोतूहरम् .-. ---|खालमणिःवाटेकृ। ७ |१४।३९| ... |विविधनायिकावणनम् । प्रं विहाय
ष्णपुत्रः संपूर्णम् |
७५१ [शङ्गारतिखुकम् ... --.| कालिदासः ...| २।१३।३७ ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
१११५क| तदेव ... ... .. | त एव॒ ...| ४|९।२२| ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
८२१८छ| तदेव सएव ...| २।११।३३ ... |संप्रणम् | नवीनपत्राणि |
४१३७ |शडारमाला “*‡ ““"सुखलालमिश्रः | १६ | ६।४| -.. संपूण । विरचनकाकः संवत् १८०१ ।
॥ | वावृूरायमिश्रा- नवीनपच्राणि |
+ त्मजः
५४१०६ |श्ङ्गारसरसी ... ... भावमिश्रः ...| २४ | ९।४२ १९४१ संप्ृणां |
*५८६ (शद्गगरसारसंम्रहः ... ... शांुदासः ...| १० |१३।४३ ... | संपू्णैः | नवीनपत्राणि ।
२७१ | सएव... ... ...| पए ...| ९।१०।४०| ... | शद्गारवर्णनपयन्तः | असंपूर्णो मध्यत्ुटि-
वरात् } पवेम्रन्थादन्ते पाठभेदों ट्टः ।
४९४क[श्रीकण्ठचरितम् ... ..“ राजानकमङ्कः रा ८५ [२८।१९| ... | संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी चिपिः ।
जानकविश्वावतं-
सपुत्रः
७५३ |श्रीकण्ड्चरितरीका ..-जोनराजः नोनरा-| ३१४ १२।३५) ... |असंपृणोरम्भाभावात् | नवीनपत्राणि ।
जपुत्रः
७४७ (छोकसं्रहः प, ,.. -..| १५ |१२।३२ ... | संपरणः । नानाकाव्याकृ्यमकचक्रवन्धाय -
| टंकारभृषितश्यरेकानां संग्रहः । मन्थनाम
न ज्ञायते |
4 1.11 अ ` ` = -.| ¶ |११।३५्] ... |-सपूरणम् |
८२१क|सप्षरलम् -.. --- -..|-. ... -.. १ ।११।२३५ ... | संपूर्णम् |
१२द्खसभ्याभरणपञ्चिकाविवृतिः म-रामचन्द्रः विश्व-| ७३ |१३।४०| ... |असंपूणारम्भाभावात् । मूटविव्र्योः क-
यूखमाखा नाधसूचः तकः |
४१४ | सैव ... ... ..4 पए ...| ६४ |१०।३७| ... |असंपृणो मध्यन्नुटितव्वात् |
५४१ सुभापितख॒क्तावरी ...... ... ,..| ४३ । ९।३४| ... | संपूर्णां | अतरान्येभ्यः काव्यादिशाघ्लेभ्यः
शोकान्प्रणीय प्रबन्धः संगृहीतः । नवीन
कार्मीरिकी च्पिः|
६३६ |सुभापितावलिः .-. .--वह्भदेवः ---| २९० [२०।१६ ... |असमाप्रा | नवीना कारमीरिकी ट्पिः ।
७५७ [सूक्तावखिः ... ... भवैसारस्रतः ...| ३४ |१२।३७| ... |संपूणा । नवीनपत्राणि |
२२३. |सूयेशतकम् ... -.. मयूरकविः ...| २१ | ६।३५ १८२० | संपूर्णम् ।
२३२ | तदेव ... | सएव ...| १६। ९।३२| ... | संपूर्णम् ।
[१४९ ९-१४७९]
५५६ काव्यम् ।
- ~ [~ थ् “= कक्कर
त्रेणयः.
लपि- ॥
म्रन्थ ङ्ग. प्रन्थनाम,. कतृनाम, पत्राणि, | अश्ष- | संवेदनम्.
राणि, |
१५९४ (स्तुतिकुसुमाज्लिः , ,जगद्धरभटः रत्र-। ९९ | ७।६२| १९२२ संपूर्णः | नवीनपत्राणि ।
ध्रपू@ः
छद । तवः = = = स | ११३ | ९।३८| ... | अस्तमाप्रा । प्राचीनपत्राणि ।
४४८२ स्त॒तिलक्ष्मीप्रकाशः , दिवरामः | ५| ५२८ -. संपूर्णः |
५९० स्वव्पदुःोकव्यास्या “^ वे्यनाथः पाय ५९ | ८२८ .-* [असमा । प्रन्थनाम संदिग्धम् |
गुण्डः
४९८४ [हंसदूतकाव्यम् -** ˆ“ रूपगोस्वामी ..*| २ २२।८८| *** संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि । गूजरदेशीया
| लिपिः ।
८१३क/ तदेव ... .* -.| सएव १४ ११।२४| ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि ।
४९४ग हरविजयः .*“ , |राजानकररलाकः | २३.६ |२८।१८ संपूर्णः | नवीना कारमीरिकां छ्पिः ।
अम्रतभदुृत्रः
७९७ | स एवं ... सएव ... २८३ |१२।२९ .*" संपूर्णः | नवीनपत्रणि |
७९८ हरविजयटीका विपमपदो-राजानकार्कः | १९९ 4९ ।३५। ... | असमाप्रः |
द्योतः जयानकपुत्रः
५३० |हरिविखासः लोलिम्बराजः सू-। ११ (१२३।४२| -.. संपूर्णः ।
यैपण्डितपुत्रः
ण्४्दे | तएव, = ज सु प्व ४२ | ६।२४। १९४२ संपूर्णः ।
| >|. 0? 110 ९201413.
[१४८०१४९७ नाटकम् ।
श्रेणयः. लिपि.
मन्थाङ्कः, मन्नाम, कर्वनाम, पत्राणि, अक्ष- न संवेदनम्
| 4
२२८ -.* *..सुरारिः --*| ७१ | ९।३८ | १८३२ संपूर्णम् |
४९५घ| तदेव ... ... .. पण ...| ४६ |२८।२० संपूर्णम् | नवीना काष्मीरिकी टिपिः ।
५१४ | तदेव ... ... ...| सएव ...| ६६ |१४।४५ ... |संपूर्णम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
३१९ | तदेव „>= == „| सणएव „| ७९ | ९।२६ चतुर्ाद्भपर्न्तम् । संपूर्णम् ।
| ७८७ अनघराघवरिप्पकम् द नरचन्द्रसूरिः म-| ५१७४ |१२।३३ ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
| ठधारिशेष्यः
| ५१५ | तदेव ... ... ..| सएव ...| ३६ १५४४ ... |अस॒माप्तम् | नवीना कारमीरिकी दिपिः |
५८३ [जनधघैराघवटीका ... ,..|*** ,.. ,..| २२ (२०४६ ... |तृतीयाद्कपयेन्ता | अस्माप्रा ! प्राचीन
| पत्राणि | टीकाकतृनाम न छब्धर् |
| ७५६ [अभिक्लानकाकुन्तरम् “| काणिदासः „| ६२ (११।३९ १८९० सपूरणम् |
४२३ | तदेव ... ... ...| सएव ...| ७७ | ७।३४। १८३१ | संपूर्णम् |
४२२ | तदेव सएव ...| ५० | <८।३३ १६९० | असंपूर्णमारम्माभावात् |
."|भवभूतिः 1 च कु कती |
३३०
४२६ [कपूरमञ्जरी . राजदोखरकविः | २१ | ७।५५| ... संपूण |
४१७ [कपूरमज्ञरीप्रकाद्ः “वासुदेवः प्रभाक- ५६ |११।५८| ... |अपरमापतः |
रसूचः
४०६८ क्ष्णभक्तिचन्द्रिका .--|अनन्तदेवः आप-| ४० | ७।२६ १९४२ संपूण |
देवपुत्रः
३५२३ (चण्डीविरखासीका शब्दा्थ-रुद्र शर्मत्रिपारी | १०४ | ९।४१। ... ।अममाप्रा | मूठर्दीकयोः कैकः |
चण्डिका
४०५४ [दूताङ्गद्म् ००० ,“ "सुभटः; -.*- “.--| ११ ७।२८ १९५४१ संपूणम् |
३१८ (धूतसमागमः .-- °“. कविशेखरः ---| ५१ ६।५३। ,.. | संपूण: ।
५१६ प्रबोधचन्द्रोदयः ... ,“" कृष्णमिश्र ,,.। १३ का ,,, ।संपूणैः |
०
\८
न ~ [दि "~ न्थाङ्कः.
२४८३.
२.१३.
२२५५
2३२९
२२७
२.२६
४२४
२२४
२१६
२१५५
९२८
६४२
२२२
२१४
४१६
४२०
*+३२१
४२७
४२८
६४४
२१७
नाटकम् ।
ग्रच्छकटिकप्रकरणव्याख्या ।रद्छादीक्षितः ठ-
सुव्णारंकरणम् धष्पमणपुत्र
रतावरी . .|हपैदेव
सैव
रल्लावरीटीका रलावलीदयुत
सैव
रखटकमेखनप्रह सनम्
तदत्
विक्रमोवैश्ी
विद्ग्धमाधवम् ..'
सपव
गा वन्द्;
म्रन्थनाम, कतनम,
प्रबोधचन्द्रोदयः ... .." [कृष्णमिश्र
प्रनोधचन्द्रोदयप्रकाशः ... रामदासः विनाय-
कसू
प्रभावतीप्रद्युश्चः ... -- -|रामकृष्णसूरि
बाखरामायणम् ..- -*-राजशेखरकावः
महानारकम् त अ
महावीरचरितम् --- ---|भवभूति
मारुतीमाधवम् .-- ---|भवभूति
तदत् =न == सएव
मारुविकाभचमित्रम् . . कालिदास
सुद्रार्षसम् `. . विदाखदत्तः पृथु
तूः
तद्वु जरम ०० सष
तदत् न सपव
्रच्छकरिका च , .[व्यद्रक
सतु => -भ> सएव
सेव सएव
[१४९८१५२१]
श्रेणयः. लिपि
त्राणि, | जक्ष | संवेदनम्.
राणि +
११ १६।१५ असमा: | नवीना कादमीरिकी लिपिः।
७१ ।१२।५४ संपूर्णः |
३२ | ९।५२| शके | संपूणः |
१६५०
७५ | ९।४५. १८३२. संप्रणम् |
३७ | ७।२५ संपूर्णम् | नाटकं मिश्रदामीद्रण म्रायत्-
मियन्तिमश्रेकादवगतम् । हउमनाटर ~
मिल्यपि नामान्तरमस्य ।
७१ | ९।३७। १६७४ संपूर्णम् |
४७ |१०।४१ संपूणम् |
२७ | ८।४५ अपस्तमापम् ।
३३ ।१०।३९ १७४४ | संपूर्णम् |
६१ | ९।४०। १८३४ | संपूणम् ।
५० | ९।५४ १८७७ | सप्रूणम् |
७ १३।३० ,.. |असमाप्रम् | नवीना कारमीरिकौ चिपिः।
ध्र कम संपूणां । प्राचीनपतच्रागे |
,| १०४ | ९।३९ १८३२ | सपूणा ।
६२ ।१०।५४| १८४४ | सप्रूणा |
५६ | ७।३७। १८७९ | अन्तिमादूत्रयमितम् । सप्ूणमारम्भा-
भावात् । व्याख्याविरचनक्राटः सवत्
१८९७७ | कारायेता बाटसनः साव
१७ |१७।४८ संपूणो |
२१ |१ | १६२१| १.पत्रं विहाय संपूणो ।
२२ | ९।४०| ... |संपृणां ।
६ र्ठ १. अङ्कः । सपूणः |
१७ | ९। | असमाप्तम् | १.पत्रं विनष्टम्
५२ | ९।४७। ... |असंपूणं मध्यतरुटिवशात् ।
९।३५ १८३४ | संपूणा |
| १।५० असंपूर्ण मध्यत्रुटितत्वात् । विर्चनकाटः
संवत् १५८९ ।
[१५२२१५२५]
1
नारकम्। । | ५७९.
# ` ॥ अ क्का अ. अ
~ [~
_ त्रेणयः.
मरन्थाद्भः. न्थनाम, | कर्तनाम.` पत्राणि. | अक्ष. (= सेवेदनम्,.
| | |
४२५ विद्धा भञ्जिका --"कविराजरोखरः | ४४ | ८।३५] ... | १. पूत्रं विहाय संपूणी [*
४१९ .विद्धशारुभल्ञिकाविव्रणम् [नारायणः रङ्गना-| ४४ | ९ षै ... |असमफ्म् |
=+ थसनुः ।
३२२ [विद्यापरिणयनम् .-- `, .-.|आनन्द्रायमखी | १३० | ६।२८|` ... [संपूर्णम् । `
४२१ वेणीसंहारटीका “-‡ “नारायणः | _जग-| २८ | ५।६५| ... |असंपूणीरम्भाभावा् ।
द्रः रनधरपुत्र
' न र
स एव् जः $
सएव.
सैव
= +)
~ ऋ
॥ इः काद्वटीका
ञ्र दृश्कुसारचरितम्
२२ | तदेव
क | तदेव
र; | तदेव
ग्रन्श्रनाम,.
स
--ासरिव्सागरः र
+ ३०४ कादम्बरीकथासार; `
८॥।. ?^९। ८6, ५०५८-9.
आख्यायिकाकथानिवन्धादि । . .
कतैनाम.
. .|भटसोमदेवः
मात्मजः
...| सएव
सपण
. .|बाणभट्ः तत्पुत्र
भट्पुलिनश्च
तावेव
॥ि बाणभट्टः
...| सएव
धूः
, अभिनन्दः भ्न
यन्तत्रूठः
.. दण्डी पद्मनाभश्च
.. दण्डी .
स एव
..| स एव
..| त ए
पत्राणि
श्रेणंय गक
अक्ष.
। राभि.
छ्िपि-
काठः.
चै
६५६ |१५।३८| १९१८ | संपूर्णः |
.| १६९
"| १७६
९९ |चादस्बरीटीका विपमपदवि- वेदयनाथः रामभ-
रड
१८
६६
१२६
२५
३२
३२
१६
|
९।४१
,| ७१७ [२४।२० १९२९ संपूर्णः | नवीना कारमीरिकये लिपिः |
,| ३९१ ।१२।४४| १८४४ दश्ञमटम्बकपर्यन्तः ।
२७९ |१५।२०| राके | भूजपत्रेषु शारदालिपिः । १०९. ११४.पत्र
१५६९ विहाय संपूणा |
सप्तापि
रद्
,| २०८ (१३।२६।.१९०७। संपूणो | नवीना कारमीरिकी टिपिः |
८।५४| १८२५ पूर्वभागः । संपू्णैः । अत्र वाणमष्स्यैव
कतृत्व न तु तत्पुत्रस्य |
पूवैभागः | असमप्तः |
९।३८ १८३०४ पूवम् । संपूणंम् ।
-९।८६१
असमाप्रा । दक्रानाम नावगतम् |
६।३२| १६९० | संपूणैः |
६४ १८३२ संपूर्णम् ।
९।५७| १८३६ पूवैपीटिका । संपूर्णौ । अत्र दण्डिनि एव
८ । ९
कतुत्वं न तु तत्पुत्रस्य ।
पूर्वपीठिका संपूण | `
९।३९| १८३६ पूर्वपीठिका । संपूणौ |
१३।५३
पूरवोच्छरासद्वयम् । संपूम् ।
. [१५२ ६-१५४०]
[१५४१-१५५]
= = [= न्च नन ४
भय
२९८ (दृदाकुमारचरितपर्यायाः ... ..
मन्नाम,
५८
६२२ |दराकुमारचरितव्याख्यानम् तारानाथः ११३
२५६ दृशकुमारचरितपूर्वपीटिका- रङ्गनाथः आरडो- १९
सारः पाख्यः महादे-
वृपुत्रः
४६३. |पञ्चतच्नम् ... - विष्णुम ४१
२९१ व॒हत्कथा . . क्षेमेन्दः .| ३२८
५७५ |भोजम्रनन्धः -. वट्धाटः ५३
२०० |माधवानटखकामकन्दकाकथा। .. . 9)
५४४ | सेव ... ,., ...|... १२
४५० |वासवदत्ता... - * सुबन्धुः. . . २६
२०१ |वासवदत्तारीका ... ...सर्वरक्षितः ५१
३०२ |वासवदत्ताटीका तत्वदीपिनी|जगद्धरः वियाधर- १४२
पुत्रः
२७४७ खुकसप्ततिः ०, =... न स्यौ क
४८९क ह षैचरितम् `" | बाणम: चिच्रभा-| १४०
षतः
३३३२ [दपचरितसंकेतः ... ..राजानकरंकरक- | १२५
ण्ठः पुण्याकररपु-
त्रः राजानकर-
ब्रकण्टपिता
२१
आसख्यायिकाकथानिवन्धादि ।
श्रेणयः.
अ्-
राणि,
८१
९।४६ संपूणाः । संिप्रपर्यायाणां रचयिता न
ज्ञातः |
२१।२५ १९२६ संपूर्णम् । व्याख्यानविरचनकाटः संवत्
१८६४ |
९।४४ संपूर्णः |
८।२१ प्रथमतत्रम् | असमापम् |
७।४६ १.-५०. पत्राणि नष्टानि |
८।२६ असंपूर्ण आरम्भान्तयोखुटितत्वात् । कर्ै-
नाम मन्थेन दृष्टम् |
१६।५४ संपूण |
८।२२ संपूणो । नवीना कादमीरिकी लिपिः |
६।३६ अपस्तमाप्रा |
१६।२३८ संपूर्णां |
६।४२। १७७४ |संपूणो |
११।३५ संपूणो । प्राचीनपत्राणि |
२०।२४ संपूर्णम् । नवीना कार्मीरिकी छिपिः |
१४।६४। १९२७ |संपू्णः । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
>।१!1, । ^\# ९९।.11005 ^ €1\/11.
धमेलाद्म् ।
~ ~~ द ~ _
ग्रन्थाः. ग्रन्थनाम, कतनम.
शा ष
४४६५ |अच्चिस्थापनम् --* ˆ""|
२५७७ |अघनिर्णयः
यः
२६७७ [अघविवेचनस् -** `` रामचन्द्राध्वरी
अनन्तसोमया-
जिपुत्रः
१०८८ |अद्धिरःस्छतिः “ˆ |“
दयः | तवं रक * १०५२७
८७६ अधिमासनिणयः 1 अ 1४
२४९४ |[अधिमासनिणयः --* “|
८७८ |अधिमासादिनिणेयः
११४२ |अनन्तव्रतपूजा ˆ` ˆ|"
४८९१ |अनरनविधिः ˆ“ ˆ"
२४३ ६ख अनरानविधिः ˆ“ “|
४४०६ |अनेकविधव्यवस्थाग्रकारः
५५४० अन्वाधानेष्टिमध्ये सूयाच `
न्द्रम्रहणनि्णयः
४४३६ |अश्छेपाविधानम् “-* `" |"
२६७६ग|अष्टादद्याजातिनिणेयः ^“
४३९७ अष्टाददाविवादसंक्चेपः “1 `"
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श्रणयः.
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७ ।९२।३८
५ |११।२०
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१५।२२.
२६ | ९।१५८
२ ।११।२६
९ ।१८।४६
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२९ | ९।२२
३ | ९।२०
५ |५०।२.१
९५ ।५४।२५
९४ | ८१५१
[१५५५१५७० |
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संदेद नम्.
[व क "अकै
संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि ।
संपूर्णः । प्रायीनपत्राणि । आ्ञौचनिर्णैय ,
इत्यपि नापान्तसम् ।
२.परिच्छदान्तम् । संपूर्णम् । प्राचीन
पत्राणि |
, | संपूणौ |
संपूर्णौ । नवीना कारमीस्की छिपिः ।
संपूर्णः । दीधेपत्रखूपम् ।
असमाप्त; । म्रन्थनाम संदिग्धम् ।
संपूणैः |
संपूण ।
संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
१७४६ | संपूर्णः । अनशनं तावदुच्यते विष्णुधमो.
दिति म्न्थादौ |
असमाप्तः | मन्थनाम प्रथमष्ठ जन्यहू-
स्तडिदितं संदिग्धं च । दायवि मागवि-
पय॒कराः श्येका नानागमेम्य उदाहता अ
त्रे्यतमानम् ।
संपूर्णः । प्रयोगरनाख्यमन्थलण्डः स ईति
प्रतिभाति | प्राचीनपत्राणि ।
१७४० | संपूर्णम् |
संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी टिपिः
असमाप्रः |
[१५७१-१५९५० |
क शि न्याङ्कुः,
ग्रन्थनाम, कतैनाम,
मेद्ास्रम् ।
८३
२६११ |असपिण्डासगोत्रपुत्रपरिग्र- |अहोवर्डाखी | १६
हविधिः
२६१२ सएव ... ... सएव १०
२४८१ |अस्थिक्षेपनिर्णयः ... ... |... १
२५८२ [आचारचन्द्रोदयः ... ..-. महे रकविः सार-| २७४
स्वतदुगेर म॑पुत्रः
२५९१ सण... सएव ..-.| ५
+४१३८क|आचारतत्वम् . . हरिप्रसादः २५
२८५७ |आचारप्रदीपे भागवतश्रव-... ... ..-. ५
णविधिः
५९५ आचारसंम्रहः . . . हरिहरः नारायण-। ४५
पुत्रः
२६७८ |आचारादर्ः .. श्रीदत्त ७७
रश््र | सएव... ... ..| मए ९९
९१३ | सएव... ,.. ..| पणएव ५९
४४१५ [आतिथ्येष्टिः = ,., ,*..|... १०
४७१६ [आतुरसंन्यासविधिः आङ्गि-|.. ४े
रसोक्ताः
२५०८ आपस्तम्बस्म्रतिः ... .-..|.. ७
२६४४ सेव 7 (भव १०
४६११ आरामोत्सरविधिः ,,,... ॥ १९
२५४२ [आद्रौचचन्दिका ... -.-विदाङ्गरायः १५
२४८६ आशो चत्रिशच्छोकी 7 ४
२६०३ । सैव ,.५ ०, ,,.|,. क „|
२५२८ [आसोचनिर्णयः ,,, ... नागोजीभट्टः शि-| २७
वभघ्ूचः
१०।४४
१२।४०
२४।१८
१४।४१
५।२१
१२।३६
१९४१
११।२०। १७४०
९।२३९ १४७९२
९।३१ १८१८
१२।३०
१२।३९
१०।३०
११।४८
७।४२ ...
९।३९ १७५१
१२।४६ १८०५
१२।३१| ....
६।२६ ५८५९
११।६६
संपूर्णः | मरन्थनान्नि संरायः । प्राचीन-
पत्राणि |
संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
असंपूर्ण आरम्भान्तयोरभावात् | प्राची-
नपतव्राणि | मन्नाम संदिग्धम् |
संपूर्णः । सदाचारचन्द्रोदय इति माधवप्र-
काश इति च नामान्तरदयमस्य । न-
वीना कार्मीरिकी द्िः |
तुतीयभागकृत्यपरिच्छेदः । असंपूर्ण आर-
म्भाभावात् |
संपूर्णम् ।
संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
कतृनाम न टन्धम् |
संपूणैः |
संपूर्णः ।
असंपणों मध्यन्नुदिवशात् ।
असमाप्त: । प्राचीनपत्राणि |
असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि | मन्थनाम सं-
दिग्धम् |
संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
संपूणी |
संपूणो |
१.पत्रं विहाय संपूर्णः । मन्थकतृनाली
संदिग्धे |
संपूण | कतो मन्ान्ते यगलाभध्सूनू र~
लभट्पौत्र उक्तः |
संपूणौ । जीरणैपत्राणि |
संपूर्णां |
. | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
८४
~ ~ [~ ~ न्थाङ्कः.
धमेदाखम् ।
रागि,
श्रेणयः.
पत्राणि,| अक्ष- िपि-
[१५९१-१६११
कोड तवेदनम्.
33
. २५२४
५१०२६
>+२५३०
४००४
९१८
४६२७
&५४
*+४४०२
४६२०
०८.
% &७०
७१४
४६०५
४४४
२२५
९०९
४७५१५
२२५६
४६५९
२५१४
६८
आदो चनि्णयः ,. .|व्रयम्बकपण्डितः | १०
रवुनाथपूसिसूलः
आङौचनिर्णयः ,.|मटोजिदीक्षितः | ७
टक्ष्मीधरपुत्रः
आदौचीयददाश्छोकीविन्रू- विश्वेश्वरः मीः ५र
तिः धरपूः
आश्चलटायनस्प्रतिः -**|** २५
सेवै तरम अज =०० ५० २
आदह्धिकम् .-- ˆ= “| ४०
उदक्याश्चुद्धिप्रकादाः ~ ज्वाखानाथमिश्रः| <
उपाक्रतितत्वम् . - पायगुण्डवाट- | १६६
क्ष्णः
उभयव्रतपूजाविधिः “ˆ २
उद्ानःस्प्रतिः --* --'* ६
त्ररयिपञ्चमतोदयापनविधिः|--- प्
एकदण्डिसंन्यासविधिः .--शोनकः १५
एकादद्राहविधिः.-- “ˆ २२
कन्यादानविधिः ... |“ क
कमविपाकः क ७८
कमीविपाकः शातातपः १४
कर्मविपाकः .-= --** ध
कमिप श ' ६९
कटरास्थापनप्रयोगः --" |`" २
करयपस्म्रतिः --- “^| त ४
कामधेनुः .. . .विजयपाख्चपः | ६२
८।३१
संपूर्णः |
१०।३३। १७७९ | संपू्णैः |
१२।५०|१६३८|५.पत्रं विहाय संपूणा |
१४।४०
१२।२३२
१०।२८
१३।५९
९।३४
संपूर्णौ । नवीना कारमीरिकी च्पिः ।
आरम्भमात्रा |
लण्डितम् | ्रन्थनाम पत्रप्रान्ते न्वं ताः
राङ्क च | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णः | व्रेगतस्थसरोहमामोत्पननः काङी-
निवासी कता ।
१८४८ | संपूर्णम् । वाटे इयपि कतृ नामान्तरम् ।
१२।३३। १७५३ | संप्रणैः ।
७।२८
१३।२८
९।१९
७।२१
संपूण | नवीनपत्राणि ।
संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि ।
१७६७ संपूर्णः |
१७७८ | संपूर्णैः |
११।२२ १५१२ संपूणणैः |
१३।२४
९४।४०
१८।५
१२।२३८
८ ।२६
८ ।२७
८।२९
संपूर्णः | श्चग॒भारतसंवादरूषो नवल्यध्या-
यपरिमितः | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
असमाप्रः | १.पत्रे विनम् । प्राचीनप-
त्राणि |
आरम्भमात्रः | व्रद्मनारदसंवादख्पः ।
१९२२ | संपूण । ब्रह्मपुराणान्तगैता पावतीदरसंदा-
द्रूपा ।
संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
संपूण |
अतमाप्ता | चतःस्तना कामधेठरिति म-
न्ध विरेषणं ठन्धम् । नवीना का
रमीरिकी रिपिः ।
[१६१ २-१६३०. ध्मेदाख्रम्। | <८५
न = [| मन्थनाम, कतनम, | न्न अक्ष १ संवेदनम्.
राणि, | १
दभर [कामन्द्कीयनीतिसारः ---कामन्दकिः † ...| ३९ | ९।४६्/ ... |असमाप्र |
४१० |कामन्दकोयनीतिसाररीका |... ... ,..| १०६ ९।५१| ... | ६.-२०.सगौः | संपूणोः
उपाध्यायनिरपेक्षा
४४३५ काम्यकर्मकमला ... ...... ~ ---| २६ ।१०।२४| ... |असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
२५१२ [कार्कृयविवेकः .-- ---[अनन्तपण्डितः | ३३ | ८।४६| ... |असमापतः | मन्थनाम कतृंनाम च साशङ्कम् ।
२४२८ कारनिणेयः =. .--|माधवाचार्यः ...| १५१ १०।४८| ... | १.-७.पत्राणि विहाय संपू्णैः |
९१९ |कारनिणयः ... ...|माधवाचार्यः ...| १४ | <८।४७| ... सपणः । तिथिनिर्णय इलयपि नाम मन्थान्ते |
२४६३ (कारुनिणयकारिकाः .- माधवाचार्यः ...| ११ | ९।२५ १७२६ | संपूणाः |
४०५२ [कारनिणंयकारिकाविवर- [माधवाचार्यः । वै| ३३ |११।४३ १९४२ संपूर्णम् |
णम् दयनाधः
२०७९. | तवेत् „= => „^ त्विव =| इ भयल ,.. प्रकरणत्रयपरिमितम् । संपूर्णम् । प्राचीन-
| पत्राणि |
२४४१ (काटनिणेयकारिकाविवर- |... -..| १४ ।११।२३ ... संपृणम् । काठनिर्णैयश्कविवरणमिति
णम् मरन्थान्ते | प्राचीनपत्राणि |
ग्भ्र७ | तदेवं नन न ० ..+ | ७ [१२३७] ... |असमाप्रम् । प्राचीनपत्राणि |
२५३७ [कारनिणयटीका कालमाध-पायगुण्डोपाख्य- | २३० | ९।४०।१८५६ असंपूणारम्भाभावात् | अन्थकृ्नान्नि सं.
वलक्ष्मीः वेयनाथार्धाङ्ग- रयः |
रक्ष्मीदेवी
२५७६ [कारनि्णयविव्रणम् = ..... **“ “"“| १४५ | ९३६ .-- | २.प्रकरणपयैन्तम् | असंपूणं १.-७.पत्रा-
मावान्मध्यत्रुरेश्च | मन्नाम कुत्रापि न
स्ट परं ठु मूकपाटमेकनेनैवाठमितम् ।
प्राचीनपत्राणि |
२५६३ कारनिणैयदीपिका .. |रामचन्द्राचार्यः | १५ (१५।५०| १६२४ संपूण |
| गोपाटशिष्यः
२४६५ | सेव... ... „~ सए ...| ३६ | ८।४०।१६६९ संपूर्णौ |
२४७३. | तेव ...- . „| सएव ...| २५ |१०।७०| १७५१ संपूण |
२४५७ (कालनिणेयदीपिकाविवर- [सिंहः रामचन्द्र-| १५३ |१०।३४| १६४८ संपूणम् |
णम् पठः
२४३९ |कार्निणयप्रकाराः .. रामचन्द्रः वि -| १९२ (१०।३८ १८३१ संपूर्णः |
भघ्ूडः
४१०२ [कारसिद्धान्तः .“ .*चन्द्रचूडभटः उ-| ४६ |११।५२| १९४१ संपूर्णः |
मनभश्परूचः
4.4
धर्मदास्म् । [१६३१-१६४२]
= [~ न्घ ~ `
्रेणयः.| {र
पत्राणि.| अक्ष- न सेवेदनम्.
राणि, |?
=
५२६४१ |कारीतच्वप्रकादिका "|" ,| १०७ १६।५६| ... | असमाप्त | प्राचीनपत्राणि ।
६५५ [कादीस्थगौरसुखविवादाधि-.. “-* “^| ररर | १।७४| असमापतः | मन्थनम् पुस्तकपृष्टे विभिन्न-
कारिग्रश्नानां कम्पनीका- हस्तचित्रितम् ।
री पाटद्ाखास्थपण्डित-
्ातदत्तोत्तराणां च सग्रह
४५२१ कण्डमण्डपकौसुदी - ` विश्वनाथः रामदे-। ५६ | ७।३१ संपूणौ | प्राचीनपत्राणि |
वाजः रभुपुत्रः
४५१४ कुण्डमण्डपनिणयः , . , नीटकण्टभटः श-। १८ |१२।५१| १७५५ संपूर्णः ।
करात्मजः
४५५३ कण्डमण्डपलक्षणम् “^| -*" | २१ | ९।२२्| ... |असमाप् | प्राचीना क्पिः | जथ दा-
नघण्डाक्कण्डमण्डपानां लक्षणं प्राच्यत
इति ग्रन्थादौ पाठः|
१८२४ |संपूणी । मूटम्रन्धटीकयोः कर्तेकः ।
४५२३ कुण्डरलाकरटीका , , . विश्वनाथः श्रीपति-। ६५ | ५।४०
सूलः
४५१८ (कुण्डलक्ष्यविब्रतिः रामचन्द्रः नैमि-| ७० | ६।२८ संपूर्णौ | स्कृतकुण्डनिमौणश्छोकविदृतिरि-
पस्थः रघुदेवच. ति मन्थान्ते नामान्तरम् । मूढक्की-
तर्वेदिपुत्रः । ` कयोः कर्तैकः । विरचनकाकः संवत्
१५०६ | प्राचीनपत्राणि ।
कण्डार्कटीका कुण्डा्कमरी-भटृद करः नीट्क-| ११ |१९ ।४०|१८०५ | संपूणौ ।
चिमाखा ण्टपुत्रः | रघुवीर
दीक्षितः विद्रटपुत्रः
नीखकण्ठः। मट-| २९ ११।८५८
दाकर: नीटखक-
४४२४
संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
४००८ कुण्डोद योतविवृतिः कुण्डभा-
स्वपितृकृतकुण्डोदनोतस्य विवर्णं करोति
स्करः
ण्ठपुत्रः शकरभट इति मन्थे ट्टम् |
२६०५ | स एव ... तावेव ...| ३० |१५।५०| -.. संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
२६८४ कृलयकलट्पतरः लक्ष्मीधरः दृदुय-| ५२७ |4 ३।१८| ... |नियतकालकृत्यकाण्ड | संपूर्णः । नवीना
धरपुत्रः कारमीरिकी टिपिः |
२५६७ | सएव ... =-= “| सस्व २४२ | ९।४३। १८४६ व्यवहारकाण्डः | संपूर्णः ।
२६९४ कलयचिन्तामणिः .** “" दिवरामः श्रीवि-| १९१ |५१२।४६ संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी लिपिः | वि-
श्रामपुत्रः रचनकाटः संवत् १५६२ ।
२६९९ कृलचिन्तामणौ सुबोधिनी दिवरामः श्रीवि | ७४ |१२।४० ५.-८.पत्राणि विहयाय संपूणो । श्राढचि-
न्तामणौ समकतृविरचिता प्रयोगपद्धतिद्रे-
प्रयोगपद्धतिः श्रापपुत्रः
व्या ¡ नवीना कारमीरिकीः छ्पिः ।
[१६४५१६६४] धर्मराखम् । ८७.
न = = (नदश = णयः,
पत्राणि,| अक्ष.
राणि,
स्िपि-
१,
म्रन्धाङ्भः. म्रन्थनाम, कतृनाम,
६९५ [कृलमहाणवः .-- .- “वाचस्पतिमिश्रः | ११६ १९२९ | वधैकृयतरद्गः | संपूर्णः | महारानाधिरान-
ह रिनारायणो नियोक्ता |
४१२३ कृल्यरलावली "“* **" रामचन्द्र भटः वि-। १२७ | ७।४०।१९४० संपूणो |
। | हृलभघ्पुत्रः
४७७९क (कृष्णचतुदंशीव्रतोद्यापनम् |... .-- .--| < |१४।४०| ... | संपूर्णम् |
*४५९८ (कृष्णमटी --- „~ ..-ङ्ृष्णमटहः ...| २६९ |१०।२५| राके | १.२.पत्र विहाय संपूणौ |
` | १५११
४४०३ [करतुपद्धतिः ˆ“ “"" केदवदीक्षितः वि १८ |१०।४०| ... |अस्माप्रा | प्राचीनपत्राणि । यज्ञविधिरन-
- रदीक्षितपुतरः | यम्फवद्धीकर्पकतिकेत्यपि नामान्तरम् ।
२५४९ (क्षयमाससंसपका्याकार्यनि-परश्वरामदाखी | ११ |१०।३५ ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
णैयः
२५४४ क्षयमाससंसपमासकायाकापरशरामशाखी | ५१ | ९।३०| ... | संपूर्णम् । मन्यान्ते शोकोक्तः १७४४ शा-
यंनिणैयखण्डनम् कसं वत्सरो विरचनस्य ठेखठनस वा स-
मयं सूचयतीति संशयः ।
२४२४ क्षयमासादिनिगेयः ....~. ... ,..| ५ ।११।३५ ... |असमाप्रः |
८७५ क्षयाधिकमासविल्रतिः ---गणेश्ञदत्तः .-.| ७ | ९३४ ... |अप्तमाप्रा |
३४४६९ ्ेमप्रकादाः ... ..-क्षेमवमा ...| ३०९. |१५।४९| १५८२ | १९४.-२०४.पृत्राणि विहाय संपूर्णः ।
४५५४ |गङ्गाधरपद्धतिः ... ...गङ्ाधरः ...| १८ |११।३६| ... |९.-१०.पत्रे विहाय संपूणो । प्राचीनप्-
त्राणि | मन्थनाम संदिग्धम् |
४७८४कगणेकृष्णचतुर्थच्रितोद्याप- |... ..+ ,..| ६ |१४।४०| ,.. संपूर्णम् |
नम्
४४३७ |गन्धवैप्रयोगः ... „|... ... -..| पु | ९३३१८६० |संपूणैः |
९६८ [गायत्रीडापविमोचनम् ...... + ..-| ३ | ८।२६ ... | संपूर्णम् |
४६३८ |गुडादिदरधेनुदानविधिः |... ... ...| १० (१४३३ ... |संपूर्णः । जीर्णपत्राणि ।
६७६ गुणमञ्लरी ... -.. ... त्निपाठिवारकरष्णः| २२ | ९।४९। १९२९ [प्रायधित्तप्रकरणम् | संपूर्णम् | कतो ठु-
काशीरामपुत्रः रुपाच्वाठदश्ीयमहारद्गकुलोद्रवः ।
२४२३ गरुहस्थरलाकरः -.. -.-.|चण्डेश्वरः -..| १४ |११।४०| ... | खण्डितः | स्वयवरतरद्गान्तो टन्धुः |
२६०२ (गृद्यान्निसागरः -.* “नारायणम: ल-| २०३ | ९।३६| ... [संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
हे्मीधरपुत्रः
२५४८ [गोत्रप्रवरनिणैयः ... ... भटोजिभटः ...| < ।१०।३१| ... संपूर्णः | गोत्रपरवरभास्कर इयपि नामा-
न्तरम् ।
२४४९ [गोच्रग्रवरमङ्करी -** “~ एुरूपोत्तमपण्डितः| ११६ |१०।२६ रके | संपूण ।
१४५६
८८
न च न न मरन्थनाम,
धमराख्म् ।
पत्राणि, | अक्ष-
४६१९ गोत्रिरात्रचतोद्यापनविधिः ५
४६७८ छ यत "क शधन [६ २
५२५ |गोदानविधिः ... ...|... च
०४६३६ गोदानविधिः ... ..... ७
२६०१ गौतमीयधर्मशाखम् = ...|... १८
२६०० | तदेव ,.. „.. 1... २८
रण्४ | तदेव ... ... „..... ३०
२१२९क ग्रह णसरानप्रकारपणपुरुपल- |. . ८
क्षणादि
४८०८ [ग्रह यक्ञपद्धतिः ,,.. ,,.|.-.. २२
४६७७ घृतदानविधिः ... ,..|... ६
२०४४४ख।चक्छादिधारणनिर्णयः ...|... १
३७७१ |चतुरङ्गक़्ीडनं जयकौसुयाम् |. .. «४५|| भे
२६५० |चतुर्वर्गचिन्तामणिः ... देमाद्विः कामदे-| ४३७
वृतः
२५५९ श पित् सएव ७७
२५२६ | सएव ... तएव ,| २७४
२६४९ | स एव ... सएव ...| ५११
६९८ | सएव ... ... .. सएव ...| १८४
४६६५ |चतुवंग॑चिन्तामणो तीर्थखरा-देमाद्धिः कामदे-। ५१
नप्रयोगः वपुतः
४५८२ |चतुर्वगचिन्तामणो श्राद्ध-देमाद्विः कामदे-। १८
कट्प्ः वृत्;
२६०३ |चतुर्वर्गचिन्तामणौ श्राद्ध-हेमाद्रिः कामदे ९६
कट्पः तपतः
२६४१ |चतुर्विदातिमतधर्शाखम् |... .„. ३३
[१६६५-१६८५]
श्रेणयः. छिपि
कारः सथेदनमू.
राणि,
११।२५| १७८१ | संपूर्णः |
१३।२९| १७८० | संपूर्णः |
११।५० संपूर्णः | '
७।४० संपूर्णः | पूवे्रन्थाद्विभिन्नः । प्राचीनप-
त्राणि |
१०।३९ संपूर्णम् । जीर्णपत्राणि |
८।२३२ संपूर्णम् |
११।२३| १७०८ | २.४.३३.पत्राणि विहाय संपूर्णम् |
२८।२२ संपूर्णम् । म्न्थनाम न रष्टम् । नवीना
कारमीर्की लिपिः |
१०।३० असमप्रा | १.-७. पत्राणि विनष्टानि |
मन्नाम संदिग्धम् | प्राचीनपत्राणि |
८।१९ १८४४ |संपू्णैः |
११।२९ संपूर्णः । म्रन्थनाम संदिग्धम् |
९।२९ १८८३ | संपणम् | व्यासयुधिष्ठिरसंवादखूपम् ।
१३।३२| १६९९ |दानखण्डः | संपूर्णः | `
१०।३६ दानखण्डः | खण्डितः | प्राचीना लिपिः |
१२।५० परिरेषलण्डः | संपूर्णः | प्राचीना लिपिः |
१७६. १७५७.पृत्रे नष्टे |
१२।४८ परिशेषठण्डे श्राद्रकस्पः | २४.४८३.
पत्रे विहाय संपूर्णः । प्राचीनपच्राणि |
१५।५०| १९२९ | प्रायक्चित्तकाण्डम् | संपूर्णम् |
९।२६| १७८१ | संपूणैः |
१०।४३ असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि | श्रुतिस्पृति-
पुराणेभ्यो मया देमाद्विणोदधतम् श्रादक-
ल्पमिदं सम्यक्पितृणां तुषटिकारकमिति
मन्थारम्भे पाठः |
९।२३ संपूर्णः | पूवस्माद्विभिन्नः ] प्राचीनपत्राणि।
७।४४ संपूर्णम् |
[१६८९१७०४] धर्म॑शाखम् | ८९.
न न्न | = (= न । ग्रन्थनाम, कठनाम,
, |
२५९९ [चतुविरातिमतधर्मदाखम् - “= “| ५ | ८३६ ... |आरम्भमात्रम् } नवीना कारमीरिकी
छिपिः |
२४३५क[चतुर्विरातिव्याख्या ..-|भटोजिदीक्षितः | १५ ।११।४५। १७४० | आ्लौचप्रकरणम् । संपूर्णम् ।
| लक््षीधरसूः
४६६८ [चतुर्विरालेकादखीपजावि- |... ..~ ...| ७ | ९।२८|१७४९ | संपूर्णा । एकादशीपूनेयपि नामान्तरम् |
धिः
४७८५ख चन्द् नपष्टी्रतोद्यापनम्् ...|... ... ...| ४ |१४।४०| ... [संपूर्णम् | चन्द्रषष्ठीव्रतोद्यापनमित्पि ना-
| मान्तरम् |
४६९५ |चरखाचाग्रतिष्टा = .--|-~. ,.. ...| ३ (१३।२८| १७६७ |संपूणी । वौधायनायुक्ता |
१३ [चाणक्यनीतिः = ...|... ०० .-..| १२।१०।४१।१६८२ टघुचाणस्यं वृ दधचाणक्यं च | संपूर्णम् |
९९६ | रैव ... ... ...|.. ... ...| ७ | ७।३३ ... | वृद्धवाणक्यम् | संपूर्णम् |
४१५ |चाणक्यराजनीतिदातकस् २२। ७।३१| ... | संपूर्णम् । नीतिराखं प्रवक्ष्यामि चाणक्येन
तु माषितम् एटविन्ञानमात्रेण बुद्धि्विक-
सते दणामियादौ पाठः |
११०५ | तदेव ... ... ... „~ -..| १० | ५।२३| ... | संपूर्णम् |
१०७२ | तदेव ... „.. ...|... ... ,..| २५ | ७।१५| ... |असमाप्म् ।
४७८२घ[जन्माष्टमीतोद्यापनस् ...--. + -..| 4० [१४।४०| ... [संपूर्णम् ।
२६४८ |जयसिह कट्पद्धुमः : देवभद्य-| ६१८ |१२।५१| १९१९ | संपूर्णः । विरचनकाटः संवत् १७७० ।
४८०३ [जराशयोत्सर्गविधिः --- नारायणमटहः रा-| ८२ | ९।३८| १९४४ | संपूर्णः | नवीना कार्मीरसकी छिपिः |
मेश्वरपुत्रः
२६४० |जातिविवेकसंमहः २३ | ९।२८| ... | संपूर्णः । नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
४४३३ | स एव ... # १३ |१०।४०| ... |सपूर्णः |
. ४५८५ |जीवच्छराद्धप्रयोगः -*-नारायणमभहृः रा-| ७ | ८।२३/ .-- | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
| मेश्वरभच्सूठः
२४६४ |जीवपिपतृककतव्यसंस्तवः. .. रामङृष्णभटहः ना-| २९ |११।४०| १८३१ | सुपूर्णः |
` रायणभघ्सूः
२६१३ |जीवत्पिृकविभागः --"गोस्वामिमधुखृद-| ४४ |१६।४०|१९१५ | संपूर्णः । विरचनकाटः संवत् १९०१ |
नः ल्वपुरीयः नवीना कारमीरिकी चिपिः।
त्रनराजात्मजः
२४४ | ज्ञान भास्करः कक `क [शक ग =| क 118२ => असपू्णैः मध्यत्ुटितत्वान्ताभावात् | न्<
वीना कार्मीरिकी लिपिः | सूयौरुणसं-
वादः कमेविपाक इति नामान्तरम् ।
३
| : 1089 | & ६४२४ च०्द।५४१| 9 '" | :101 22.16 2०1५2०९६ ]| ६०५,
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[१५२२१७४०]
धममदाख्रम् । ९.१
२७४८ ज “*“ -*"का्ीनाथः जय १७ रा क किन ।
रामषएत
२६८३ प्रिस्थरीसेतुः --- .--नारायणभटः रा-। ६४ |१६।२९ सामान्यप्रवद्करम् | सपूर्णम् ] नवीना का-
मेश्चरपुत्र रमीरिकौ छिपिः |
२४७८ [दुत्तकमीमांसा ... ... नन्दपण्डितः राम- ४४ | ९।४० ३६.-४१.पत्राणि विहाय सपूणा |
| पण्डितपुत्ः
५२४६० दत्तपुत्रतत्वविवेकः ... भटवासुदेवः ---| ४३. |११।३६| ... |पूवपत्रद्रयहीनोऽसमाप्तः | प्राचीनपत्राणि |
२५४७ |दत्तपुत्रप्रकरणम् ... ...|... "~ "| १३|.९।४३ ... | सपूरणम् | तदाहात्रिरिति पाठ आदौ |
कस्य निवन्धस्य भागोऽयं मन्थ इतिन्
| ज्ञातम् |
२४९१ |दत्तसिद्धान्तमञ्ञरी ...|... चः +| व क ... |अपमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
४६५४ (द्शकर्मपद्धतिः ... *-* “““| ७९ | ८।३७|१७२६ संपूण | आचमनात्समावर्तकर्मपर्थन्ता |
०१०५ |दरानिणंयः ष - न ` ०० .*-.| १४६ ९। क असंपूर्ण आरम्भान्ताभवात् | नवीनप-
त्राणि |
१२११ |दराविप्रलक्षणस् ... ...... हः ज २ | ८।१५| ... | संपूर्णम् |
२९९७ |दानवाक्यावरी ..* ..|विद्यापतिरामा | ३६ |२०।६०|१८४७| २४.पत्रं विहाय संपूणा | मिथिलाधिपते-
देपनारायणस्य धीरमलयभिधया याद्या नि-
युक्तेन विद्यापतिरशर्मणा कृतैषा |
२५५३ |द्याभागटीका दायभागग्रवो-जीमूतवाहनः । | १३९ | १।३९| ... [संपूर्णा |
धिनी जयकृष्णतकौ-
रकारः
५५७६ |दाहादिकमेकतनिर्णयः ... सम्राट् स्थपतिम- | १२४ |१०।४३। १८१९ | असुपूर्गो मध्यत्रुटितत्वात् |
हायास्िकदेवः
१३०७ [दिनकरोद्ययोतः ... --.|दिनकरमटः रा-| ११ १२।३९ ... परिभाषाप्रकरणम् | संपूर्णम् । प्राचीन्-
मकृष्णात्मजः पत्राणि |
१९४० | त्व ..- -“ ..| सण `..-| १२१०।४१| ... [परिभाषाप्रकरणम् | संपूर्णम् | प्राचीन-
| पत्राणि |
४६६४ (दीपदानम् क ` | = ॐ ५५ ॐ (॥१/ छः सपूणंम् | प्राचीनपत्राणि |
४६२९ [दीपदानविधिः ... ... | " “| २ | ९३५ १८८५ सपूर्णः । दीपदानकार्किलयपि नामान्तरम् |
९३० |दीपमालादिकृलयम् | ००“ ...| १० ।१४।४६| ... अतम |
४७०४ दुगोत्सवप्रकरणम् .... ("| २० (३२।५१| ... |अर्ंपूरणमारम्भामावात् |
४६५६ (दूवा्टमीव्रतम् ... „1. .. „| ४ १०।३८। ... । सुपर्णम् |
९२ धममराखम् । [१७४१-१७६१]
01) सि सः "| सिपि.
म्रन्थादूः. म्रन्धनाम. कतनाम, पत्राणि, | अक्ष- संत्रेदनम्.
राणि, 4
९२२९ देवताखरापनम् ..- .-.|-- -- ०" १५ |१६।३७| १९०२ | अरपपूणंमारम्भाभावात् | मत्स्यपुराणान्त-
| गेतम् |
२६४२ देवरस्मरतिः “.-- ...|*.. ५ | ७।४६ पपूणो |
२५१० दिः म अ | ४ १०।४७ संपूणौ |
फणद्दः | सतं नु „न ०००५० ४ ११।३३| -.. | संपूणी |
*+२६७९ देदाव्यवस्था (2) “| १ ।१७।४५ १९०९ |संपूणौ | सप्तपच्वाशच्छरकनिवद्ध नानादे-
शसीमान्तवर्णनम् | मन्थनाम संदिग्धम् |
४५१९ द्ादशाहकमंविधिः ...|.- २२ | ७।२१। १७७८ | सपूणैः |
४७८० दादशीचतोयापनम् 0 ष ५१ ।१४।४० सपूर्णम् |
२६८६ दरेतनिर्णयः . . | वाचस्पतिधीरः ८२ |१३।२३० ५५१.-५५.पत्राणि विहाय सपूर्णः | न्-
वीना कारमीरिकी छिपिः |
२६९५ धर्मप्रव्रत्तिः ..|नारायणः ...| ९७ |१२।४८ अममाप्रा | नवीना कारमीरिकी खिपिः |
२६८० |धर्मप्रचरत्तिः .. (नारायणः ,..| १२३ ।११।५४ आरम्भमात्रा । प्राचीनपत्राणि । पूतेत्र-
न्थाद्विभिन्ना |
२९४९ धर्मदाखसंग्रहः ... ...|-.. १२ (१८।४८ असंपूर्ण आरम्मान्ताभावात् | मन्वादिस्मृ-
च्छ
.. दिवाकरभटः म-
तिपुराणवाक्यानां नानावणांचारसानादि-
विधिबोधकः श्रेकानां संम्रहोऽत्र श्रीम-
हाराजाधिराजरणवीरतिहेन कारितः ।
म्रन्थनाम न दृष्टम् |
२६८५ |धर्मदाखसुधानिधिः ७८ |१३।३१ प्राव्चित्तयुक्तावटी । संपूर्ण । नवीना
हादेवभद्पुत्रः कारमीरिकी छिपिः |
| ४४५८ [नवग्रहमखः .„. ..-|-“. ९ | ७।२८ अपसमाप्रः | प्राचीनपत्राणि | 6०}, फ,
| 1. 348.
| १०६३ (नवय्महयत्ञः =“. -..|-- ३. शाद २ संपू; |
| ९२० |नवग्रहयक्तपद्धतिः ...-* ४३ | ९।३४| ... |असमाप्रा । यर्वेदोक्ता ।
११९६ (नवम्रहसंक्षपटोमविधिः ...|* १६ १०।१७ ... [सपू्णः |
४६९३ नव्रहस्थापनविधिः ..-|--- ७ | ९।३४ संपृणेः |
४४२४ (नवान्नश्राद्धविधिः ,..-.. ५ |१०।४४। १७४३ संपूणैः |
*४३६९ [नारद्पञ्चरात्रम् .-. --.|--. ४० १६।५०| १९३५ पद्मपंरिता जीर्णेद्धारविपे्निययागविधिप-
यैन्ता | नवीना कारमीरसिकी लिपिः |
२५२७ [नारदस्यरतिः ... “|. ४० | ९।४२ १९१३ संपूणो |
रद | सैवं =, == ००० ४२ । ९।४० संपृणौ |
[१७९ २-१७८२]
= ~ [स्च न 7 |
भन्धनाम,
४६८४ नारायणबलिविधि
०४६३९ |नारिकेरपूजनम्
*२४९२ [निर्णयचिन्तामणिः
२४८५ [निर्णयविन्दुः
४६८७ | स एव ,...
२६०८ (निर्णयसिन्धुः
९१७ सएव ...
२६६६ | सएव...
२४७७ घ चन् =
२४९७ छ, चत् जू
२५६९ | सएव.
२६५९ |निणंयाग्धतम्
२५२४ | तदेव
२४२२ । तदेव
४०८४ (निणैयोद्धारः
२६७१ | स एव ...
४०३६ |नीतिकल्परुता सटीका
४०३५ | सैव
८१४च|नीतिरलम्
८१०छ|नीतिसारः
४५७७ [नीखोद्राह विधिः .
3.1
ˆ" कमखाकर महः रा-| ३५१ [२२।२५|१९१०
` जछछाडनाथसूरिः | १२९ |१७।३८
धमदराखम् । द.
श्रेणयः
कतनाम पत्राणि. | अक्ष र्पि- संवेदनम्
काठ
राणि,
कर व १० | ६।३८ सपणः | प्राचीनपत्राणि |
कतः त २. |११।२५ सपूणेम् | प्राचीनपत्राणि |
विप्णुशमां महा-| १४ |११।४९| ... | मर्मासनिणयः | सपू्णैः |
यास्तिकः
` |जनन्तदेवः महा-| ५२ | ९।३०|१६९२ संपूर्णः |
देवपुत्रः
सएव ...| १३ |१०।२४| १७४७ | संपूर्णः |
संपूणः | वरिरनकाठः संवत् १६६८ ।
मकृष्णपुत्रः नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
सएव ...| १२४ ११।४७ असमाप्रः |
तएव ...| ७९ १७३७ ... |असमाप्तः
तएव ...| १६७ |१२।३८| १८४२ | १.२.परिच्छेदौ | ९५. १३१.-१३३.
पत्राणि विहाय संपूर्णो | ,
त एव “| ३१८ | ९।३८| १८२६ |तृतीयपरिच्छेदः | असंपूर्ण मध्यत्ुटित-
त्वात् |
सएव २४ ।१०।४९ तृतीयपर्च्छिदः | आरम्भमात्रः |
संपूर्णम् । सयेसेनमहीमदन्द्रः कारयिता |
तिद्धटष्ष्मणपुत प्राचीनपच्राणि |
सएव ...| २०१ [२४।१७ संपूणम् | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
सएव ...| १८३ |१०।४६| १६३७ असंपूणंमारम्भमध्ययोष्षुटिवञात् |
. .. राघवः ..| ३३ | ६।२३ संपूणैः | नवीनपत्राणि |
| सएव ...| ६।११।२१ आरम्भमात्रेः |
साहिव्रामः दिद्टा-| १०९ [१४।३८ समाप्ता | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
रामपुत्रः कारमीरिकमहापण्डितेन संस्कृतपाटशा-
टापुख्याध्यापकपण्डितसाहित्रामेण श्री-
. राजाधिराजमहाराजरणवीरतिदाज्ञया क-
तयम् । मूटटीक्योः कर्तेकः |
सएव ...| २०९ |१४।३८ सपूणा | नवीना कारमीस्की लिपि
उत्तरभागांञ्य प्रतिमाति |
*"|वररुचिः ...| > ११।३३ सपूणम् |
-"घटकपेरः ...| १ |११।३३ संपूर्णः |
छ (प १४
१।२५। १७५२ संपूर्णः । नीटपद्तिरिति नामान्तरमन्ते ।
९. धमेद्ाखम् । [१७८३-१८०८]
न च्व | क वव न्न न्यना < भणयः. ल्िपि- |
्रन्थाङ्कः. म्न्थनाम, कनाम, त्राि,| अक्ष- |कालः संवेदनम्.
राणि, ।
|
४६०२ [नीखरोद्राह विधिः ... |... ... “| २५ | ज२१।१७७८ |संपू्णैः | पूरवस्माद्विभिनः |
२७०७ नृसिहप्रसादः ... ..-|दरुपतिराजः व~ ११००।१६।४९ ... |संस्कारसारः । असमापरः |
ह मघ्रूः
६९९ तएव... ... ..4ु| सएव ...| ७५ ।१५।५८| १९२९ | आदहिकसारः । संपूर्णः |
२७०४ सएव... =. =. स एवं ..+| ४५ ।१५।५० श्रद्धसारः । संपूर्णः |
७०२ सएव... सएव ...| ५० (१७५० क(टनिर्णयसारः । असमाप्त |
७०६ स एवं + सए ...| ६९१ ९।४५ ... | व्यवहारसारः । संपूर्णः |
२७७ सण... सएव ...| ९६ मं ... | व्यवहारसारः। संपूर्णः |
२६९१ सएव... तएव ...| ५४ १७५५] ... | प्रायधित्तसारः | सपणः |
२६९२ | मणएव... सएव ...| ४८ कि १९२९ |कर्मविपाकसारः । संपूर्णः |
२६९३. | स एव ... सए ...| ६६ १७।५१| ... [व्रतसारः | असमाप्रः|
७०० | सए... सएव ...| १०९ (१५।५०| दानसारः । संपूर्णः |
७०१ सएव... सएव =." ~ १५।४८ शान्तिसारः | संपूर्णः |
२७०८ | स एव ... सएव ...| २४ |१६।४१ तीथसारः । संपूर्णः |
† ७०२ | स एव ... सएव ...| ५र १५।५८| , .. | प्रतिशसारः | संपूणैः ।
२७०५ | स एव ... तएव ...| ५८ |१६।५२ प्रतिष्ठासारः । संपूणैः |
४५८८ (पञ्चकविधानम् ..~ .-.|*- ९ | ६।२५| ... | संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
४७८३ ङ पञ्चमीच्तोद्यापनम् ~..." ५ १४।४० संपूर्णम् |
४४८९ |पञ्चवक्रपूजा = .-- ---** == क्नु 8 [ शन संपूणा | महारुद्रपूजेति नामान्तरम् ।
४७१५ परमहं ससंन्यासविधिः ...|-.. ... ...| १३ ।१२।२८| १७६८ [संपूर्णः |
४७१२ |परमहंससन्यासविधिः ` ---|-* ... ...| ९।१०।३६१७४द् | संपूर्णः । पूरैम्रन्थाद्धिभिन्नः |
४३९९ [पराद्ारपद्धतौ जातिमाला |... .-- “| २| ८।५३। ... |संपूणा । प्राचीनपत्राणि |
२६७२ |परादारस््रतिः --- |. ... ...| १२३ १२।३२ १९१३ संपूण । नवीना काश्मीरिकी लिपिः |
वहृत्पाराशररमशाघ्लमिति पाठोऽध्या-
यान्तेषु |
२५२५ | तैव ... ~ ..-| सएव ...| ७५ |१५ाष्ड् असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
२६४५ |पराडररुटतिः सटीका ... ~ ,..| २५ |१२।४२ ५.-९.पत्राणि विहाय संपणां | रीकाक-
| तनाम न ठब्धम् |
२५१८ पराशरस्तिव्यास्या माधः-|माधवः मायणतुतः| १४१ १३।७२् -.. | १.३. अध्यायपयेन्ता | असंपृणां मध्य-
तुटितत्वात् ।
४.-१२. अध्यायाः । संपूणीः ।
वीया
२४१९ | रैव ,.. ,... ..| सएव ...
२४८ |१७।४०| १८६१
[१८०९१८२८] धर्मडास्रम् ९५
न न | व्क ा
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कतृनाम, पत्राणि. | अक्ष म सत्रेद नम्.
राणि, "
|
२४२३४ (परादारस्मतिव्यास्या माध-माधवः मायणसुतः। ३१ | ९।६५| ... |असंपू्णी । प्राचीनपत्राणि । तद्रैवमस्मि-
वीया नप्रकरणे संवत्सरायनतैमासपक्षा नि-
णीता इयन्ते पाठः |
२४२९ | सैव ,.. ... ..| सए ...| ३२| ०३६ ... |असंपूणोरम्भान्तयोष्युयिवश्ञात् | अथ गर
| हस्थाश्रमं निरूपयितुं तद धिकारदेवला-
। नमादौ निषूप्यते इध्यादौ पाटः ।
५२४५४ (पराशरस्मरतिव्याव्यानं माध-~रामङृष्णदीक्षितः| १७४ १०।३२| .-- [संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
वीसारोद्धारः नारायणभष्रएतः |
| | ४४६१ पथुप्रयोगः ... ..-कमखाकरभटटः £& १ २।४ ... | असंपूर्णो मध्यत्रुटितत्वात् ] प्राचीनपत्राणि |
| ११९४ पा्थविङ्गपूजनविधिः “^|. ८ | ८।१०| ... सपणः |
९७३ | स एव ओ (० ७ ज इ 898 == [णाः |
११९५ सएव । ४ ।१२।३२| ... | संपूणैः |
| ११३२ (पाथिवखिङ्गपूजाविधिः ..-|-*- ९ ११।३५ ... | संपूर्णः । पूरव्रन्धेभ्थो विभिन्नः |
| ४७१८ पार्थवलिङ्गपूजाविधिः २ | ८।४६| १७४४ संपूणैः | पूवस्माद्विभिन्ः
। ४६०७ पावेणच्रयश्राद्धविधिः ...|*. .,. ...| १७ | ५1२५ १८०६ संपर्णः | |
| ४५९७ |पावेणश्राद्धविधिः ..-.*- ... ...| १० | <८।२८।१८२० | संपूर्णः |
| ६९६ |पितृभक्तितरङ्गिणी ...|वाचस्पमिश्चः .-.| ४५ (११।५४ १९२९ |संपूणी । श्राद्धकल्प इति नामान्तरम् ।
| ३९९२ | सैव ..; ,.; | सएव ...| ४१ ३।५१| ... | संपूर्णौ | नवीना कामीरिकी टिपिः |
| ६८३ (पुसृक्तविधिः “~ --|*** ~" "| १२ |१३।३४| -.. संपूण: | प्राचीनपत्राणि |
| २५२६ ुत्रपरियहविधिसंशयोद्धे- -- -* “ˆ| २| ९।४२| ..* संपूर्णः |
| द्परिच्छेदः
२४३१ (पुरुषार्थचिन्तामणिः .--विष्णुभटः रामकृ-| ४२८ | ९।४७| ..- | काटलण्डः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
ष्णपुत्रः
४७४३ (पूजारहस्यं सव्याख्यानम् |... .-. ...| ४५ |१२।८८| ... [संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
श्रीराजापिसाजमहासाजरणवीरसिह् कारि-
तमिदम् |
२६१५ पूर्तम् .-- -- .--कमलाकरभटः रा-| ११७ १४।३३| ... | असमाप्तम् । नवीना कारमीस्की लिपिः |
मकृष्णात्मजः ॥
“ २६२१ प्रक्रतिविकृतियागकाटवि- [गङ्गाधरः रामच- | ११५ | ७।३३ १८६६ संपूर्णः |
वेकः नद्रसूतः
४७१३ (प्रतापनारसिंहः ... ..रद्रदेवः तोरोना-| ३८ (१०।४५ १८३५ | संपूर्णः । विरचनकाटः शक्रे १६३२ ।
| रायणपुत्रः | संस्कारथकाश्च इयपि नामान्तरम् |
---- प्फ ~
२४२८
०८२
¶०९,०
४५१६
२४.१९
४६८
% ७९.८
२६०४
६९७
५२५४२
७१७
६९३
२५९६
६९१५
६९२
>६५९
>>२४८०
२४६१
५०७२ बउधरस्टतिः
४७८६ग बुधाष्टमीव्रतोद्यापनम
न न । ` "1 न्थाद्कुः.
[१८२९५-१८४८)
धर्मरास्म् ।
संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि । प्रतापरुद्रगन
प्रतापमातीण्डः , ।रामङृष्णः माधव| २१७ १०।५०
पुत्रः परतिराजाज्ञया कृतोऽयं मन्थः ।
सत एव ,..| ` सएव ४२ | ७ ररे अपतमाप्तः | नवीनपत्राणि |
प्रयोगचन्द्रिका , . | [श्रीनिवासद्ि- | ४८ ७।२३ अस्मप्रा | नवीनपत्राणि | कतृनाम नाः
प्यः वगतम् |
प्रयोगपद्धतिः ,, .गङ्गाधरभटहः --*| ५० 1 २।४१। १६५८ | १.पृत्र विहाय संपूण |
प्रयोरारलम् ,.(नारायणमटहः रा-| १९९ | ५।*० संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि ।
मश्वरभध्ू
तदेव | क्च एव | १८९ |१०।२७| . लण्डितम् | प्राचीनपत्राणि ।
प्रयोगरतम् ` |कादगीदीक्षितः स-| ८० | ५। ४५| १९४४ अर्यीविवाहविधिपयन्तम् | संपूर्णम् | नवीना
दाह्िवदीक्षितपुत्रः कार्मीरिकी लिपिः ।
प्रायश्ित्तकदम्बनिणयः | गोपारन्यायपच्चा] ४५ ९।३६ संपूर्णः । प्ाचीनुपत्राणि |
ननः
प्रायश्चित्तकुतूह कम् , रघुनाथः ८५८ |११।४८| दके संपूर्णम् ।
१७२९
प्रायश्चित्तप्रकरणम् “| इ २७ |१०।३६ संपूर्णम् |
प्रायशचित्तप्रदीपिका ,. वरदाधीद्ायज्वा | १०९ ९।२९ अपस्माप्रा |
प्रायधित्तमज्जरी -“* ˆ" "|बापूमटः महादि-| ७१ | ९।४५७ संपूर्णा | विस्वनकाटः रके १७३६ ।
वात्मजः |
प्रायधित्तविधिः ˆ“ ˆ" ८ |१६।१३ असमाप्त । मन्थनाम साशङ्क | न॒वीर्ना
कारमीरिकी रिपिः ।
प्रायशचित्तविवेकः ˆ“ `“ श्पूरुपाणि १८२ | ९।44 असमाप्त: ।
परायश्चित्तशातद्वयीव्याख्यानं भास्करः ४१ |१३।५५ संपूणा । व्याख्यानकती न ज्ञातः ।
प्रायध्ित्तप्रदीपिका
प्रायधित्तरतद्वयीव्याल्या- वेङ््टेावाजपेयः ९० | ६।३८| १६४१५ संपूर्णम् ।
नम् याजी
प्रायश्चित्तोद्धारः „, दिवाकरः महादे- ३६ | ९। २५। १८४२ निलयनैमित्तिकपरायधित्तकारिकाः । सं-
वपुत्रः पूणोः ।
सएव .. सएव ३४ | ९।३९| १८३२ निर्न मित्तिकप्रायश्चित्तकारिकाः | सं
पूणोः ।
ह 1 ३ | ७।२८| १९४० संपूण ।
५ |१४।४० संपूर्णम् ।
[१८४९१८७४ ध्मेदरास्रम्। ९७
ङः 7 १ भेणयः,| लिपि र
मरन्थाट्ूः. प्रन्थनास, कतृनाम, पत्राणि, | अक्ष. । सवंदनम्.
राणि, त
४५११५ ब्रह स्पतिदान्तिः न -न्नी ७ | ८ २६ १८०४ संपूणी |
२५६१ ब्रहस्पतिस्मरतिः .. ...*.. त ५ | ९।३२| १८८७ | संपूणा |
२५०७ | सैव सएव | ९।४८ संपूणी |
२५१५ | सैव सएव ३ |११।३९ संपूणा |
४०८९ | सैव सएव ८ | ७।२५| ... | संपूण । नवीनपत्राणि ।
२५८७ सैव सएव ४ |११। २२ ... संपूण | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
११६६ व्रह्मयत्तविधानस् ... -..|-.. £ | ९।२१ संपूर्णम् | म्रन्थनाम न लव्यम् | नवीन-
पत्राणि |
२६६५५ (ब्राह्यणसवंस्वम् --“ हरायुधः .| ११८ १६।३८ संपूर्णम् |
२६६३ |भगवन्तभास्करः --“ नीरकण्ठभटः शः &२ ११।४४ आचारमयूलः । संपूण: । प्राचीनपत्राणि |
कृ रभद्रत्पजः
२५८९ | सएव ... सएव ४६ (१६।४० आचारमयूः । संपूर्णः । नवीना कार्मी-
रकी लिपिः |
४७३१ | त ए ... तए .| १५६ | ९।२८ समयमयृलः । संपू्णैः । प्राचीनपत्राणि |
४००९ | सएव... सएव .| ११२ १२।३० समयमयूदः । संपूणैः । प्राचीनपत्राणि |
४९६ | सए... सएव ५८ |१२।४८ नीतिमयृलः । संपूणणैः |
२६६० | सएव ... सएव ७ १६।४० नीतिमयूखः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
४७३४ | सएव ... सएव „| २० ११।५२ ... |नीतिमयृः । असमाप्त |
9०9 | श एत र सएव .--| १०६ १०।४३ ... | व्यवहारमयूलः । संपूणैः | प्राचीनपत्राणि ।
२६६२ | सएव... सएव „| १४६ ।१३।३८ दानमयृः । असंपूर्णो मध्यत्रटितत्वात् ।
प्राचीनपच्राणि |
०७२३ | सएव ... सएव . | ११३ १०।५० दानमयूखः । असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
४७३५ | त एव ... सएव ३३ | ९।२९ उत्सर्गमयृखः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
४७२५ | स एव ... सएव १८ |१३।४२ उत्तगेमयूखः । संपूर्णः ।
४७२६ | सएव ... सएव ३९ | ८।२९ १८२४ |उत्सगेमयृषः । संपूर्णः ।
२६६१ | स एव् ... सएव १० ३५।६७] .-. |प्रतिष्ठामयूलः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
२६१० तएव... सएव ४१ (१२।३५। ... | प्रतिष्ठामय: । संपूणैः । नवीना कारमी-
रकी लिपिः |
२६५८ | म एव ... सएव ...| १०६ |१५।३४ प्रायधित्तमगृः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
२५९० | स एव ... सएव .| १३९ (११।३७ ... | प्रायधित्तमयूः । संपूर्णः | नवीना का-
" रमीरिकी टिपिः |
४७२८ सए... सएव २३ ।५२।४४ गदि मयृः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
॥ #।
९.८ धमेरासख्म् । [१८७५१८९५
न ~ ~ध ~ _
त्रणयः.
कतैनाम, [पृत्राणि.| अन्ष- क संवेदनम्.
रागि. | “"
प्रन्थननमि.
| श्न |
___ ----------
शान्तिमयूखः । संपूर्णः | नवीना कारमी-
४७१९ |भगवन्तभास्करः -.. .-- नीटकण्ठभट्टः श ७३ |१४।४४
| करभद्त्मनः रिकी लिपिः |
०७२७ सनु === = जनम छि छु ज २९ (१३।५३ १८१७ शान्तिमयूतः | असमप्ः | ३. पत्र नष्टम् |
४४१६ | सएव... सएव ...| ५| ८२३ -.. [अर्ैविवाहः शान्तिमूते | संपूर्णः । प्रा-
चीनपत्राणि |
४५९२ ।भर्वसह गमनविधिः ˆ“ | | ६| नर ... |संपू्णः | प्रा्रीना ठिपिः |
२२९ [भर्टहरिशतकम् ..- ---मवैहरिः --| १३| ८।दद् "^ संपूर्णम् |
५२१२१क मटान्नायादिविचारः -- (शंकराचा्यः.--| १ (१५।७० संपूर्णः | नानासंन्यासिमठनामाचासदि-.
| वणेनम् | गयूपम् । सप्रमठानायिक-
| मित्यभिधो म्रन्थोऽधो द्रष्टव्यः |
९२३ [मण्डपकरणम् .-- --"** ५ |१०।३९ असंपूणैमारम्भामावात् ।
४६६२ [मण्डपारोपणविधिः "ˆ|. ,., ...| २ | ९३४|१८३.१ |संपू्णः।
२५२३ मदनपारिजातः .- “-" विश्ेश्वरभट्टः पे २६३ [२४।१८| .. | संपू्णैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
धिभ्रसूः
२५९२२ | पणएव ... =. ~| सषए्व | २४८ ।१५।३८| -.. | संपू्णैः । नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
२६५४ | स एव ... सएव ...| २९४ (१४।३६ --. संपूर्णः | नवीना कारमीरिका छिपिः।
२४३७ [मदनरलप्रदीपः -* “` राजमदनसिहः | २४० |१०।४७| .*- व्यवहारविवेकोदयोतः । असमापः | प्रा-
शक्तिरिहालसजः | चीनपृत्राणि |
५२४४८ मध्ववाक्यार्थविवृतिः .--|आयौनृहरिः “| २७ ११।३२ दके | संपू्णी । कतुनौनि संशयः । मूलम्रन्थ-
१७५९ | नाम न दृष्टम् ।
४ भूजे° मनुस्तिः ककः कका 9१४ == ००.| १०७ ।१८।२३ संपूणो भूजेपत्रषु रारदाटिपिः |
२५६४ [मनुरुषतिटीका मनु भ्यम् मेधातिथिः ...| ४३ |११।४७ ८.अध्यायः | असंपूर्णो मध्यनरुटिवज्ञात् ।
जीर्णपत्राणि |
२५७८ |मनुर्छतिव्रत्तिः मन्वर्थसु- कलुकमटः दिवा-| १४४ १७।४० संपूण |
क्तावरी करपुत्रः
दज | दैवं ,., === =-= पणव =| ५७ [११५५ असमाप्ता । प्राचीनपच्राणि | ४७.पत्र वि
नष्टम् |
दष्ट | कितु == === =| क्वं =| 9 [१०/४० आरम्भपात्रा |
*२५४० |मनुर्रतिटीका सुखवोधिनी दीक्षितमणिरामः| १३२ भा लण्डिता | प्राचीनपत्राणि |
गद्गारमपुत्रः
८७२ मर्मासनिणयः .-~ ° |** ६ |१४।१ ७ संपूर्णः । नवीनपत्राणि ।
४ ।११।४० असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
२४४० मर्मासनिणयः ˆ" "1"
` |१८९६-१९१७]
धर्मराखम्। ` ` ४.3
न्था । श्रेणयः टि पि
न्थः, ` म्न्थनाम, कर्तर॑नाम, |परत्राणि, | अक्ष- | ` ` ट
` -11----- न | _ _
| |
२४२६ [मटमासनिणेयः ... ...... कड 3. ४ |११।३६| ... असमाप्रः | ग्रन्थनाम साशङ्कम् |
२४७९ |मर्मासनिर्णयः ... „|... ११ | ५।द२्| -“* [असंपूर्ण आरम्भान्तयोलघुटितत्वात् | म-
न्थनामाडमितम् |
२५५८ [मलमासनिर्णयः ,.. | ७५ =| व (१ ह | असमाप्रः | मन्थनाननि संशयः |
२४२२ [मर्मासरहस्यम् -.- .-- ब्रहस्पतिपण्डितः| २९ | ९।४६। १८८० | संपूर्णम् | विरचनकाटः शके १ ६०३ ।
| भवदृवपुत्रः
| ४६२५ |महागणपतिपूजापद्धतिः ..|-** ,.+ ...| ३५ | ७।३५ १८५५ संपूणौ |
| ‰ ६७१९ महारुद्रकमेकखापपद्धति श्मः ऊज ००.| १६ ।१४।३०। १७०१ । संपूणो |
| ४४८७ भेन == ०७ >>| शद | ४२७ | ~~ ६. २.पत्रे विहाय संपूर्णा | प्राचीनपत्राणि |
| ९२७ महारुद्र यत्तपद्धतिः ००००० === =| रे ११ | १८९७ | असंपूणारम्भाभावात् |
४६४७ |महालक्ष्मीवाद्यपूजनपद्धतिः|... ... .„..| ७ ९।२.१ | १९०० संपूण
| । ४६३० |महालक्ष्मी्रतोद्यापनविधिः... ... 3 ३ |१ ०/९ १७७६ संपूण |
२६१९ [सुक्तिक्षेत्रप्रकाशः ... ...|मास्करभटः आ- ३८ |१०।३६| ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
याजिभट्पुत्रः
| २४८४ |मूटशान्तिनिणेयः दृत्तकपु-... ... ,..| २१० ।२७ कस्य मन्थस्य मागोभ्यमिलस्पष्टम् । पत्र
| चपरिग्रह विधिश्च (१) द्यं १४१. १४२. संस्याङ्ितम् । प्राची-
| नपत्राणि | ।
४४७४ |षल्युजयजपविधिः ...|... == ४० ॐ, | दप संपूण: | प्राचीनपत्राणि |
| ९५२ त्युंजयजपविधिः ...... = अक 1 शष संपूणैः | पूतरस्माद्विभिन्ः |
| ११२८ |यज्ञोपवीतधारणमच्राविधिः |--- -.- ...| २|९।२्८ संपूर्णः |
| ; १०७० |यततिधमससुचयः --- ...चिश्चेश्वरसरस्वती | १२५ | ९।३२ संपूर्णः । परमरहसपरिवाजकधर्मसंमरह् इति
| । ४ नामान्तरमस्य रम्यते | प्राचीनपत्राणि |
४७०५ |यतिसंस्कारविधिः ...... +“ -..| २७ | <।२५ संपूर्णः । रेकराचायैकर्वतवे टेकाम्नति
संशयः | प्राचीना लिपिः |
४७१७ |यतिसंस्कारविधिः ...|... ४ ११।३.१| १७९७ | असमाप्रः | पूैमन्थाद्िमिन्नः |
२५१६ [यसस्मरतिः व रक „५ दै (११५ संदलौ |
२.१७ |याक्षवटक्यधमेशाखव्याख्या [शूलपाणिः ...| १२९ | ८।५४ संपूणां । ६६.पत्रं नष् |
दौीपकलिका |
२५४२१ |यात्ञवस्क्यधमशाखनिवन्धः अपरादित्यः ...| ४२४ |२४।१७ १ पत्र विहाय संपूर्णः | नवीना कारमी-
रकी लिपिः |
२६५२ । सएव... ... „4 सएव ...| ५८७ (१३।२६ ,.. |असंपूरणो मध्यनरुणिवशात् | नीर्णपत्राणि |
, १०० धमेरासम् । [१९१८-१९३६]
|
श्रेणयः.
ग्रन्थाङ्कः म्रन्थनाम कनाम. |पत्राणि,| अक्ष १५ संवेदनम्
राणि, | +र. |
२५२२ भनि करक वित्तानेश्वरभटा- | ४३५ |२४।१७ १९०९ संपूण । नवीना काहमीरिकी लिपिः |
मिताक्षरा रकः पद्मनमिपुत्र
२५८३ | सेव् ... .~ .-.| सएव ...| ३१४ (१२३६ ... |६०.२२८.२७.पत्राणि विहाय संपूर्णौ |
| नवीना कार्मीरिकौ छ्िषिः |
९१४ व्रः = अक सी च एव ...| १६२ |१०।४०। १७४४ | >२.अध्यावः । संपूणैः |
२६६४ | सेव]... „~ -..| स्तए्व॒ ...| १०९ |१४।४८| १८६३| २.अध्यायः । संपूर्णः ।
१४ | तैव स जक नन णवं | २8 (११।४३ २. अध्यायः | आरम्भपात्रः |
२५५५ सैव... ... ..| तएव ...| १७५ १२४४ १६२०|३.अध्यायः । २.पत्रं विहाय संपूर्णः |
४४४. । चिवः जन = => प एव् =| 94 | 4 ४५ ... | ३.अध्यायः | असमाप्त: | प्रचीनपत्राणि |
२५६५ | तैव ... ... ..| मए ...| १०२।११।४६ ... |३.अध्यावः | अप्तमाप्रः | प्राचीनपच्राणि |
दरश | रवं ज जन > सं एवं = ४ ५ ०।४८| ... | प्रायधित्तप्रकरणम् | असंपूणमारम्माभा-
वात् | प्राचीनपत्राणि |
५२६८७ |यात्तवस्क्यधर्मराखविवृ ति- विज्ञानेश्वरभदार-| ६२. ११।६४| ... | आचारकाण्डविव्रयारम्मो ऽतर भ्यते |
मिताक्षराविघ्रतिः कः। पायगुण्डो-
पाख्यवेद्यनाथ-
पली लक्ष्मीदेवी
२४९० |याक्तवल्क्यधर्मशाखव्यास्या-मित्रमिश्रः ...| १०० | ९।५०| १८८२ २.अध्यायः | संपूर्णः | वीरसिहनरेन्द्र-
न वीरभित्रोदयः कारितः ।
९२१ योगिनीपूजाविधिः वि [ ०० ००. २० | €|३०| १८४७ संपूण
| ४७३६ (रजोदरोनशान्तिः ~~“ .. ...| २८ | ९।३६| ... |संपृणां |
२६४७ रणवीररलाकरः ... रावद्यकरः “| ७२६ |१२।३६ ... संपूर्णः | नवीना कार्मीरिकी च्िपिः|
विरचनक्राटः सवत् १९.२० | श्रीमहा-
राजराजापिराजरणवीरतिहशयेण कारि-
तोऽयम् |
। २६७३ रलाकरः प्रायधित्तरनम् | संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
, . रामप्रसादमिश्रः | ५० म +
४२७१ राजधमैक्ौस्ठभः .,. अनन्तदेवः आप-। २७ |१६।४४ | ए-दोषितिः । संपूणां | नवीना कासमी-
देवपुत्रः | रकी
४१२१ | सएव ,.. | तए ...| १२२ | ६।२३७।१९४१ | अभिषरकदीधितिः | संपूण |
४७२१ राज्याभिपेकपद्धतिः ...|... ,.. ,..| ९६ (१२।४६ विष्णुधमेत्तिरक्ता | संपूणा | नवीना का-
रमीरिकी दपि: |
9७9. | शवं न्न ०००५० ५५ ० ब
१०।४ | ... | विष्णुधर्मेत्तियेक्ता । संपूण | नवीना का-
| | स्मीरिकी लिपिः ।
{44
॥२)4
॥
4
नि.
£
=" च+च।
ट ।
[१९३७-१ ९५६] धमेशाखम् । १०१
त व्व | च (द न्त
मन्धाङ्भः. मन्नाम, कतौनाम. |पृत्राणि.| अक्ष 4 संवेदनम्
राणि, कटः,
४७३३ (राज्याभिपेकप्रयोगः --.|सम्रादरस्थपतिरघु- १५ ११।४०| रके | संपूर्णः |
नाथः माधवभ- १६९१
धत्पजः
४०८६ (रामनिवन्धः ,.. ..क्षेमरामः भवम-| १५० | ७।२६ संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
ण्डनपुत्रः
४७४८ रामपूजापद्धतिः ... ..|रामोपाध्यायः ९४ |१२।४२ संपूणा | नवीना कारमीरिकी छ्िपिः | वि.
| रचन काठः संवत् १६२९१ ।
४६४२ (रारिजन्मनक्चत्रमरहणदा- ६ | ९।२०।१८४६ |संपूणी | मदनसत्रान्तर्मता प्रतिभाति ।
न्ति
४४४९ |सुद्रकल्पद्ुमे सवप्रायश्ित्त-... ९ | ९।३८|१८१९।२. पत्र विहाय संपरणैः |
प्रयोगः
४७११ रर्द्रसानपद्धतिः .. रामकृष्णः भटना-| ७ १०।३० संपूणां | प्राचीनपत्राणि |
रायणात्मजः
४४९३ |सद्रानुष्टानपद्धतिः... नारायणभटः रा- ७१ | ७।३४ संपूणा | सद्रपद्रतिरिति नामान्तरम् ।
मश्वस्मघ्यत्मजः
४६४८ लक्चषवर्सिदीपप्रयोगः ...|... २ (१०।३०| १८५० | संपू्णैः |
४५३९ |रक्षटोमपद्धतिः ... ...- १२ |१५।३४ संपूणां | प्राचीनपत्राणि |
४८०४ |खक्षहोमपद्धतिः .. काशीदीक्षितः स-| ३६ | ८।३७ संपूणा | नवीना कारमीरिकी रिपिः । पू
दाशिवदीक्षितपुत्रः वैम्रन्थाद्धिनना |
४६४४ |वरुणश्राद्धम् ... .-.|-. ९ | ९।२६| ... | संपूणम् |
४६५८ख बणकाचारः कके शकम [४०४ १ ।१०।४०| 4१७८८ सपणः
२५०३ नतिशस्यतिः क ‰ ३४७४ १९ |१०।५१ संपूणो |
०६.५७ |वाग्दानभ्रयोगः = ~". १ (१७।४० १७८८ | सुपूर्णैः |
९१० वापीकूपतडागादिप्रतिष्टा- 8 | ४ (१२।५९ सपणः । प्राचीनपत्राणि |
| विधि | |
*+२०३८ वार्तिकसार यतीशः टेकचन्द्र- २१ ।२५।९९ संपू्णैः | विरचनक्राटः संवत् ६८४६१ |
सूलः विजयपाट सज्ये विरवितमेतत् |
९२६ वासिष्टीचान्तिः ..- ..... ५९ ११।४२ असंपूणो पध्यन्रटिवश्ात् |
४४८३ वास्तुपृजनपद्धति ११ | ९।३१|१७६० |संपूणौ |
४४७३ | तुरान्तिप्रयोगः “|... „+ | २ ११।३७। १७२५ सुपूर्णैः |
४४४० | स एव म अ; ४ (१०।२३। १७२८ | संपूणैः |
२६
इ धर्मदाखम् | |
१० ॥ [३ ९५५७-१ ९७६]
- ` ` पु क्के
| | | अ ज
| | | भेष | पि |
भन्धाद्भुः. प्रन्धनाप, | चनप पुति, | अ । +: । त्देदनम्
| | 1 ५५ त ति
| एम्, ; |
मयौ ।---1-~- ए मी
२६९६ |विधानपाषरिर्ः "` " जनन्तमट्रः नागः ७२ [षछ१्| १९२० | ९. । सेपूर्णः } नवीना कषम
देवम्पुचः , | | रिकः ।
२६९७ त ष्व... -.. =| पण ...| ७६ (प् ८० २-स्तवकः ५ २९... पत्रे विहामर क
| | | प्रधः } नवीनः ज्ा्मीरिकी छिदिः '
६८ |१२५०९ १९३.०।२३.स्तयश़्ः ! सपणः १ नदः रुकूमीरि-
| | क लिपिः
६९८ तएव ..
|
|
६०१ प चत् अः कक कंक | स ए ५५ | ९३८ | जीयच्छटप्रयामीविधिः ! सपणः । प्रतः -
|
।
४, | । | पत्राणि |
४१०८ |चश्वानमग्ल्य छ सिहषहः ९५ । र ९४8 सप 4
। शालाभिपाया | । }। 1
५६६३ चिनायकलान्तिः .-- ... | (द = ..| १९ १११६७ ... संपूणो | प्राचैनषत्रभि } पद्ध द्वि
८४५९ चिनायकुछग्न्तः .-- -.- | व क्क "~ 9६, १६६५ सपूणा 1 पूवग्रन्थाद्विभिन्ना 1
४४६३ [चिनायकूखान्त्सिः --- “~ | -+ ~ ~| ५ | वव्र, ... | सपय 1 पानप्यप्तन क्म्य हिभिना।
|
२५७२ |विवादचन्दरः “- ---ख्खिमदेचशे च | १२५ | ण्य, ... |६४.६५.पद्रे विहाय संपूण. `
नद्रसिदहृदपतिदयि
ता मिसमहमिश्च-
हप्र
व = पा का क 1
त
|
|
४९२७ िनायक्खान्किः आा्ामन- ह्व | ९२ [ल ४१ रं ६
|
1
1
|
|
|
२५५२ [किवादच्विन्तपणिः शरीपततिवसचसपततिः १३२ | ८१२८, --- | संप्रणेः {
२४८९ (विवाद्तरण्ठका् - चसलकरम | १७५ | वष ... [बसू मच्यनूरि्ात् ।
| । रामकृष्णपुत्रः ' | ।
२५.९४ [विचदरताकर ६ ॐ चण्डश्वररच्करः की । २६७ | ८४८ | १७.२९८.पन विद्म संसं; :
। | रेश्रशु ॥ 4 । |
२५९१ !चिवादार्णवसेतुः .-. ... |... | ददर । < ,.. ।
६५३ ध 4 मः | न | २९२ | + असपाप्रः ॥ दत््दुग्णेत्रभज्ञतस्निति सासः
| | | । प्रन्धाग्स्मे दष,
२०७२ ।विश्वदस्लैः ""“ =" "कपिकान्तसरस्य-। ५९ । ईट १६४ | १.२. रिहाय सपणः \
| ती आद्विलाचा | | |
११७२ |[चिश्वामिन्नकल्पे क] ।. ५२ शहर ,.. | संप्णष् † कीनि, |
ध्याचिघद्न | ॥ { 1
[१९७४१९९०] धर्मदाखम्। ९०३
~ ~ [~ (-स् ~
वौ तरणय. रिषि |
ग्रन्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कतनाम, पत्राणि, अक्ष. रे संवेदनम्.
राणि, =
६
४७५२ |विश्वामिच्रकल्पे निलयनैमि-... „.. ...| १०४ ७।३८| ... संपूर्णम् |
| तिकादिगायत्रीपुरश्चरण- | |
विधानम्
९.५ ५०३९ |विष्णुपूजनम् ..~ ..... ““ “| ४१ | ८१७ ... |असंपूणे मध्यत्ुयिवश्ात् | प्राचीनपत्राणि ।
म्न्थनाम संदिग्धम् |
११७० [विष्णुपूजनम् ... ..... -“+ “| २| ९३४ ... |संपणम् | पूवैभिन्नम् |
क० ० विष्णुपूजापद्धतिः... ...... ०== =| १४ ।१२।३६ .„ संपूणा |
२७०९ [विष्णुस्शतिः =... ...... ~ --“| १३८ |१२।१५| ... | संपूणौ । पयीयसहिता । नवीना कारमी-
रिकी लिपिः |
२५७९ | सेव... „~ .. एव ...| ३७ |१६।४०| संपूणो | नवीना कारस्मीरिकी छिपिः |
२५०९ [विष्णुस्द्रतिः रघुः =... + --.| ५ |११।४८ ... | संपूणी | पच्चाध्यायपरिभिता |
२५८५ | सेव... ,.. 1... .-. ,..| ७ |११।३२ संपूणा | नवीना कार्मीरिकी छिपिः |
६२८ [वीरमिन्रोदयः ~ˆ “““|मित्रमिश्चः परशु | २४२ |१२।४१|१९३३ | रश्चणप्रकाः । संपूर्णः ।
रामसू
३३५१ | सएव... - “| एव ...| २३ १७४२ ... | टक्षणप्रकाशेऽधलक्षृणप्रकरणम् | संपूर्णम् |
नवीनपत्राणि |
३३२७१ | सएव... .. „| तए ...| ३० णाण्४ ... | लश्षणप्रकाशेऽश्लश्रणपरकरणम् | संपूर्णम् |
वीना कारमीरिकी लिपिः |
र्द | सएव... -. “| पणव ...| ३८ १३।३० ... | लक्षणप्रकाशे गजलक्षृणप्रकरणम् । संपू-
- णम् | नवीनपत्राणि |
२२८० | सएव... ... -. सएव ...| ९१ | ९।२७ ... | व्यवहारपकाशः | असमाप्त: | नवीना का-
र्मीरिकी रिपिः |
२५६८ | सएव... ... “| तएव ...| २५८ १०।४८ ... | व्यवहारप्रकाशः | असंपूर्ण आरम्भान्तयो-
। रभावात् |
२५७६ | सपव... ... „| मएव ...| १५।१०।४८ ... | व्यवह्ासप्रकाशः | खण्डितः |
*४५६ |वीररलरोखरदिखा .-- साहिवामः दिद्धा-| ५६ १०।३६ .... प्रथमलण्डः | संपूणः | नवीना कारमीरिकी
रामपुत्रः टिपरिः | अयं म्रन्थः श्रीराजाधिरानम-
हाराजरणवीरतिहद्पाज्ञया “णाद 1
पणा नामभूषितयवनम्न्थाद्ठवा-
दितः । सुरीरशंटीति मन्थनामान्तरम् |
४५७ | सैव ... ... „| सएव ..| २| ८३५ ... | ६९.रत्रम् | संपूर्णम् । नवीना कारमी-
। । र्कीर्पिः।
।
|
|
|
= ____ श्न ०
प्नन्थाद्ः.
9:
४९०
24८
% ०५९
2०४
‰& ८
११८ &
2६२१
% ६५१
६९०
२२५८४
२५५७
२५७०
२३.०१०
२५७१
क.
ˆ ४१२५
२५८४
२६४३ |
०९१
२५५४
धमेरालम् 1
त्रेणय
ग्रन्थनाम, कटठनाम,
पत्राणि, | अक्ष-
राणि
(नले
>
~)
४
| | = | हि ९ यानि अवा ऋ म # १९५
वीररत्नदोखरल्लिष्छाः पदसं [साहि १००५।१४।३२ |
| केतव्रिवरणसदिता |
| सव । सपव | .२५ (१८।२०
| | र हि ¢ | ९।३ | ।
| यीररलदोखरददिखाप्रथमश- साहिनामः |
कंव्याख्या गहना्ग्नक्छाः
दिका
बद्ध स्ातातपर्तः "`
चृद्धिश्राद्धविधिः -** ˆ
। न्मादिशान्तिः
दरेषणदधर्मानिष्टानयदत्िः द कृष्णदवः मात
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| चिहपरिचयौ
व्यतिपातपूजनविधिः व
व्यवसथानिणयः रज शक
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रे ध्रतिव्यतिपाचतर्खंच्न्न्ति रं अ कक
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..- गोपारूकिद्धान्त-
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व्यवहारचिन्तामनि
व्यवहण्टदच्वाख्छ स्वारा,
च्यवहारपारिभः चः भढ हरिदत्त = |
७००, जाञतकर्हत च्व [१.-. १
व्यबहारमाकृक्ग `` जीद्रूतवाहतः `
| < ,,, ...जाहितासिदीक्ष-
व्यददहरसयवस्सस, श | 4 4 ~ ० च ९ >
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४ |१२।२४।
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इति नामान्तगस ।
जोच्छापमं स्णषामि-
स 0"
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6 + धर्मशाखम् । १०५
न न | क नद| न न श्रेणयः. छिपि.
्रन्थाङ्कः. म्रन्थनाम. कर्वृनाम, पत्राणि,| अक्ष | ^ संवेदनम्.
राणि. |. |
३७६४ [तकँ द्वादशीव्रतानि .-.|शंकरभटः नील्क- ९ ।१२।२९| ... |संपूणीनि | नवीना काश्मीरिकी लिपिः |
| ण्टपुत्रः
,२५५७ (ालयताप्रायश्चित्तनिणैयः .. . नागोजीभटः श्चि-। < ।१०।३८| १९१२ | संपूर्णः | नागोजीभघ्विरचितप्रायधितेन्दु-
वभेटरुतः । रेखसन्तगेतः यादिति चिन्ता |
२४९३ ाल्यताश्युद्धिः ... |... .., ,..| ३४ ११।४२ ... |संपूणा । जीर्णपत्राणि।
२१०६ दातातपस्प्रतिः ... .-.-. .., ,..| < | ९४६ ... | संपूणा] प्राचीनपत्राणि|€०ण}.10.1361.
२६४६ (शातातपर्द्रतिः -** ---|** ... ..-| १८ | ९।२७] इाके | कर्मविपाकः षडध्यायपरिमितः । संपूर्णः ।
१६१७
४४५१ (शान्तिकपद्धतिः .. “^| ** ... „| ७| ९।७०| ... | रपत्रं विहाय संपूणो | प्राचीनपत्राणि।
४०७८ [शान्तिर् ... .-.कमलाकरभट्धः रा-। २३५ (१२।४०|१९२८ | संपूर्णम् । नवीना कार्मीरिकी खिपिः |
मकृष्णपूः शान्तिकमटाकर इति नामान्तरम् ।
४द्ण्य | तदेव ... ... ...| तएव ...| ५ [२३।६६| १७४५ |रतचण्डीसहसचण्डीप्रयोगः । संपूर्णः |
४५०१ रिवपूजा (१) ... ...*- ४ | ९।३०| ... |असमाप्रा । प्राचीनपत्राणि । म्रन्थनाम न
ठन्ध् |
४६६१ रशिचरात्रित्रतोदयापनम् ...-* ..५ ,..| ३ ।११।२४| ... संपूर्णम् |
२६१८ |खुक्रनीतिसारः ..* =“ ,०. ..-.| १२१ | ५।३९| . ... संपूर्णः | प्राचीनपतच्राणि |
२५४६ खुद्धिप्रकादाः =... ---भास्करमभटः आ-| २३ |१०।४२| १८५४ संपूर्णः । विरचनकाटः संवत्' १७५२ |
यानिभघ्पूतः
२४५८ |शुद्धिविवेकः -.. .-.रुद्रधरः ठ््मीध-| ८० | ८।४७| १८४० संपूर्णः ।
रपुत्रः
९१२ | सएव... ... ..| सएव ...| ५५ ।१०।५१|१८६३ | संपूणैः ।
२६८२ | तएव ,.. ... .. सएव ...| ४४।११।२५| ... | खण्डितः । मरन्थनामाठमितम् ।
२५४१ [ृद्रधमतत्वम् -** -*-कमखाकरभटः रा १११ |१२।३५| -. संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि | शू द्रमैकमटाकर
+ ` मकृष्णपुत्रः इति नामान्तरम् ।
२६१४ | तदेव ... ... ...| सएव .--| १६४ [१०४७ ... | संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी टिपिः |
छ 5द (आद्धस् ++ न> ०५४२ ... .-..| १३ | जर७| ... | संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि |
*४५६६ ्राद्धकट्पसारविवृतिः ---भट्रोकरः भघ्ना-| १०१ | ९।५७| ... |असमाप्रः | प्राचीनपत्राणि । मूटविब्लोः
रायणपुत्रः कर्तेकः |
९० (श्राद्धचिन्तामणिः... ~" |वाचस्पत्तिमिश्चः | ११८ १०।५१| १९२९ | संपूणैः |
४५०७ (श्राद्धचिन्तासणो प्रयोगपद्ध-|दिवरामः श्रीवि-| ७२ |१२।४६| १८२३ संपूण ।
तिः सुबोधिनी श्रामपुत्रः
५४५६७ ्राद्धपद्धतिः ... ---हेमाद्विः “| २४ |१२।३१| ... |असमाप्रा | प्राचीना लिपिः |
२५9
ध्मश्षपखस् ।
भेणयः. ख्पि-
-भरनाम. फतंनाम, प्राणि, | अक्ष भ
राणि, | ` ^“
(न ९१० | ९।२८
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१४ | ९।२७; ..
"त 2 १९१४०
ह ॐ | ४५ | ०
श न द्ध्प-|नारायणभटः ऊ | < ७ |५१०।४५
आतः परमद
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1# कः >. ३ | ६ |१२।२५ .
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सएव ९/१ १
. -|अनन्तदेवः आप-| २४५ |११।४७
देवपुत्रः |
०५ नरहरिः „. ७३ । <८।४१
--कमलाकरभटरः | ०
रामङ्ष्णमद्त्रः।
भट्दराकरः भर्घ्न ~ ८७ |११।४०
ठक कण्टात्पर |
` " चृ सिह भटः सिद्ध | ५८ ।१०।४६
भद्लत्मनः |
£ ` * नव्यचण्डीसहायं । १२१ | ७1१ ३
दुगादत्तपुत्रः |
हि र नव्यचण्डीसटायः २४ | ७।१६
दुगौदत्तपुतः |
|
न्तिः शङ्काय. . .| १४ | ९।१९
॥ (+ = स्न |
(२०३ ३-२०५१)
सेवेदनम्.
१८०० | १.पृत्रे विहाय संपृणैः |
संपूर्णः । नवीना कार्मीरिकी छिपिः |
संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |पू्ैरन्थाद्विभिन्नः।
संपूर्णः |
संपूर्णः |
अतमाप्रा | १.पत्र नष्टम् | प्राचीनपत्रा?,
असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् |
अस॒माप्रम् | प्राचीनपत्राणि
नन १६५५ | संपूणी |
१८४५ | संपूणी |
१८५४ [स्मृतिकोस्तुभान्तगेतः । संपूर्णः । संस््रा.
रदीधितिरिति नामान्तरम् |
| १९४०४ |संपू्णैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः !
९।४२।१८५० | संपूण ।
मध्ये पत्रदयहीनः | भघ्नीककण्ठकृतमम.
वन्तभास्करपरिपूरकोऽयं ्रन्थः | प्रात.
नपत्राणि |
प्वासविधिनिणेयपवन्ता । संपूण | प्रा्तै-
नपत्राणि |
संपूणा । नवीना कारमीरिकी लिपि
एजाधिराजश्रीमहासजरणवीर्सिहुभूेनः
स्वतापतापितारातिर्रीमहासयाजप्रतापन्नि-
हाख्यरजङमारशिक्षाथं कास्तियम् \
संपूण । पूरवमन्थाद्विभिन्ना | नवीना दाः.
समीर छिपिः । राजाधि राजयदागार-
श्ररणवीरसिह्पेण स्वराजकुमार रीस.
हाराजप्रताप्तिरिक्षार्थं कारितैदा |
१८२२ संपूर्ण |
9: धर्मशाखम् । १०७
श्रेणयः | {लिपि
मन्याङ्खः. ग्रन्थनाम, कतृनाम, |पत्राणि,| अक्ष- 4 संवेदनम्.
राणि, | +र.
४६९४ |सव्येशस्थापनपूजा ..- |. ... | ३ | ८।२५ संपूर्णा ।
२६५१ [सदाचाररहस्यम् ... ..- अनन्तभट्टः दाइ -| २४४ ११।४४। १७८१ | संपूर्णम् | महाराजसंम्रामरसिहेन कारितो-
भघ्तूलः ऽयं मन्थः | कतरपितु्नाम दाइभटटः द्-
हम इति रूपद्ये दृष्टं शङ्कास्पदम् ।
२४४३ [सदाचारस्मरतिटीका ...आनन्दतीर्थः।ना-। २१६ | ९।२५| शके |संपूणौ |
रायणपण्डिता- १७२१
चार्यः विश्चना
यपू:
२५३८ |संन्यासपद्धतिः ... ... आनन्दतीर्थः ...| १६२ | ८।३२।१८५८ |संपूणां | समाधिप्रकरणात्संन्यास॒प्रकरण-
पयेन्ता |
४५९६ |संन्यासिमरणोत्तरविधिः ...|.-- -“ .-.| २| <।२३ संपूर्णः । प्राचीनपच्राणि |
१०८४ |सप्तमटास्नायिकम् , शंकराचार्यः ...| १ १३।३६| .-. | संपूर्णम् । पद्यखूपम् |
४४४५ [समानप्रवरमन्थः ... ` ... |... १६ /११।३३ राके | संपूणः |
१६५१
४९४६ स्वदेवसाधारणानेदयपूजा- १ ।१५।४० ,.. । असमाप्त: |
विधिः
४५४७ [सर्वप्रायश्ित्तविधिः ...|.“. ५ १०।३४| ... | संपर्णैः | प्राचीनपत्राणि ।
४४२७ |सहसख्रभोजनविधिः ..-|**“ ० + ४ 0 संपूर्णः । प्राचीनपन्राणि |
२६०६ [साधारणप्रायश्चित्तसंग्रहः. . .|* * ,., ,..| .१०।१०।३६ १७४६ संपूर्णः |
२४६७क [सारम्राहे अश्चिमान्यहरप्रा---- --* “| २ |१४।३५ संपूर्णम् | कतैनाम संदिग्धम् । प्राचीन-
यश्चित्तम् | पत्राणि |
२४६८खसारमाहे सवैपापरोगहरश- बोधायनः ...| १4 |१४।३५ संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
तमानदानम्
६७२ [सुकृलयप्रकाडयः .-- ---ज्वाखानाथमिश्रः | २३ १२।६२् संपूर्णः |
*४५८९ [सूतकनिर्णयः .-- -*“-- ~ =| & || 9१ संपृणः । अटटकाशोचव्याख्यानमिल्यपि ना-
मान्तरम् । श्रीनदपद्रे महारण उदसिंह-
विजराज्ये... छिवितमियन्ते पाठः ।
४५४६ सूयैत्रतमण्डलम् छ + ,,, ...| ४ |१२।४६| १७५३ संपू्णम् | म्रन्थनाम् संदिग्धम् |
४५२८ (सूर्योपस्थानविधिः ~^ , | ४| ८।३३| ... | ्रद्मयज्ञविधिसदितः | संपूर्णः । प्राचीन-
श पत्राणि |
३२४७६क खीधर्मनिर्णयः ... ...|*“* ,., „| २५ ।२४।१८ ... | संपूर्णः | नवीना कार्मीरिकी छ्पिः |
श्रराजाधिराजमहाराजरणवीरसिहदपका -
रितोऽयम् |
१०८ धम॑शाखम् 1 [२ ० 9 ०~-२० ९०]
न = | नन न्च न=
प्रन्थाद्रूः. कनाम. पत्राणि. अक्ष [न्न सवेदनम्.
राणि, | ऋः.
इ
“““| ४१ [ररर ... |संपू्णैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः
श्रीरजाधिसजमहाराजरणवी रसिट्पव-
रेण कासते भाषा मूटं च|
शशाम ... ,..| ४ |१६।४० अपसमापतम् | प्राचीनपत्राणि |
. ..|मार्ताण्डसोम- ५९ | ९।४२ १९४१ | संपूर्णः |
याजी
२५०० (स्छतिकटपटुमः टीकासहितः |खद्धेशवरनाथः --.| ६६ (१३।४८ १८५० | संपूर्णः । मूटटीकयोः कतैकः ।
२५०१ | सएव... ... ..| स एव॒ ...| ५१ १३४८ असमाप्त: | १,.-३४.पत्राणि न सन्ति|
२६२० * . . |मदनपाखराजा | ५१६६।१०।२५ १६५६ संपूणी |
कारयिता
२५३१ --*अनन्तदेवः आप ५१ १२।३५| ... | मधिमासयम् । असमाप्तम् । जीर्णप-
देवसुतः त्राणि |
२५३३. सएव | २० |११।४६| ... |नक्षतरनिर्णयः । असंपूर्ण आरम्भाभावात्।
जीर्णैपत्राणि |
४७९० सएव ...| ३२ |१०।३७| ... | राज्याभिषेकः । असमापरः | नवीना का-
स्मीरिकी दिरिः |
२५२९ स एव॒ ...| २२५ ११।४६ ... | संवत्सरदीधितिः । वण्डिता | जीर्णपत्राणि |
२५२२ सएव ...| ५१।११।४६ ... | रकल्मात्रम् } जीर्णपतव्राणि |
२४९९ -. " देवण्णभटहः केर-। ५८ |१३।५६ ... | व्यवहौरकाण्डः | असमाप्त: |
वादियपुत्रः
२५०२ सएव ...| ३६ १३।५४| ... | व्यवहारकाण्डभाग इत्यठमानम् ।
२५०४ सएव ..-| ६७ ११।५६ .-- |व्यवहारकाण्टस्य दिव्यनिरूपणादिविषयाः।
असंपूणौः |
व -* रघुनन्दनभट्टाचा-। २१ |१०।६६। ... [उद्वाहतचचम् । संपूर्णम् ।
यः हरिहरभद्पुत्रः
७१० सएव ...| ४६ १०।७०| ... | एकादशीतचम् । संपूर्णम् ।
७०४ त एव॒ ...| १३९ | ८।५०| ... | तिथितच्म् । असमाप्् |
२४५६ सएव ...| १२२ १०।४०| ... |तिथितच्म् । असंपूर्णमारम्माभावात् ।
प्राचीनपत्राणि | |
२४२० सएव ...| २२३ १०।४६ दायतच्म् । संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
२४३३ ~ “~ "| सएव ...| - २१ |११।४१।१८७९ | दायतचप् | संपूर्णम् |
र्दद । तदेव ... -. „| स्तएव ...| ३३ | ७४०... | दायतचम् । संपूर्णम् |
[९०९१२११२] धर्मेराखम् । १०९
~ = | "दश्च न= #
८ ˆ" -"* रघुनन्दनभट्ाचा-| ४० १०।७१| ... |प्रायध्ित्ततचम् । संपूर्णम् |
यैः हरिहरभध्पुतरः
७०4 | तदधं == => „| शु एवं ५१ १०।६७| ... | मठमासतच्वम् । संपूर्णम् ।
२७१० | तदेव ... ... ..| सण १५ [१०।७२| ... |वृषोत्सगेतच्वम् । संपूर्णम् ।
२७९५ | तदेव ... .. „| सएव रर | ८।४४| ... | व्यवहारतच्म् । असंपूर्ण मध्यत्रुटिवशात् |
२७०२ तदेवं =+ + >| एव॒ “५ |१०।७२| ... | तरततच्वम् | संपूर्णम् ।
७०९ | तदेव ... ... ..| तख ८५4 |१०।७०| ... | शुद्धत्वम् । संपूर्णम् |
५०५ | तदेव ... ... ...| सएव ...| ९९ | ९।४३| ... |श्राद्तचम् | संपूर्णम् |
२७०१ | तदेव ... ... ,..| सएव ...| ९।१०।७२्| ... |श्राद्तच्ं यर्ेदिनाम् | संपूर्णम् |
२५३५ |र्द्रतिदपषपेणः .-. .--सरस्वतीतीथय- | २५५ | ९।७०| ... |असमाप्तः प्राचीना लिपिः |
तिः (नरहरिः)
२४८८ स्ष्रतिरलावल्यां दायभाग-रामनाथविद्यावा- १०६ | ७।६३| .... संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
चिवेकः चस्पतिः
४१३२ (र्डतिसरोजसुन्दरः ...| ०. ४६ | ५।२८| ... | संपूणैः । नवीनपतच्रागि |
६६१ स्म्रतिसारः ... ... देवयास्तिकः १८ | ९।३५। १६७५७ संपूर्णः |
२५११ (स्ष्टतिसारः -*“ “*-श्रीहरिनाथः ...| २१ १०।४१| ... |दायविभागविषयकः काण्डः | असमाप्त |
२५१३ | सएव ... ... .. पणएव २१ |१०।४१| ... |विवादप्रकरणम् । असंपूरणमारम्भाभावात् |
२४५२ सुष्टतिसारससुचयः ...|... ४७ | ८।२८| ... |मध्याहकमोचारपरकरणपर्यन्तम् । प्राचीन्-
पत्राणि |
२४४५ | सएव ... ... ...|... “~ ०". ५८ |१४।२२| १७१७ |आचासप्रकरणादारभ्य संपूर्णम् |
६८८ (स््रल्यथसारः .-. .“ श्रीधरः नागविष्णु- ४६ ११।४८| , ¦ आचारप्रकरणम् । आगौचप्रकरणमसमा-
भसः पम् |
१०५१ | सुष्व,= ~~ „न चं एं १ |११।२६| ... |प्रवरनिणयः | प्रथमपत्रहीनः । प्राचीन
पत्राणि |
४६६३ [स्वरूपतो गोदानप्रयोगः .. .|... ३ ।१३।४३ १८१६ | संपूर्णः |
४६८१ हरिताखिकाब्तोयापनम् 0 ३ ।१०।३०| ,,, संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
४६१५ [हरिपजापद्धतिः .-- .--|आनन्दतीथैः भा-। ९ | ९।३३।१८०८ | संपूणी |
गवः
>#४०२ हरि भक्ति भास्करः सद्रेष्णव- सुवनेश्वरः भीमा- ३७ | २३।४४/ ... | १. प्रकाशः भगवद्रक्तिस्ररूपादिनिषूपणम् |
सारसवंस्म् नन्दपुत्रः संपूणैः । नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
विस्वनकालः संवत् १८८४ |
२८
न न्न न न न= न्याङ्भुः,
प्मन्धनम,
कर्तृनाम,
धमेदाख्म् ।
गिरीश
श्रेणयः,
पत्राणि. | अक्ष-
राणि,
[२११३-२१२५
४०२५ [हरिभक्तिभास्करः सद्रैष्णव-सुवनेश्वरः भीमा-| ९०
४३६७
०२६
ॐ ०२७
०२८
०२९.
०२३०५
४०३१
७०३२
४०३२
४०३४
२५८६
२४६९ हेमादिसंक्षेपः
सारसर्वैस्वम् नन्दुपुत्रः
सएव ... सए
तएव ... सएव
सएव... सएव
सएव... सएव
सएव ... सएव
सए... सएव
तएव ... सएव
सष्व..- ~ “| ततएव
तएव ... सए
तएव ... सएव
हारीतस्तिः -* °“ *
भजीभट्
२५
.| १२४
,| १७४
६७
२९
१२।४
१२।४८
१३५०
१३।४८
१३।४७
१३।४४
१३।४४
१३।४६
१२३।५०
१३।०४४
१३।४७| ,..
११।२०
२. प्रकाशः । संपूर्णः | नवीना का्मीरिकी
लिपिः |
३. प्रकाराः | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
४.प्रकाश्चः । संपूर्णः । नवीना कारमौरिकी
लिपिः |
५. प्रकाशः | संपृणैः | नवीना कारमीरिकीौ
लिपिः |
६. प्रकाशः । संपू्णैः | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
७. प्रकाडः । संपूणैः । नवीना कासमीखिकी
छिपिः |
<.प्रकाश्चः | संपूर्णः | नवीना कादमीरिकी
लिपिः |
९,.प्रकाश्चः | संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१०.प्रकाशः । संपूर्णः | नवीना कारमी-
रिकी लिपिः ।
११.प्रकाडः । संपूर्णः । नवीना कारमी-
रिकीलिपिः।
१२२. प्रकाशः । संपूर्णः । नवीना कारमी-
रस्कीलिपिः।
२१५. प्रायश्चित्तविषयकरेकेषु संपूण |
नवीना कारमीरिकी छिपिः।
९।३९| १८५४ | काठनि्णैयः । संपूणैः ।
।\/, ० ९५८५५6४5.
च
[२१२६-२१४०] पूवमीमांसा
| न्न | न | न्न
श्रेणयः,
मन्थाङ्कः, मन्नाम, कर्तृनाम. |पत्राणि.| अक्ष. वेदनम्,
राणि. +
४२७५ [अधिकरणकोमुदी... ..- ...| ४९ १०।४१| ... | संपूणौ । प्राचीनपत्राणि ।
४३५२ जेमिनीयन्यायमाराविस्तरः माधवाचार्यः ...| ११७ १६।४४| ,.. | १,-४.अध्यायाः | संपूणोः | प्राचीनपत्राणि|
०३१३ | सएव... ... ..| सएव ...| ३२।१३।४०| ... | १.अध्यायः | संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
४२८४ | सएव... ... ...| सएव ...| २० १२५० ... |२. अध्यायः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
४३९० | मणए्व... ... ..| सएव ...| ४१|| ९।३२| ... |२.अध्यायः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
#४३२२ (तच्रचूडामणिः ..- „| ~ „| ११८३६ ... ९.जध्यायस्य १.पादः | संपूणैः । कत
नाम मन्थ न छन्धम् | प्राचीनपत्राणि |
*#*४२७९ |धर्मविचारसंक्षेपः ... ...|--- ,.. ,..| ३४ |१२।४०| ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
१0२४, न्यायन 9 ५९०|*०० ..„ ...| ५३ ।१०।३४| ... |अपमाप्तम् । न्यायसंम्रह इलयपि नामान्त-
रम् | प्राचीनपच्राणि |
४२९१ [न्यायरल्माका ... ---पार्थसारथिभिश्रः| ६३ |११।४६। ... |संप्ूणौ |
यन्ञात्मपूचः
४२८९ (न्यायरलमाराव्याख्यानं ना-रामानुजाचा्यैः | ७९ |११।५४। ... |संपूणैम् ।
यकरलम्
४२७३ प्रकरणपञ्िका ..- -` [शालिकनाथः ...| ५२ | ९।४१ ... । असमाप्त | १ .पत्रं विनष्टम् | मन्थमध्ये मीमां-
साजीवरक्ेति नामाङ्किता कृतिरुदाद्वियते ।
४२९२ [भाद्दीपिका ... ...खण्डदेवः ...| २८ | ९।३९ १.अध्यायः | १. पादं विहाय संपूर्णः ¦
४२१३ | रेव ... ... ...| मए ...| ३७ | १।४४ २. अध्यायः । संपूर्णः |
४२९८ |भाट्ृदीपिकाप्र भावी ..-कविमण्डनङं ु- | ५८ (११।४१। ... । ३.अध्यायः | असमाप्रः |
भटः लण्डदेव-। |
शिष्यः |
४३५७ |माटभाषाग्रकाश्षिका . . -नारायणतीथसु- | ४५ | ९।४४। १८६९ संपूणौ | प्रथमाध्यायान्ते कती श्रीनीटक-
निः हिवरामती- | णटसूरिसूडगो विन्द इति समाम्नातः ।
धेशिष्यः | | |
११२ पूव॑मीमांसा |
त्रेणय
म्रन्थाङ्ू म्रन्थनाम कतनाम प्राणि, | अक्ष-
राणि
४३६१ |भाटभास्कर जीवदेव ७६ |१३।३७
४३२८ | सएव सएव ५९ |११।४५
४२७८ |भाटरहस्यम् खण्डदेव ८९ | ८।४३
४३२४ |भावनाविवेकटीका भावक-|सुद्रर्सूरे ९५ |११।४३
ट्पटता
४२९५ |मीमांसाकोतृहटबृत्ति वासुदेवदीक्षितः | ३९ |१२।५३
महादवषत
४२२५ |मीमांसाकोस्तभ खण्डदेवः सुद्रदेव-| ६९ | ९।४२
तूलः
४२२६ | सएव... सएव ...| १२० | ९।४२
४२२७ | सएव... सएव ,| ११९ | ९।४२
४२२८ सएव °... सएव ...| ९३ | ९।४२
४२२९ | सएव... सएव ...| १२४ | ९।४२
४२३० तएव... सएव ६४ | ९।४२्
४२३१ सएव... तएव २२ | ९।४२
४२२२ | सएव... सएव ६५ | ९।४२
४२३२ | सएव... सएव ६१ | ९।४२
४२३२४ | स एव ..| सएव ५० | ९।४२
४२८८ |मीमांसातच्रवातिकटीका |भटृसोमेश्वरः भट ८२ |१०।५२
न्यायसुधा माधवातसज
४२६८ र्व सएव ७० |१०।५०
४२६९ | सैव सएव ३२ |१०।४६
४२७० सेव सएव &५ |१०।४६
४२७१ | रैव सएव ७३ |१०।४६
४२७२ | रौव स एवं “|: ६८ |१०।४६
[२१४१-२१६१]
ष जि
सिपि-
वेट
। ०५
१७२२९
१८५५
१८५७
सेवेदनम्
७.८. प्रे विहाय संपूर्णः | प्राचीनपतच्राणि |
असमाप्रः | १५.८५५. पत्रे विनष्टे | प्राची-
नपत्राणि |
१.परिच्छेद्ः | असंपूर्ण आरम्भाभावात् |
१.२.पत्रे विहाय संपूणौ | प्राचीनपत्राणि |
२. अध्यायः | असमाप्रः | प्राचीनपत्राणि।
१. अध्यायस्य २. पादः । संपूर्णः ।
१.अध्यायस्य ३.पादः । संपू्णैः |
१. अध्यायस्य ४.पाद्ः | संपूर्णः |
२.अध्यायस्य १.पादः | संपूर्णः |
२. अध्यायस्य २.पाद्ः | संपूणैः |
२.अध्यायस्य ३.पादः । संपूणैः |
अध्यायस्य ४.पाद्ः । संपू्णैः |
३. अध्यायस्य १.पादः । संपूर्णः |
३.अध्यायस्य २.पादः । संपूर्णः |
३. अध्यायस्य तृतीयपादपूवाधैम् | संपूरणेम् |
२.अध्यायः | असंपूणं आरम्भाभावात् ।
प्राचीनपत्राणि | सवानवद्यकारिणी र-
णकमिति वा टीकानामान्तरे ।
२.अध्यायस्य ३.पादः । संपूर्णः । प्राची-
नपतच्राणि |
२. अध्यायस्य ४. पादः | संपूर्णः । प्राची-
नपत्राणि |
३. अध्यायस्य १.पादः | २१.पत्रं विहाय
संपूर्णः । प्राचीनपच्राणि |
३. अध्यायस्य २.पादः | असंपूणं आर
म्भाभावाद् | प्राचीनपत्राणि |
३. अध्यायस्य ७.<८.पादौ । असंपूर्ण म-
ध्यत्रुटिवरात् । प्राचीनपत्राणि |
[२१६२-२१८४]
+४३६३
४२५१
४२५४
४२३६४
४२.१८
०२१८
०४२१९
४२३५०
२३४९४
४२५६
४२०७
७२००
9२९९
४२०१
४३०२
४२.०३.
४३०४
४२०५
४४१२
*+४३४८
४२४९
४२५८
४२७६
न न [= [दा न्न नाम,
पूवेमीमांसा ।
[ऋ कषे
कतनाम,
पत्राणि. | अक्ष.
श्रेणयः
राणि,
"| छ्पि-
१९३ `
मीमासाद्ादश्ाध्यायसंग्रहः अप्यदीक्षितः ...
मीमासान्यायम्रकाद्यः
सएव ...
सएव...
मीमांसान्यायप्रकादारीका
भाटारखकारः
ति 1
सएव...
मीमांसापरिभापा
सेव
मीमांसाप्रवेरिका...
मीमांसाबार्प्रकादाः
सएव...
सएव...
सएव ...
सएव...
सएव ...
सएव ...
छ
मीमांसाभाप्यम् ...
मीमांसारलम्
मीमांसा्थसंमरहः ...
सएव...
मीमांसावा्िकम्...
२९
. *आपदेवः अनन्त-
देवएतः
सएव
सएव
अनन्तदेवः आप-
देवसूलः
सएव
सएव
. . क्रष्णयञ्वा
सएव
..गोपाररामः
.. भटर करः भघ्ना-
रायगात्मजः
सएव
सएव
स एव
स्व
तएव
स पए्व
सएव
.. रावरस्नामी
- . रघुनाथभटाचार्यः
. खोगाक्षि भास्करः
स एव
. . कुमारिलस्वामी
७ |१४।४९| शके | संपूर्णः |
१८
४९
५१०
३६४
| १३२
-| ¶ ७२
१५
1
1
१०
२२
२
८
१८
८
४८
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१५
२४
०३
२१।६६
१२।४०
१२।२३४.
# #@ ॐ
# # जे
८।३६
१०।३०
९।४३ १८४६
१२।५०
१०।३३
१३।३४
१०।४०
९।३९
९।४०
९।५४०
९।४०
९।४२
९।४०
९।३८
११।४३
११।५२। १९०४
१०।४६
७।२८ | १९०५५
८।५६
संपूर्णः । प्राचीनपच्राणि |
संपू्णैः |
असंपूर्ण मध्यन्रुटितत्वात् । नवीना का-
र्मीरिकी लिपिः |
संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
पूवाधम् । संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
२.परिच्छेद्ः । संपूर्णः ।
संपूणां | नवीना कारमीरिकी ट्पिः |
शकल्मात्रा |
संपूण । प्राचीनपत्राणि |
१. अध्यायः | असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि।
१.अध्यायः । असमाप्रः |
मच्रप्रामाण्यनिरूपणम् | संपूर्णम् |
सकरविधिभेद निरूपणम् | संपूर्णम् |
द्वितीयाध्यायः । संपणैः |
३.अध्यायः । अत्पादेयनिरूपणान्तः |
संपूर्णः |
४. अध्यायः । असमाप्रः |
१२.जध्यायः । संपूर्णः |
९.अध्यायः । असंपूर्ण मध्यन्ुटिवश्ञात् |
प्राचीनपतच्राणि |
२.परिच्छेद्ः प्रमेयरबाख्यः । संपूर्णः ।
संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
संपूणैः । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
६.अध्यायस्य २.पादः | संपूर्णः | प्राची-
नपत्राणि |
१९४ पूवमीमांसा । [२१८५-२२०४]
प्रेगयः
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कतनाम, पत्राणि.| अक्ष | छ्पि संवेदनम्.
राणि, | काठः,
|
३१७ |मीमांसावातिकम्..- .-. कुमारस्वामी | १७ ५४६ ला | १.अध्यपिस्य ३.पादः | अपस्माप्रः |
४२७७ । तदेव सएव २४ | ९।५८| ,.. | १. अध्यायस्य ४.पादुः | संपूणैः | प्राची-
| नपत्राणि |
४२२१ | तदेव सएव ६७ |१२।४४| १६३८ | २.अध्यायस्य २.पादः । संपूर्णः ।
४२८० | तदेव सएव ३४ | ७।५० २.अध्यायस्य ३.पाद्ः । संपूणैः | प्राची-
| | नपत्राणि |
४२६२ | तदेव सए ६३ (११ क्ष १६८६ | ३.अध्यायः | संपूर्णः |
४२१४ तदेव सएव २७ | <।५०| १५६९ | ३.अध्यायस्य २.पाद्ः । संप्णैः |
४२८१ | तदेव सएव १७ | ७।५० ३. अध्यायस्य ३.पादः | असंपूर्ण आर-
म्भाभावात् } प्राचीनपत्राणि |
४२९० |मीमांसाशाखसर्वसवम् ... |... २२ |१३।७१| ... | २.अध्यायः | संपर्णैः | कतृनाम न लः
ब्धम् | प्राचीनपत्राणि |
४२८७ |मीमांसासारसंग्रहः ..|भट्रोकरः १६ | ९।२४ १८५५ | संपूण: | प्यष्ूपः |
४३४७ | सएव ... सए १० १२।४५ संपूथैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
४२८५ [मीमां सासूत्रदीधितिः ~ -राघवानन्दसर- | ८६ १२।१| --. | ६.-९.अध्य्रायाः | अस्मप्ताः । प्राची-
स्वती नपत्राणि |
४३२७ |सीमांसासूत्रद्त्तिः . . वेदान्तिमहादेवः | २२ ।१०।३५ असमाप्रा | १.-४.पत्राणि नानि | प्रा
चीनपच्राणि |
४३१६ |खघुवातिकटीका ˆ** “| ६५ |११।५४ अपसमाप्रा | १.-१०.पत्राणि नष्टानि । टी-
काकतेनाम न दृष्टम् | मूटं कुमारिरखा-
मिविप्चिततघ्रवार्तिकान्तगेतं प्रतिभाति ।
४२८३ |चिधिरसायनसुखोपजीविनी| अप्यदीक्षितः | १३९ |११।४१ संपूण | टीकानामाच॒मितम् । मूर्टीकयोः
क्तकः | ०}. प्ल्] [. 86 ९.
४३२३ (राण्डिल्यशतसूत्रीयभाप्यम् शाण्डिल्यः । स्व-| ३८ | ९।४० संपूर्णम् । भक्तेिमीमांसासूत्रभाष्यभिल्पि
मेश्वराचा्यः नामान्तरमस्य ।
२२९४ | तदेव तावेव ३८ |१३।२९ संपूर्णम् |
४२३५-४४ राखदीपिका ... पार्थसारथिसिश्रः | ४०५ | ९।४८| १८७४ | १.अध्यायं विहाय संपूणौ |
४३४१-४६| रैव सए ,| ३७० १२।४१ १.अध्यायस्य १.४.पादौ २. अध्यायार-
म्भश्व न सन्ति | प्राचीनपत्राणि |
४२५०-५६| रैव सख .| १७५ |१२।३५| ९६९९ | १.-३.५.६.अध्यायानिवहाय संपणी |
४२९६-४९। तैव सएव .| २७८ (१३।४०।१७४१ | १,.-३.अध्यायाः । संपूणौः |
[२२०५-२२२०] पूवेमीमांसा | ११५
न = ~ द न~ । मरन्थनाम, वैनाम, |पत्राणि,| अक्ष | छ्पि-
संवेदनम्,
४२२५-२६ शाखदीपिका .-- ---पा्थसारथिमिश्रः| ६० | ९।४८| ,.. |५, ६. अध्यायौ | पयौयसदितौ । ५.अ-
ध्यायोऽसमाप्तः | प्राचीनपत्राणि |
४३१२ | सेव ..- ... „| सए ...| १९११।३५ ... | १.अध्यायस्य १.पाद्ः | असमाप्त: | प्रा-
चीनपत्राणि | `
देष्णं | रेव ... ... „| पए ...| ४४।१९।५४ ... | १.अध्यायस्य १.पादः । संपूर्णः | नवी-
| ना कारमीरिकी लिपिः |
४३०९ | सेव. . | सएव ...| ३७ |११।०द्/ ... |प्रथमाध्यायः। १.पाद् विहाय संपूर्णः |
| | प्राचीनपत्राणि |
४२९७ | सेव ..- -.~ „| पणव ..| ५ |१०।५४ ... | १.अध्यायस्य २.पादः । संपूर्णः |
४३०८ | सेव... ... ... स एव॒ ..-| ४८ | ९।४१| ... | १.अध्यायस्य ३.४.पादौ | संपूर्णौ |
४२७४ सव॒... ~ ...| सएव ...| ७१|८।५८| ... |३.अध्यायः | ३.पत्रे विहाय संपूर्णः |
४३१० सेवं ..„ „= „| स एव॒ ..-| १२१४।४०| ... | ३.अध्यायः | असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
४३०६ | सैव... ~ ...| सएव ...| ७० |१०।४६् ,.. | १०.अध्यायः | असमाप्त; | ४५.४६. पत्र
। विनष्टे |
४२० | सेव ... --. „| पम्ए ...| ३११३७ दके | १२.अध्यायः। असंपूणं आरम्भामावात् |
१७०८
४२६०-६७|राखदीपिकाव्याख्या प्रकारः|चम्पकनाधः ...| ३४३ [११।४०| ... | {.-९.अध्यायाः | १.अध्यायस्य १.४.
पादं २.अध्यायस्य ४.पादं च विहाय
संपूणोः । प्राचीनपत्राणि |
४३.११ तष... -.- “| प्षएव ...| १०० |११।४१| ... | १.अध्यायः | १.पादं विहाय संपूर्णः |
| प्राचीनपत्राणि |
४३२३०-४० राखदीपिकाव्याख्या प्रभा वेयनाथः रामभ- | ४२५ |१२।४८| ... | १.अध्यायस्य १. पाद् विहाय संपूण |
द्रात्मजः प्राचीनपत्राणि | ३. अध्याये मध्ये पत्रहयं
विनष्टम् । व्यास्याविरचनकारः संवत्
९७६७ |
४२५९ | सेव... ..- ...| सएव ...| ४७ |११।५३।१८५६| २.अध्यायः | संपूर्णः |
२४४४-५५ |शाखदापिकान्यास्या मचूख-| सोमनाथसव॑तो- | ५६७ |१८।६०| ... | १.अध्यायस्य १.पादं विहाय संपूण |
माख्िखिा | मुखयाजी सू. नवीना कारमीरिकी छ्िपिः |
रभद्पुत्नः
२३२३८४० | स एव ..- -- ~ सएव | १७६२१।५य्| ..- | १.-४.अध्यायाः | १.अब्यायस्य १.पादं
विहाय संपूणीः | तृतीयाध्यायस्यारम्भमा-
त्रमेवाप्ि | नवीना कास्मीरस्की लिपिः |
वि कि = 2 इत 7) 9 का क
वि
९९६ पूर्वमीमांसा । [२२२१-२२२५]
[द पलपन ~
तरेणयः. षि
मन्णाह्ुः, ग्रन्थनाम, कटनाम, पत्राणि,| यक्च- लः वेदनम्.
सणि | ४ |
४२४५ [शाखदीपिकाव्याख्या मदृख-सोमनायख्वतो- | ५१६ | ९।५०| ४८५६ | रव्यायः | संपूर्य: ।
मालिका | इवाज षर
भद्पुत्र
४८६ (रशाखदीपिकाटीका हिद्धन्तं ासनरष्यमद मा| १३८ | ९६५९८ । १.अध्याणस्ए ९.एादः ¦ संपूणैः । माची-
चन्द्रिका । धृवपुत्रः | | नप णि 4
४२९४ ।यसाखदीपिकाटीकासिद्ध्न्त- रासङृष्णभटहः मा] 9० |११।५४६| -.- | ५. जव्यवल्य १.पादः । संपरणः | सक्र
चन्द्रिकागूडढा्थविवरण्यसद् । धृवपुत्रः । विचर्णयोश्च कर्तैक एव ।
ॐ (चलाखदीपिकारीरा । [= “= "| (र ०।६२
कायास्तत्करह्क नाम न दम् । नवीन
। कारमीरिकीं चिः ।
८।३८| ... । संपूर्णम् ! कतृनाम च च्यम्
| 1
|
| ,.. । १.अघ्याग्ख् १.पादः । अक्माषएठः । टी-
१९
ण्ड
>\/. ८६061476.
(२२२६९-२२४०
वेदान्तशा्म् ।
~ ~ [क्ष्य प्न
श्रेणयः,
मरन्धाङ्कः. म्रन्थनाम, कतेनाम. पत्राणि. | अक्ष- संवेदनम्.
राणि,
१५६३ [अक्तानवोधिनी ... ... शंकराचार्यः गो-| ३० | ७।२९| १८५७ संपूणो | अध्यात्मविदयोपदेश विधिरिति
विन्दरिष्यः नामान्तरं मन्थस्य |
भि | विं मु मि „| स्व॒ ...| २८ |१०।२५| ... | संपूर्णा |
२०१२-१५ [अद्वेतब्रह्मसिद्धिः ... ,.. गञसूदनसरस्व- | ३०२ [१२।३८| ... |संपूणी | नवीनपत्राणि |
ती विश्वेश्वरस-
रस्वतीशिष्यः ॑
२०४०-४५| तैव सएव ५
१९७९-८०| सैव सएव ...| २४८ |१२।४८ ६.२.पच्च्छिदौ | २.परिच्छेदोऽतमाप्र |
नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१९८२ | सेव... .. „| स एव “| २७ १३।५८| ... | १.परच्छदः | असमाप्ः | पराचीनपतव्राणि |
२०५९ अद्वेत्रद्यसिद्धिव्याख्यानं र-्रह्मानन्दभिष्ुः | १२ २४।८०| , .. आरम्भमात्रा | प्राचीनपत्राणि |
घुचन्द्रिका नारायणतीथ-
शिष्यः
९४५ अद्धैतादिदयः -** **"गोविन्दवक्चाः...| १८२ १५।४२ संपूणैः | विरचनकाटः संवत् १८८३ |
*१९१३ अनिवेचनीयखण्डनम् ...|... + ,..| ३२ |१०।३८ अत्तमापरम् । मन्नाम संदिग्धम् | प्रथम-
(तरपृष्ठरान्यहस्तकिपिः प्रीहू्षङतानिष-
चनीयलण्डनपुस्तकमिदमिति । पराची
नपत्राणि |
१९६० अपरोक्षानुमवः --* *.. दाकराचार्यः ... १३ | ७।३०। १७१४ संपूणैः
= । अ. ल ऋ च्चक्रे =| चै १०।३३/ -.* |संपूणैः । प्राचीनप्रामि ।
२२७८ अथेपञ्चकम् ˆ“ “** नारायणयतिः ...| ७ |१४।२८| ... संपूणम् | प्राचीनपत्राणि |
*२२७० जथपञ्चकविवेकः ... रारगोपदासः ... ९ १२।३१| १८४८ | संपूर्णः |
१८५४ [अवधूतगीता ... ... ( दत्तात्रेयः) ... १३ १५।३४| १६९९ |संपूणो |
१९३५ | तेव सएव ... ३४
द ©
५।२६ १८५५ संपूर्णा |
११८ वेद्ान्तराखम् । [२२४१-२२९४]
त्राता
| त्रेणय
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम. | कतैनाम. पत्राणि.| अक्ष- सेवेदनम्.
| | राणि, | “~ +
-------------------------------
२२९८ |अष्टश्लोकीव्याख्या... .--परादारभद्टः । सौ-। २२ १३।३३| ... | चरमश्मेकाधिकारस्तृतीयः | असंपूर्ण आ-
म्योपयन्तृसूरिः रम्भाभावात् | प्राचीनपत्राणि |
रदा्यसूचः
२२९७ |अष्टाददारहस्यस् रामानुजाचार्यः | २३ |११।२७| १८४९ | संपूर्णम् |
२२९९ | तदेव | सएव ...| १९।११।३४ ... | संपूणम् | प्राचीनपत्राणि |
२२९२ ।अष्टादरा रा्थविपयभेद ६४३ | + क = अन 1 वत दय संपूण | अ्रन्थूनाम न ट्टम् | पूर्वोपदिष्टा-
| भिधानं प्रथमश्चोकात्संशयेनाडमितम् ।
२०९दक।अष्टावक्रगीता "` भक ...| १८ |१२।३४| .. | संपूण | नवीना कारमीरिकौ रिपिः ।
१८५८ | सैव | तएव ...| १३ | ७२ | असमाप्ठा | प्राचीनपत्राणि |
१८४९ अषटावक्रगीताटीका अध्या- [विश्वेश्वर -..| ५२ (१२।३५ १८५६ | पूणः |
त्मप्रदीपः |
२१६६ | तएव... ... ..| सए ...| ४२ |१४।३६् .-- | संपूर्णः | नवीना कार्मणं छिपिः |
१८५० | सएव ... ... ..4 सएव ...| ५३ १२।३४ ... सपणः | नवाना कास्मास्का छिपिः |
१००६ ।आत्मपुराणम् ..- .-* शंकरानन्द: आ-| ४०२ |१३।३६| १८७५ संपूर्णम् | उपनिपद्रल मिपि नामान्तरम् ।
नन्दात्मरिष्यः
३६४७ | तैव „.. ... „| सएव --.| ४३३ |१०।४५ ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
११५१ आत्मबोधः ,.. ... शंकराचार्यः .-.| ११। ७।१७ संपूर्णः ! नवीनपत्राणि |
१९७२ | सएव ... -.- .-.| सएव ...| ६ | ७।२० | असमाप्त | प्राचीनपत्राणि | |
१९५९ ।आत्मवोधर्दीका .-. --*[-- ... ...] १९।१०।२४ १७१९२ | संपूर्ण । टीकाया नाम कतौ चाज्ञा ¦
धद | सिषे ऊ चरः सक |० ,.. ...| < |१२।४५ १८५६ संपूणा |
एष्देष्े | दवः सथ सवसा सरम ... ,..| १७ ।१३।२६| ..- | संपूणा । प्राचीनपत्राणि |
ददे | रैव जरल शनन =| ००० ,., ,.। ११।१२।४०| ... संप्रणा | प्राचीनपत्राण |
एव्र | तवः अल जज समन .... ...| १९।१०।३० ... | संपूर्णा | नव्रीनप्राणि |
१९५४ तती आकः अने ,.. ,..| १३।११।२४| ... । १.पत्रं विहाय सपूणो | प्राचनपत्राण ।
*+२०५३ आत्मानन्दप्रकाद्ा्यः ,. . दक्षिणामूतिः -..| ४ |१९।२९ - ` सपणः | जातान न्दुप्रकाशप्रकरणमिति
न्थान्ते नाम | प्राचीनपत्राणि |
२३२८ | ताण... ... ..| सएव ..| १९| ९रद्|५९र्द संपूणीः । पुप्तकान्ते टेकेन शेकसचः-
यस्य कतरत्वपुपदिष्टम् |
१९३६ (उत्तरगीताव्याख्या... .-- गौडपादाचार्यः | ३५ | ७।३० १८.५५ संपूणौ । मूटकतृनाम न लब्धम् |
२०६२ | सैव ... ~ ..4 सएव ...| ३६ |१०।३०| ... संपूण |
१९।५२्/ ... | संपूर्णां | उपदेशपच्चकमितयपि नामान्तस्म् |
२०९७ख।उपदेशपञ्श्टोकी ,,. शंकराचार्यः ...| ५ (
| नवीन्प्राणि |
[२२६५२२८३ वेदान्तशाखम् । ९१९
्रेणयः, निष
मन्थाः. म्रन्थनाम,. कठनाम. पत्राणि, | अक्ष- ए संवेदनम्,
राणि, |» ^.
ह. ९०९ [खण्डन भूषामणिः. ..
१९०८ |गदयवन्धः ... ,,
१९७७ [चित्तप्रदीपः वृत्तिसदहितः ...
४५२५ [चिद्ानन्दस्तवराजः
१९२६ख| सएव ...
दः । सषु: ==
५१२४ | सएव...
१९८९ |जीवन्मुक्तिविवेकः
१९९० स एत् ==
१९८१ स पव् =.
२०२३७ च व् "थ
२१९३ ्ानश्चाकाः
२१९२ क्षानश्छोकाः
२२८४क|तत्वत्रयचुरुकाथैसंग्रहः ...
१९८४ ।तत्वदीपः ..
१९९७ तत््वविन्दुः-.-
१०२५ ।तत्वबोधः ...
१६१५ [तच्वमुक्तादरी
२
२२८८ सव्
* * रघुनाथः
. . दांकराचार्यः
रिकः
. . रशोकराचायैः
सएव
प्व
स्स्व
- | विद्यारण्यसुनिः
[सायणः |
सएव
सएव
सएव
# # # । # # ॐ
वरदनाथः वेदा-
न्ताचायापरा-
भिधः
- -कविराजमिष्ुः
वैकुण्टशिष्यः
` `" [वाचस्पतिमिश्रः
विचक्रदर्ती
सप्त
"| ६०४
२९
वासुदेवः कारमी- १५६
१०।५५| ... |अत्माप्रः |
७।२६| १५१० | संपूणैः |
१२।३८| ... संपूर्णः । मूलवृच्योः कैकः | श्रीमहा रा-
जरणवीरतसिदद्रपाज्ञया संपादितोऽयम् |
विरचनकाठः शक्रे १५७८८ । नवीना
कारमीरिकी लिपिः |
२ | ७२८| ... | संपूर्णः |
१ |११।४३। १७५९ संपूर्णः । सिद्धान्तविन्दुरिति नाम॒ पुस्त-
कान्ते |
१ | ९।४०| ... |संपूणैः | सिद्धान्तविन्दुरिति नाम पुस्त
कान्ते |
२ |१०।४०| ... संपूण; । सिद्धान्तविन्दुरिति नाम पुस्त-
कान्ते |
८६ |११।४०| शके |संपूर्णः |
१६९९
.| १०५ |१०।३३| ... |संपूणैः । प्राचीनपत्राणि |
८८ | ९।३८| ... |असमप्रः | `
९ |२१।८८| ... | असमाप्त | नवीना कारमीरिकौ लिपिः |
४ (१२।३४| ... |असमाप्ताः | भागवतपुराणयोगवासिष्टस्वा-
| राज्यत्तिच्प्रभृतिग्रन्पेभ्यः संगृहीता इमे
शकाः |
१ ।१४।३५ ... |अपसमाप्राः । योगवासिष्टापरोक्षाचुभवादि-
म्न्थान्तरेभ्यः संग्रहीता श्रेका इमे |
१४ ।१०।४८| १८५३ संपूर्णः । वेङ्कटेशविरचितद्रविडदेशभाषा-
मन्थादवादित इति कवरौदेश्पु्तका-
न्तेऽवगतम् |
४३. | ९।४३। ... | संपूर्णः |
१२ १०।७५| ... | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
५ (१०।द२| ... | संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
५ /१५।५३| ... | संपूण । माय्रावादशतदूषणीति नामान्तर-
मस्य |
११ । ७।४३। १९१९ | संपूणा | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
वेदान्तद्ाखम् । (२२८४२३००)
१२०
न्था न्थ 9 भ्रेणयः | सिपि- ०५५
ग्रन्थाङ्कः. प्रन्थनाम्. कतृनाम. |[पत्राणि,| अक्ष उवेदनम्.
राणि, कर,
९९४४ |तत्वानुसंधानस् ..- ---|महादेवसरस्वती | २६ |११।२१ | १८६० | संपूणप् |
प्रकाशानन्दसर
स्वतीरिष्यः
१९२१ तदेवं ... -.. =. पणव ...| ४२|| ५२६ -. संपूर्णम् । प्राचीनयत्रानि ।
२१८७ तदेव ... ... .. सएव ...| ८ रपद --. |४.पत्रं विहाय संपरनम् | प्राचीनपत्राणि ।
९८४ दुक्षिणामूतिसतोत्रम् --- कंकराचा्यः “| १ [३१।१८| -^- संपूर्णम् । नवीनप्राणि । दक्षिणाम.
कमिति मन्थून्ते नाम निदिष्टम् |
६८४ [दक्षिणामूर्विस्तोच्ार्थपरतिपाद्-सुरेश्वराचायः .--| २० | ९३५ -- संपूर्णः । प्राचीनपक्राणि ।
कृप्रवन्धः मानसोद्धासः
५९२४ । सण. = ,. मनएव =| २० | ९।३७ १८१५ संपूणैः |
१५४९ (न्यायदीपावटी --- ˆ“ [व ३ |२४।८ र १८४४ संपूणा
१९१२ (न्यायदीपावरीरीका भरसा-आनन्दबोधयतिः| १७ |११।४३| १५७७ संपू्णी | प्रमाणमारेति नामान्तरम् । मू-
णरलमाला ठटीकयोः कर्तैकः |
१९१४ तैव > =-= =| सण न 23 | 9८|| == २९.पत्र विहाय संप्र ।
९९१५ (न्यायदीपावलीभ्रमएणरल्- [आनन्दवोधय- | ६७ | ८।३८| --- | संपूर्णः । प्रजीना ल्पिः |
माखानिबन्धः तिः । अनुभू
तिस्वरूपयतिः
१८८७ [न्यायाखतव्यास्या न्यायाद्ट-व्यासतीर्थः । रा-| ४६१ | ८।३८| .-- |^ परिच्छेदः ¦ संपूण: । प्राचीनपत्राणि ।
ततरङ्खिणी माचार्यः विश्व-
नाधपुत्रः
१८८८ | सैव. ... ...| तविव ...| १३९ | ८।४२।१७४२|२.परिच्छेद्ः { संपूर्णः । करमीरेषु लि-
वितः ।
१९७५ (पच्चददी ... --- ---|भारतीतीथविद्या| ९ |१४।४२ १.-५.प्रकरमानि ¦ संपणोनि । पराचरी-
रण्यः |माधवा- नपतच्राणि।
चार्यः]
१८५५ | तैव... -.. =. सएव ..| ५ १०।५३ ... प्रयक्तविवेकः प्रथमं प्रकरणम् } अत्त
माम् |
१९७४ | सवे ,, = जनन सएव ,,| ५ (१७५४ *" व्रद्मानन्दपद्क एद श्चं प्रकरणम् | सं-
पूणम् |
१९६९ | सेव . सएव ...| ९ १४।प४| ... | १२.-१४.परकस्णानि । संपूणोनि |
१८४८ (पञ्चदरीव्यास्यां तात्पर्यबो-रामकृष्णः विदयार-| १८३ |१५।४२| ... संपूणा | नवीन! कार्मीच्किी लिपिः)
धिनी ण्यशिष्यः
[२३०१-२३१५ ]
वेदान्तराखम् |
= ~ [प्म त ट
पत्राणि. | अक्ष.
--{[---~--1--=~ ~ - .___
म्रन्याद्कः. | , मन्नाम, कर्तृनाम, संवेदनम्
१८५० (पञ्चदीव्याख्या तात्प्रवो रामङ्ृष्णः विदयार- ३३ १५।५६
९-कवस्यम् | संपूणेम् | भूर्जपत्रेषु शार-
दार्पिः |
२१
९.- ५५. प्रकरणानि । संपृणानि । माचीन-
धिनी ण्यशिष्य पत्राणि |
९०२६ | सेव सएव ...| ३१ [१८।५४ ९.-५.प्रकरणानि । संपूणीनि । नवीन-
पत्राणि |
२०२५ | रोव सएव ...| १५२ १४।२६ ६.१५. प्रकरणानि । संपूणीनि । नवीना
कारमीरिकी छिषिः |
० | पिं + १४, „| स एव॒ ...| ५४ १५५५ दीपकरपच्वकम् | असपूणमारम्भामावात् |
प्राचीनपत्राणि |
७१३ | रैव सएव ...| ३ ।११।२८ महावाक्यविवेकः पच्चमं प्रकरणम् | सं-
द्मम् | प्राचीनपतच्राणि |
१९६८ | रैव सएव ...| ५| द।२६ महावाक्यातेवकः पच्चमं प्रकरणम् | सं-
| पूणम् |
१०१८ | सेव ... ,.. | स एव १२ |१२।४० महावाक्यविवेकः पच्चमं प्रकरणम् | सं-
पूणम् | प्राचीनपश्राणि |
१८९५-७ [पञ्चपादिकाविवरणम् ....पादपद्माचार्यः ॥ ४३ | ८।५८ २.-°वणकानि | संपूणानि | द्वितीयव-
प्रकारात्मभ- णके १.-३.पत्राणि नष्टानि | प्राचीन-
गवानू् पत्राणि |
*१९५८ पञ्चाध्यायोपदेदा " . .रोकराचा्य ६ | ९।३० संपूणे । प्राचीनपत्राणि |
१३भूज० पञ्चीकरणवार्सिकम् ... अनन्तरामयति ५ |१७।२० संपूणम् | भूजैपत्रषु रारदारिपिः |
ङृष्णरामशिष्यः
२०८२ [पञ्चीकरणवार्तिकम् ... सुरेश्वराचार्य ७ | ८।२२ पणम् | पूर्रमन्धाद्धिभिन्नम् |
११५६क| तदव ... “| तएव ...| ३ |१६।२९ सपूणम् | नवीनपच्राणि |
१६०५ प्रलयक्तत्वप्रदीपिका ,.. चित्सुखमुनिः ज्ञा-| ७४ |१०।५१ ९.परुच्छदः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
नात्तमशिष्य
२२८०-८३ प्रयक्तत्वप्रदीपिकारीका न-प्रयक्स्वरूपभग- | २२७ १५५९ अप्तमाप्रा | १.पत्रं विनष्टम् । नवीनां
यन प्रसादिनी वाच् प्रयक्प्र- काश्मीरसिकी लिपिः |
काशरिष्य
२२६२ | रैव सएव ...| १४१ |१६।५० २.परच्छदः | संपूणैः | नवीना कारमी.-
रकी लिपिः |
१०२४ प्रक्नोत्तररलमाटा शंकराचार्यः ३ |१२।२८ सपृणा | नवीनपत्राणि |
१४अूजे०|वाटखबोधिनी ... शंकराचायैः ३ |१८।२०
छ
|
†
|
८
#
॥
1
|
|
:
।
नश्य ~
वेदान्तद्ाास्रम् ।
कर्तना,
ग्रन्थाङ्कः.
५१०७८ ब्रह्मचिन्तनिका ˆ** “*" रकराचार्यः
५२३५२ बह्मटश्षणवाक्या्थसंग्रहः दावकोपसुनिः श
ठारिरिष्यः
4
१८८ ब्रह्मसूत्राणि. ** ^ भकस
२२७९ | तान्येव .-. -* "|
१८८६ | तान्येव ... ˆ= =“
५२२९०- [्रह्मसूत्र्याख्या न्यायसंग्रहः निलयानन्दाश्रमः
९१
२०४३ बरह्यसूत्रवृत्तिः ब्रह्याष्धतवः
पिणी
१९७८ (ब्रह्यसूत्रभष्यम् ˆ“
२०७२ [बह्यसूत्रदृत्तिः चिद्रजनमनो-
हरा
२०७३ । रेव
२२०२ तैव
२१९६- [्ह्मसूत्रदृत्तिसारः' "`
२२००
१०भू्ज०बद्यसूत्रवृत्तिः
मांसाभाष्यम्
२१२०-२५| तदेव
१६४३-४६| तदेव
१८६८ | तदेव
१८६४ | तदेव
पुरुपोत्तमाश्रम-
रामानन्दसरस्वती
।
श्रीचरणिष्यः
, , | जानन्दती्थः .-.
प आन
न्दश्रमशिष्यः
सएव
सएव
, , गोपारुरामः
हारीरकमी- रशकराचायः ...|
सएव
स्र ५१
सएव
सएव
पत्राणि,
७ | ७।१२
९ |२४।६४। १८३८
२२
०
५८
२१४
१०७५
,. | ४६०
.| २०२
७४९
[२३१८-२३३४
संपूणी | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णः | कनाम संदिग्धम् । श्रीशटरि-
सूरिचरणारविन्दसेवापि गतवेद्न्तमुधार-
हस्यश्री्ञवकोपनेः कृतिषु वाक्याधसं-
रह इति पाठो प्रन्ने । कनामान्तरे
अन्यत्र शठकोपः शिवकोप इति | तण).
प्र] 2. ५6.
७।२८।१८९२ संपूणानि |
७।२८
११।२२
संपूर्णानि । प्राचीनपत्राणि ।
संपूगानि |
९।४१।१६३५| १.अध्यायस्य ६.- ३. पादान्विहाय सं.
पूणैः |
१६।४३।१८८४ | संपूणा
१८।५२
९।३२ ४
९।२४
२०।८०
१०।.५४
१३।२७
असमाप्म् | प्राचीनपत्राणि )
१, अध्यायः | संपूणेः | प्राचीनपत्राणि |
>. अध्यायः | संपू्णैः । प्राचीनपत्राणि |
२, अध्याय १. पादपयेन्ता | संपृणा ।
प्राचीनपत्राणि|
संपूण: | श्रोरणवीरसिह् ज्यकाठेऽपि जी
वनेवास्य कती जम्वृपुरीयरघुनाथमन्दिर-
ुस्तकालयाधिकारिगिणरजघुलेन §तः ।
१. पत्रं विहाय संपूणेम् । भूर्जपत्रेषु शार-
दाछिपिः । ३९२.-५+० ७. पत्राणि न
वीनानि ।
८।४८ १७२६ | संपूणम् |
१२।३८
संपूणम् | प्राचीनपत्राणि ।
५।२८। १८६० | पू्ूत्रचतश्यम् । संपृणेम् ।
१०।४८
१. अध्यायः | असमाप्त ।
` [२३३५२३५३] वेदान्तशस्म् ।
क ~ 1 =
श्रेणयः.
ग्रन्याङ्कः. म्रन्थनाम, कर्ठैनाम, पत्राणि. | अक्ष-
राणि,
| ~ ---न-===--------- ~
१६४०७ बह्यसूत्रवरत्तिः शारीरकमी-शंकराचायः ४० |१०।४८
मांसाभाष्यम्
१८६५ तदेव सएव २३ ।१०।४९
१८६२ व्रह्यसूत्रवृत्तिशारीरकमीमां शंकराचार्यः । आ- ६९ | ९।२८
साभाष्यन्यायनिणेयः नन्दक्तानः शु-
द्वानन्दश्िष्यः
१८६२३ | स एव ... तावेव ९१ | ९।२७
२११४१०७ ब्र्मसूत्वृततिशारीरकमीमां- [शंकराचार्यः । वा| < |२८।८१
साभाप्यवितानः भामती | चस्पतिमिश्चः |
१८६१ |. यैवं -** ...| तावेव ८६ | ९३८
१८६७ व्र्मसूतरृतति्ारीरकमीमां- | वाचस्पतिमिश्रः । | ४६ | ^। +“
साभाष्यभामतीरीका वे-। अमलानन्दः
द्ान्तकट्पतरूः अठुभवानन्द-
शिष्यः
१८६६ | सएव ... तावेव ५५० | ७।५४
२०९९- (्रह्मसूत्रवृत्तिशारीरकमीमां- गोविन्दानन्दः | ५७० | ९।२२
२११३ साभाण्यव्याख्या रलप्रभा| गोपाटसरस्वती-
शिष्यः
१६२९-४२ रैव सएव ६२० |१५।३२
१६३५-३८| रैव सएव ८८५ (११।३८
१६४८ | सेव सएव २२१ |१२।४६
२४१६ | सेव सएव २ |१२।४८
१९०३ | सत" + ~ 44. १३ (१२०८
३९८९ ब्ह्यसूत्रवृत्तिः शाखदपंणम् [अमलानन्दः अ-| ६९ |१४।४५
तुभवानन्दरिष्यः
२००३ | तदेव तएव ९९ | ८।३४
२२६४.६५ बह्यसूत्व्त्तिः श्री भाष्यम् रामानुजाचार्यः | ४४७ | ९।४१
२७३०-३२| तदेव सएव „| २७१ |१२।४८
२२७३ | तदेव पएव २५ । ७1४८
२. अध्यायस्य ३.४.पादौं | संपूर्णो |
३. अध्यायः | असमाप्त: | #
१. अध्यायः | सपणः |
२. अध्यायस्य १.पादः । सपणः |
१.-३. अध्यायाः | २. अध्यायः अस-
माप्त: | प्राचीनपत्राणि |
१. अध्यायः | असमाप्त: ।
२. अध्यायस्य १.२.पादौ | सुपूर्णा |
८. पत्रं विनम् | प्राचीना छिपिः ।
ण्डितः | १.-२३९. पत्राणि विनणनि |
प्राचीनपच्राणि |
१८८९ संपूर्णा |
संपूणी | नवीना कारमीरिकी चिपिः |
संपूणी | नवीना कार्मीरिकी ठिपिः |
१. अध्यायः | संपूणैः |
१. अध्यायः | आरम्भमात्रः । प्राचीन-
पत्राणि |
२, अध्यायस्य १. २. पादौ । संपूर्णो |
संपूर्णम् 1 नवीना कारमीरिकी छिपिः |
१८४६
१. २. अध्यायौ | असंपूणावारग्भामावम-
ध्यनरुटिवशात् | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णम् |
असंपू्णमारम्भाभावात् ।
४, अध्यायः । संपूणैः |
१९०७
१२४ वेद्ान्तद्ाख्म् । [२३५४-२३६९]
न ~ [~ ई न
श्रेणयः. लिपि-
ग्रन्थाङ्कः. मरन्धनाम, कठ॑नाम, |पत्राणि,| अक्ष संवेदनम्.
कालः.
राणि.
= र अ
१९१० |भगवन्नामकोमुदी .-- "` लक्ष्मीधरः अन-| ४७ | ८।४२| .-- |अपमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
न्तानन्द्रघुना-
थरिष्यः
+१२३२ भेदप्रकारः ,., ...रदकरमिश्रः ..-| ३० | ५।४५| १५१९ संपूण | टिितः काश्याम् | एषतवट्णणम
{11 118. १८७०1०५१ प्य्] }. 99.
| नः १९९६ मकरन्दविव्रतिः भ ॥ चित्सुखमुनिः ,..| ८३ ।१०।५० राके सुपणा मूट मन्थस्य सन्नाम कती चाज्ञातं
| | १५२८
| २१७दकमनीपापच्चकम् , सकराचा्यः ...| १ | ९।५६| दके |संपूणेम् ।
| ५७३६८
| # ज्॑री बाटगोपालेन्द्र क पूण नवी
| ९७६ [मनीपापञ्चकटीका मधुम न्द्रः | ५ [२०।४१ संपूणौ । नवीनपत्राणि |
१९७१ महावाक्यार्थसिद्धिः *--|--- | ४| ८५२३ ... [संपूण |
८१७ |मोहसुद्धरः ताः ना १ ११।३३| ... | पूर्णैः । शंकसाचायैकवत्वं टेलकरेन स
। दिष्टम् |
८१४ यतिपञ्चकम् ~. -"शंकराचायः १ ।११।३४| ... |संपूणेम् ।
५५९१ |यतिराजसक्वतिः सटीका .. . वेद्टनाथायैः वै-| २६ १२।४१ संपूण । टीकाया नाम कतौ चाज्ञात । न-
दान्ताचायैः वीनपच्राणि |
१६०२ [यतीन्द्रमतदीपिका .-श्रीनिवासदासः | ४२ | ५।४९ १९१९ | संपूणो ।
गोविन्दाचयेप्रूचः
२००९५-११ योगवासिष्टटीका तात्पर्यप्र- |(वाल्मीकिः)। आ-१५९१ ।१६।४४। १९१९ | संपू | नवीना कार्मीरिकी लिपिः ।
काराः नन्दवोधेन्दस- टीकाविरचनकाटः शके १५६६ ।
रस्वताभष्ठः गः
द्ाधरेन्द्रसरस्व-
| तीरिष्यः
२१२६-२ तएव “~ “~ तविव ...|१३९२ (१४।५६ १८२५ स्थिलयुपशमनिवीणप्रकरणानि । संपूणीनि |
२१३० | स एव ... तावकं ...| २ [२०।८४ .-. [निवौणप्रकरणस्य ७९. सगेः । संपूणेः ।
| नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
२०३४ योगवासिष्टः भाषा्ीकातदितः गोपाटरामः ...| २७ |२५।४८ निवीणप्रकरणम् | असमाप्रम्। टीका हिन्दी-
भाषायाम् | नवीना कार्मीरिकी लिपिः ¦
वैराग्यर॒क्षत्पत्तिप्रकरणानि । उत्पत्तिप्र-
|
२१ ५७.५९योगवासिष्टसंक्षेपटीका वा- [अभिनन्दः का- | १०२ |१२।५९
| सिष्टचन्द्रिका ` रमीरिकः। आ करणमसमाप्रम् । प्राचीनपत्राणि ।
| त्मसुखः उत्त-
मएुरशिष्यः
२१६१ | सैव “~ ^ तवेव ...| ९४ (१२४७ ... ।उत्पत्तिप्रकर्णम् । सपूण॑म्। प्राचीनपत्राणि |
[२३७०२३८५]
= "~ [ष्म म
पन्राणि,
वेदान्तद्ाखम्।
२१६० [योगवासिष्टसंक्षेपविवरणं स॑- मुम्मडदेवविदरदा-| २०
सारतरणिः चायः अद्राल-
पूरिसूलः
२१६२ | रैव ... ,.. सएव
५००५ |योगवासिष्टसारः सकः ‰..|...
१५७०५ |योगवासिष्टसारविवरणम् [महीधरः
१८९३ | तदेव ... ... „| त एव
२०५२ |रलम्रकाशः (2) ... ... |.
२२८५ख]रहस्यत्नरयचुखकः -*- .--|वरदनाथः वेदा-
न्ताचायैः
१९४६ |रघुवाक्यड्ृत्तिटीका पुष्पा- [रंकराचार्सः
यिः
२१८८ लोकिकन्यायरलाकर के रघुनाथवमां रा
मदयारशिष्यः
९४१ |रोकिकन्यायसंग्रहः .... रघुनाथवमौ राम-
दयाटुरिष्यः य॒-
ठावरायवमौत्मजः
१९६५ [वाक्यवृत्तिः ... ... शंकराचार्यः
५४२ |[वाक्यच्रत्तिटीका वाक्यवृत्ति-विश्ेश्वरपण्डितः
परकारिका माधवरिष्यः
५४८ वाक्यञ्ुधा .-. .. शंकराचार्यः
२०९० सेव == =“ ...| मण
२९४ [वाक्यसुधाटीका ... ...रामचन्द्रतीर्थः
३२
.| १३७
.| ११७
६२
६०
४
७८
न्ह
१५
९२५
अक्ष- व संवेदनम्
राणि, ।
११।५८| ... | स्थितिप्रकरणम् । आरम्भान्तयोच्युटितम् ।
प्राचीनपत्राणि |
१२।४८| ... |निवौणप्रकरणम् | असमाप्तम् । प्राचीन-
पत्राणि |
१५।३४। १८९८ | १ .पत्रहीनः । मोक्रोपायकथासार इति म-
न्थान्ते | सारस्य टीकाया निर्मातनीम
न ठन्धम् |
११।२७| ... | संपूणम् । सारकती न ज्ञातः । प्राचीन-
पत्राणि |
१५।११| ... | १.-७. प्रकरणानि | संपूर्णीनि । प्राची-
नपच्राणि | |
२१।७२| ... | असमाप्त | मन्थनाम र० प्र इति पत्र.
प्ान्तठेनादुपोदातश्ेकाच साराङ्कम-
उमितम् । विरचनकाठः संवत् १८४३।
१०।४८| १८५३ | चमश्टोकाधिकारः । असपूणै आरम्मा-
भावात् । मन्थकता पु्तकान्ते वेदान्ता-
चायसूतरिव्युक्ताः |
९।२४| १८५५ | संपूण । टीकाकता न ज्ञातः !
१२।२८| -“ |वृद्धकमायीन्याये काशीमृतिमोश्षनिर्णयः |
संपूणैः | नवीना कारमीरिकी रिपिः |
१४।४१| ... |संपूणेः | नवीनपत्राणि |
७।२३ १८६० | संपूर्णा |
१६।४२| ... | संपूण । नवीनपत्रणि |
११।२०| ... |संपूणो | प्राचीनपत्राणि |
१०।३१| ... [संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१३।३४| १८६० [संपूण । रग्टस्यपरकरणमिति पुस्तकन्त
मूटस्य नामान्तरम् ।
या
१२द वेदान्तरास्म् । [२३८५२४०७]
_ ------~~ = -~ ~ -~----~-----------~ ~~ -----ब]-]ब]{~्{~्{्{]्ौ्ौू्ौ्ू्ू्ब् ब्] ~] -~-~-~~-]- ------------
श्रेणयः.
पत्राणि, | अक्ष
राणि,
[या अ श 0
छिपि-
कतृनाम, तौ
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम,
|
१९५० [वाक्यसुधाटीका ... .--रामचन्द्रतीथैः | २२ १०।३४ संपूणो | प्राचीनपव्राणि |
१८५३ [वाक्यसुधारीका --- ~ ,., ...| १४ | ८४३१८५५ | संपूण | टीकाकतृंनाम नावगतम् |
१२०४ (वाक्यसुधा हिन्दीभाषाटीका-|जगन्नाथः "| २१ |११।२६ असुपूणी मध्यत्रुटि तलात् ।
सहिता
५९९५५ (वाक्यार्थबोधः .-- ---|-“ ,.. ,..| १२३ | ९।३२ संपूर्णः |
७१४ [विन्ञानतचवम् ..~ ---|नारायणकणेदेवः | ११ | ७।२७ संपूणैम् | प्राचीनपत्राणि |
| २००२ वेदान्तकल्परुतिका मधुसूदनसरस्वती २८ (१३।३८ १. स्तवकः | संपूण: । जीणेपत्राणि |
२२७४ वेदान्ततच्वसारः .-- “रामानुजाचार्यः | ३३ | ५।३३| --- संपूणैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
| २१७४ख वेदान्तपरिभाषा .-. „^ धर्मराजाध्वरीन्द्रः| ३४ | ९।४६| शाके संपूर्णो । र्मसजदीक्षित इति कत्रोख्यान्तरं
| १७३८ | म्न्थान्ते |
| २१२२ शिः ७ = =| चव ,,.। २४ ।१५।४२ १९२७ संपूणा |
| द्वः । शः च चल =| ती फ जञ] शु (१ संपूण | जीणैपत्राणि ।
| दण्द | शवं ऋ === ~ चै धतं =| अ (१५ संपूर्णा । प्राचीनपत्राणि ।
| १९९८ | तैव ., === =| सएव ,-| २२ |१४।५० संपूर्णा | प्राचीनपत्राणि |
| १९९४ |. सैव ज == =| सएव र|. ४५ |१०।३० संपूण | प्राचीनपत्राणि ।
२१८२ | सैव ,. = = सएव ..| ३२ (१२।४३ संपूणा |
दन्य | दैवः न्= == = णवं न्ख ए (अदित विषयपरस्च्छिदः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
२०२०क विदान्तपरिभापार्थदीपिका |शिवदन्तः धनप~ | ३७ १५।४२ आगमपरिच्छेदपयैन्ता । संपूण । नवीन-
तिपूरिमूडः पत्राणि |
२०२१] रैव ... „ल „| सएव ...| २१ |१३।४० अर्थापत्तिपरिच्छेदात्समाप्यन्ता । नवीन-
। पत्राणि |
२१७९ कात च वेदा-रामकृष्णाध्वरी | २५ |२५1१०० संपूण | प्राचीनपत्रागि । गूजेर्देशीया
| न्तदिखामणिः धर्मराजाध्वरी- छ्िपिः |
| द्रपुतरः
२०७६ वेदान्तमुक्तावरी सरीका (2)... „.~ *“.| १५ | ९।३८ लण्डिता | मन्थनाम संदिग्धे पत्रप्रान्तेषु
| वे° मु° इति पागद्ठमितम् ।
१९७३ |वेदान्तसंमदः सटीकः (१) |--- --‡ “| ५ | 9२९ संपूण: । मन्थनाम संदिग्धम् । वेदान्तस-
| मरह इति पूैपत्रपृष्ठेऽन्यहस्तछ्िपिः ।
५१ रभूर्ज० वेदान्तसारः - “| 0 ७ (१७।१८ संपूर्णः । भूरपत्रष शारदालिपिः ।
१५० वेदान्तसारः ... सदानन्दः “| १६ १८।२० संपूर्णः । भूजपत्रेषु शार्दाटिपिः । परव
त ग्रन्थाद्विमिन्नः |
इवे । पए क == = तः एत ९५ ^ १२।२५| १८५७ | संपूर्णः |
|
|
|
|
|
|
[२४०८-२४२५५] वेदान्तशासखरम् । | ९२७
श्रेणयः.
प्रन्थाङ्ः. म्रन्थनाम, कतृनाम, पत्राणि, | अक्ष- 8 संवेदनम्.
राणि, कटर,
९४२ वेदान्तसारविवरृतिः चिद्रन्म- रामतीधैयतिः कृ- ४७ १६।५४| ... [संपूण | नवीनपत्राणि |
नोरञ्जनी ष्णतीथशिष्यः
२०४९ वेदान्तसारटीका सुबोधिनी नृसिंह सरस्वती | ४७ | ८।३७| १७३५ | <.पत्रं विहाय संपूणौ | टीकाविरनका-
कृष्णानन्द शिष्यः ठः शके १५१० |
९४४ | सैव ,.. ,.. ',.| सए ...| १८ (२१।५६ १८५६ संपूणी |
१८५१ | सैव... ... ,.| सए ...| ५१ |१२।२९ ४ |
९९४ | सैव ... ... ..| सएव ...| ४२।१४।४५ ... [संपूण |
२०६० तितः ज अष अ तशव == ~ ०।३५ ... | संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१८४७ | सैव ... ... ..| सए ...| २५।१८।४१| ... | संपूण | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
१९६१ वेदान्तसारसंम्रहः... ...मटगोवधनः .-.| १४ |.७।३२| ... | १.पत्रहीनः | प्राचीनपत्राणि | (०,
प्र्]. 101.
१९५२ वेदान्तसिद्धान्तसूक्तिमञ्ज- [गङ्गाधरेन्द सरस्व ४० |१२।४०| ... |संपूणैः । प्राचीनपत्राणि । मूट्टीकयः
रीप्रकाशः ती रामचन्द्रस- क्तकः |
रस्वतीशिष्यः
१९११ वेदान्ताधिकरणमाखा ...|... व 3 9 ¶१9।० जस संपूण | पद्मनिबन्धमात्रा | प्राचीनपत्राणि |
५, । वैयासिकन्यायमाटा वेदान्ताधिकरणन्या-
यरनमाटा च नामान्तरे |
१९२८ वेदान्ताधिकरणमारा ...|भारतीतीर्थः ..-| १३७ | ७।४६ १७७० | संपूगो । १९११.म्न्थे ठभ्यमानानां श-
कानां गद्यद्पं व्याख्यानम् | वैयात्तिक-
न्यायमा वैयासिकन्यायरनमाटेति ना-
मान्तरे मन्थस्य | ०]. प्रणा ]. 98.
२२०३२ | रैव ... ... .. | सएव ...| ९३ | ९५०१७८४ | १.पत्रहमना।
२१९० वैराग्यश्छोकाः (१) क = _ अज ३ |१२।२४| ... | ७३. श्गरेकानन्तरमसमाप्रम् | स्रन्थनाम न
टन्धम् | वै ° रा० इति पाठः पत्रप्ान्तेषु |
२१८९ विराग्यश्रोकाः (2) ... ,.. ...| २१२।३६ ... |असमाप्राः। पाठः २१९०. ग्रन्थेन समानः|
५२००१ |रशाकरसर्वस्वम् ..- --- वेदान्तवागीश- ८ | ८।३७/ ... | संपूणैम् । जीर्णतरपत्राणि |
भट्ाचार्यः
१९९१ शाखविद्धान्तटेशसंम्रहः . . - अप्यदीक्षितः रद्ग-| ७२ |११।५२| ... | संपूणैः | जीर्णैपत्राणि |
रजमलिपुत्रः
१९९३-९५ स एव ... ... | पएव ..| ७१ |१३।५३| ... |संपूणैः |
१मू्ज०| सएव... ..~ .. सएव ..| ४५१४।२३ ... |असंपूणेः | १.-४४.५६.-६५.१०१.
पत्राणि न सन्ति |
१२८ वेद्रान्तशाखम् । [२४२९-२४४०
सि सयित ५२
ऋक्ष कषय ष्
श्रेणयः, खिपि
मन्युः. ग्रन्थनाम, कतुंनाय, पृत्राणि,| अक्ष (क
१,
राणि,
ॐ
संवेदनम्.
२१२१-३४|शाखसिद्धान्तटेशसंग्रहव्या- जच्युलङृष्णानन्द्-| २०१ |१८।४६। १८६२ | संपर्णैः | नवीना काश्मीरिकी लिपिः |
ख्या कृष्णारंकारः तीश्रः स्वयंप्रका-
शानंन्दतीथरिष्यः |
"म | शव == ज खं छा रर ककव (| १.परिच्छेद्ः | संपूर्णः |
९११९ [ुकाष्टकव्याख्यानम् .-- गज्ञाधरेन्द्रसर- | ६ १५।३८| १८६३ संपूर्णम् |
स्वती रामचन्द्र
| सरस्वतीरिष्यः
१०६८ | तदेव =. ,.. „| तवेव ...|' ४ १६।२६् ‰.. असमाप्रम् |
९१९५८ श्रद्धाप्रकरणम् ... ...... ०० ०. १६ ।१२।३६| ... संपूर्णम् | म्न्थनानि संशयः | अद्रैतप्र-
करणमिति पुप्तकान्ते नाम द्षटम् | परा-
` चीनपत्राणि |
२०९५ छुत्तिसारससुद्धरणप्रकरणम् तोटकाचार्यः ...| ३ |२१।७६ ,.. संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
१८ सूज ०पद््दरौनविचारः ..- .-^ |... -.- | ९१६१७ .. संपूणः | भूजपत्रेषु शारदाखिपिः । मन्थ्-
| नाम स्पष्टतया न् ट्टम् |
२०८८ (पद््दशंनससुचचयसृत्राणि |हरिभट्वाचार्यः...| ४ |१०।४९| ... |संपूर्णानि | प्राचीनपत्राणि |
१८९४- |संक्षेपशंकरजयः ... ... माधवः - “| १५२. | ९।३५ १८५२ पयायसदितः । शेकरदिजिजय इति म-
१९०७ न्थनामान्तरम् | १.२. सर्गौ नष्टौ ।
र< | सएव... ~ “| एव ...| ७ | ९४३ ... |२.सरगैः | १.-५.श्रेकहीनः।
५२५ [संक्षेपं करजयव्याख्या शंक-धनपतिसूरिः रा-| ४ [२०।५६। १९२५ १२.सगः | ३.पत्रहीनः |
रदि ग्विजयदिण्डिमः मकुमारपुत्रः
० | सएव... ~ “| सएव ...| १९।२०।६६् ... | १५. समैः | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी
लिपिः |
१८७६ |संक्षेपशारीरकटीका विच्या-सर्वक्ात्ममदासु- | २५५ |११।५२्/ ,.. संपूण | प्राचीनपत्राणि |
तवर्धणी निः देवेश्वरशि-
ष्यः | राघवानन्द्-
सरस्वती अद्रय
भगवत्पादशिष्यः
२०१६-१९ संक्षेपशारीरकटीका सारसं- |मधुखूदनसरस्ट- | ३२८ |१२।४४। १९२७ | संपूण ।
अहदीपिका ती विश्वेश्वरस-
रस्वत्तीरिष्यः
९९६६ |सत्सुखानचुभवः ... ...इच्छारामस्नामी | २३ ९। “ १८५९५ | संपूर्णः | पच्चप्रकरणीयपि नामान्तरमस्य
(010]). {५11 7. 129.
[२४४१-२४५७]
वेदान्तशास्रम् । १२९
~ "~ = (द न प्रन्थनाम, कतृनाम, पत्राणि, अ संवेदनम्,
ध
१९९४ |सदाचारप्रकरणम्.-.- . . शंकराचार्यः ...| ५ | ९।२५/ संपूर्णम् |
१३५९ (संन्यासविचारः (९) ...... -*“ ० < |११।३७ ण्डितपत्राणीमानि संन्यासविचारविषय-
कानि कस्यापि वेदान्तप्रवन्धस्य यस्या-
भिज्ञानं न संभूतम् | प्राचीनपत्राणि |
<१४ग|साघधनपञ्चकम् ... ... शंकराचार्यः ...| १ | ११।३४| ... . | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
१०१४ |साधनपञ्चकरीका "भूधरः .-- “| ६ |१२।२७| ... संपूणो
१९२९ सि द्धान्ततच्वविन्दुः . . .शंकराचायैः । म- ४४ | ९।२८| ... संपूर्णः | चिदानन्दस्तवराजटीका |
धुसूदनसरस्वती
१७ | सतणए्व . - “| तावेव ...| १४। ९।३४| ... | संपूर्णः |
पव्र्च्क| तएव. -- “| तावेव ...| २१ १०।४५ १७५९ | ६.पतरहीन^|
प्रप | पतषएव .“ ~ ~| तावेव ...| २० |१६।३७१९१६ संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी रिपिः |
०९२ | तएव... -- ~ तवेव ...| १५।१६।४८ ... संपूरणैः | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
२०४८ सिद्धान्ततच्वविन्दुटका न्या-मधुसूदनसरस्व- | ३५ [२२।८८| १८५५ संपूण । मूजरदेशीया लिपिः |
यरलावरी ती । बह्मानन्द्-
सरस्ती
२१७५ |सिद्धान्तरलमाला... .. . भ्रीवत्सदामी ... < |१०।५१| ... |अपममाप्रा । प्राचीनपत्राणि |
*१९८८ [सिद्धान्ताद्तम् ... ..- विद्कटनाथःवेङ्कटा-। १८ (११।३६ , ¦ संपूर्णम् । प्राचीनपतच्राणि |
ध्वरििरमूतः
१९८६ स्वात्माववोधः ... ..-- । < |११।४१| ... | ३.पत्रहीनः |
|
| २०४१-४ [स्वाराज्यसिद्धिव्याख्या कैव- गङ्गाधरसरस्वती | १२१ २१।५२ १८ ४५ संपूण । नवीना कारपीरिकी छिपिः |
| ल्यकल्पद्धुमः संवत् १८१६ छिवितं द्विजजीवनेन
| | इत्युत्तरार्धं ट्टम् । मूटटीकयोः करतौकः |
विरचनकारः १७४८ विक्रमादित्यस्ये-
ति कतिसमयसंबोधकश्रेकात्साशङ्ूमवु-
मितम् |
१८४५ | सएव ~ -- „| तएव ...| २१९ |१६।३१| ... (संपूरणः। उत्तराधेमस्य पुस्तकस्य २०४२. पु-
स्तकाद्विक संवत् १८१६ छिठितादव-
तारितम् | नवीना कार्मीरिकी छिपिः |
१०९७खहरिमीडस्तोत्रम् ... ... राकराचार्यः १८।१५। ... | संपूर्णम् | नवीनपत्राणि |
१९६७ ।हरिमीडस्तोत्रविवरणम् ... आनन्दगिरिः ..। १७ | ९।३३। ... | संपूर्णम् |
३३
प्ट
=> क ~ ---- -----
= = नि.
शि १)
[1
१३० वेद्ान्तदए्खम् । [२४५८-२-४९१)
न न्म | च सक्या न्न
| सिपि-
त्रापि. | अक्च- | ˆ“! संवेदनम्.
कृ{ङ,
राणि, |<
मन्थाङ्कः. प्रन्धनाम, कटठेनम,
।
०५८ |हरिमीडस्तोत्रव्यास्या हरित-स्वयंभ्रकादायत्तिः | १० ।२७।८८| ... |संपूणौ । गरूजरदेशीया लिपिः 1 प्राङीद-
स्वसुक्तावरी कैवल्यानन्द्- | पत्राणि |
१९२३ [हस्तामरुकस्तोत्ररीका “शंकराचार्यः „| ७ | ९।३९ १८५५ |संपूगौ ।
पण्डे | तव् ,.. „~ ,.4 पष्ठ ,..| ६। ५२८... | अमाता ! प्राचीनपत्राणि !
२\/1. ऽ९।५।८।१५.
सांख्यम् ।
[२४६२-२४७६]
नम् ~ [~ द ~ _ & प्रन्थनाम,
[1 - जक्। ` सांख्यकारिकाः कड दश्वरकृष्णः +|
४३९१ | ता एव सएव ...|
६४९्क| ता एव सएव <
९३४ [सांख्यकारिकाव्याख्या सां~नारायणती्थः रा-| ५५
ख्यचन्दरिका मगोविन्दतीथे-
रिष्यः
४३७६ | रैव सएव £
४३९० [सांख्यकारिकाटीका सांख्य-वाचस्पतिमिश्नः | ३०
ततत्वकौसुदी
४३८६ | रैव सएव ४५
२६६ सेव सएव २३
६४९ख| रैव स एव ९१
९३५ | सेव ...| सएव ...| २६
९३२ ।सांख्यकारिकाटीका सांख्यत-|भारतीयतिः बो- | ७
त्वकोसयुदीव्याख्या धारण्ययतिशिष्यः
४३७२ |सांख्यतच्वप्रदीपः ... ---|कचिराजयतिः ९
वैकुण्टञ्चिष्यः
२४९५ सएव... सएव ...| <
४३८० (सांख्यप्रवचनसूत्रभाष्यम् [कपिखः। विन्तान-| ५८२
भिष्चुः
२३०० |सांख्यप्रवचनसूत्रवरृत्तिः .-|कपिखः । अनि- | ४३
रुद्धः
१९।५०
संपूणौः । प्राचीनपत्राणि |
१५।५२। १८२२ |संपूणोः ।
१२।१८ संपूणः । नवीनपत्राणि ।
२०।५० संपूणौ । नवीनपत्राणि ।
२१।८१ असमाप्ता | प्राचीनपत्राणि |
१३।४९ संपूणो | प्राचीनपत्राणि ।
१०।३० संपूणो |
३२।२३ संपूण | नवीना कार्मीरिकी दिपिः ।
१२।१६ संपूणो | नवीनपत्राणि |
१५।५० संपूणो | नवीनपत्राणि |
१४।४८ असंपूणो मध्यत्रुटितत्वात् |
२०।५४ संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
१५।२६ संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
९।३५। १८८८ | १३८.पत्र विहाय संपूणैम् |
७।३६| ईश- | असंपूणौ मध्यञ्चटितत्वात् । फद्ितपुस्तका-
संवत् | दवतारितमिलठमानम् |
१८५२
------------------- -----
प्रः ए, क = क - कः # 9
मन्याङ्कः.
१०२७
२२२७
१९९ द्द्
१०८१
४२८८
९९२
४२७५५
६११०
२१८१९
४२७९
४२८९
४२३८१
२१३८
४२३८४
६४९
2९५1. (064.
[२८.७७-२४९१ |
रुदेदन् म्.
संपूणा | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्ण ! नवीना कारिमीरिकी छ्पिः |
संपूणी } प्राचीनपत्राणि |
संपूृणो । मूखकतुनाम न न्धम् |
१६. पन्नं विहाय संपूर्णम् । प्राचीनस्य"
त्राणि
११।४२ १६६६ | असंपूर्णमारम्माभावमध्यनरुटेः |
असंपूगौ यव्यान्तयोरखावात् । प्राचीनप-
त्राणि |
असमाप्रम् ¦ विवरणस्य तत्कदठेवो
नावगतम् ।
संपूर्णः ¦ योगदृच्यथसंगरह इत्यपि नामा-
न्तरम्
४
तदा नृम
असमा } योगचन्द्िकेति नामान्तरम् :
प्राचीनपत्राणि
योगशाल्चम् ।
म्रन्थनास. कतनाम. पत्राणि. | अष्ष- 0
राणि.
अजपागायत्रीविधानं तन्न... -- ४ |१६।२१ | र
सुधासागर
गोरक्ष शतकम् गोरक्षः १७ | ९।२८
ञ्क २५ | ९। छं ह
योगचिन्तामणिटीका .. दुर्गादासवष्चस्प-| ३ |१६।२८| .-
तिः |
योगसूत्रव्यास्या पातञ्जर-पतञज्लिः ! व्यासः| ७० | ९।३७ ~
भाष्यम्
तदेव तावेव ५१ |११।३७| १८७२ | संपूर्णम् ।
तदेव + तावेव ४१
योगसूत्रव्यास्या पातञ्जर-व्यासः । वाचर्प| २०९ [२२।२०। ..- |संपूणे ।
भाप्यव्याख्या तिमिश्चः
सेव तावेव .| १५६ | ९।३९
योगसूत्रव्याख्या पातञज्जेख-. .. २३ | ९।३७
भाप्यविवरणम्
योगसूत्रवरृत्तिः योगद्त्तिसं-उदयंकरः रिव ३४ | ८।६४| १८४०
ग्रहः करतूखः >
सत प्व... ..| मए ६६ | ६।४६।१९०० | संप्रणः |
योग सूत्रवरत्तिः योरसूत्रगूढा-पतञ्जखिः । ना-| २५ |१२।६०
शृदयोतिका रायणसिष्चुः
योगसूत्रघरृत्तिः राजमा्तीण्डः|पतञ्जलिः। भोज-| ७२ | ७।३५| १५७० | संपू: |
द | ।
स एव् , ,..| तवेव ...| १०८ |१३।१४| ... | संपूर्मैः ।
[२४९२२४९८] योगशास्त्रम् । ९३३
न ~ [~ म्द
तरेणयः. लिपि
प्न्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कतेनाम. |पत्राणि,| भक्ष- संवेदनम्.
[ख*,
राणि, फ
४३६५ [योगसूत्रव्रत्तिः राजमार्ताण्डः पतञ्जलिः । भो-। २७ 6 ।२३ संपूण: । नवीना कारमीरिकी ङिपिः |
जदेवः
२२९६ | सएव ... ... ...| तावेव ...| ७७ | ५।३९ असंपूर्णो मध्यत्रुटितत्वात् | नवीनपत्राणि |
४३९२ [हठप्रदीपिका --~ .“-स्वात्मारामः सह ४६ | ७। । ४. उपदेशपयैन्ता संपूणौ । प्राचीनप त्राणि ।
जानन्दृपुत्रः
४३८३ | सैव ... ... .. सएव ...| २३।१०।३२ ४. उपदे शपयेन्ता संपूण ।
७२३७८ सव॒... ... ..4 सएव ...| ३६१ ०।२७ १८१८ |४.उपदेशपयैन्ता संपूणी |
४९८६ ततुः छ = = प एवं ७ ष १८८७|५.उपदेशपयेन्ता । १.२.पत्रे विहाय सं-
पूणा |
४३७३. ,दटग्रदीपिकाहिन्दीभापरायाम् |र्च्छीरामः ५ |१९।६७। ... (संपूणी । प्राचीनपत्राणि |
३४
३८९/।|1. (५६१५८ ^५0 \/^16/६ 61111९4.
न्यायवेशेए ४
न्यायवेशेपिकम् । [२४९९२५१५]
मा-पा ~ निनि ~
्रेणयः.
द्रन्थनाम. कतेनाम, . (पत्राणि. | अक्ष- (अ संवेदनम्.
राणि, |"
_ _, माण्यस्थापनम् |. -- | १४ | दाचर्| --- संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि। कतृनाम न लब्धम् |
जदमितिपरामौका्कारः रघुदेवन्यायारुं- | १२ |१२।५०| ... | संपूर्णः । पराचीनपत्राणि |
्मावविचार कारभट्ाचार्यः
अदमितिपरामसंका्यकार महादेवः पुण्य- | ३९ | ९।६३| ... | संपूर्णः । मन्धान्ते नव्याइमिति इति नाम
ˆ जमावविचार स्तम्भकरः ट्टम् |
एव ..~ “~ “| सएव ^. ४६ | ९।४१| ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
, ~ परामरशशदेततावि- [दरिरामतर्कवा- | ३२ (१५।४२| १७५५ सूः ।
च्वारः गीशभट्राचायः |
[वि कलः == =| सु एतः +| 94 | ५०१| + संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
, द्राव्दनिराकरणम् |... ६ |१३।४१| ... [संपूर्णम् । कर्तृनाम न च्एम् |
„वृक्षा द्ध द्वित्वयोनौइय- |... ७ |११।३६| ... | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि । कतृनाम न न्धम् (
` नाशकमभावः
जभिधारहस्यम् -* -*-[मधुरानाथः -““| १४ | ५।२७]| जयदेवकृततचचिन्तामण्याटोकटीका । सं-
| पूर्णम् | प्राचीनपत्राणि ।
तदेव ,.. -- -“| सएव „| १३| ९३९ -.. | संपूर्णम् ।
तदेव... .. | सएव ..| 9१| मण्य ... |अरसंपूणमारूमाभावात् |
अमिधाविचारः -- ---|*“* .-. | ७ | ९३५] --. संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि | कठैनाम न च्य्।
| (10170]). 14. 982.
, | सलयनाथयतिः स-| ५१ | ९।५०| १८५२ |शब्दलण्डः । असंपू्णो मध्यत्ुटितत्वात् ।
लनिषितीथशिष्यः
२१ १०।२९। १८३० | तच्चचिन्तामण्यदमानदण्डटीका । संपूणौ ।
कतृनाम न ठ्न्धम् |
१८ [१०।४८ १८३० |संपूणी |
१८ | ९।४४। ... |संपूरणः | कतौ न ज्ञातः । प्राचीनपत्राणि
[२५१५२५३४]
६०८१ |अवयववाद्ः १)
9११ आका्ूवाद् ;
न्यायवैदोपिकम् ।
. रघुदेवभटाचार्यः | ८
१३२२ | स एव ... तएव १८
१२५०क।जआकादावादार्थः ..* ˆ“ --" „८ न
५००६ |आख्यातवादः .. रघुनाथः रिरो- | <
मणिः
१३१७ |आख्यातवादरिप्पनी “^ रघुदेवभटाचा्यः | २५
१३१६ | सैव सत एव २६
१५६८ | सेव ...| सएव १०
१२५५ |आख्यातवादविदटतिः “““ मथुरानाथतकवा- ९
गीः
१३५१ | सेव सएव १९
१३४४ ।आख्यातवादटीका “| ९
*१६२८ |आख्यातविवेकः -- “* ` कष्णमटः स्डुना- | «
धभट्पुत्रः
१५१२ | स एव ... ,..| स एव £
१९६२ [आत्मतत्वप्रवोधः ˆ *** |राघवपञ्चाननभ- | ५
| टाचार्यैः .
१९५६ | स एव ... सएव ३८
१६१४ |आत्मतत््वविवेकदीपिका उदयनाचार्यः ! | १२५
रघुनाथः ताकि
कदिरोमणिः
१५९६ | सेव तावेव ,| १५७
१६०८ | सेव... ...| तावेव २५
१६११ |आत्मतत्वविवेकदीपिका- गदाधरः .| १०१
टीका
१५३९ | सैव, , सएव १८
१०।३१
९।४८
७।२८
१५1५०
१२।५६
२४।७४
१०।४२
१४।४३
९।४६
१२।०५४
१४।४०
११।४२
९।२३४
१०।४६
८५१
६।५८
१२।४२.
१४।४४
असमाप्त | मन्थनाम संदिग्धम् | कती न
ज्ञातः | नवीनपत्राणि |
१८४० | संपूर्णः | तखचिन्तामणिटीकाभाग इति पर
तिभाति।
संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि | कठनाम न द्धम् |
असमाप्त |
संपू्णी | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णा | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णी } प्राचीनपत्राणि |
असमाप्त । प्राचीनपत्राणि |
असमाप्रा । प्राचीनपत्राणि ।
असमाप्रा ] दीकायास्तक्कवैश्च नानी न
दष्टे । प्राचीनपत्राणि |
संपू्णैः ।
संपूर्णः | नवीना कार्मीरिकि लिपिः ।
असंपूणे आरम्भाभावात् ।
रणिरणमेदभङ्गनिससः 1 असंपूणे आर-
म्भाभावमध्यत्रुटितत्वात् ।
संपूणी । गदाधरढृतव्याख्यायां बौदधधिकार
इति नामान्तरं मूठम्रन्यस्यावगतम् ।
संपूणी | नवीनपत्राणि ।
असमाप्रा | नवीनपत्राणि |
असमाप्ता । प्राचीनपत्राणि । बोद्धधपिक्रार-
विव्रतिरिति नामान्तरेण रघुनाथ कृति-
छीकायामामनायते |
असमाप्त ।
.-- न -
न्यायवेरोपिकम् । [२५३५-२५५९]
भ] ~ |~ > €
॥ श्रेणयः, खिपि.
कतेनाम, पत्राणि, | अक्ष-
सेवेदनमू.
कालः,
३ ९. राणि, त
४"
३ त ३ गदाधरः १५९| ६।४५ असंपूणौ मध्यत्रव्यन्ताभावात् | नवीना
४ ३ -स्मत्ववि च ॐ कारमीरिकी ल्पिः | `
९ ९५ शकरा आतर जातिविचार : ...|महादेवः पुण्य २० |१०।३०| ... |संपूणः | प्राचीनपत्राणि | ६०९ प्र] 7.44.
॥/ | ` "°मह स्तम्भकरःमु-
९ ५ | ङन्ददुतः
६ स. | इन्दि द्य ; ० ° ,,, ,..| १० ९।२५ १८८७ संपूणः | क्स्य ग्रन्थस्य भागाञ्यामत न
र | ऽन्क्यवाद। ज्ञातम् |
४६ ३ ९ + ,. ,..|रघुदेवः ,..| ७।१०।३२| ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
+ ग मिण र् धरवादः ए > ०७ ... ...| ९| ९।४८| ... [संपूर्णः | पूत्रस्मादििनः | कतौ न ज्ञातः|
ष 8 (३ प्राचीनपत्राणि |
| ह ... [संपूर्णः | कर्ता न रब्धः | प्राचीनपत्राणि ।
भ ९ प | श्र नलसुखस्थापनवि कः त । ` ४ |११।५१ पूणः |
। से | उन्धूतायद्धलविवेक तरेक २३।८२|। १८४४ संपूर्णः | कतृनाम न ज्ञातम् |
र् | | 9 ०००|००* ब कड ¶ २।८म्द् ५ 1.
स, ‰ ३ = "न कणादरदस्यसंगरह । . कणादः ,..| १८ | ९।४१| ... | संपूणः। प्राचीनपत्राणि | 8५९ प्रथ्] }. 78.
५ ६ कह 4 [कः ह .|मणिकण्डभद्राचा-| २ [२४।८८ संपूर्णम् | त्रिरोचनचन्द्रिकेति नामान्तस् |
# => | कारकखण्डनमण्डन स # *
भ | द | अः यैः गणेशपुत्ः
# 3 रक वयह [९ न्तरम्
3 । ९ फ | कारक्वरिच्छेद तेत; ०. ०* रुद्र भटाचार्यः ..| २१ | ८।२६। १७१३ | सपणः | कार्कव्यूह् इत नाम तरम् ।
॥ %# ५4 # ¢ संपूरणं [हि ।
हे 0 ३ ष्ड्< | एव ...| सएव ...| २० | ८।३९| १८८० | तदु _
से =< | 3 क 4 ,. जयरामः न्यायपः। २५ | ९।३१| १७३२ | संपूर्णः । काखव्यास्येति नामान्तरम् । `
< ४
र । र् | | ञ्ाननभट्ाचार्यः
। हेतो | एव सएव ,..| १२ ।१८।४०| १८४५ | सपूर्णः |
। कृष ~+ २५ २ = एव सएव ... २८ | ९।३६| ... [संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
२६ ६ ९ = व य एव ... ...| सएव ...| १४ १४।४४ ... [संपूर्णः |
स हि ६ ९६ 3 व , ,.| पए ...| ९ १०।४३|१८७४ | असंपूर्ण आरम्भाभावात् |
५ र ` ५ ऋरणतार्थवाद प् , |, ...... . „| २।२०।६१| ... | संपूर्णः | कता न ज्ञातः प्राचीनपत्राणि |
४ ५ ५ ९३२ ` सएव +" + अ ... ...| ५ |१०।५३ १.पत्रं विहाय संपूणैः । प्राचीनपत्राणि |
द ॥ ९ ५६२ क्रिरणावटी ,.. ..- उदयनाचार्यः ...| ९४ | ८।४३। १६८८ दरव्यय॒णपदार्थो | संपूर्णो
र ` तव॒ ..- ... -- सएव ..| ५८ ११।४४ १६८६ |द्व्यपदाथेः । संपूर्णः ।
९ १ ६. क्रिरणावरीम्रकाडा “ न वधमानाचार्यः १०५ (१०।३९ ... | द्रव्यपदाधः असंपूर्णा मध्यन्रुटितत्वात्
५ षसः = / । पराचीनपत्राणि |
गङ्गृश्वरात्मजः
| त्वावादरहस्यस् ० | + अ क
९।५१ संपूर्णम् । प्राचीनपच्राणि | कतौ न दष्टः |
[२५५७-२५८ ०]
न्यायवेरोषिकम् ।
९३७
च १ र
5 छ्िपि- +
कतृनाम. [पत्राणि.| अक्ष द सवद्नम्.
राणि, ष
१५१४ खण्डनभूषामणिः ...|-.. १६८ |१०।४७ असंपू्णं आदन्ताभावात् | अन्तिमपत्रपू-
` ° स्थं ्रन्थनाम संदिग्धम् | कतौ न ज्ञातः|
१३१४ (गुरुविपयतावाद्ः ...|... १६ |११।५१ संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि | कतौ न खन्धः |
१२६५ ज्तानद्यकारणताविचारः...|... ५ |१६।८२ १६५३. संपूण | कता न् ज्ञातः |
9 1.0 ९ |१२।३७ संपूणैः | प्राचीनपत्राणि | ६०९ प्र] 7. 51.
१९७६ त्तानरक्षणा ..+ „|... ५ |१३।३८ संपूणो | 8८८ 119] }. 47.
१५७५ तत्चचिन्तामणिः ... गङ्ध-धर १० |१५।५६ अतमानलण्डः | असमाप्रः | प्राचीनपत्राणि |
१३९२ सए ,.. स्प ११ १२।४२ उपमानलण्डः | संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
१३९३. | स एव ... सण १० |१२।४३ उपमानखण्डः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
१५५८ | स एव सए १९ [२९।८६ प्रयक्षखण्डः | संपरणैः |
१६२७ | सएव... सएव .| १०० |११।३९ प्रयक्षवण्डः | पत्रं विदाय संपूणैः |
१३९० | सएव ... सएव .| १२६ | ९।५४| १६०६ | शन्दुण्डः | ९९.पृत्र विहाय संपूणैः |
१३९४ | स एव ... सए .| ११७ |११।४६ १८०६ | गन्द लण्डः | असंपू्णे आरम्भाभावात् |
१३९५ | स एव . सए २७ १०।४६ रब्दखण्डः | खण्डितः | प्राचीनपच्राणि |
१३८९ तत्त्वचिन्तामणिटीक्रा गृढा-रघुदेव ५० | ७।७३ अतमानपरिच्छेद्ः । अस्माप्रः । प्राचीन-
थतत्वदीपिका पत्राणि |
१५१३ | सेव सत्ए १९ | ८।३७ अवमानपरिच्छेद्ः | असंपूर्ण मध्यत्नुव्य-
न्ताभावात् |
१४४० |तत्त्वचिन्तामणिटीका तत्वरघुनाथः तारकिंक-| ४३ |१३।४५ अनुमानलण्डः । असमाप्त |
चिन्तामणिदीधितिः दिरोमणिः |
१६०७ | रैव सम॒एव॒ ...| २८ | ६।५४ अवुमानण्डः सिद्धान्तटश्षणपयैन्तः
संपूणैः ।
१४३८ | सैव सएव .| ११३. | ६।३५ अतुमानखण्डः | खण्डितः | प्राचीनपत्राणि |
१५०६ | रैव सएव २. (१२।४१ अत॒पानलण्डः | ठण्डितपाठः |
१५८७ | सैव तएव १ ४२।२२० अतुमानखण्डः संगत्यठमितिपयेन्तः । सं-
पूर्णैः | गूजरदेशीया ल्पिः |
१६१० | सैव सएव ३१ |१६।३३।१७४६ | प्र्यश्चलण्डः | संपूर्णः |
१५८८ | सैव स एव ६ |२६।७६ व्याप्रि खरूपनिरूपणम् | असमाप्रम् | गू-
जेरदेशीया लिपिः |
१४८३ ।तत््वचिन्तामणिदीधिति- गदाधरभट्टः ८५ |१०।४६ असंपूणारम्मान्ताभावात् | प्राचीनपच्राणि |
टिप्पनी गादाधरी
१४७८ | रेव सएव २२ | ९।३९ असंपूणारम्भान्तामावात् |
३५
~ कनक क
[२५८१-२५९९
१३८ न्थायवेरोपिकम् ।
न न | = वप न्न
मन्थाः, ग्रन्थनाम. कतेनाम, पत्राणि. | अक्ष-
राणि.
१४८४ (तत्वचिन्तामणिदीधिति- गदाधरभट्ः ...| ८५ |१०।६०
दिप्पनी गादाधरी ५
१५२१ | रैव ... ... .../ सएव ,| ११७ ।१६।३६
१५२० सैव ... ... ... पषण „| ११० |१६।४६
१५२४ | सेव ... .-. | म एव ४७ १६।४२
१४९९ | रैव ... ,,. .. सएव ५८ ११।५७
१५२३ | रैव ... ... ...| सएव ८३ (१६।४२
१५९७ | रैव ... ... .. सएव ८ |४२।११०
व. । चितं + == ==) त तं ३१ | ९।४५
१५२५ | रैव ... ~ ... सए ६२ |१६।४४
१५९० | रैव... ... ... सण १२ |४१।११०
१४८६ | रैव ... ... ... सएव १७६ |१०।५१
१५२२ | सैव ... ... ...| सएव ४० (१६।४९
१५२७ | रैव ... ... ...| सएव ५० |१६।३९
१४८२ | रैव... ,. ... मणएव „| १५१ | ९।४५
१४७९ | सैवं ... ... ...| सएव ,| १५७ | ७।४७
कद । रैव ^= ज नन प एव २५ १६।४९
१४८७ | सेव ,.. ... ... सएव ...| १२३ | ९।४७
१५७६ | सेव ... ... .-. सए .| २६ |१६।६०
९१४८० सैव... ,.. | सण ,| १६१ | ८।४८
अतुमानखण्डः ] असंपूर्ण आरम्भाभाव-
मध्यत्नुटितत्वात् । प्राचीनपत्राणि |
अनुमनछण्डः । असंपूर्ण आरम्भाभा-
वात् | नवीना कारमीरिकी च्िः।
अठमानखण्डः | असंपूर्ण आरम्भाभा-
वात् | नवीना कारमीरिकरी स्पिः।
अढमितिलक्षणम् | असंपूणं मारम्भान्ताभा-
वात् | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
अवयवम्रन्थः | संपूर्णः |
अवयवनिरूपणम् । संपृणम् | नवीना का-
रमीरिकी चिपिः।
अवयवनिखूपणम् | संपूर्णम् । मूजेरदेशीया
लिपिः |
आकाह्ावाद्ः | असंपूर्ण आदयन्ताभावात् |
उपाधिवाद्ः | असंपूर्णः । नवीना कामी.
रिकी ल्षिः।
कूटवटितम् | मध्यनरुटितम् । गूजेर्देशीया
लिपिः | |
परक्षतामरन्थाद्रयतिरेकम्रन्थान्ता | संपूणो ।
पक्षताम्रन्थः । संपू्णैः । नवीना कारमी-
रिकी लिपिः |
पक्षताम्न्थः | संपूर्णः | नवीना कारमी-
रकी लिपिः।
प्रयक्ष्वण्डः । अप्तमाप्रः |
प्रपाणखण्डः | अप्तमाप्तः |
व्यापरिपूवेपक्षः । संपूर्णः । नवीना कारमी-
रकी ल्पिः|
शब्द् प्रमाणनिरूपणम् | असमाप्तम् |
सामान्यनिरुक्तिः । संपूणो |
सामान्यनिरक्तिः | असमाप्रा | नवीनां
कारमीरिकी टिपिः | ग्रन्थनाम सामान्य-
निरुक्तिकोड इति अन्यदृस्तटिद्ितं दृष्टम् ।
[२६००-२६१८] न्यायंवेरोषिकम् । १३९
छि ह
मन्यः ना > भेणयः छिपि- ॥
न्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कवृनाम. (पत्राणि. | अक्ष- संवेदनम्.
। राणि कलः, %
१५५२ [तच्वचिन्तामणिदीधिति- [गदाधरभटहः ---| ६ [४०१०६ ... |सिद्न्तलक्षणम् | अप्तमाप्तम् । गृजरदे-
टिप्पनी गादाधरी ठ रीया ल्पिः |
| १४९७ तत्वचिन्तामणिदीधिति- [कृष्णभट्ः रङ्गना-| २६ [११।५८| ... |अछमानलण्डः | असंपू्णं आरम्भाभावात् |
| टीकागादाधरीकारिका | यपुव्रः नाराय-
| णातुनः |
| १४९३ | सैव सएव ६० (११।६०| ... |अतमितिः । संपूण |
१४९१ | सेव सएव १७ (११।५६ ... |अवच्छेदकत्वलक्षणम् | संपूर्णम् |
१५०१ | सेव सएव ...| १४७ (११।५५| ... |अवयवम्रन्थः | संपूर्णः |
१४९५ | रैव सएव १९ (११।६१| ,.. |असिद्धिमन्थः | संपूर्णः |
१५०० | रैव सएव ...| २४ ।११।५८| ... |पूवपश्नम्रन्थः | संपूर्णः |
१४८९ | रैव सएव .| ११२ ११ = ... | सामान्यनिरक्तिः | असंपूणो रम्भाभावात्।
१४९० | सेव ... ~ „| सएव १३ ११।५९| ... | सामान्याभावग्रन्थः । संपूर्णः |
१४७७ ।तत्वचिन्तामणिदीधिति- १० ।११।३९ ... | शकटमात्रा | कों भागोऽयमिति न ज्ञातः|
टीकागादाधरीरीका टीकायास्तत्कवश्च नामी न च्े |
१४९४ तत््वचिन्तामणिदीधिति- २४ ११।५५| ... | कूटघटितलक्षणम् | संपूणैम् | टीकाकर्तु-
टीकागादाधरीरीका नाम न न्धम् |
१४९८ |तत्वचिन्तामणिदीधिति- १३ (११।५९| ... | लिङ्गकरणता | संपूण | व्याख्याकतौी न
टाकागादाधरीरीका ट्टः |
| १४८१ तत्वचिन्तामणिदीधिति- १९ [११।३९| ... |विश्ञेषनिहक्तिः । संपूणी । व्याख्याकतौ न
| टीकागादाधरीटीका । ज्ञातः |
| १४९६ [तत्व चिन्तामणिदीधिति- १७ |११।५५| ... | व्यतिरेकिम्रन्थः | संपूर्णः । टीकाकर्तेनाम
| शकागाद्ाधरीरीका न रन्वम् |
| १४९२ |तत्वचिन्तामणिदीधिति- १८ (११।५८| ... | सहचारिमरन्थः | संपूणैः । टीकायास्तत्क-
| टीकागादाधरीरीका तुश्च नाम्नी अज्ञाति |
१४६६ तत्वचिन्तामणिदीधिति- . [जगदीङातकलं- | ४३ | ६।३०| ... | खण्डिता । मन्धनामाठमिते पत्रप्ान्तद््ट -
रिप्पनी जागदीशी कारः त्वात् |
१४५९ | रेव तएव ४८ |११।५०| ... | खण्डिता । प्राचीनपत्राणि |
१५३१ | रेव सएव .| २८७ |११।४०| ... |अठ॒मानखण्डः सामान्यटक्षणम्रन्थान्तः |
असंपूर्णो मध्यनुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि।
१५९९ | सेव ... सएव ६५ | ७।५४| ... | अन॒मानखण्डः अठुपितिम्रन्धान्तः । सं-
पूणैः |
१४० | न्यायवेरोपिकम् । [२६१ ९२६४० |
न ~ [~ द न `
|
ग्रन्थाङ्गः. ग्रन्थनाम. कतनाम, पृत्राणि,। अभ्र ~~ सवेदनम्.
राणि,
। 1
१६०४ [तच्वचिन्तामणिदीधिति- |जगदीशतकोरं- | ३८ | ९।७८| ... |अदठुमानलण्डः | अनुपितिग्रन्थान्तः । सं-
टिप्पनी जागदीश्री कारः पूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
४६५ | सैव ,.. ... „| सए ...| ७५| ९५३५] ..- |अहुमानखण्डः | अप्तमापतः |
१४५२ | सेव सएव ...| १७ | ९।४०| ..- |अठमानलण्डः | असंपूर्ण आरमाभा-
वात् | प्राचीनपत्राणि |
१४७४८ । रैव .., ... ... पषण ..्| 9४३ | ९।२८| ... अनुमानलण्डस्यैव भागोऽत्र स्यादिति सं-
भावितम् । असमाप्त: । जागदीश्ीति
ग्रन्थनाम ज्ञोधनपत्रे दृष्टम् ।
प४५६ | सैव ... ... ... पषण ...| ६७ | ९।३१| .-. |अवयवम्न्थः | असंपूणं आरम्भान्ताभा-
वात् |
१४६० | सैव ,,, ... „| सए ..| ५७ | <| ... | उपथिग्रन्थः | संपूणैः | प्राचीनपत्राणि ।
१४६७ | रैव ... ... ..~ सए ...| ७८ | ९।३४| ... |उपाधिप्रन्थः| संपूर्णः |
१४५७ तैव... .-~ | सए ...| १३ | ५० ... केव खव्यतिरेकिव।दो ऽवयवम्रन्थान्तः | अ“
समाप्रः |
(४७२ | सैव ,.. ... .. सए ...| २२११।४१| ... |केवलान्वयिम्रन्थः | संपूणैः।
४६ | कैव ,.. .. | सएव ...| ३६| ९३२ ... |केवलान्वग्िवादः | १.पत्र विहाय संपूर्णः |
१६७० | सैव ... ... ..| सएव ...| १२११।५१| ... |तकरदीषितिः। संपूणा |
0४९४ | शितं न == >| दपः ० १४. ०१७ र तर्कदीधितिः । असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि।
१४५५ | सैवं ,. „न= == सः जून य | ‰| => द्वितीयलक्षणाद्यपिक्ररणधमौवच्छिन्नाभाव-
पूर्वप्नान्ता | असमप्रा |
१४७५ तैव ... ... ...| मए ...| ३२ १4 ४७६ ,.. | पक्तादीपितिः। असंपूणो मध्यन्नुरिततात्।
प्राचीनपत्राणि |
१४६९ | सैव ... ..+ ...| सष .-.| ५८ | ८।४०| -.. प्रश्रतादीपितिः | असमाप्रा प्राचीनपच्राणि।
१४७४ सैवं... `... .. सएव ...| ३० |१४।५८| ... पश्तादीपितिः। असमाप्त | प्राचीनपत्राणि|
१५७८ सैव ... ... ..~ सए ...| ११२१८ ... पश्चटश्रणी | अप्माप्रा |
(थ्य | तेव ,.. ... | सण | ६६ | ९३७ ... | परामशेमरन्धरहस्यम् | असंपूर्णमारम्भामा-
| वात् |
१६० | रैव ... ..~ . सएव | १५७ | ६।६द्| ... पूर्वपश्नम्रन्थास्सिद्ान्तलक्षणान्ता । असंपू-
णौरम्भामावमध्यत्रुटि तत्वात् ।
१४७ | दैवं न= ० = द्वं , रजन < (१ ० | श्रद्^व. । संपूर्णः । प्राची नपत्राणि |
१५०२ | सैव ... ..~ ..| सएव ...| ३९ | ९४६ १८३२ |व्याप्युगमः । संपूर्णः । पूर्स्मादारम्मभे
पाठापिक्यमत्र |
१४द्४ | तैव ,., . „| सएव „4 < ।१०।४०।१८३०।व्याप्यदगमः । असंपूणं आरम्भाभावात् ¦
[२६४१-२६९६१ स्यायवेरोषिकम् । ९७१
न = | ष्च न्न प्रणयः. सिपि. ॥ि
म्रन्थाङ्ः. ग्रन्थनाम, कत्रूनाम. पत्राणि, | अक्ष- त सवेद नम्.
राणि, (9
न
१४५३. (तत्वचिन्तामणिदीधिति- [जगदीरतकीलं- | ७८ | ९।४१| .. | सत्प्रतिप्नः । खण्डितः ।
रिप्पनी जागदीरी कारः
१४७३ | रेव .-. . ~| सएव ...| ३७ ११४३ ... |साधारणमन्थात्सव्यभिचारपर्थन्ता | संपूर्णा |
| प्राचीनपत्राण |
१७५१ | रेव... ~ „| सएव ..-| ५० | ९४७१८३१ | सामान्यलक्षणम् | संपूर्णम् |
१७४५ | सेव ..- -. | सए ..| ६० | ९३३१८३३ | सामान्यटक्षणम् । संपूर्णम् ।
१४६२ | रेव ... ... ,.| सए ...| १९| ९।४६| ,.. सामान्यलक्षणम् | खण्डितम् | प्राचीनपत्राणि।
१४६१ | रोव ... ~ ...| सए ...| ५२|९।३८| ... | सामान्यामावाद्विशेषव्यापिपयन्ता | अस-
माप्रा | प्राचीनपत्राणि |
१४५० | सेव ... .. „| सएव ...| ४४ १०४२ ... |सामान्यामवाद्धिरेषव्याप्तिपरयन्ता ] अस-
व मपा |
१४५८ रोव ... ,.. ..| स ५1 + - | ३२ |१०।४९। १८३० | सिद्रान्तम्रन्थः | संपूर्णः |
१४४३ | सेव ... „~ „| सएव ...| ३० |॥०।४७।१८३१ | तिद्धान्तम्रन्थः। असंपूरणा मध्यनरुटितत्वात् ।
१५३४ तत्वचिन्तामणिदीधिति- |रामङृष्णमटह्ा- | ५८ |१२।६५| १७१३ | गुणश्चिरेमणिसीका | संपूणो |
। टीका चायः
*१३९१ |तच्वचिन्तामणिदीधिति- [विश्वेश्वरः लक्ष्मी-। ११४ (१२।४७] .. संपूर्णः । नवीनपत्राणि |
टीक्रा दीधितिप्रवेडाः धरपुत्रः
१३१९८ (तत्वचिन्तामणिदीधिति- |भवानन्द सिद्धा- | ५४६ |१०।४८|१८०२ |संपूणौ ।
व्याख्या भवानन्दी न्तवागीदाः ।
१७२९ | सेव ... .~ „| सए ...| २९।१०।४७ ... |आरम्भमात्रा | प्राचीनपत्राणि |
9 १४०७ सेव ... ... | तण ...| ८५ ।११।५३ ... |ण्डितपाटकूपा | प्राचीनपत्राणि |
१४०० | सेव ... -.. ..| सएव ...| ७४ ।११।४२| ... |अनुमानलण्डः | असंपूणं आरम्मान्ता-
| भावात् |
१४०१ | सेव... „~ -.| तए ...| ५९| ८५९ ... |उपाधिवादः | असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
१४०२ | सेव् ... ... „| सख ...| २३ | ७।५०| ,.. पूवपक्चलक्षणम् । संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
१४०५ | रेव ... ..~ ..| सएव ...| ११| ७८० ... |व्याप्यदगमः | असंपूणं आरम्भन्ताभा-
वत् | प्राचीनपत्राणि |
१३९९ | रेव ..: ..~ „| सएव ...| १३।१०।६५| ... |सह्चारितर्मरन्थौ | असंपूणावादयन्ताभा-
वात् | प्राचीनपत्राणि |
पण्णे | सेव" „~ | सए ...| ४२। ८६० ... | सामान्यलक्षणम् | वण्डितम् } प्राचीनप-
| त्राणि |
१४०४ सेव... ,.. ,.| स एव॒ ...1 २३। ७।५६। ... । सिद्धान्तलक्षणम् | संपूणम् | प्राचीनपत्राणि।
१४२ ल्यायवेदोषिकम् । [२६६२२६७८]
त] न्न | न्ध न्न
| श्रेणयः. लिपि.
ग्रन्थाङ्कः. म्रस्धनाम,. कतृनाम, पृश्राणि, | अक्ष- रः संवेदनम्.
राणि, ४
व 1
१३८६ (तत्वचिन्तामणिदीधितिव्या-मह दे वपण्डितः | ११९ |११।४८| .... उपाधिवादः | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
रव्याभवानन्दीप्रकाशः पुण्यस्तम्भकरः
एकः
१४०७ | सएव ... ... .-.| सएव ...| ६३ |१२।३८| १८१० ज्ञपनिरहस्यम् | संपूर्णम् |
१२३८३ | सएव ... ... | सए ...| ५३ |११।४०| ... तर्कीम्न्थप्रकाश्चः | संपूर्णः | प्राचीतपत्राणि।
१३७८ | सएव ... ... .-| सए ...| २६२ |११।३५ .-. व्याद्नपू्वपक्षप्रकाड्ञाद्वच्छेद्कटश्रणप्रका-
शान्तः । संपूणैः | प्राचीनपत्राणि ।
१३८५ | सएव ... .-. ---| सएव ...| २५ |१०।३द् -.. व्याघ्यतुगमप्रका्चः। संपूर्णः पराचीनपत्राणि।
१३८२ | सएव ... ..~ „4 सए ...| १२|११।२१| .-- |सहतरास्त्रन्थपरकाशः | असंपूर्ण आरम्भा-
भावात् | प्राचीनपत्राणि |
१३८० | सएव ... ... -.| सएव ...| ३७ |११।३५| ... सापान्यलक्षणपूरवपक्षप्रकाशः । संपूर्णः |
| प्राचीनपत्राणि |
१३८१ तशव... ..„ --| सएव ...| ५५ ।११।३३| ... | सामान्यलक्षगपकः । संपूर्णः । प्राचीन-
| पत्राणि |
१२७९ | सएव + === =| स एव ...| १७७ |१०।३५| “^. मामान्याभावप्रकाशाब्याप्रिम्रहोपायपूेपक्ष-
प्रकाशान्तः | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
१२८४ |तत्वचिन्तामणिदीधिति- दिनकरः „| २१२ |१०।४०| --* |असम्रा | प्राचीनपत्राणि |
व्याख्याभवानन्दीव्याख्या
१३७५ |तत्वचिन्तामणिदीधिति- [महादे वपण्डितः | ४८०
व्याख्याभवानन्दीव्याख्या | पुण्यस्तम्भकरः
११।५०| १८०९ | संपूणां |
------_-~- - ~ ~
- - ------- - -- ----------- -- ------- - --- ---- ------- --- ------- ` ----
सर्वोपकारिणी पुकुन्द्पुत्रः |
१२७७ | सैव... - -*| सएव “| २७१ |११।५५्| -.. असंपूणौरम्भाभावात् । प्राचीनपत्राणि ।
१३७६ | रैव ... = -| सएव ...| १९२ | ९।५३| -.- सिदान्तलक्षणव्याख्यामारभ्योपाधिग्रन्थ-
व्याख्यान्ता । असंपूणौरम्भाभावात् ।
प्राचीनपत्राणि |
१५०४ |तत्वचिन्तामणिदीधिति- |... .. | ५९ |१०।४६ -- उपाधिवादरहखम् । प्राचीनपत्राणि । टी.
व्याख्याभवानन्दीटीका कायास्तत्कुश्च नाम न न्धम् |
१५१० तत्वचिन्तामणिदीधिति- |... „-* -**| ६७ | ९।५०| -* |अत्तमा्रा |
व्याख्याभवानन्दीरीका
५४१० |तच्वचिन्तामणिटीधिति- मथुरानाथतकैवा-| ७१ | ९।४०| .-- |आरर्भमत्रा । प्राचीनपत्राणि |
ध्नः न्नाधुतं गीः
१४१५ | रैव... == = सएव „^ रर । ५14 | असंपूणौरम्भान्तामावात् | प्राचीनपत्राणि|
[२६७९२६९४]
न्यायवेरोषिकम् ।
१५७२
ग्रन्थाङ्कः,
१४११ तत्वचिन्तामणिदीधिति-
९३८७
१४०९
१४१४
१४१२
१४१६
१२३८८
९४०८
९४१७
१४२२
१४१३
१३.९६.
१४१८
१५०७ (तत्वचिन्तामणिदीधिति-
भअन्यनाम,
टीका माधुरी
रैव
सेव
सैव
सैव
सेव
सैव
सैव
सैव
सेव
सेव
सैव
सेव
टीका रौद्री
१४२० | रैव
१५३३ | सेव...
कतेनाम,
गीदाः
स्ख
सएव
सपव
सप
सएव
सस्व
सस्व
सप
सएव
सएव
सएव
सपए्व
रुद्र भट्टाचार्यः वि-
यानिवास्पुत्रः
त एव
स॒ एव
मधुरानाथतक॑वा- २६
| २८०
७२
४१
८३३
2२०
मद्
*| २०४
| १८१
७१
१२
७८
२९
९७
„| १२८
श्रेणयः. _
पत्राणि. | अक्ष-
राणि,
९।३४
७७४
१२।३२
१३।४८
१२।४५
१०।३७
७७३
९।४८
क्पि-
काठः.
१७७६
९।४२| ,..
८।३८
१५।५०
१२।८४१
११।२७
९।३२
१२४
संवेदनम्,
असंपूणोरम्भान्ताभावात् | प्राचीनपत्राणि |
अदमानरहस्यम् । असंपूर्ण मध्यत्रुटित-
त्वात् | प्राचीनपत्राणि |
अनुमानरहुस्यम् ] असंपूणे मध्यत्रुबन्ता-
भावात् | प्राचरीनपत्राणि |
अदठमानरहस्यम् | असंपूणैमारम्भाभावम-
ध्यतरुटितत्वात् |
अलतुमानरदस्येऽथौपत्तिरदस्यम् । असंपू-
णमारम्माभावमध्यत्रुटितत्वात् । प्राची-
नपत्राणि |
अठमानर्हस्ये ऽवयवप्रन्थरहस्यम् । संपू-
णम् | प्राचीनपत्राणि |
अतुमानरहस्येऽवयवप्रन्थरहस्यम् । संपू-
णम् |
गुणदीपितिरहस्यं रूपम्रन्थरहस्यान्तम् । सं-
पूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
प्रलयक्षस्हस्यम् । असमाप्रम् । प्राचीनप-
त्राणि |
प्रयक्षरहस्यमन्यथाख्यातिर्हस्यान्तम् । सं-
पर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
व्याप्रि्रहोपायर्हस्यम् । असमाप्रम् | प्रा-
चीनपत्राणि |
शग्दपरिच्छेद्रहस्ये शन्दप्रामाण्यरहस्यम्।
संपृरणम् | प्राचीनपत्राणि |
शब्दरपरिच्छेद्रहस्यं विधिविचारपयैन्तम् ।
असंपूणमारम्भाभावात् | प्राचीनपत्राणि।
अलमितिपरीक्षा । असंपूणोरम्भान्ताभा-
वात् |
प्रयक्षदीधितिपरीक्षा । संपूण | प्राची-
नपत्राणि |
८।५३| १६९७ | प्रयक्षदीपितिपरीक्षा | असंपूणी मध्यतरुटि-
तत्वात् |
न
3
॥ 16 प ।
क.
चै
= 9- षै (* कनति #
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६5
१४६३ ख्या. तिवर्यैः
३४८८ ।तच्वचिन्ताम णिदीधिति- ४
रीका
१३५७ तत्व चिन्तामणिदीधिति- ११
टीका
६४२५ |तच्वचिन्तामणिप्रकाशः ... रुचिदत्तः देवदत्त-| १६५
पुत्रः
१५३२ त.च्व् =-= ७ ज चदव . | २७१
१४२३७ तप्त. * ~ सएव १९३
१४४१ सए... सएव ८४
१४२८ स एव र... सएव १०
१५३४ स प्व... सएव .| १६६
१४२२ छ "श अ सएव १९
१५३७ [तत्वचिन्तामणिमयूखः - - शंकरः भवनाथ- | ५५
पुत्रः
१४३० |तत्वचिन्तामण्यालोकूः ... जयदेवमिश्रःट्रि- २४१
मिनश्रभ्चातुपुत्रः
१४२५ | सएव... ... ,. | सण ६२
१४४२ | सएव... त एवं ९
ल्यायवे श ५
१७४ न्यायवशेषिकम् । [२६९५२७११];
त च | च न न्न
श्रेणयः
न्थन = "| छिपि-
अन्थाङ्ः. ग्रन्थनाम, कतृनाम. पत्र ८ व
| राणि.
० भ भ न नक क णि क =
१५२३५ तच्च चिन्तामणिदीधिति- सद्र मटःचार्यः वि-। ९६ १० ।३.८। १७४७ | प्रयक्षदीधितिपरीक्षा | असंपूणां मध्य॒चटि-
¢ “ऋ ^ ~ । *ॐ
टीका रद्र दयानिवराप्तपत्रः तत्वात् | |
१४२७ | सेव सए ७४ |१३।४४। ... [शव्द्परीश्षा | असंपूणीरम्भाभावात् । प्रा
चानपत्राणि |
१४३२ [तच्वचिन्तामणिदीधितिवि- |... ४५ |११।६१| ... |अवयवदीधितिविय्ोतः । संपूर्णः । प्राची-
द्योतः नपत्राणि | कतृनाम न टनब्धम् |
३४३१। [तत्वचिन्तामणिदीधिततिव्या-नारायणतीथय- | १७० |१०।५२| ... |सामान्यटक्षणादीधितिव्याख्यापर्मन्ता | सं.
पूणा ] प्राचीनपत्राणि |
१२।४४ असंपूणा एम्मान्ताभावात् | टीकायास्तत्क-
ठे नामन ज्ञातम् |
१२।३३ अनुमानदण्डारम्भमात्रम् | प्राचीनपत्राणि{ .
११।५० अय॒मानप्रकराशः | संपणैः | प्राचीनपत्राणि|
९।३८ १६२० | अनुमानप्रकराशञः । असंपूरणो मध्यन्रुटित-
त्वात् |
७।३८ अत॒मानप्रकाशः | असंपूर्ण आरम्भाभा-
वमध्यत्रुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
९।४१| ... |अदुपानप्रकराश्चः | असंपूणं आरम्भाभाव-
मध्यत्रटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
१०।५५ उषमानप्रकाशः | संप्णैः | प्राचीनपत्राणि।
१२।४० प्रयक्नप्रकाश्चः | संपू्णैः | प्राचीनपत्राणि |
१५।५१। ... | प्रयक्षप्रक्राशः | असमाप्त} प्राचीनपत्राणि|
२२।७० रब्द्विवेकव्याख्या | संपूण । प्राचीनप-
त्राणि | |
९।३३ अतुमानपरिच्छेदः | असमाप्रः | प्राचीन्-
पत्राणि |
९।३३ अङुमानपरिच्छेद्ः | असंपूर्ण आरम्भा-
भाव्रात् |
१२।४० उपमानपरिच्छेदः | संपूणैः | प्राचीनपत्राणि|
मरन्धान्तटन्धात्पक्षधर इति कतेनास्नस्त्-
सखचिन्तामण्याटोकमागः स इयठमितम् |
[२७१२-२७३१]
न्यायवेदोषिकम् । १४५
= ~ [= क्च न
त्रेणयः. | ~
मन्याङ्कः. ग्रन्थनाम, कठैनाम. पत्राणि. | अक्ष- त सवेदनम्.
राणि, | ^
१४२१ | “* ` जयदेवमिश्रः हरि-। १४२ (१०।४५ परयक्षपरिच्च्दः | संपूर्णः |
मिश्र्नातृपुत्रः
१४२४ [तत्वचिन्तामण्यालोकदर्षणः महेराकुरः | ९७ | ९।३८| शके |अतुमानाटोकदर्षणः | संपूर्णः |
१५०६
१४२२ [तत््वचिन्तामण्यारोकरह- [श्रीरघुपतिः ...| २२७ (१०।४३ शब्दारोकरहस्यम् । संपूर्णम् । प्राचीनप-
स्यम् त्राणि |
| १४१९ |तत्वचिन्तामण्यारोकयि- [जयरामन्यायप- | ५७१ |१०। ३३ रन्दराटोकः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
वेकः ञ्चाननः |
१५४० [तत्वचिन्तामण्यारोकव्या- |मधुरानाथतर्कवा- ३३६ |११।४०| , शब्दपरिच्छेदाटोकः | असमाप्त | प्राची-
ख्या गीराः नपनच्राणि |
*१४२६ तत्वचिन्तामण्याखोकटीका भवानन्दसिद्धा- | २१५ |१०।४४ पयक्षलण्डः | २३४.२३५.पत्रे विहाय
सारमनज्ञरी न्तवागीडाः संपूण | प्रक्षा टोकसारमज्ञरीति म्रन्था-
न्त नाम | 8९८ प्] }. 39,
१४३६ | रैव | तद्व ^| १२९५।१२।४५ ,.. |प्रयक्षलण्डः | असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
१५०५ तत्वचिन्तामणिटीका ७» = अ "दः (११ परामशटिप्पनी | संपूणौ | प्राचीनपत्राणि |
टौकायास्तत्कवुश्च नाम न ज्ञातम् |
+१६३३ [तर्ककुतूहरुम् ... .... विशवश्वरः ९६ |१३।४०| ... |असमाप्रम् | नवीनपत्राणि |
^६३० ` विशवशवरसूरिः --| ९३ (१२।४६| ... [संपूर्णम् | मरन्थनाम पूसूचीपत्रेन त् पुस्तके
ट्टम् | पूवेप्रन्थाद्विभिन्नपागोऽयं मन्थः |
१२०९ ११ |. ७।५५| १७८७ [संपूर्णम् | कनाम न रब्धम् |
१३१० + -.-| ११| <८।४६| ... [संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
१२२६ -" किदावमिश्रः .-.| २६ १२।५२्/ ... [संपूर्णा । प्राचीनपत्राणि |
१२२५ सएव ..-| ४६ ।१०।२८| ... |संपू्णा | प्राचीनपत्राणि |
१२५७ सएव ...| ४९ | ८।३९| शके | ६.पत्रं विहाय संपूणी |
१५२७
१२२४ प एव॒ “| ४१ | ९।२७] १७८८ |असंपू्णी मध्यनुटितत्वात् |
१५३१ | श्वं च ऊ „| शंप्वं „^ कः | यह , २२.पत्र विहाय संपूण | प्राचीनपच्राणि।
१६२१ (तकैभाषाप्रकारिका ,.. चिन्नभटः (2) --.| ८० |१२।४६ संपूणो | रके १४१९. लिदितपुस्तकादव-
तारितेयं प्रतिभाति |
१२४३ तकंभाषाप्रकारिका ...बरख्भद्रमिश्रः...| ५९ १० ।२०| . ... |असमाप्रा | १.पत्रं विनष्टम् | प्राचीनप-
॑ त्राणि ।
१६२२ (तकेभाषाभावार्थ॑दीपिका ...गौरीकान्तसार्व- | १०० | ३।५७] १८६७| ३५. पत्रं विहाय संपा |
भोमभट्राचार्यः
३५७
,.गोरीकान्तसावे- | १२६
भोमभद्ाचायः
ऊ स पत २७
, , अन्न भटः ७
सएव ध
सए ९
स्ख ७
सपव. ७
५ ** सख ७
पिका.“ “` अन्नमट्ः १५
सएव ... ९
सएव २२
तकसं्रहदीपिकाग्रकाशः , नीटखकण्ठभट्ः स~
ममद्पुत्रः
स पवि ++ ५०७ सएव ७७
चट तर्कसंग्रह दीपिकाविवरणं हनुमान् व्यासा- | २७
व | अभा चायैपुत्रः
हट र्धनिरुक्तिः १५६
\ अ मरहव्याख्यानं सिद्धाः कृष्णधूर्जटिदी- | ४२
ष ५ ५९ | न्तचन्द्रोदयः क्षितः
१५६ ४ 9 [5 एव ^. सएव ३६
४,९ ४ प | स एव .. सएव ५३
९९ त. त्कसंमहव्याख्या सिद्धान्त भाद गंडासिवः | २२३४
, २ चन्द्रोदयः हिन्दी भपियाम्
तकांश्तम् 0 +न जगदीदाः १२
तदेवे ... -. = सद्व १८
तदेव सएव १२
तदैव तएव ../ &
भो नब--
[२७३ २-२७५४।
१०।४८| १ म ~ न असंपूणा रम्माभावात् ।
१३।६३ असमाप्त | प्राचीनपत्राणि |
९।४३| १७९७ | संपूर्णः |
१८।५७ संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि ।
£।५२ संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
१४।३२ संपूर्णः | नवौनपत्राणि ।
११।३० संपूर्णः | नवीनपत्राणि ।
१०।४१ संपूर्णः | नवीनपत्रागि |
१३।४२। १७८७ |संपू्णी । मूढटीकयोः कर्कः ।
१४।५४ संपूर्णा | प्राचीनपत्राणि |
६।४८ १.४. पत्राणि विहाय संगूशा | नवीन
पत्राणि |
१२।४० संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
&।४६ ४.-६.पत्राणि विहाय संपूगैः | नवीन्-
पत्राणि | |
७।३८ असंपूणा मध्यतरुटिततवात् । .
१५।४७ असमाप्त | टीकाकर्तेनाम न छन्धम् । न~
वीना कारमीरिकौ पिः ।
३०।२२ संपूर्णः | नवीना कारमीस्कि लपि: |
विरचनक्राटः कलिगते ४८७५५ ।
... | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
१२।४९ १८८४ | संपूर्णः । नव्राना कारमोरिकी लिपिः |
१६।१२ १९३६ | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकौ छ्पिः। श्री-
महारजस्णवीसंतह्पकासतियं व्यास्या।
१४4८
१८२४ | संपूणम् ।
१२।४४
शद ... | संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
११।४४ संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि ।
१२।४२ असमप्तम् | नवीनपत्राणि ।
[२७५५२७७६] न्यायवेद्योषिकम् । १४७
न न्न = मसू न णय. |
वा न ॥ प्रणयः, खिपि- ॥
म्रन्याङ्ुः. म्रन्थनाम. केतनाम. [पत्राणि.| अक्ष- पर सदनम्,
राणि, | ` `
= =
१२५५ (तकासरतचपकतात्पर्यटीका गङ्गारामजडी ...| १६ १३।५०| , आरम्भमात्रा | चषकस्य तात्पयरटीकायाश्च
कर्तेकः |
१२२३ [तकांखततरङ्गिणी ... --मुकन्दभटः ...| २६ ११।३९ ,.. संपूणो | प्राचीनपत्राणि |
२१८४ | सैव ... . ~ ,..| सएव ...| १ इषतन्ध् असंपूणारम्भामावात्। गू्जरदेशीया टिपिः।
१२६८ [तात्पयैक्ञानविचाररहस्यम् |... ... ...| ५ | ९।४७|१८०८ संपूर्णम् । कर्तृनाम न च्छम् |
१२२८ |ताकिकरक्षाव्याख्यानं सारसं- वरदराजः ...| २३४ |१२।४१।१६६५ | १. परिच्छेदः | संपूर्णः | मूटटीकयोः 17
| ग्रहः | तक |
१० | सएव == = ५ सष += ५६। इयेष ३. परिच्छेदः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
१२५० दण्डकारणताविचारः ...... शरू 9 ¶१ | ९।४८| ... | असमाप्त: | म्न्थनाम संदिग्धम् । प्राची-
_ | नपत्रम् |
१३५८ दद्राखकारविचारः " | भवानन्द्ः ---| ५| ९।६१|१७८८ संपूर्णः | म्रन्थनाम् द° ठ ०व० इति पत्र
प्रान्तपाटाद्धिषयाचाउमितम् |
१२३७ दृव्यसारसंग्रहः ` ... ~. रघुदेवः ह्रिराम- | १३२ | <८।३०।१८२८ संपूणैः ।
शिष्यः -
१२६९ धर्मितावच्छेदकताप्र्या- |... ..; | २५ ११५० संपृणो । प्राचीनपत्राणगि | कतनाम न
स्तिः ठन्धम् |
१८०. (नग्वाद् गन ज्ज्डः ऊनः रघुनाथः ताकिक- > ।११।४५। १८१२ संपूण | |
दिरोमणिः
१७९ | तएव === च> रन श्व एवं ३ |१०।४७| ... |संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
9५९० | तशवं == च =| श चं १ ।२०।६२| ... | संपूणः | प्राचीनपत्रम् |
१२८३ नन्वादरिप्पनम् --* °.“ कृणदासः < |१०।३०। १६८७ संपू्णम्
१२७८ नन्वादृरिप्पनमस् --* *-*. गदाधरभटः ... २६ ।१२।४६ १७९४ संपूणैम् |
१२८१ | तदेव ... ... ..| सएव ...| २८ |१०।५९ ,.. संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
१२८२ |नन्वादरिप्पनी -.* .-.|रघुदेवभट्टाचार्यः | १७ |१०।४९| ... संपूणो | प्राचीनपत्राणि |
' १२७९ | सेव „~ ,. „| सएव ...| १८ |१।४६१८१२ संपूण |
१२७६ [नन्वादटीका नन्वादविवेकः|जगन्नाथः विद्या-| २६ (११।६३ .... संपूणः । प्राचीनपत्राणि |
तिधितनयः
१२७७ | तएव... “~ “| सएव ...| ४० |१०।३८| ... [संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि।
१५५५ |नन्वादव्याख्या ... ..|मधुरानाथभटा- २. २३।७०| ... | संपूर्णा |
चायः
१३५२ [नन्वादरीका गहः ००“ ००. १८ | <।४५५| ... |अप्तमाप्ता | टीकरायाप्तत्क वेश्च नानी चन्
ज्ञाते | प्राचीनपत्राणि |
१४८ न्यायवेदोपिकम् [२७७७-२७९४]
न ~ [~ वद न्न छिपि
ग्रन्थाङ्कः. मन्नाम, कतैनाम. |पत्राणि.| अक्त. | कूलः संवेदनम्.
राणि. | `` ““
6
#१२५६ |नवीननिर्माणम् (2) ---रघुदेवशमा .““| ४७ |११।४०| -** |अप्तमापरम् | तच्चिन्तामण्यतमानखण्ड-
व्याख्यायाः संक्ेप इत प्रतिभाति स मन्यः |
१३४५ [नव्यमतवादः (2) “..**" ४२ | ९।२३| ... | असमाप्रः । म्न्थनाम संदिग्धम् | प्राची-
नपत्राणि |
१३५२ (नव्यमतवाद्ः (ॐ -*-|** ,., ,..| <| ९।३९ ..-. | असमाप्रः | म्रन्थनाम संदिग्धम् । प्राचीः
नपत्राणि |
१३१९ |नव्यमतविचारः ““* °“ हरिरामतकाखं- | ३१ | ९।४१| संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
कारवागीडशः
१३.१८ सए... सएव ...| २६ |१०।४४ ... |संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
१३०४ निर्विकद्पविचारः... -*|*“ ,, ,..| २ <।४२| १८०० संपूणैः | महामहोपाध्याय इति कतृनाम्
्रन्ये सुस्पष्टमेव द्म |
संपूण । मूठ्कतो प्रशस्तपादः । नवीना
१५१६ (न्यायकन्दरीटीका पदार्थप्र-| श्रीधरः वलदेव| २०३. |१२।४१
कारमीरिकी छिपिः | विस्चनकाठः सं-
वेदाः पुत्र,
वत् ९१३ ।
१५५२ (न्यायकलिका ..* -*-|जयन्तभटहः ` ..| ३ ।२७।१००| ... | संपरणौ । प्राचीनपत्राणि ।
६४७क न्यायकुसुमाञ्जलिः -* उदयनाचार्यः ...| ८२ |२२।२२| .-. | संपूर्णः |
१२६४-६७ स एव ... | सएव ...| ३९ |१०।५५ १८२७ | {स्तवक आरम्ममात्रः | ३.स्तवकोऽप्-
माप्रः | शेप संपूणम् ।
१३६१ (न्यायकुसुमाञ्जलिकारिका- रघुदेवभट्वाचार्यः| ८० | ९।५२ संपृणौ | प्राचीनपत्राणि ।
व्याख्या
१२६८ | रैव ..~ -- | सएव ...| १३ | ९४५ असंपू्णौ रम्मान्ताभावात् | प्राचीनपत्राणि ।
१३६२ न्यायकुसुमाञ्जलिकारिका- रामभद्राचार्यः | ८८ | ९।४०| ... |संपूणो । प्राचीनपत्राणि ।
व्याख्या भवनाधपुत्रः |
१२६३ | रैव „~ - ~| म्ए्व “^| ५७ |१२।४०| १८६५ असंपूरणारम्माभावात् ।
१३७३६ न्यायकुसुमाजिकारिका- |-** ``" "| ३२ | ९।३८| "^` असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि | कठैनाम नं
व्याख्या ज्ञातम् ।
१३६९ | रैव „~ - "| | ६ | ९।४०| ... |३. स्तवकः | असंपू्णं आरम्भान्ताभावा-
त् । प्राचीनपत्राणि ।
६४०ख॑न्यायजुसुमाज्लिप्रकाश्षः |वर्धमानाचायः | १७७ |२२।२२| १९०२ संपूर्णः |
गङ्गृश्चरपुत्रः
१३७०-७२| स एव ,.. तएव ...। २०४ |१०।४६।१५२२।३. ४. स्तवकावसमाप्तौ । रेष संपूर्णम् ।
[२७९५-२८१४]
= ~ [न ष्च म
पत्राणि,| अक्षु ॥
राणि,
१६३२ | : "महादेवः पुण्य- | ४४३ |१३।४८। १९२८ संपूर्णः |
स्तम्भकरः मु-
कन्दपुत्रः
*१५६६ ** "| वराहाचार्यः ...| ८ |११।३६। ... संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि |
१९७४ ्यायनिवन्धप्रकाशः न्याय-वर्धमानाचार्यः | ८७ १० ।४२| -*“ | ९.अध्यायल्य १. २.आशह्विके असंपू्े |
वातिकतात्प्यपरिथुद्धिव्या- आरम्भान्तामावाव् । प्राचीनपत्राणि |
मन्थाङ्कः.
भ्रन्थनाम,
य्या |
१२२९ (न्यायपदा्दीपिका ... कोण्डभट्ः रङ्गो- | १६ |१५।६० संपूण । प्राचीनपत्राणि |
जिभद्यत्मजः
१993. | सीव == = | सपं ३६ १३।३२| ... |संपूणी |
१५८१ | सेव... ... „| स एव॒ | १० ।१३।३२| ... |असमाप्रा | `
१२५८ न्यायरहस्यम् ... .-गोचिन्ददामी ...| ११ |१०।२६ १. पत्र विहाय संपूणेम् । विरचनकालः
शके १५५० | प्राचीनपत्राणि
१९९० [न्यायीखावती ..* .श्रीवह्ठभन्याया- | १०२ | ८।५५| ,.. |९१.पत्र विहाय संपूणौ | प्राचीनपत्राणि।
चार्यः
१२६२ [न्यायलोलावतीप्रकाराः .. .वर्धमानाचार्यैः ग-| २२८ |१० ।३९| १८१५ | संपूर्णः |
| शवरः
१२९१ | तएव... ... ..| सएव ...| १११३।४८ ... |असमाप्त | प्राचीनपत्राणि |
१६२६ (न्यायवा्िकतात्पर्यटीका ... वाचस्पतिमिश्रः | ५६ |१०।४७ पूषैसूततत्रयस्य व्याख्या | संपूणी | प्राची-
। नपत्राणि |
१२२८ [न्यायसिद्धान्तमज्ञरी “^ -|जानकीनाथशशमौ | ४४ |३०।३द६्/ ... | संपूी | प्राचीनपत्राणि |
प | = सवं जस चछ „| सं छ १४ |१६५०| -.. [असंपूर्ण मध्यतरुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
६३९ | तवं जन उर „| तिच | १०।४०| ... |असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
५२५ | उवं = र „= वं | ९।३२| ... | असंपूणारम्भाभावात् | प्राचीनपत्राणि |
92 | एवं = = „| एवं | ऋ (518 --- |असंपूणोरम्भाभावात् | प्राचीनपत्राणि |
१२५१ न्यायसिद्धान्तमञ्चरीदीपिका |श्रीकण्ठदीक्षितः | २६ १०।४८ अवुमानलण्डः | असंपूर्ण आरम्भामावात् |
तकेग्रकाशाः पराचीनपत्राणि | रितिकण्ड इलयपरं क-
तनाम |
१०९ | तएव... . ...| सएव ...| ६ (१३।५०|१८१२ उपमानलण्डः | संपूर्णः |
१११६. | सवं == ज = सएव ,,.| देख |१३।४५ प्रयक्षखण्डः | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
१२५० | सएव ..- .. ..| सएव ...| १७ ।१४।६२
पयकलण्डः | असंपूणं आरम्भाभावात् |
प्राचीनपत्राणि |
३ 4
१५० स्यायवेशेपिकम् । [२८१५२८३४]
न न | | न्न
ग्रन्थाङ्कः. ग्रन्थनाम, कतृनाम, |पत्राणि,| अक्ष
राणि,
१५७७ [न्यायसिद्धान्तमज्ञरीदीपिका श्रीकण्टदीक्षितः | २९ |१०।५३| ... | प्रयक्षतण्डः | असमाप्रः |
तकंग्रकादाः
१६१८ सएव... ... ...| सएव ...| १६२१०४५ ... | शन्दलण्डः | १२१. १२२. पत्रे विहाय
संपूर्णः |
१५८० | सएव ... ... ..| म्एव ...| १० [३८१०२ .-. | शब्दखण्डश्यान्तिमपत्राणि |
१२५५२ सएव ... ..4| सएव ...| १३।११।५२्| ... | शब्दखण्डः | असंपूणं आरम्भान्ताभावात्|
१२५३ (न्यायसिद्धान्तमज्जरीरीका कृष्णन्यायवागी- | ६३ |११।३९| ... |असंपूणौरम्मामावात् | प्राचीनपत्राणि ।
भावदीपिका दाः गो विन्दुपुत्रः |
१५५७ | सैव ... ~ -| सएव ...| भ २५८४ ... |अठमानोपमानठण्डौ | संपूर्णो |
१२४० (न्यायसूत्रभाप्यम् .. .|वास्स्यायनः ...| ६५ ११।४८ ... |असमप्रम् । नवीनपत्राणि |
१६१७ तदेव ... ,.. ...| सएव ...| ४२। ७३८ ... |१.अध्यायः | संपू्णैः | प्राचीनपत्राणि |
१६२५ तदेव क शकः अन्ड च ,..| २१ ।११।४८ ... । १. अध्यायः । संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
६४८ख न्यायसूत्रबृत्तिः ..* „“-विश्वनाथपनच्चा- | ८५ [२१।२३| ... |संपूणी । विरचनकाटः शके १५५६ ।
ननमटाचार्यः
विद्यानिवासपुत्र
१५२० तैव क पथः करम स्व ,..। १०२ ।१०।४०| १९०१ संपूणो |
४०७६ [पदार्थतच्वनिरूपणमस् - . -रघुनाथः तार्किक| १६ | ७।२३| ... | संपूर्णम् | पदाथेदण्डनमिलयपरनाम । न-
रिरोमणिः वीनपघ्राणि |
१५२९ (पदार्थमाखा ..*. ` .--|जयरामन्यायप- | ९३ |१२।४४ ... | द्रव्यपरिच्छेदः । संपूर्णः |
ञान;
१२२२ पदा्थरलमन्नूपा +“ “^ [कृष्णभटः महारषट-। १७ | ७।४२। ... |असंपूणो मध्यत्रुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि |
देश्यः
१५८९ (परामरछवादः =“. „+|..+ ,.. „..| ५ |१९।७०| ... | असमाप्तः | कस्य मन्थस्य भागः सको
वा कर्तेति न ज्ञातम् |
१२७४ (प्रतियोगिक्तञानकारणतावा- |... ..+ ...| ६ १३।४७] ... | संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि | ६०८ प्रा 7. 44.
दाथैः
१६१३ (प्रदास्तपादभाष्यम् ..- प्र्स्तपादः ...| १८ |१५।३८| ... | यणपदाथपयन्तं संपूर्णम् । पदाथधरमेसं म्रह
इति नामान्तरम् |
१५२६ | तदेव ,,„ .. ~ ..| पए ...| £ |१०।५८ दरव्यपदाथैः | संपूणैः | प्राचीनपत्राणि |
१२४१ | तदेव ... ,.. ,..| सएव ...| १८ | ६५५ १६५५ कमेपदाधादारभ्य समवायपदाथान्तम् ।
मध्यन्रुटितम् |
१५२८ (प्रास्तपाद भाष्यटीका ...|जगदीख्ः ...| ३९ | ८।५२| ... | द्रव्यपदाथटीका । संपूणा ।
[२८३५२८५४] न्यायवैरोपिकम् | १५१
= न [= -द्् न=
॥ ॥ भैणयः| किपि- |
भन्धाङ्कः. मन्नाम, कर्ठैनाम, पत्रा. | अक्ष- | बालः संवेदनम्,
राणि. ४
१३४९ पप्रागभावविचारः ..- .-.|-. ““* "| 2 [१०।४१ ... |संपूणैः | प्राचीनपत्राणि। ६९५ प्र] 7. 47.
१५५९ [ब्राघबुद्धिप्रतिवध्यप्रतिवन्ध-हरिराममट्ाचा- | ७ [२५।७९ ... [संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि |
कवादः येः
१२३५०ख|भावप्रययाथैः ... ...|... "+ “| ७ | ९।४८| ... | संपूर्णः |कतृनाम न दम् | प्राचीनपत्राणि |
१२२९ (भाषापरिच्छेदः ... ---|विश्वनाथपञ्चा- | १० ११।२२| ... [संपूर्णः । कारिकावटीति नामान्तसम् |
ननः
१६०१ | सएव ..- -- = सण ..-| ११. ६।५१| ... |संपूणैः|
१२३० [भापापरिच्छेदटीका न्याय~नारायणतीर्थः ...| २४ |१४।५५ ... | १, १३.पृत्र विहाय संपूणा । प्राचीनपत्राणि |
चन्द्रिका
१५८५ |भापापरिच्छेद्रीका न्यायं ]विश्वनाथपच्चा- | ४५ |१४।४५। १८४६ संपूनौ ] मूटटीकयोः कर्तिकः |
सिद्धान्तसुक्तावली ननः
११४१५ सेव क ह्व स्ख ,,.। ७ १४।४८| १८४६ संपूण |
१५४४ सव॒ .. ..“ | पए ...| ७९ (१२।३४ १९०६ संपूणो |
१२४४ तिषुः थलः ७/9 „अ द. एत् .>| छम् १ ०।३७। ... |संपूणा | प्राचीनपत्राणि |
१२४५ | रैव ~ ~ “~ सए ...| ३० | ८४१ ... |असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
१५७४ | रौव ..- . -| सएव ...| १५२५५५८ ... [असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
दद । सरं = = = अन्द „,| $ ८।२५| -.* [परयकृलण्डः | संपूर्णः |
१५५० | सेव ... .~ „| सएव ...| २० |१२।५० प्रयक्षण्डः | संपूर्णः | प्राचीनपच्राणि |
१२४६ [भापापरिच्छेदटीका न्याय-महादेवभटटः दि-
सिद्धान्तसुक्तावलीप्रकादाः| नकरापरनामा
७० [१३।५०| ... | संपूर्णः । युक्तावठीकिरण इति नामान्त्-
रम् । प्राचीनपत्राणि |
वाठकृष्णपुत्रः
१५२८ | सएव ... ..~ | सए ...| १४९ १२।४१। १९०४ संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
५१६३४ |भाषपापरिच्छेदटीकान्याय- रामर्द्रभटवाचायः। २३७ |१७।४८। १९४३
संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
सिद्धान्तसुक्तावखीग्रका- | रमश्वसपुत्रः
रातरङ्धिणी
१४४६ [भापापरिच्छेदटीकान्याय- |... --“ ~| २१ (१०४६ ... |असंपूणीरम्भान्तामावात् | अन्थनाम स.
सिद्धान्तमुक्तावलीरीका दिग्धम् | कतृनाम न टम् |
५०१९ [मापापरिच्छेदगीकान्याय- |... ... ,..| ४ | <।३४ आरम्भमात्रा | प्राचीनपत्राणि |
सिद्धान्तसुक्तावखीरीका
१२३२२ |योग्यताक्तानस्य राब्दं प्रति... ११ ।१०।४१।१८३३ | संपूणैः |
|
कारणत्ववि चारः
=
१५२ त्यायवेदोपिकम् | [२८५५-२ ८७ ६1
न्न ~~ = द न
ि न्थना 5 | ` "| ल्िपि- ,
म्न्धाङ्कः. म्रन्थनाम, कनाम, त्राणि. | अल्ष- | काटः संवेदनम्,
१३२५ |रलकोदावादरहस्यम् “ˆ|. ,.. ...| ५५ | ८।४९| ... | २. पत्रहीनम् | 8० प्र ५] 7. 81. म्न्य-
नाम द्वितीयहृस्तेनान्ते छिपीकृतम् । पूरा -
मनातसूची पुस्तक उपदिष्टं कतृनामस्मा-
भि्न टन्धम् | प्राचीनपव्राणि |
१३४७ (रूपवादः (१) =“ -*"|*-“* = अ श्र | ४ असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि | मन्थनाम
संदिग्धम् |
१५०२ [लश्चणावरी „.. „उदयनाचार्यः ...| ५ | ७।५६/ १६९० | १.पत्र विहाय संपूणो ।
१५५६ |लक्चषणाविचारः ..- --*|कवीन्द्रः १ ।२७।८०| ... | संपूर्णैः | प्राचीनपत्राणि |
१२५४ [लिङ्ञोपदितरेङ्गिकभानवि- |...“ “““| ३१ |१०।४२् १८३० | ९. पत्रं विहाय संपूणैः | कतृनाम न छ-
चारः । ब्धम् | ६५९ प्।। 2. 82.
१२६७ |लिङ्गोपहितरेङ्गिकभाननि- |... -- “| <€ | ८।७१| -^. संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि | कतेनाम ना-
रासरहस्यम् वगतम् | ६९९ प] 7. 53.
१४२९ |व्रटङ्क रिरोमणिदूषणे कू-|-- ~“ “| £ ९।४० संपू्णम्। प्राचीनपच्राणि। कतुनाम नद््टम् |
टघटितम् २,
४३२९ (वाक्यमेदवाद्ः ... .--[अनन्तदेवः आप- ८ | ८।४द संपूर्णः | ६०० प्र] ए. 62.
देवसू
४३१५ | स णं... .== =. पणवं | & ३२४१ -. संपूर्णः |
१०।४४। १८३३ | संपूर्णः | कतृनाम न टन्धम् ।
१२८७ [विधिवादः .. -** °|... $ =| दद
१२३५६ |विधिवाद्ः .. “= *|-. १८ | ९।३९ ... | संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि । मन्थनाम खष्ट-
तया न ज्ञायते । पूवेमिन्नः |
१३४६ विधिवादः (£) ..“ --|*“ भ >>| 92 १११४५ असमाप्रः | प्राचीनपत्राणि | मन्थनम्
संदिग्धम् । कतृनाम न न्धम् ।
१२८५ विधिवादरिप्पनम् =“. -- ,.. ...| २ | ९४० ... | संपूर्णम् | कनाम नावगतम् |
१२८४ (चिधिविचारः “-* °|... „| प |११।३४ ... |संपणः।
१२८४ विधिस्ररूपवादाथः . . . | गदाधर भट्राचायंः| १७ | ७ | ४६। १८५४ संपूण | ६९८ 21] ‰. 60.
१३१२ विरिटवै दि एटयनोधवि चारःरघुदे वभट्ाचा्यः | २० |११।३८| १८१२ संपू्णैः |
१५६२ | तएव... .- .-.| सएव ..| 9 [२५८ १८४४ संपृणैः ।
१३२८ | सएव ... .. ...| सएव ..-| ५५ १२।४६् १७७२ १. पत्रं विहाय संपूणैः |
४०८७ [विरोपक्षणम् ... .-- वेङ्टसूरिः “ˆ| ६ | ५।२२ संपूर्णम्ः | नवीनपत्राणि ।
१२२६ विपयताविचारः .. . “^ -|रघुदेवभट्वाचायैः | २७ | ८।२७ संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि |
१६२९ | सएव तएव ...| १२ ११।४०| ... [संपूर्णः | नवीनपत्राणि ।
१५७९ | सएव ,..| सण ...| १९ | <।३५।१८८८।संपू्ः |
६
[२८००२८९५] न्याययेदोधिकम् ९५३
न ~> कः मत
त्रेणयः. टि .
ग्रन्थाङ्कः, म्रन्थनाम, कर्तनाम. |पत्राणि.| अश्न | , संवेदनम्.
राणि,
-
४३२९ |विपयरोकिकप्रलक्चका्यका.-. ... ..| १०७ |१०।३८| १७०५ संपूर्णम् | कर्ती न ज्ञातः | ६०० 41]
रणभावरहस्यम् 7. 46.
१३०८ [वीप्साविचारः ... ... |... ~ ~| ७ | ८४७ ... [संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि | कर्तृनाम नाव-
गतम् । 8५८ 91] }. 60.
१५१५ वेशेपिकसूत्रोपस्कारः .-- कणादः । दाकर १२८ |१०।५४| ,.. संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि । कणादुसूत्रोप-
मिश्च: मवनाथ- स्कार इति नामापरम् |
पुत्रः
६०८क|। सएव ... ... ...| तावेव ...| ११२ (२२।२३ ... संपूर्णः
२२८७ | सएव .-. -- | तवेव ...| ३१ | ५।४०| ... |असमाप्तः | नवीनपत्राणि।
- १४०६ |व्यास्िनिरूपणस् (९) ...... ~~ “| २७ |११।४२| ... | असंपूणैमारम्भान्ताभावात् | ग्रन्थनाम न
ठन्धम् | पाटाद्विषयो निर्णीतः | प्राची-
नपच्राणि | कतरैनाम न ज्ञातम् |
४०८५ (व्यास्िपरिष्कछारः ,., ,..|... --- --.| ४ | ७।१९| ... |संपूणौ । मन्थान्ते नाम टेलकदोषात्संदि-
ग्धम् | नवीनपत्राणि ] कतृनाम न ज्ञातम्
१३३५ व्याप्यनुगमविचारः :..|-. --~- “| ९३ | <८।५१| ... |संपूणैः | पराचीनपत्राणि | कनाम न दृष्टम्।
१५९२ च्युत्पत्तिवादः .-~ -.“गदाधरभहः -.“| ११२ | ७।४६| .-. | संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
१९१ सएव ... ... ... पए ...| ४२[२२।६८ ... |संपूणैः|
१५१९ | सएव ... ... ..| सएव .-.| १८९ |१२।३३। १९०९ | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
१२७२ | सएव ... ... -. सएव ...| ६० १५६३ ... |असंपूणे आरम्भाभावात् | प्राचीनपत्राणि |
१३४१ | सएव ... ... ...| सएव ...| ४६| ५।७५| -.. |असमाप्तः | प्राचीनपत्राणि |
१५१३ | सएव ... ... ... पए ...| ९६| ७४२ ..- |असंपूणं आरम्मान्ताभावात् | नवीनप-
त्राणि |
१३७२ | सएव ... ... ...| सएव ...| ९| ८।५२| .-. |आरम्भमात्रः| प्राचीनपत्राणि।
१५४१ | सएव ... ..~ | सएव ...| ५ |२१।९० ... | असंपूर्ण आरम्भाभावात् । गूर्र्देशीया
लिपिः |
१६२३ ग्युत्पत्तिवादटीका... ---कृष्णभटः ..-| १०६ |११।४९| ... | अभेदान्वयविवरणाद्विभक्तिविवरणपर्यन्ता
संपूणा | ४९.७र.पत्रे न स्तः | कर्त॑ना-
मास्मिन्पुस्तके न दृष्टम् |
१५८२ | रैव ... .-~ | सएव ...| ९५ |१०।४०| ... | प्रथमाविभक्तयर्थविवरणान्ता संपूणौ । न-
वीना कारमीरिकी लिपिः । कतुनामा-
दिमपत्रपृष्ठेऽन्यदस्त्चित्रितमेव रब्धम् |
३५
९५४
[२८ ९५-२९१२
न = | = [नश्य नन थाङ्कः.
१५८४
१६रधे
१५९य्
9०७४
४ ॥*।
१२३१५
१३२१
१३२.७
न्यायवैदोपिकम् [
न्यायवैदोपिकम् ।
श्रेणयः,
म्रन्थनाम, कतेनाम. |पृत्राणि,| अक्ष- मादः
लः.
रणि
व्युत्पत्तिवादटीका करष्णभट् ०..| ६० ।१०।४य्
ल्युत्पात्तवाद्टाका.. .*..|०० ० *०.| १० ।१०।५२
व्युत्पत्तिवादक्रोडपच्रम् (१) गदाधरभटहः (१) ५५ | ९।३६
राक्ताविचारः गदामधरभटः ... ५३ | ७।चर्
रखब्दखण्डवादार्थैः = ...|... ,.. ,..| १२ ७२१
राब्द्रक्तिप्रकारिका ...|जगदीरातर्काल- | ७३ ।१३।४६
कारः
राब्दानिलयतारहस्यम् ...1... > क| ४ | ६19३
राराधरीयम् (१) .. दादाधरः ...| ३९ | ९।३९
तद्व (१) सएव १२ ।१२।४९
सलशयवाद् " * मधुरानाथतकवा- ८ | ९।४३| ५८००
गीर
सस्कारसिद्धिदीपिका -..चिच्रधर ९ ।१०।४७
संनिकपेवाद - | मथुरानायतकवा- २९ | ९।४९| १७८८
गीरा
संनिकपविचारः ... ...... २१ ।१०।४५
संनिकपविचारः (2) ...... ३२ ।११।३३
सक्षपदार्थी . . रिवादिलयसिश्रः & | ९।५२। १४६१
सेव सएव £ ।१०।३४
समासवाद . .| जयरामन्यायप- | १९ | ९।३७
खानन
समासवादः **ज |... २ |१०।४५
~
सेवेदनम्.
द्वितीयाविभक्तयर्थनिरूपणे प्रथमखण्डः |
संपूर्णः | नवीना कारमीरस्की लिपिः ।
कतृनाम पुस्तके न दृष्टम् |
अपपूणारस्मान्तामावात् | नवीना कार्मी-
रकी लिपिः | टीकाकर्तनाम न ठब्धम् |
अप्तमाप्तम् । नवीनपत्राणि
संपूर्णः | नवीनपत्राणि । गादाधयी भागः
सात् |
सपणः | नवीनपत्राणि | म्न्धान्ते शब्द्
पण्डवादा्थं इति पाठ
संपूणौ | प्राचीनपत्राणि |
संपूणंम् | प्राचीनपत्राणि | ६०५ पथा], 55
सण्डितम् । प्राचीनपच्राणि । मन्थनाम्
शशधर० इति पूत्रप्रान्तपाठादठमितम् |
खण्डितम् | प्राचीनपत्राणि |
संपूर्णः |
सपण] प्राचीर्नपत्राणि | ६०९ ४] }. 48
संपूणैः | तचिन्तामणिटीकाया दीपिति-
टाकाया वा निष्कृ इति संभावना |
संपूणैः । प्राचीनपत्राणि । कतृनाम न द्
9९९ प] }. 46
असंपू्णं आरम्भान्ताभावात् । प्राचीनप्-
त्राणि । पृत्रान्तेषु संनिकषै इति पाठः ¦
३. पत्र विहाय संपूणो |
असपूणा मध्यन्नुटितत्वात् | प्राचीनपत्राणि ¦
संपूणैः | प्राचीनपत्राणि | ६०० प्र] ]), 61
असमाप्त: | प्राचनपत्राणि | मन्थनाम्
टम् | पूवस्माद्धिभिन्नः |
कन
3 ~ अ 8.9 ~
9 श 2 1 अ प
भा क 1 ~ प
१५५
[२९१३-२९२६] न्यायवेदोषिकम् ।
__(_(_(_(_(____],__]]--------
श्रेणयः. टिपि.
मरन्थाङ्कः. मन्नाम, कर्तनाम. |पत्राणि.| अक्ष | वाठ: संवेदनम्.
राणि. |
न न्न | ज (० श
१५६९ [समासवादा्थैः ... ---रामभद्रसार्वभौ- | २ [२५८०१८४४ संपूर्णः ।
मः
४९९९ | सएव... ,.. „| पए ...| २ |१९।५७] ... |जतमाः । प्राचीनपत्रूपः ।
११ |१०।५०| ... | असंपूर्ण आरम्मान्ताभावात् । प्राचीनप-
१४०४७ [सह् चारमन्थः ध १ (` ४ ८
त्राण | म्रन्थनाम् प्रथमपत्रक्राणपात्र ऋ
छम् | कतेनाम न च्छम् |
१३२४ सांकर्यवाद्ः = *-* °" ,.. ...| २ |१४।५२।१८१२ | संपूर्णः । कतृंनाम नावगतम् | 8०० प]
]). 46.
१५६३ ।साममरीवादा्थः ... .--रघुदेवभटाचायैः | ५ [२०1६६ ... संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि। 8९९ 811 2. 43.
१३०६ | स एव ... .. ..| पतए्व ˆ| १७ |११।२द् -.. संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
२०००, [सामयरीविचारः -- ~“ *“" ,.. ,..| ४ |१४।६३ संपूर्णः | प्राचीनपव्राणि | कतनाम न ज्ञातम्।
३९७९ 7211 }. 45.
१२३०५ | स एव ... ..~ -..|* ,.. ...| १८ | ७२० संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि । साममीव्याप्रि-
विचार इति मन्थान्ते । पाटस्तु पूवेमन्थ-
समानः|
१३३३ (सामानाधिकरण्यक्तानमात्र- |.-- “~ “| ५ [१४।६२ दके | संपूर्णः । कतेनाम न ठन्धम् |
कारणताविचारः १६५३ ।
१३०३ |सामान्यटक्षणाविचारः -** तर्काडकारः (2) | ५१ ।१४।४०| ““" संपूणैः । प्राचीनपत्राणि | ह |
१४७६ [सिद्धान्तरक्चषणविचारः (2)|.. “*‡ “**| ३& ११।४२ असमाप्त: । म्न्थनाम पुस्तके नटच्ष्टंवि-
पयाचदमितम् । कतनाम न ठन्धम् ।
१२२८ स््रतिसंस्काररहस्यम् रामचन्द्रः ...| २५ ७।५५| १७८६ संपूर्णम् | 8९6 ४11 7. 48.
१२२७ स्थ्रतिसंस्कारविचारः “*"|**" ,,, ,..| १० |१३।४७| १७३८ संपूणैः। कतुनामन ट्टम्] ६८८ प्र] 7.49.
हेत्व | १ २५८६ ... |असमाप्रम् । म्रन्थनाम संदिग्धम् । गरूनर-
१५८६ हेत्वाभासनिरूपणमर् ˆ“ ˆ“ ० छं ॥ ~+
देशीया लिपिः । कतृंनाम ना ।
८२९. ^5२०।५०।४४ ॥५0 ^57801006.
ज्योतिषम् । [२९२७२०४२]
| | श्रेणयः.
मन्याङ्खः. | म्रन्थनाम. क्तैनाम, |पत्राणि.| अक्ष {ज संवेदनम्.
| काठः,
| राणि.
[वा >| भ
१११ जितः ति 1 1 र < । ९।४३ संपूर्णः | नवीनपत्राणि |
२८८९ |अद्धतसागरः . . -बह्वाटसेनदेवः | २६५ |२४।३६। १९२८ | संपूर्णः | नवीना कारमीरिकी खिपिः ।
४९८५ सए... सएव ५८ १ २।५५। ,.. |असंपूर्णो मध्यत्रुलन्ताभावात् । प्राचीन
पत्राणि |
२९५७ |अघंदीपकम् .. विष्णुशिवः १२ | ८।३८। १८४४ | संपूर्णम् |
३०२९ |अष्टमटस्दोपः सपरिहारः |.-- £ |१५।३२ संपूर्णः | प्राचीनपत्राणि ।
४०५० उडुदायमप्रदीपः „विद्धः * ^° ९ | ८।२द ९४१ | संपूर्णः | नातकचन्दरिकेयपि नामान्तरम् ।
२९२७ उडदायप्रदीपरीका "^" ,.. ,..| १५ | ९२४ | = संपूणी | टीकाकतृनाम न द्धम् |
२९४९ उड़दायप्रदीपोदयोतः "` भरवदत्तदैवक्तः | २८ | ८।२४ संपूर्णः | नवीनपत्राणि ।
८७४ देन्दवमासनिणेयः .. गणेदादत्तः ४ |११।४१ असंपूर्ण आरम्भान्ताभावात् । म्न्धनाननि
संरयः |
४००३ ।करणकुतूहरम् . भास्करः महेश्वर-| ८ |१४।४२ संपूर्णम् | नवीना कार्मीरिकी छिपिः।
पुत्रः म्रहागमकतूह लमिति नामान्तरम् ।
४११९ [करणप्रकारः . . ब्रह्यदेवगणकः ९० | ९।४४ संपूर्णः । नवीनपत्रागि |
चन्द्र बुधपुत्रः
*४१३० कममञ्री... ,.. द्विवेदवंशीधरः | १४४ ५२२ संपूगो | नवीनपत्राणि |
५४००२ |कल्पवद्टीपद्ध तिटीका आन-|विहलः । देवकी-। ८३ |१६।४८ संपूणी | नवीना कार्मीरिकीौ रिपिः!
न्द्कन्दः नन्दनः जीवां मूठविस्वनकाठः शके १५४८ ।
नन्दात्मजः कृविरचनकाटः शके १७२९ |
३९९१ कर्यपसंदिता थ ५१ |१४।२५ संपूणो | नवीना कारमीरिकी ल्िपिः।
३०४१ ख काकविष्टाप्छीसरटादे पत- १ |१२।४८ असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि |
नविचारः
१ ।१०।३२ असमाप्त । प्राचीनपत्राणि |
३०४६क। काटचक्रोयदरा “`
[२९५४३-२९५६१ ज्योतिषम् । १५०
~ ~ [~थ ~ _
श्रेणयः. लिपि.
म्रन्याङ्ूः. ग्रन्थनाम, कर्तृनाम, |पत्राणि.| अक्ष- सेवेदनम्,
| राणि, भ ऋ
४००० (करृपापद्धतिः ह | ६ |१४।३६ संपूणी | नवीना कारमीरिकी च्पिः ।
त्तः जीवानन्द्- कत्री शके १७२९ कलट्पवहीपद्रतिटाका
देवन्ञपुत्रः विरचिता |
३०२१ केरलनागभापाश्छोकोदाहर-... १ ।१५।३४। १८७२ | संपूण |
णरीका
४१२७ केरटप्रक्नः ` -- “^ < | ७।४० संपूर्णः | नवीनपत्रणि |
२८८६ केररखरलमञ्ञरी विश्वनाथम् ६२ |१३।१८| ... | संपूण | नवीना काश्मीरी ठिपिः ।
४११५ केरटश्ाखे प्रक्नरलम् १२ | ९।४६। १९४१ | संपूर्णम् | विरचनकाटः संवत् १५८२४ ।
४१३८६ केरटखसूत्रम् .-- --- |“ ४ | ८।३६ संपूर्णम् । नवीनपत्राणि |
८६२ खङ्ग सिहजन्मपन्निका ~“ “` १२० [२७।१७ संपूण । महाराजरणजित्सिदपत्रस्येदं ज-
न्मरपत्रम् |
२७५४क खण्डखाद्यविवरणम् : । चतुर्वे-| १९६ [२४।१८ संपूर्णम् | नवीना कासमीरिकी छिपिः ।
द्वरुणस्वामी
मधुपूदनषएतः
२९२५ गणिताध्यायः , | भास्कराचार्यः ...| ४५ | ८।३८ सिद्रान्त्चिरोमण्यन्तर्मेतः । सपययायः ।
संपूर्णः ।
१२०७कःगरभप्र्ः ब १ ।१०।१८ संपू्णैः |
३०३७क गार्गीयसंहितायां पट्छीसरट-|... १ (१२।४६ असंपूर्णमारम्भाभावात् । प्राचीनपत्राणि ।
लक्षणम्
८५१ गोप्रसूतिलक्षम् अद + (द पदसुनिः) इ १ ।१२।२४| ... संपूर्णम्
२९१७ गोराध्यायव्याख्यानं गणि-|भास्कराचार्यः । | ९४ १२।२०| १५५ ३ | संपूर्णः । सिद्धान्तशिरोमण्यन्तगंतः । का-
ततत्वचिन्तामणिः लक्ष्मीदासः वा- रमीरिकी लिपिः |
चस्पातिप्ूलः
२९५२ गोखाध्यायवासनाभाप्यम् |भास्कराचायैः .-*| ° १३।३४ सिद्धान्तश्ि रोमण्यन्तगेतम् । असमाप्तम् ।
प्राचीनपत्राणि | मूलटीकयोः वर्तक एव |
१.-५. अध्याया मूटमात्रा ए ।
८३७ | तदेव तएव ४० |१४।३८| १८९७ | असंपूणैमार्भाभावात् ।
३०५५ | तदेव सएव ३१ |२०।४५ १९१८ | असंपूरणमारम्भाभावात् ।
२८७१ख| तदेव सएव ...| २ [१५२ ज्योत्पत्निः । संपूणी | नवीना कारमीरिकी
| लिपिः |
४०६४ गोतमजातकम् .-- *** |“ £ | ७।१६ १९४१ | संपूर्णम् |
११९२ गौरीजातकम् ..* “^|... १२ ११।२२ संपूर्णम् ।
1 0
१५८
ञऽयोतिषम् ।
[२९९ २-२९८१1
न व्व | च [न न्न .| लि
मन्थाद्भूः. मन्नाम, कटठैनाम, पत्रागि,| अक्ष | यिपि- संवेदनम्,
राणि |काठः.
८५७ |गहगोचरफलरम् ... ...|--. 4 ९ ।१२।४० संपूर्णम् | विधिरलान्तर्मतम् ।
*८६३ महणादटीका प्रबोधिनी उुधरसिहरशम ...| १८ |१८।५३ १८५९ संपूर्णौ | विरचनकाटः शके १६८५ !
मूलटीकयोः कर्तेकः |
२७८७ मरह भावप्रकाराटीका --- पद्यप्रभुसूरिः ...| ४३ |१०।३६ संपूणो ] नवीना कार्मीरिकी चछिपिः !
युवनप्रदीप इत्यपि मूटमरन्थनामापरम् }
टीकाकतृंनाम न ठन्धम् |
२९३० |अह भावप्रकादाव्याख्यानम् (पद्मग्ररुसुरिः। ग~ २६ (१६।२४। १८३७ | संपूर्णम् |
दाधरः
३१७८ (गह भावप्रकाशः हिन्दी भाषा-पद्यप्रभुसूरिः ...| १५ |१७।४० संपूर्णैः । प्राचीनपत्राणि |
टीकासदितः
८६८ मरह खाघवम् ...गणेशदेवन्तः केदा-| २१ १०।३३। १८५९ | संपूणंम् । सिद्धान्तरहयमिलयपरं नाम ।
वदै वज्ञमुतः
२९५३ | तदेव सएव ८ (१३।४६। शाके | ३.-६.पत्राणि विहाय संपूर्णम् ।
५७७४
२७७९ [म्रहराघवविवरणम् --- विश्वनाथः द्विवा-| १३४ |२०।२३ संपूर्णम् । नवीना कार्मीरिकी चिपिः |
करपुत्रः सिद्धान्तरस्योदाहरणमिदयपरं नाम |
२०४२ । तदेव सएव २४ (१४।४८ असमाप्रम् । प्राचीनपत्राणि ।
८७१ तदेव सएव २० |१३।४६ असमाप्तम् | प्राचीनपत्राणि |
८८० | तदेव सएव ४२ १०।२२ प्रथमाधिकारत्रयम् । संपूर्णम् ।
२७९५ | तदेव ... ... .. सएव ४७ | ९।३५ असमाप्रम् |
२८६९ अहटाघवटीका सद्वासना महार ८२ (१६।३९ संपूणो | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
२८९० सेव सएव 2७ २३।५३. असमाप्रा |
२९४१ सेव् सएव १९ |१२।२८| १८९७ | असंपूणारम्भाभावात् । कार्मीरिकीं
छिपिः |
३०४५ |गहराघकसारणी ... ... (गणेद्ादे व्तः) ३१ १५१५८ संपूणौ | प्राचीनपत्राणि | दश्चमटग्साधनम्।
८७७ अहलाघवसारणी ,.. ...|... गा द | ५३ संपूणी । पूयेतो विभिन्ना | दशमल्रसा-
घनम् |
३०७८ |यहराघवसारणी ... “|. ड ८ |१६।४८ असमाप्रा | पूवेभिन्ना । महसाधनम् ¦
२०७५ [ग्रह राघवसूययैमध्यादिसा- |*-* == "| ५ |१२।४२ असमाप्रा | नवीनपत्राणि |
रणी
८६६ १७ १०६३३ ... | संप्रणः ।
ग्रहरखाघवे म रं
कारः; |
०१ 1: शि मि
ग्रन्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कतैनाम, |पत्राणि.| अक्ष
राणि,
२७७२क महसारणी .. -- "^|. १४ |१८।१२
२९५८ [म्हसारणी .- =+ ०... २२ | ९।४०
३०६० म्रहहोरा ..“ °=“ ०... = 4 |२६।६५
४००१ |चक्रोद्धारसारः ... विनायकद वन्नः | ८४ |१४।३८
जयदेवात्मजः
४९९० |चतुःषष्टियोगिनीप्रक्चविद्या 2 |१६।४६
हिन्दीभाषायाम्
११८८ चन्द्रकुण्डली भावाध्यायः ७ |१०।२५
४२३७० [चन्द्रोन्मीखनम् --- ~*-|-*“ २१ |१६।४७
११८९ ।चमत्कारचिन्तामणिः ...नारायणभट्ः ...| ९ |११।२९
२९१८ सएव... सप £ |१२।४८
२८३२ सएव... सएव ७ | ९६।५०
४००५ ।चमत्कारचिन्तामणिटीका |घर्मश्वरः १९ |५४।४२
अन्वयार्थदीपिका
१२१० (चौरप्रश्चः ... „~ „|. ,,, ...| १ |१२।२४
२९२४ [जगन्मणिः . .. -..- गिरिधरः वीरभ-। ७ | ८1३४
स्समजः
११९१ (जन्मकुण्डटिकाद्राद्दाभाव-|... २ |१०।२४
फम्
५०४२ख जन्मपच्निकानिमाीणव्यवस्था |... ७ | ९।२०
२९४६ |जन्मपद्धतिः ...|जयानन्दः मेधाक-| ३२ |१२।४१
रपुत्रः
#+८२९ |जन्मप्रदीपः =. -..|-*- < |१२।२४
३०१६क|जन्मेष्टकारश्ोधनम् .-.|- २ |१८।२०
३०७१ [जातककमपद्धतिः .. . मित्रसेनः ९ | ९।३१
(>
ङिपि.-
क 12१,
असमाप्त | नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
म्रन्थनाम न टब्धम् |
संपूणी । ण्डलायम्रन्मूठा । प्राचीन"
पत्राणि |
असमाप्त | नवीना कादमीरिकी लिपिः ।
ग्रन्थनाम संदिग्धम् |
असंपूणं आरम्भाभावात् | नवीना का-
रमीरिकी लिपिः | विरचनकाटः राके
१५९२ |
१९०९ संपूणी |
१९२४ | संपर्णैः |
संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
भावाध्यायः । संपरणैः |
भावाध्यायः । संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि ।
स्रीजातकम् । संपूर्णम् | जीर्णपत्राणि । कतो
नारायणभघ्रेऽठमीयते |
संपूणी । नवीना कारपमीरिकी छिपिः \
१९१०
संपूर्णः ।
संपूणैः ।
१८८८
संपूणम् ।
संपूणी । शारदालिपिः । विशिष्टं न्नाम
न न्धम् |
१८७६ | संपूणो |
संपूणैः ।
१९०९ | संपूर्णम् । गर्भ्काटशोधनमिलयपि नामः-
न्त्रम् |
संपूर्णां ।
१६० ज्योतिषम् [३००१-३०१८]
प्रणयः. छिपि.
म्रन्थाङ्कुः. ग्रन्थनाम, कतनम. |पृत्राणि.| अक्ष- | संवेदनम्,
| राणि | कालः.
४१०३ जातककामधेनुः -.- .--|*“ ~ -**| ९ (११।४६ १९४१ द्रादुशभावफलम् । संपूर्णम् ]
२८३८ |जातकगणितस्कन्धसंयरहः |... ... ...| १२९ (१३।३६ ... |संपूणैः | नवीना काश्मीरिकी रिपिः |
शरीमहाराजरणवीरतिदाज्ञया नानापण्डितः
कृतोऽयं जातकोपयोगिगगितसं रहः ।
‰२८८५ [जातकपद्धतिः .-- .- धर्मेश्वरः प्रभाकरः| १४ १०।३१| ... | संपूण । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
| पुत्रः
२८८४ [जातकपद्धतिः ... .. - केदावदैवन्तः ...| < | ७।३०| ... |संपूणो | नवीना काश्मीरिकी रिपिः । के-
रावीपद्तिरिति नामान्तरम् |
न्थस्याडवादोऽयमठमीयते |
१३।३७| ... |संपृणः । नवीना कार्मीरिकी चछिपिः |
शरीमहाराजरणवीररसिहभूपकारितोऽयं ना-
तकराख्रसम्रह्ः |
२८३७ ।जातकसंग्रहः =... .-..|... „> | र
८७९ [जातकपद्धत्युदाहरणम् .. . केदावदैवक्तः। वि- १०५ १०।२६। १९१८ | संपूर्णम् |
श्चनाथः दिवा
कृरपुत्रः
२१०१ तदेव ... ... ...| तावेव .:.| ३५ १६।५६| ... |संपूणम् | प्राचीनपच्राणि |
२७६४्क| तदेव ... ... ...| तवेव ...| ८४ ।२१।१५| ... |अस्माप्रम् | नवीना कारमीरिकी छिपिः|
३०२७ |जातकपद्धतिखिखनक्रमः. . .|--. ... ...| >| ९।४१| ... |असंपूणं आरम्भान्ताभावात् | प्राचीनप-
त्राणि |
२९९७ [जातकपरिपारीग्रवन्धः --.|... ... ...| ६३ |१६।४७] ... | संपूर्णः | नवीना कार्मीरिकी लिपिः |
४०६९ त्र अ अ अ ... ,..| ४०| ७।२८| ... ।असमाप्रः | नवीनपत्राणि |
८२५ जातकपारिजातः .-- .- -वेयनाथः वेद्कटा-| १०४ (१२।३४।सप्तर्षि- संपूर्णः |
द्वितनयः सं°
४९३८
२८८५७-८८| स एव ... ... .-| सए ...| ६२ ।१६।४८| १९१८ संपूर्णः | कारमीरिकी सिपिः |
२८८३ सएव... .-..- .-.-.| मए ...| १०२३।१३।३६ ... |अस्तमाप्रः |
३०७६ | स एव ... ... ..-| सएव ...| ८ |११।४५] ... |१.२.अध्यायौ | संपूर्णौ । नवीना का-
। रमीरिकी लिपिः |
४०९५ | सएव ... ..~ ..| सएव ...| £ |११।४२| ... | १७.अध्यायः | संपूर्णैः | नवीनपत्राणि |
२८३९ जातक फटस्कन्धः ५... ... ...| ३४३ ।१३।३६| ... |असंपूणैः | नवीना कारमीरिकी सिपिः |
श्रीरणवीरत्तिद रजेन्द्राज्ञया कृतोऽयं जात-
कोपयोगी फलस्कन्धः ।
४०५५ |जातकरलाकरः ... ..-|हरिर्वदापण्डितः ७ | ७।२७| १९४२ |४२.अध्यायः | संपू्णः | पारसीभाषामर-
[३०१९-३०४०]
~ ~ | ~ स्य न 7
अन्याङ्ः,
३०८० |जातकसारः
म्रन्थनाम, कतेनाम,
४०६२ |जातकादेदाः देवक्तदामोद्रः
२८२८ |जातकाभरणम् - "दुण्डिराजः नारा-
यणनाभिजातः
२९३६ | तदेव ... सएव
२७८२ | तदेव सएव
११९० | तदेव सएव
३०४८ तदेव सएव
२९२९ [जातकारुकारः ..गणेशदैवक्तः गो-
पाटपूः
२८२७ | सएव ... सएव
३०९९ | स एव ... सएव
२९४ [जातकारुकारटीका जातका-हरिभानुः जयक्-
ल्कृतिश्रीः ष्णपुत्रः
२७६०ख| सैव सएव
३०८७ | सेव ... ... ,..| सएव -
८८२ जेमिनिसूत्रव्याख्या सुबो- [नीरकण्डः जय-
धिनी रमंपूरिपुत्रः
२८७४ सैव सएव
२८७५ सेव सएव
२०३५ क्षानप्रदीपः „+ ,,.| ङ्क =
२९११ क्षानमज्री - . ऋपिरशमाचार्यः
२९१४ | रैव ... सएव
४१०७ ज्ानरलावलिः ` -|जयरलरः भाव्रनल-
शिष्यः
२८७३. (ज्योतिःसारससुचयः “नन्दः देवक्षमपुत्रः
३०२८ (ज्योतिःसिद्धान्तसारः ...मथुरानाथः
४१
पत्राणि, | अक्ष.
र्
९४
९२
| १३४
*| १०६
१८
1
२१
४८
२
११०
२८
ज्योतिषम् ।
श्रेणयः,
राणि,
१६१
१७।४३। १९२२ | संपूर्णः |
१०।३७| १९४१ | संपूर्णः |
१२।३४
१०।२८
२४।१८
१२।२२
१०।४१
९।२८
१२।४४
११।४९
११।२७। १९०१
२४।२३
२२।६४| ,..
१४।३४। १८८
१२।३१
१२।३०
२०।२४
१४।४१
२१।७०| ,..
७।२६ १९४१
१४।.१०
१५।६८
संपूर्णम् । नवीना कारमीरसकी छिपिः |
असंपूर्णमारम्भान्ताभावात् |
अतसमाप्रम् | नवीना कारमीरकी छिपिः |
असमाप्रम् |
असंपूणमारम्भान्तयोरभावाव् । प्राचीनप-
त्राणि |
संपूर्णः । प्राचीनपत्राणि । विरचनकाटः
शके १५३५ ।
अपसपाप्तः } जीर्णैपत्राणि |
आरम्भमात्रः |
संपूणी | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
संपूणी । नवीना कारमीरिकी छिपिः |
असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
१.२ अध्यायौ | संपूर्णौ | विरचनकाटः
शके १६७६ ।
१. २. अध्यायौ । संपूर्णौ | नवीना का-
रमीरिकी लिपिः |
३. अध्यायस्य १.पाद्ः संपूणैः |
असंपूर्ण आरम्भामावात् | जीर्णपत्राणि |
संपूणी । नवीना काहमीरिकी छिपिः |
१५५० शके किितपुस्तकादवतारित्-
मेतदित्यमीयते |
जीवभेदप्रकरणपर्यन्ता संपूणी |
संपूणौ |
संपूणः । नवीना कास्मीरिकी छिपिः |
असंपूणं आरम्भमध्ययोरभावात् । प्राची-
नपत्राणि |
१६२ ज्योतिषम् | [३०४१-३०६१]
ल न | न व| न्त संवेदनम्.
२८५९ (ज्योतिर्मिवन्धसर्वैस्वम् .... दिवराजः शूरम २४६ (१३।४२| १९२७ | संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी रिपिः |
हाटः
२७८० (ज्योतिविदाभरणटीका सुख-काछिदासः । भा-| २४६ १६।३६| १९१० | संपूण | टीकाविरचनकाठः संवत् ,७६८।
बोधिका वरलः
८६ | सैव ,.. ,.. ...| तवेव ...| ३६५ |१३।३५| ... .|संपूणा।
२९९३- (ज्योतिश्वन्द्रार्करचिकारिका |रुद्राचायैः महादे-| २३६ |१३।३९| १९३४ संपूणां । नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
२००० वपुत्र -
२९९९ | सैव ... .. सएव ...| २८७ |१२।५८| १९३६ | असमाप्रा |
२९७६ |ज्योतिपकल्पतरः ... .-.कविचूडामणिः | ॐ |१२।४६ ˆ" टोकिकस्कन्धः । असमाप्त: | नवीना का-
रमीरिकी लिपिः |
८2५ | सएव... ... ... सएव ...| ५६ |१४।४७] .-- | लकरिकस्कन्धः । संपूर्णो मध्यनतुटितत्वा्।
८५९ ज्योतिपरल्माटा ... ... श्रीपतिभट्रः ...| &६ १७।१५. १७८० संपूण
१९६१ | सैव ... ... „| सएव ...| ५७ १०।२२ १८२० | संपूणो |
रण्देद्च| सैव ,. ..; ...| सएव ...| ३० |२४।१८| .-. |संपूणां | नवीना कारमीरिकी छिपिः।
२७७८ |ज्योतिपरलमालारीका .-.|महादेवः ...| ३२३. |२५।१७| ... |अपतमप्ता | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
६्भूज तैव ... ... ..| सएव ...| ६१३।२१| .- [आरम्भमात्रा। मूत्रेषु शारदालिपिः ।
१२००खज्योतिपरहस्यम् हक ७४४।००५ ,.. | २ |१०।१८| ... | संपूर्णम् ।
९९० (ज्योतिपसंग्रहः --- --|-- ... ...| २६ | ८।३७| ... |संपूणैः |
२८९७ ज्योतिष्केदारः ... ... कृपाशंकरः जू-| ३० |१२।४०| ... | संपूणैः | नवीना कारमीरिकी लिपिः ।
| रासः कतंपितुर्नाम चछाजूराम इति च्छवृराम
इति च रूपद्येन भ्यते | विरचनकाटः
शके १६८४ |
८४७ | सए ... ... ...| सएव ...| ३२ १२।३३| सस° |संपूणः |
४९३८
२७०० ज्योतिस्तच्वम् ... ~ रघुनन्दनमट्धा- | ६ |१०।७२्| ... संपूणेम् । नवीनपत्राणि |
चायः
२९४३ तच्वप्रदीपः ,.. ... श्रीपतिः ...| ८ १०।३३ ... | संपूणैः । तच्छप्रदीपजातक्रमिल्यपि नामा-
न्तरम् |
४०९९ | सएव... ... ..| सएव . .-.| ७ |१०।३२।१९४१ | संपूणैः ।
४०९६ | सण... ,.. ..| सएव ...| ५ |११।४९| १९४१ सपणः | |
३९९० |ताजिकतन्रसारः .-. --.|समरसिहः कुमार | २३ |१३।३६| .- संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी लिपिः | कमे-
पिहासनः प्रकाशः मदष्यजातकमिलयपि नामान्तरे।
ै
सारणी
ठिपि-
कालः.
१२।४६ ,..
२४।१७ ...
९।१९ . ..
[३०६२-३ ०७५] ज्योतिषम् ।
श्रेणयः.
` भन्थाङ्कः, ग्रन्थनाम, कतैनाम, पत्राणि, | अक्ष-
राणि,
<२८ |ताजिकतच्रसारत्रत्तिः कर्म॑प्र-नारायणभटः सा-। ५६ |१७।४१
कादिका ` सुद्विकोपना-
मकः
३९९५ | रैव सएव ४१ |१४।३६
३०६८ | सेव सएव ३१ |१६।३२
३०१२ |ताजिकपद्धतिः . . केदरावः २ |१६।४३
३०८५। [ताजिकपद्धतिटीका - ` विश्वनाथः दिवा-| ३१ |१०।३३
2०९१ करपुत्रः
२७७०८ ताजिकभूपणम् =“ ` * गणेरागणकः ट् २ [२७।२०
ण्डिराजात्मजः
३०८३ | तदेव ...| सएव १३ [२०।१८
२७८१ |ताजिकव्याख्योदाहृतिः ... नीलकण्ठः अनन्त-। ५९ |२३।१६
पुत्रः | विश्वना-
थदे वत्तः
४९८९ |ताजिकविव्रणं दि शुबो- नीरखकण्ठः अनन्तु-| २१ [२८।३६
धिनी पत्रः। माधवज्यो-
तिर्वित् गोविन्द-
| ष्ट
२९६७ (ताजिकव्याख्या श्रीफख्वधि-नीटकण्डः अन-| १२० |१२।४६
नी न्तपुत्रः| श्रीह षै-
धरपण्डितः मु-
धाधरात्मजः
२९६८ | सेव तावेव ६०
२८३४ ।ताजिकसंहिता ..- „|... .| २९३. |१३।३६
२७७१जताजिकसारः .. .हरिभद्र गणकः स्थे
३०२० सस्व ... स ष्व ५५१
६०८२ (तिथिचिन्तामणिः ... |गणेद्ाः ..“ 1
३०६७ |तिथिचिन्तामणिग्रह खाघव- |... २ |१३।२३
१६
सेवेदनम्,
संपूण |
संपूणो | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
असमाप्रा | नवीना काश्मीरसिकी लिपिः |
असमाप्रा | प्राचीनपत्राणि |
संपूणो | प्राचीनपत्राणि | म्रन्थो विभिन्ना
चिदहितपुस्तकद्रयेऽवल्व्यः |
संपूर्णम् । नवीना कारमीरिकी लिपिः |
असंपूणे मध्यत्ुख्न्तामावात् । जीर्णपत्राणि।
असंपूणौरम्भामावात् । नवीना कारमी-
रकी लिपिः । मूटस्य संज्ञाविवेक इति
च नाम न्धम् |
सहमप्रकरणम् । संपूर्णम् | नवीना कारमी-
रकी लिपिः |
द्वितीयप्रकरणान्ता संपूणो । नवीना का- ,
र्मीरिकी लिपिः |
वषेफर्तन्रम् । संपूर्णम् । नवीना कारमी-
रिकी लिपिः
असमाप्त | नवीना कारमीरिकी छ्िपिः।
श्रीमहासजरणवीर्मिदृद्धपाज्ञया कृतो ऽये
ताजिकश्ाखसंमहः |
संपूर्णः । नवीना कारमीरिकी छिपिः ।
अप्माप्तः | प्राचीनपतच्राणि|
१०।२३।१९११ | संपूणैः |
असमता |
१६७ ज्योतिषम् । [३०७८-३ ०५९]
न नन | त दा न्न मन्नाम,
२०५९ (तिथिसौरभं नक्षत्रसोरभं च|... ... „| ५ १३।२९| ... .| असंपू॑मारम्भान्तयोरभावात् ।
२०४९ ्रिविक्रमशतकम्... ~~~ त्रिविक्रमः नाराय-| १० | ८।३२| ... | संपूर्णम् । प्राचीनपत्राणि | व्रह्मव्यवहार्
णपुत्रः इति नामान्तसम् |
८५२ | तदेव ... ... ...| सएव ...| ५।१२।३६ ... [संपूर्णम् |
२८०६ त्रिविक्रमदातकटीका --* गोपीनाथः ...| ३० १०।३६। रके | संपूर्णा |
१५६०
*+२९७८ देवक्तवलभः ०. ..,. तिकरपण्डितः | १५९ |।११।२९ ... संपूणैः |
द्विवेदी
२७९८ दादरख््फलप्रश्नाः ..-| ~. .- ...| २३ ।१२।३९ ... |संपूणौः | प्राचीनपच्राणि ।
८६९ (धीकोटिकरणे चन्द्र सूर्यय्रह- श्रीपतिः ...| २१६५४ ... |संपूणः |
` णाधिकारः
२९१९ घीकोटिकरणोदाहरणम् ...|हरिकृष्णः ...| ५ ।१०।३६| ... | संपूर्णम् |
३०८४ |नक्षत्रपन्निकासंपादनसा- |... .. „| ९ |१०।१७| ... |संपूणो । कृतेनोम मन्थे न दृष्टम् |
रणी (२)
२०९३ | सेव... ... ...... ... ...| २| ९।१७| ... |असमाप्रा |
३००६ [नरपतिजयचयौ ... .-- नरपतिः नरदेव-| १७६ [२०।१६ ... [संपू्णी | नवीना कारमीरिकी छिपिः। वि-
पुत्रः रचनकाठः संवत् १२३२ | स्वरोदय
इति नामान्तरम् |
र७्७्दक| सैव ... ... ...| सएव ...| ९९ |१६।१७ ... |असमाप्रा। नवीना कारमीरिकी लिपिः।
२७९३ | सेव... ... | सएव ...| ५५ |१३।५६| १९१८ |असंपूणीरम्भाभावात् |
२०३१ | रेव... ... ...| सएव ...| २४ १३।२९ ... |असमाप्ना | प्राचीनपत्राणि |
३०९८ | सेव „~ ..~ -..| सएव ...| १८|८।३२्| ... |असंपूणौरम्भान्ताभावात् | प्राचीनपत्राणि ।
२७७४ख|नरपतिजयचयाटीका जयल- हरिवंशकविः .-.| १७७ [२४।१७। १९०९ | संपूण | नवीना कारमीरिकी रिपिः |
क्ष्मीः
०२२ | सेव ... ... ...| सएव ...| ४ ११।३४ ... | तेचरभूचरचक्रम् | संपूर्णम् |
३०८१ |नरपतिजयच्यारीका ~. नरहरिः ...| ३ २०।६२| ... |आरम्भमात्रा । नवीनपच्राणि |
११८१ |नवग्रहदानचक्रादि ...-.. ... ...| ३ ।१३।३२ ... | संपूर्णम् | अन्ते काकसंयोगविष्टादिफट-
मपि ठमभ्यते |
३०१७ख नणएटजातकरीका ... ,*..|... कह $ |२२।२२ १९०९ संपूणो |
३९९८ |नारदसंहिता -.“ “|. ..+ ...| ३५ ।१५।३८| १९३५ | संपूणा | नवीना कारमीरिकी लिपिः |
४०४६ (पञ्चश्टोकिताजिकटीका सु- [वाकृष्ण । ..:| ९ |१०।३६| १९४१ |संपूणो | टीकाकतृनाम न लब्धम् |
बोधिनी |
[३१ ००-३१२२1
२९०८
१०८०
२९२८
२३०९२
2०७४
२९०२
४९७
ज्योतिषम् । १६५
~न ~~ [न प्च ~ `
श्रेणयः.
कर्तृनाम, |पत्राणि,| अक्ष- | छिपि- सवेद नम्,
राणि, क्ट,
3
प्क र रक र| 7 १५ | ९।३५ असमाप्त: |
पटटीपतनसरटग्ररोहणयोः (गर्गः)... ३. (११।३४ संपूर्णम् । शान्तिविधिरपि ठभ्यतेऽन्ते |
फरुम्
पवनविजयः ... ...... | १८ |१२।३९| १८५० |संपू्णैः | स्वरोदय इत्यपि नामान्तरम् ।
पाचकदशाक्रमः ... ...|-.. += क्म द| १३४ असंपूर्ण आरम्भान्ताभावात् |
पाटीगणितीका ... “श्रीधराचार्यः ...| १५७ | ९।४४ असमाप्रा । नवीना कार्मीरिकी लिपिः ।
टीकाकतृनाम न टब्धम् |
पातसारणीविवरतिः ..-गणेशः केशवपुत्रः|| ४ |१९।५३ हके |संपूणी ।
विश्वनाथः १७४६
पारसीग्रकादाविनोदः ... वेदाङ्गरायः २० |११।३६| १८८५ |संपू्णैः | श्रीमच्छाहिनहामहरैन्द्रसज्ये वि-
रचितः | व्रजमूषण इति मन्धद्न्नामा-
न्तर पुस्तकान्ते भ्यते |
र पतु र सएव १९ | ९।४५ असंपूणं आरम्भान्ताभावात् |
५६२
{-॥ © ©
पाराशरजातकं हिन्दीभाषा-|पाराशरः। विष्णु-
टी कासदितम्
दासः
३०३८ख पारिजातशाखे प्रश्चशाखम् |...
४८०५ |पाद्ककेवरी . | गग॑सुनिः
४११४ | सेव ... सएव ॥
२०९० पप्रतोदुयच्रटीका ,..गणेदादैवक्तः ...
२०४४ प्रक्नत्तानम् ... . *. |भटोत्पखः
११९३. प्रश्नत्तानम् ... || कयः,
२९२० प्रश्षतच्वम् ... °. "चक्रपाणिः सलयध-
रपुत्रः
११८७ प्रश्षदीपकम् * ` *|भवानीनाथः ...
४०९२ पप्र्निणैयः..+ ,,+ ,,.|.५, र
२९४७ (प्रश्नप्रक्छारः ..* ००, ,,..|*.,
१०१७ (प्रश्नप्रचण्डश्चरः ,,, ,..|... व
३०८८ (प्रश्चप्रदीपः ... - *. काशीनाथः
४०६१ | सएव... ,.. पए ,..
२९१६ च. घत कन ०9४ तएव
४२
१५।४३ १८०५ | संपूर्णम् |
३ ।१२।४६ रलाकरखण्डान्तगतम् | संपूर्णम् | प्राची-
नपत्राणि |
१२ |१०।२६ संपृणा । प्राचीनपत्राणि । पाश्चकपरश्नाव-
टीति नामान्तरम् |
८ | ९।४५| ... | संपूणां । नवीनपत्राणि |
२ |१६।५०| १९०९ | संपूणौ |
५ | ९।२९ संपूर्णम् । प्रश्रकल्िकेति नामान्तरं मन्थान्ते |
४ |१०।२० संपूर्णम् । पूवैभिन्नम् ।
२७ | ७।२७ संपूणम् | नवीना कारमीरिकी खिपिः |
£ |१०।२९ संपूर्णम् | प्राचीनपत्राणि |
३ १०।३७| १९४१ | संपूणैः | नारदोक्ता प्रशषनिर्णय इयन्त |
२५ .११।३३ असमाप्त: | नवीना कारमीरिकी छिपिः |
४ १६।४३। ... | संपूर्णः |
७ (२६।४२| १९०९ | संपूर्णः |
२१ | ७।२५ असमाप्त |
१४।१०।३०| .,.. | असमाप्त | प्राचीनपत्राणि |
१६६ ज्योतिषम् | [३१२३-३१४५]
-[ ~ [= न्ह ~
श्रेणयः.
मरन्थाङ्कः. म्रन्थनाम, कतनाम, |पत्राणि.| अक्ष न स्वेदनम्.
राणि, | ग.
स
३०१८ प्रक्षप्रदीपः -.~ = |“. "** “| २७ १२।३१| ... | असमाप्त: | प्राचीनपत्राणि । पूवम्रन्थवि-
भिन्नः |
५०२१ प्रक्षमनोरमा -- "गगः ... ...| २१०३४] ... | संपूर्णा | प्राचीनपत्राणि।
¶१२०्७्ग| सेव ... . „| सएव ...| ३।१०।१८| ... [संपूण |
२१०० | सेव ~ ~ ...| सएव ...| ३ १४।४८| ... | संपूर्